Home कविताएं उन्होंने चलना सीख लिया है..!

उन्होंने चलना सीख लिया है..!

0 second read
0
0
357
उन्होंने चलना सीख लिया है..!

वे चल पड़े हैं दिल्ली को,
उन्होंने चलना सीख लिया है..!
जो घर में अब तक बैठे थे,
उन्होंने लड़ना सीख लिया है..!
वे चल पड़े हैं दिल्ली को,
उन्होंने चलना सीख लिया है..!

उन्हें अपनी ताकत का अहसास नहीं था,
करने को कुछ खास नहीं था..!
गुरुओं ने जो पाठ सिखाए,
अब उन्होंने पढ़ना सीख लिया है..!
वे चल पड़े हैं दिल्ली को,
उन्होंने चलना सीख लिया है..!

मज़हब नहीं सिखाता,
आपस में वैर रखना..!
इस बात को वे समझ गए,
साथ वे भी आ मिले,
जो रास्ता थे भटक गए..!
हल पकड़ते हाथों ने,
अब परचम पकड़ना सीख लिया है..!
वे चल पड़े हैं दिल्ली को,
उन्होंने चलना सीख लिया है..!

वे शांत बैठे थे अपने घर में,
रूखी सूखी खा लेते थे..!
सब्र शुक्र बहुत था उनमें,
गुरू की वाणी गा लेते थे..!
पर ज़मीन पे उनकी जब डाली नज़र,
तब पढ़ना उन्होंने छोड़ दिया है..!
वे चल पड़े हैं दिल्ली को,
उन्होंने चलना सीख लिया है..!

हुक्मरान ये भूल गए,
वाणी में चंडी का वार भी है..!
एक हाथ में गर हल है उनके,
तो दूजे हाथ तलवार भी है..!
सरहदों के इन रखवालों ने,
अब किले पे चढ़ना सीख लिया है..!
वे चल पड़े हैं दिल्ली को,
उन्होंने चलना सीख लिया है..!

वे शहादत देते आए हैं,
उन्होंने अमर तराने गाए हैं..!
आतंकवादियों से वे डरे नहीं,
उन्होंने अपने बहुत गंवाए हैं..!
मज़हब उनके लिए इबादत है,
नफरत की चीज़ नहीं..!
भूखा अगर कोई सोया है,
तो वे भी न सोने पाया है..!
हक के लिए अपने,
अब उन्होंने खड़ना सीख लिया है..!
वे चल पड़े हैं दिल्ली को,
उन्होंने चलना सीख लिया है..!

वे चल पड़े हैं दिल्ली को,
उन्होंने चलना सीख लिया है..!

  • मनमोहन सिंह

प्रतिभा एक डायरी स्वतंत्र ब्लाॅग है. इसे नियमित पढ़ने के लिए सब्सक्राईब करें. प्रकाशित ब्लाॅग पर आपकी प्रतिक्रिया अपेक्षित है. प्रतिभा एक डायरी से जुड़े अन्य अपडेट लगातार हासिल करने के लिए हमें फेसबुक और गूगल प्लस पर ज्वॉइन करें, ट्विटर पर फॉलो करे…]

Load More Related Articles
Load More By ROHIT SHARMA
  • गुरुत्वाकर्षण के विरुद्ध

    कई दिनों से लगातार हो रही बारिश के कारण ये शहर अब अपने पिंजरे में दुबके हुए किसी जानवर सा …
  • मेरे अंगों की नीलामी

    अब मैं अपनी शरीर के अंगों को बेच रही हूं एक एक कर. मेरी पसलियां तीन रुपयों में. मेरे प्रवा…
  • मेरा देश जल रहा…

    घर-आंगन में आग लग रही सुलग रहे वन-उपवन, दर दीवारें चटख रही हैं जलते छप्पर-छाजन. तन जलता है…
Load More In कविताएं

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Check Also

कामरेडस जोसेफ (दर्शन पाल) एवं संजीत (अर्जुन प्रसाद सिंह) भाकपा (माओवादी) से बर्खास्त

भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) ने पंजाब और बिहार के अपने कामरेडसद्वय जोसेफ (दर्शन पाल…