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संघियों के कॉरपोरेट्स देश में भूखा-नंगा गुलाम देश

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संघी बौरा गया है. उसे कुछ भी नहीं सूझ रहा है. उसे जनता से तो कोई मतलब है नहीं. मंहगाई, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार, व्यभिचार, हत्या, बलात्कार वगैरह उसके लिए सदाचार में बदल चुका है. उसका एकमात्र लक्ष्य है किसी तरह देश को अंबानी-अदानी जैसे चंद कारपोरेट घरानों के हवाले कर देना. तुर्रा यह कि वह यह सब देश के नाम पर कर रहा है.

सिर के बल खड़े संघी का समझ है कि देश बचेगा तो हम बचेंगे. उसके देश की इस परिकल्पना में मनुष्य का, लोगों का कोई जगह नहीं है. इसीलिए वह इस आधारभूत सच्चाई को मानने से साफ इंकार करता है कि लोग है, तभी देश है. यानी लोग ही देश है, लोग खत्म, तो देश खत्म. लेकिन संघियों का देश तो अंबानी-अदानियों जैसे चंद कारपोरेट घरानों के चरण ही है, बांकी सब दास है, गुलाम है, मनुष्यता से रहित कीड़े-मकोड़े है.

यही कारण है कि संघियों ने इस ‘देश’ की रक्षा के लिए हत्यारों, बलात्कारियों समेत देश की तमाम संवैधानिक संस्थानों मसलन, सेना, पुलिस, अर्द्ध सेना, सुप्रीम कोर्ट, सीबीआई, ईडी जैसों को इस देश की करोड़ों जनता पर हुला दिया है, भिड़ा दिया है. संघियों के ‘देश’ की इस परिकल्पना में इस देश की करोड़ों आदिवासी, शुद्र, अल्पसंख्यक, महिलाएं दास हैं, जो उसके मालिक अंबानी-अदानियों जैसे कॉरपोरेट घरानों के खजानों को भरने के लिए अभिशप्त है.

इतना कुछ करने के बाद भी संघी जिसे गुलाम समझता है, वह गाहे-बगाहे विद्रोह, विरोध करता ही रहता है. संघी तो इन सबसे निपटने के लिए सेना-पुलिस को तो हुला ही रहा है, लेकिन वह कब तक इन दासों-गुलामों का दमन कर खुद को और अपने मालिकों की रक्षा कर सकेगा, इससे आतंकित इसके मालिक खुद है. यही कारण है कि लाखों की तादाद में इसका मालिक अपना लाखों-करोड़ों का धन-दौलत समेटकर इस देश को छोड़कर विदेशों में भाग रहा है.

आंकड़ों की ही हम अगर बात करें तो संघियों की इस मोदी सरकार के महज आठ साल के कार्यकाल में इस देश के लाखों घन्नासेठ मिलकर लाखों करोड़ रुपये लूटकर विदेश भाग गया है. संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के मुताबिक 2020 में देश से बाहर रहने वाले लोगों की संख्या 18 मिलियन यानी एक करोड़ 80 लाख है. वहीं, 2015 से सितंबर, 2021 तक करीब नौ लाख लोगों ने भारत की नागरिकता को लात मार दी.

केंद्र की संघी मोदी सरकार ने अपनी विफलता छिपाने के लिए संसद को बताया कि जितने लोगों ने नागरिकता छोड़ी है, उनके कारण निजी हैं. मगर जब ये लोग नागरिकता छोड़ने के वक्त यह बताते कि सरकार की नाकामी के कारण वे ऐसा कर रहे हैं, तो क्या इनको इजाजत भी मिल पाती ? एक बात तो साफ है कि भाजपा सरकार में न तो शिक्षा व्यवस्था सही है, न कारोबारी व्यवस्था. सरकार ने यह भी बताया है कि अमुक-अमुक देशों में इतने-इतने भारतीय जाकर बसे हैं. इस सूची को देखकर यही कह सकते हैं कि किसी गरीब ने नागरिकता नहीं छोड़ी है.

साफ है, इन लाखों धन्नासेठों ने इस देश से लाखों करोड़ रुपये बटोर कर अपने साथ विदेश ले गया है, जिससे इस देश की अर्थव्यवस्था को भारी नुकसान हुआ है. अब हमें यह भी आंकलन करना चाहिए कि हमारे देश का कितना पैसा विदेश गया ? संघी ऐजेंट मोदी सरकार जिसने हर प्रकार के आंकड़ों को ही छिपा रखा है, ठीक-ठीक कोई नहीं बता सकता है कि देश को लूटकर कितना धन विदेशों में जमा हुआ है.

अंदाजा लगाने के लिए इससे ही समझा जा सकता है कि जिस काले धन के घोड़े पर सवार होकर संघियों ने देश की सत्ता पर कब्जा किया है, वह इन आठ वर्षों में दुगना सै भी अधिक हो गया है और विदेशी कर्ज लगभग तिगुना हो गया है. ऊपर से अंबानी-अदानियों का भारत के विभिन्न बैंकों से लिया गया तकरीबन 12 लाख करोड़ रुपये का ऋण माफकर जमकर रेबड़ियां बांटा.

अभी ताजा खबर के अनुसार संघी ऐजेंट मोदी ने 5 लाख करोड़ रुपया का टैक्स अंबानी-अदानियों जैसे कॉरपोरेट घरानों का माफ कर दिया और बदले में देश की करोड़ों गुलामों के मूंह के निवाला रोटियों पर टैक्स लगा दिया, ताकि संघियों के मालिक इन कॉरपोरेट घरानों की झोली और ज्यादा भरी जा सके.

संघियों को इस बात से कोई मतलब नहीं रह गया है कि इस देश की करोड़ों गुलाम जनता भूख से मरे या आत्महत्या कर ले. ऐसे वक्त अमित शाह के उस बयान को भी याद करने की जरूरत है जिसमें उसने देश के 100 करोड़ आबादी को घुसपैठिया बतलाया था और उसे देश से खदेड़ने या खत्म करने का संकल्प लिया था. सवाल यह है कि देश के ‘सौ करोड़ घुसपैठिया’ कब और कैसे मारे या खत्म किये जाते हैं. संघियों का मौजूदा आठ साल इसी प्रक्रिया का रिहर्सल है.

सोशल मीडिया पर मौजूद एक आलेख कुछ इस तरह लिखता है –

इस देश के जो कॉरपोरेट हैं उन कॉरपोरेट की इकोनॉमी इस देश की इकोनॉमी पर ना सिर्फ भारी है बल्कि उन्हें उनका मुनाफा, मार्केट में पैसा भेजना मैटर करता है. शायद इसीलिए कोरोना काल के जिस दौर में भारत की इकोनॉमी लगातार नीचे जा रही थी, उस कोरोना काल में देखें तो 30 बड़े उद्योगपति इस देश के भीतर में ऐसे थे जिनकी नेटवर्थ डबल हो गई. ये डबल उस पीरियड में हुआ जिस पीरियड में भारत की औसत कमाई 7 फ़ीसदी से नीचे हो गई.

अगर हमारी पूरी इकोनॉमी का ढांचा सिर्फ़ उन कॉरपोरेट्स की पूंजी पर निर्भर है और वह अलग-अलग सेक्टर में अपने अपने पूंजी को निकाले और कम से कम भारत की अर्थव्यवस्था का चक्का घुमाते रहे तो इसका मतलब साफ है कि भारत सरकार या कह लें मोदी सरकार की आर्थिक नीतियां जनता के लिए, जनता के जरिए और जनता के ऊपर खर्च करने की परिस्थितियों से खत्म हो गई है. कभी प्रधानमंत्री ने कहा था कि देखिए हम 5 ट्रिलियन इकोनॉमी बनाएंगे. आज की तारीख में अगर देखा जाए तो भारत की इकोनॉमी 2.73 ट्रिलियन डॉलर है यानी भारत छठे या सातवें नंबर पर है.

भारत की इकोनॉमी की तुलना अमेरिका और चीन से तो कर ही नहीं सकते लेकिन भारत जब 5 ट्रिलियन कहता है तो उसे लगता है जापान की जो 4.97 ट्रिलियन डॉलर इकोनॉमी है उसके पास पहुंच जाएगा और जर्मनी की इकोनॉमी जो 4 ट्रिलियन की है उसको भी पीछे छोड़ देगा.

इसका मतलब एक लिहाज से ये है कि भारत की इकोनॉमी छलांग लगाकर तीसरे नंबर पर आ सकता है. हो सकता है कि तीसरे नंबर पर आ भी जाए इससे इंकार नहीं किया जा सकता है क्योंकि दुनिया के सामने मोदी सरकार के द्वारा भारत की जीडीपी और विकास दर दुनिया के तमाम देशों की तुलना में सबसे ज्यादा दिखाई जा रही है, तकरीबन 8 फ़ीसदी.

अब आप लोग समझ सकते हैं कि आंकड़ों को लेकर ढोल ना पीटे तो बेहतर है, क्योंकि आंकड़ों को छुपाने का भी भारत पर लगातार आरोप लगता है. फिर चाहे वह बेरोजगारी हो, कोविड-19 में हुई मौतें हों, भविष्य निधि फंड (PF) का हो, कॉरपोरेट टैक्स में रियायत हो या फिर गरीबी रेखा से नीचे रह रहे लोगों का ज़िक्र हों.

अब आपलोग समझ ही गए होंगे मैं क्यों कह रहा हूं कि मोदी सरकार की नजर में अर्थव्यवस्था को लेकर सिर्फ चंद कॉरपोरेट हैं या कॉरपोरेट हाउसेज है मगर जनता नहीं हैं. अब भारत का एक डरावना अंदरूनी सच जानिए. यूनाइटेड नेशंस की एक रिपोर्ट आई – ‘स्टेट ऑफ फूड सिक्योरिटी एंड न्यूट्रिशन इन द वर्ल्ड.’ उसमें जानकारी मिली कि दरअसल दुनिया भर में जो कुपोषण के शिकार या भूखे लोग हैं उनकी संख्या लगभग 77 करोड़ है और इस रिपोर्ट में भारत टॉप पर है. भारत में साढ़े 22 करोड़ लोग भूखे हैं.

कॉर्पोरेट का जिक्र आते ही भारत में अंबानी और अडानी का जिक्र होता ही है और संयोग देखिए ऐसा है कि भारत की अर्थव्यवस्था से अगर अडानी और अंबानी की तमाम इंडस्ट्री को अलग कर दिया जाए, तो भारत की अर्थव्यवस्था ढहढहा कर गिर जाएगी. मसला ये नहीं है कि वह कितने बिलियन डॉलर की इकोनॉमी है और उसका नेटवर्थ कितने बिलियन डॉलर का है, दुनिया के मानचित्र पर कोई पांचवें नंबर का रईस है तो कोई ग्यारहवें नंबर का रईस है.

तो मसला ये है कि इस देश के भीतर सुदूर गांवों के खेतों में भी पहुंचे तो वहां पर भी और कॉर्पोरेट का दखल, मजदूरों से काम कराएं वहां भी कॉर्पोरेट का दखल, जो अनाज पैदा हो उसको जब गोदाम में रखने जाएं तो वहां भी कॉरपोरेट का दखल, गोदाम से जब अनाज निकले और बाज़ार में जाए तो उस रिटेल सेक्टर में भी कॉरपोरेट का दखल.

इतना ही नहीं ग्रॉसरी से जुड़ी तमाम चीजें यानी खाने-पीने के सामान से लेकर जैसे ही आप आगे बढ़ेंगे आपके जेहन में बेसिक इंफ्रास्ट्रक्चर रेंगने लगेंगे. हो सकता है आपके नजर में बंदरगाह आए, एयरपोर्ट आए, टेलीकम्युनिकेशन आए, रेलवे आए या कुछ भी. आज की तारीख में अडानी का नेटवर्थ 105 बिलियन डॉलर है, अंबानी का नेटवर्थ 87 बिलियन डॉलर है. लेकिन जब हम खेत-खलिहान से, ग्रॉसरी के बाजार से निकलकर आगे आते हैं और इस देश को चलाने वाली परिस्थितियों को लेकर देखते हैं तो पता चलता है कि सरकार के पास कुछ भी नहीं है.

एनर्जी का ज़िक्र, बंदरगाहों, हवाई अड्डों का, रेलवे या फिर प्लेटफार्म तक का ज़िक्र, ट्रांसपोर्ट का ज़िक्र जिसमें सड़कों पर ट्रक दौड़ते हैं, उस सड़क को बनाने का ठेका भी इन्हीं कॉरपोरेट्स के पास है, इसमें अंबानी अडानी के साथ कुछ चंद कॉरपोरेट्स को और जोड़ दीजिए. मसलन चंद कॉरपोरेट्स के हाथों में देश के पूरी अर्थव्यवस्था की बागडोर दिखती है.

ऐसे में जब कॉरपोरेट्स के लगभग गुलाम बन चुके देश की जनता जब मोदी सरकार से कोई भी राहत की मांग करती है तब निश्चित तौर पर मोदी सरकार उसे सिवाय सेना-पुलिस की लाठी गोली के और कुछ भी नहीं दे सकती क्योंकि उसके पास अब कुछ है ही नहीं. जहां पर सेना-पुलिस की लाठी गोली काम नहीं आ पाती है वहां के लिए सीबीआई, ईडी, इन्कम-टैक्स और सुप्रीम कोर्ट का दल्ला जज सामने आ जाता है. दल्ला गोदी मीडिया तो है ही चौबीस घंटों मोदी और कॉरपोरेट्स पुराण गाने के लिए.

अपने ही देश में कॉरपोरेट्स का गुलाम बन चुकी देशवासियों के सामने किसी भी प्रकार के विरोध करने का कोई भी माध्यम नहीं बचा है सिवा इसके कि वह अपनी सशस्त्र सेना बना कर इन कॉरपोरेट्स मालिक और उसके कारिंदों के खिलाफ सशस्त्र विद्रोह कर देश की सत्ता पर काबिज हो जाये.

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