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यूक्रेन युद्ध : पक्षधरता और गुलामी के बीच डोलता भारतीय ‘बुद्धिजीवी’

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यूक्रेन युद्ध : पक्षधरता और गुलामी के बीच डोलता भारतीय 'बुद्धिजीवी'
यूक्रेन युद्ध : पक्षधरता और गुलामी के बीच डोलता भारतीय ‘बुद्धिजीवी’

पश्चिमी देशों की तुलना में भारतीय जनमानस नई वस्तुस्थिति को स्वीकार करने में लगभग 40 वर्षों का फासला रखता है. यानी कि भारतीय सामाजिक रहन सहन किसी खास स्थिति को कबूलने में पश्चिमी देशों से 40 वर्ष पीछे है. दक्षिण एशिया में भारत को यूं तो एक अप्रत्याशित उभरती आर्थिक महाशक्ति के तौर पर देखा जा रहा है लेकिन भारत के मेहनतकश तबके के लिए ये सिर्फ एक ‘परीलोक की कथा’ की तरह रहस्यमय बना रहेगा. भारतीय सामाजिक ढांचे को मजबूती से नये वैचारिक समय के साथ संतुलन बनाए रखने के लिए यहां के स्वघोषित जननेताओं ने बिल्कुल पहल नहीं की.

यहां का बुद्धिजीवी, जागरूक नेता, भारतीय मेहनतकशों की मुक्ति से संबंधित विषयों पर अध्यात्मिक तिलिस्म व अराजकपूर्ण राजनीति से बाहर नहीं निकल सके. इसलिए अगर आप किसी स्कूल विद्यालय का दौरा करते हुए किसी विद्यार्थी से ये पूछें कि ‘हमारी गरीबी का क्या कारण है ?’ तो वह तपाक से जबाब देता है – ‘ये तो भगवान की मर्जी है‌.’ बहुत कुरेदने पर भी आप छात्र छात्राओं को गरीबी से निजात दिलाने के राजनीतिक समाधान भरी टिप्पणी नहीं सुन सकते और इस जाहिलता को और सख्त व फसादी बनाए रखने के लिए पूरा सिस्टम एक खास षड्यंत्र के तहत राज-काज चलाता है.

यहां पर ‘ह्वाट्सएप चैटिंग स्क्रीन शॉट’ में रूस यूक्रेन युद्ध पर मेरी पोस्ट को लेकर एक मोहतरमा बहुत बुरी तरह भड़क उठी हैं. ये मोहतरमा मध्य भारत के एक प्रांत में कालेज प्रवक्ता हैं. दिमाग से इतनी पैदल हैं कि इन्हें अपने विषय रसायन विज्ञान पर नाज है और राजनीति करने वाले लोग एकदम दिमाग से डब्बा लगते हैं. वैसे तो एक अदद सरकारी नौकरी हड़प लेने के बाद सभी का अहंकार पेचिस मारने लगता है लेकिन इन मोहतरमा का तो आलम ही न्यारा है.

इनके हिसाब से राष्ट्रपति पुतिन सोवियत रूस को तोड़ने वालों में से एक थे. अमेरिका ने पुतिन से वादा किया था कि वो पुतिन शासित रूस को नाटो में पहला स्थान देंगे लेकिन अमरीका ने ऐसा नहीं किया, अब पुतिन अमरीका से बदला ले रहे हैं बगैरह बगैरह. हमने कहा – ‘हमारे पास तो ऐसी कोई जानकारी नहीं है कि पुतिन से अमरीका ने नाटो में खास जगह देने का वादा किया हो, आपके पास कोई समाचार लिंक या पुस्तक सामग्री हो तो बताइए.’ मोहतरमा कोई सामग्री न दे सकी और ह्वटसप यूनिवर्सिटी के ज्ञान को अंतिम ज्ञान समझने की नसीहत दे रही थी.

खैर, भारत में अमूमन शिक्षक वर्ग की यही त्रासदपूर्ण स्थिति है. भारतीय शिक्षक दोहरी जिंदगी जीते हैं. यहां का साइंस टीचर भी देवी देवताओं के नाम उपवास व्रत रखकर विद्यालय जाता है. यहां विज्ञान विषयों पर सख्त नियंत्रण रखने वाले लोगों टीचर, प्रोफेसर, तकनीशियन सभी के घरों में फोटो फ्रेम में उनके भगवान देवी देवताओं के फोटो व दरवाजे पर मिर्च-नींबू टांगा हुआ मिल जायेगा. जब शिक्षक का विषय, मत, मतांतर का कोई मतलब नहीं होता है तो फिर ह्वाट्सएप यूनिवर्सिटी पर निर्भरता से चीजें भला कैसे ठीक हो जायेंगी ! जब बौद्धिक स्तर पर ही गाद जमी पड़ी हो तो देश दुनिया पर टीका-टिप्पणी भी ऐसी ही हास्यास्पद ही होंगी.

बुद्धिजीवियों शिक्षक वर्ग व सभी जागरूक तबके को रूस यूक्रेन युद्ध को अंतर्राष्ट्रीय परिदृश्य में देखना चाहिए और इसके दुष्प्रभावों से भारत को अलग नहीं दिखाना चाहिए. लेकिन यह सब तब होगा जब आप अपने स्कूली विषय के अलावा भी सभी विषयों के बेसिक कांटेंट को जान सकें. आज भारत को पेट्रोलियम पदार्थ, सोना, चांदी, अनाज, दवाइयों के लिए बाहरी देशों पर निर्भर होना पड़ रहा है.

अगर यूरोप से युद्ध एशिया की तरफ विस्तारित होता है तो भारत के सामने भी संकट व चुनौतियों का अंबार लग जायेगा. और तब गुरुघंटालों को समझ आयेगा कि नाटो व रूस दो खेमों में बंट रही दुनिया में रूसी खेमे से दुनिया को देखना पुतिन की भक्ति नहीं बल्कि मानवता की पक्षधरता है. कुल मिलाकर दुनिया में यूक्रेन जैसे खंडहर होने वाले देशों की सूची में यूक्रेन अकेला नहीं होगा, यह हर हाल में अपने जेहन में बिठा लीजिए.

परमाणु महाविध्वंस की गारंटी, नाटो जिम्मेदार

जी-20 बैठक से घोषणा पत्र जारी होने के बाद उसमें पुतिन की रूस पर सैन्य कार्रवाई का कोई जिक्र न होने से यह साबित हो चुका है कि पुतिन का खौफ दुनिया के देशों में कितने भयावह स्तर पर पसर चुका है. उधर उत्तर कोरिया के राष्ट्रपति और बेलारूस के राष्ट्रपति के एक साथ मास्को दौरे ने पुतिन के इरादों को और भी डरावना बना दिया है. हालांकि कथित तौर पर नाटो सदस्य देशों ने भी पुतिन का मुकाबला करने के लिए कमर कस ली है.

लेकिन पुतिन को यह विश्वनीय खुफिया जानकारी मिली है कि नाटो के पास उत्तर कोरिया, चीन, रूस, ईरान, बेलारूस का सामना करने के लिए सभी उम्दा हथियारों के भंडार खत्म हो चुके हैं और अब नाटो के पास परमाणु हमले से अलावा कोई विकल्प नहीं बचा है. इसमें भी मीन-मेख ये है कि नाटो के अधिकतर सदस्य देश पुतिन से सीधे तौर पर नहीं भिड़ना चाहते हैं क्योंकि फरवरी, 2022 से जारी रूस यूक्रेन युद्ध में अब तक पुतिन ने अपने इरादों और बयानों में रत्ती भर भी बदलाव नहीं किया है.

रूसी रक्षा मंत्री शोईगु ने दो दिन पहले एक बार फिर ‘रूस को विजय प्राप्ति से अलावा कोई नतीजा पसंद नहीं होगा’ कहकर संदेश दे दिया है कि रूस अगर जीत हासिल न कर सका तो दुनिया का अंत निश्चित है. इस कड़ी में रूस ने सरमत मिसाइल को तो तैनात कर ही रखा है अब एक और स्काईफॉल मिसाइल का नाम जारी कर नाटो सदस्य देशों के होश फाख्ता कर दिये हैं. दुनिया का एक मात्र सबसे बड़ा परमाणु बम ‘जार बम’ को भी रूसी रक्षा विभाग नये सिरे से अपग्रेड कर नाटो सदस्य देश पोलैंड की सीमा पर तैनात करने जा रहा है.

उधर यूक्रेन में बीती रात रूस के क्रूज मिसाइलों ने बाखमुत, जेपोरेजिया, डोनबास्क में हमला कर यूक्रेन के 1300 से अधिक सैनिकों की जान ले ली है. पश्चिमी मीडिया के जेलेंस्की के नाम लाख हौसला अफजाई गढ़ने के बावजूद जेलेंस्की के भीतर का ‘जेलेंस्की’ अब लगभग मर चुका है, अब जो भी हो रहा है उसमें नाटो अमरीका जेलेंस्की को अपने मुखौटे के रूप में इस्तेमाल भर कर रहे हैं. पश्चिमी मीडिया जेलेंस्की के उन बयानों को छिपा रहा है जिसमें जेलेंस्की नाटो देशों को अपनी तबाही के लिए जिम्मेदार ठहरा रहे हैं और अपने बयानों में अब शिथिलता व मायूसी जाहिर कर रहे हैं.

यूक्रेन के नये रक्षा मंत्री रुस्तम को सामने लाना भी नाटो की एक चाल का हिस्सा है ताकि यूक्रेनी जनता में जेलेंस्की के प्रति विद्रोह की संभावना को ढीला किया जा सके. इस समय एक ओर जहां यूक्रेनी सेना दक्ष सैनिकों के भारी अभाव से जूझ रही है, वहीं दूसरी ओर हथियारों व गोला बारूद की भारी किल्लत से भी जूझ रही है. रूसी सेना ने क्रीमिया व जेपोरेजिया में यूक्रेनी सेना तक पहुंचने वाले हथियारों व रसद आपूर्ति के सारे रास्तों की नाकेबंदी कर दी है.

चीनी समाचार एजेंसी सिन्हुआ के मुताबिक जेलेंस्की के तमाम सुरक्षा वादों के बावजूद यूक्रेनी सैनिकों में आत्महत्या के मामले गुणात्मक स्तर पर बढ़ गये हैं, जिसे पश्चिमी मीडिया पूरी तरह छिपा रहा है. रूसी टेलीविजन के अनुसार उत्तर कोरिया राष्ट्रपति किम जोंग उन रूस को सभी तरह के अत्याधुनिक हथियार देने को राजी हो गए हैं और रक्षा संबंधी कई बड़ी परियोजनाओं में रूस और उत्तर कोरिया एक साथ सहयोगी अनुसंधान के लिए भी राजी हो गए हैं, बावजूद इससे इंकार नहीं किया जा सकता कि मास्को में इकट्ठा हुए पुतिन के साथ किम जोंग उन, अलेक्जेंडर लुकाशेंको व चीनी रक्षा विभाग के एक विशेष अधिकारी की मौजूदगी भरी चौकड़ी ने लंदन, ह्वाइट हाउस के नाम अपने इरादे बरकरार रखे हैं, इसमें कोई दोराय नहीं.

पश्चिमी खुफिया खबरों के मुताबिक रूस का न्यूक्लीयर अटैक लगभग सुनिश्चित हो चुका है और इसमें लंदन, पोलैंड के नाम पहला हमला भी सुनिश्चित हो चुका है. उधर ब्रिटेन के नागरिक प्रधानमंत्री ऋषि सुनक से पुतिन से पंगा न लेने का दबाव बना रहे हैं लेकिन शायद ऋषि सुनक ब्रिटेन को युद्ध के एक ऐसे अंधकारमय विनाश के हवाले करने वाले प्रधानमंत्री होंगे, जिस देश के नाम ‘सूरज कभी नहीं डूबने’ का खिताब है.

बहरहाल, रूस के न्यूक्लियर अटैक की संभावना इसलिए भी तेज हो गई हैं कि अब नाटो सेना यूक्रेन का मुखौटा लगाए रूस पर हमला कर रही है. अमरीका नाटो यह समझ चुके हैं उनकी जघन्यतम तबाही उनके सिर पर नाचने वाली है. लेकिन अब पुतिन के साथ फायदे वाली बातचीत के सभी विकल्प बंद हो चुके हैं. नाटो अमरीका को राष्ट्रपति पुतिन एक ही शर्त पर जीवन दान दे सकते हैं कि वो पुतिन की शर्तों पर बातचीत मान लें. अगर ऐसा नहीं तो नाटो अमरीका का खात्मा तय है क्योंकि पुतिन को जीत से अलावा कोई नतीजा स्वीकार्य नहीं है, भले ही इसके लिए समूची पृथ्वी को ही क्यों न मिटाना पड़े.

  • ए. के. ब्राईट

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One Comment

  1. Rajiva Bhushan Sahay

    September 17, 2023 at 3:29 pm

    फिलहाल एक ही उपाय:-
    “नाटो अमरीका को राष्ट्रपति पुतिन एक ही शर्त पर जीवन दान दे सकते हैं कि वो पुतिन की शर्तों पर बातचीत मान लें.”

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