Home गेस्ट ब्लॉग लिथुआनिया नाटो शिखर बैठक से पहले यूक्रेन बाहर : यूरोप को पुतिन और एशिया को जिनपिंग करेंगे कंट्रोल

लिथुआनिया नाटो शिखर बैठक से पहले यूक्रेन बाहर : यूरोप को पुतिन और एशिया को जिनपिंग करेंगे कंट्रोल

4 second read
0
0
229
लिथुआनिया नाटो शिखर बैठक से यूक्रेन बाहर : यूरोप को पुतिन और एशिया को जिनपिंग करेंगे कंट्रोल
लिथुआनिया नाटो शिखर बैठक से यूक्रेन बाहर : यूरोप को पुतिन और एशिया को जिनपिंग करेंगे कंट्रोल

यूक्रेन की धरती को अपने हथियारों की बतौर प्रयोगशाला बनाने के बाद नाटो ने अब यूक्रेन को धक्का देकर बाहर का रास्ता दिखा दिया है. ताजा समाचारों के अनुसार नाटो के सभी 31 देश रूस-यूक्रेन युद्ध को अब आगे नहीं खींचना चाहते हैं, जिसके चलते नाटो के अंदरखाने सब कुछ अस्त व्यस्त होता जा रहा है. इस युद्ध के चलते नाटो के आधे से अधिक देशों की आर्थिक स्थिति बेहद खस्ता हो चुकी है.

ब्रिटेन, फ्रांस इस समय खुद गृहयुद्ध जैसे हालातों का सामना कर रहे हैं. एक विशेष खबर के अनुसार ब्रिटेन और जर्मनी के संयुक्त खुफिया मिशन से ये खबर लीक हुई है कि बाल्टिक देश लिथुआनिया में नाटो देशों की विनियस शिखर बैठक के दरमियान रूसी बाम्बर लिथुआनिया की राजधानी विनियस को टारगेट कर सकते हैं, हालांकि बेलारूस के राष्ट्रपति लोकाशेंको ने विनियस पर ब्रिटिश खुफिया एजेंसी की रूसी हमले वाली बात का मजाक उड़ाते हुए कहा कि ‘कुछ नाटो देश पुतिन के खौफ में हकलाने लगे हैं.’

पश्चिमी मीडिया के अनुसार नाटो के विनियस शिखर बैठक में रूस यूक्रेन युद्ध खत्म करने की कोशिशों को विस्तार देने पर बात हो सकती है, लेकिन यूक्रेन को किसी भी हाल में नाटो में न ही शामिल किया जा सकता और न ही इस पर कोई चर्चा होनी है. ईरानी मीडिया के अनुसार ‘पुतिन पोलैंड व फिनलैंड पर हमले की रणनीति बना रहे हैं.’

सभी नाटो देशों की खुफिया जानकारी बहुत डरावनी है, जिसके तहत यह साफ माना जा रहा है कि यूक्रेन युद्ध खत्म होने के बाद भी पुतिन रुकने वाले नहीं हैं और न ही उन्हें रत्ती भर नाटो व किसी यूरोपीय देश से डर है.

अमरीकी ह्वाइट हाउस की तरफ से सीआईए खुफिया विभाग के प्रमुख को हटाने की बात कही जा रही है, जिसकी वजह ये है कि सीआईए खुफिया विभाग ने रूस की सैन्य ताकत को कम आंक कर नाटो को पुतिन से भिड़ा दिया. नाटो ने सोवियत रूस को तोड़ने के लिए अवतार लिया था और वही नाटो आज उसी रूस के हाथों अपनी मौत की किस्तें ढोने को मजबूर हो चुका है.

होई है वही जो रूस रचि राखा

रूस यूक्रेन युद्ध फिलहाल और भी आक्रामक दौर में पहुंच गया है. नाटो देशों में जहां एक ओर भगदड़ मच चुकी है, वहीं दूसरी ओर अमरीका में मंहगाई और आर्थिक अस्थिरता चरम पर पहुंच गई है. इससे पहले ब्रिटेन अपनी आर्थिक अस्थिरता की घरेलू राजनीति के फेर में पहले ही थक-पिट चुका है. इस सबके बावजूद भी रूस पर अंतर्राष्ट्रीय प्रतिबंधों से रत्ती भर फर्क नहीं दिख रहा है. नाटो अधिकारियों को मिली खुफिया जानकारी के मुताबिक फिलहाल रूस के हथियारों के भंडार में कोई कमी नहीं आई है.

सवाल ये भी उठता है कि जहां एक ओर यूक्रेन व यूक्रेन को हथियारों की मदद करने वाले देश हथियारों के स्तर पर कंगाली के कगार पर जा खड़े हुए हैं, वहीं रूस आखिर इतने दमखम के साथ नाटो देशों के मंसूबों पर कैसे टूट पड़ा है ? क्या रूस अकेले ही इतने बड़े पैमाने पर हथियारों की भरपाई कर ले रहा है ? इसका जवाब बहुत साफ तो नहीं है लेकिन यह करीब-करीब सही है कि रूस को हथियारों की मदद उसके मित्र देशों से मिल रही है. नाटो व अमरीकी खुफिया एजेंसियां हक्की-बक्की हैं कि रूस प्रतिदिन लगभग सात गुना हथियारों का उत्पादन कर रहा है, बनिस्बत नाटो देशों के.

ईरान, उत्तर कोरिया, क्यूबा, ब्राजील, चीन, तुर्की व अरब देशों से रूस को हाइपरसोनिक मिसाइल व अत्याधुनिक टैंक, तोपों के कलपुर्जे पहुंच रहे हैं. दावा यहां तक किया जा रहा है कि इन देशों के हथियार निर्माता विशेषज्ञ रूस के हथियार कारखानों में अथक सेवाएं दे रहे हैं. अंतर्राष्ट्रीय डिफेंस पंडितों का अनुमान है कि अगले दो महीनों के अंदर रूस पूरी तरह यूक्रेन पर कब्जा कर लेगा. हालांकि रूस की जीत के पीछे हथियारों से ज्यादा रणनीति जिम्मेदार है.

दरअसल यूक्रेन राष्ट्रपति जेलेंस्की समय-समय पर यूक्रेन में अलगाववादी सशस्त्र वामपंथी गुटों पर यह आरोप लगाते रहे हैं कि वो यूक्रेन युद्ध की सारी खुफिया जानकारी क्रेमलिन को शेयर कर रहे हैं. बताते चलें कि यूक्रेन में वर्ष 2005 से वामपंथी दलों पर पूरी तरह प्रतिबंध है, यहां तक कि यूक्रेन में किसी भी वामपंथी संगठन को सार्वजनिक तौर पर जनसभाएं करने की इजाजत नहीं है. इससे यूक्रेन के लोकतांत्रिक धड़ों में असंतोष रहा है.

अमरीकी सेना मुख्यालय पेंटागन ने अपने एक दस्तावेज में इस बात को रेखांकित किया कि यूक्रेनी सेना में यूक्रेन के अलगाववादी गुटों के कार्यकर्ता भर्ती हो गए हैं, जो यूक्रेन युद्ध में क्रेमलिन को फायदा पहुंचा रहे हैं. यहां तक कि यूक्रेन के अधिकतर हथियारों के भंडार को तबाह करने के लिए रूसी सेना को यूक्रेन के विद्रोही गुटों के कार्यकर्ताओं ने जानकारी साझा की थी.

जर्मनी में पेट्रियट सहित अन्य मिसाइलों के आपरेशनल प्रशिक्षण लेने पहुंचे 640 यूक्रेनी सैनिकों में जेलेंस्की को लेकर नाखुशी देखी गई थी, जिसमें 200 से अधिक सैनिकों की सैन्य गतिविधि संदेहास्पद आंकी गई. हालांकि यूक्रेन रक्षा मंत्रालय ने सैनिकों की संदेहास्पद वाली बात को खारिज कर दिया था लेकिन अब माना जा रहा है कि यूक्रेन सेना में ‘क्रेमलिन कोड’ फालो हो रहा है.

पिछले महीने यूक्रेन में रूस ने यूक्रेन को मिले ब्रिटेन, अमरीका व जर्मनी से मिले एक बहुत बड़े हथियारों के भंडार को तबाह कर दिया था, जिसमें पेट्रियट मिसाइल भी रखी गई थी. यह घटना हथियारों को रखने के 18 घंटे के अंदर ही घटी थी. इससे समूचे नाटो देशों के पसीने छूट गए थे. हालांकि युद्ध जारी है और हार जीत से परे दुनिया का पूंजीवादी साम्राज्य तीसरे विश्व युद्ध की संभावना के साथ अपनी नियति के मुहाने पर खड़ा हो गया है.

रूस की जीत दुनिया के मेहनतकश जनता के लिए विकल्प नहीं है लेकिन पूंजीवाद के एकछत्र वर्चस्व से नाटो अमरीका का सफाया संभवतः दुनिया के सामने मानवतावादी नजरिए को दुरुस्त करेगा. मानवतावाद कभी भी युद्ध का समर्थन नहीं कर सकता. लाखों दुधमुंहे बच्चे, औरतें, निरीह नौजवानों, बड़े बूढ़ों की जिंदगी को लील जाने वाले ये युद्ध जरूर खत्म होंगे. मानवतावाद केवल बातचीत की राजनीति तक ही सुरक्षित है, हथियारों की सेज पर मानवतावाद के लिए कोई कवच नहीं है.

विनाशक हथियारों की प्रतिस्पर्धा को अमरीका ने पैदा किया और आज जब उत्तर कोरिया, चीन, रूस ने उसकी घेराबंदी कर डाली है तो अब उसको दुनिया अशांत दिख रही है. बेलारूस ने साफ कह दिया है कि ‘नाटो देशों की बेलारूस पर एक भी गलती परमाणु युद्ध को जन्म दे डालेगी और इस परमाणु युद्ध में वह अकेला देश नहीं होगा, जो अमरीका व नाटो देशों पर परमाणु बमों को लेकर टूट पड़ेंगे.’

यूरोप को पुतिन और एशिया को जिनपिंग करेंगे कंट्रोल

‘रसिया इट्स रिसेट हिस्ट्री’ नामक डाक्यूमेंट्री फिल्म के हवाले से कहा जा रहा है कि पुतिन सोवियत रूस को एक बार फिर जिंदा करने की तरफ निकल गये हैं. इस निर्माणाधीन डाक्यूमेंट्री फिल्म के अनुसार पुतिन ने सोवियत रूस के विघटन को धरती पर सबसे बड़ी राजनीतिक आपदा कहा है. पुतिन ने कहा – ‘यह नहीं होना चाहिए. इससे रुस व सोवियत संघ के देशों में भारी आर्थिक अस्थिरता का संकट पैदा हो गया है. हमें इसे रोकने के लिए न्यूनतम कोशिशें शुरू कर देनी चाहिए.’

इस बयान के निकलते ही यूरोप व पश्चिमी मीडिया पुतिन को स्टालिन की राह पर निकल गये हैं, बता रहे हैं. मामला जो भी है रूस के राष्ट्रपति पुतिन के बारे में संशय से भरी पश्चिमी मीडिया पुतिन को एक शक्तिशाली दूरदृष्टा नेता के रूप में तो देखने ही लगी है. पिछले वर्ष फरवरी आखिरी से जारी यूक्रेन युद्ध के शुरू होने से पहले ही पुतिन ने साफ कर दिया था कि ‘यह रूस की तरफ से बिल्कुल भी वर्चस्ववादी युद्ध नहीं है. यह पश्चिमी देशों व नाटो की दुष्टता व नाजायज लूट के खिलाफ रूस का मानवतावादी विरोध है.’ इसमें सभी शांति की दरकार रखने वाले देशों को संगठित होना चाहिए.

पुतिन के इस बयान के बाद दुनिया के लगभग 50 देश इस समय रूस यूक्रेन युद्ध में रूस के साथ खड़े हैं. उधर यूक्रेन की राजधानी कीव सहित कई महत्वपूर्ण ठिकानों पर रूसी सेना के हमले ताबड़तोड़ जारी हैं. अमरीकी सेना, पेंटागन व नाटो की एक संयुक्त रिपोर्ट लीक होने की खबर है, जिसमें कहा गया है कि यूक्रेनी सेना के पास अपने बचाव के लिए मुफीद हथियारों का भारी संकट पैदा हो चुका है, जिसकी वजह से यूक्रेनी सैनिक नाटो से मिले तोप टैंकों को खराब कर दे रहे हैं ताकि रूसी मिसाइल हमले में विस्फोटक स्थिति का असर कम हो सके. यूक्रेन का कांउटर अटैक यानि पलटवार भी लगभग तिहरा कर भरभरा चुका है.

हिंदी टीवी चैनलों के अनुसार पिछले एक हफ्ते में रूसी सेना ने राजधानी कीव के उत्तरी हिस्से में एक किलोमीटर से कम दायरे में 12 हजार से भी अधिक यूक्रेनी सैनिकों को मौत के घाट उतार दिया है. अमरीका व नाटो देशों के लिए रूस, न निगलते बन रहा है और न उगलते. दरअसल परमाणु युद्ध पर कयास नहीं बल्कि उसकी अवश्यंभावी वजह सामने खड़ी हो चुकी है. पुतिन अपने भाषणों में ‘रूस के दुश्मन पश्चिमी देशों’ शब्द का इस्तेमाल बार बार करते रहे हैं.

पुतिन ने अपनी युद्ध रणनीति के जरिए नाटो देशों को साफ संदेश दे दिया है कि रूस को जीत के लिए कतई जल्दीबाजी नहीं है जबकि नाटो देश रूस को जल्दी से जल्दी ठिकाने लगाने की रणनीति बनाते रहे हैं. अमरीका व नाटो देश यह साफ जानते हैं कि यूक्रेन के बाद पोलैंड व फिनलैंड की भी यूक्रेन गति होने वाली है क्योंकि ये दोनों देश नाटो के सदस्य हैं और अपने दुर्भाग्य से ये रूस के पड़ोसी देश हैं.

फिनलैंड व पोलैंड में नाटो के अत्याधुनिक वेपन तैनात हैं, जिससे नाटो, रूस को भविष्य में सबक सिखाने का मंसूबा रखता है लेकिन नाटो ये भी जानता है कि रूस के पास अभी दो दशक तक युद्ध करने की शक्ति है इसलिए यूक्रेन युद्ध में रूस को सीधे तौर पर शिकस्त नहीं दी जा सकती. तब फिर एक ही विकल्प है कि नाटो देश एक साथ रूस पर हमला कर दें और इसके बाद पुतिन के परमाणु कहर से फिर यूरोप को कोई नहीं बचा सकता.

इसलिए संदेह जताया जा रहा है कि यूक्रेन युद्ध की समाप्ति अगर रूस की तरफ से होगा तो उसमें नाटो की बलि तय है या फिर नाटो पोलैंड फिनलैंड को यूक्रेन की तरह खंडहर बनता देखते रहे…! उधर युद्ध की भीषणतम तैयारी दुनिया के और भी हिस्सों में होने के इनपुट मिल रहे हैं.

उत्तर कोरिया का दक्षिण कोरिया पर हमला और चीन की ताइवान के साथ युद्ध की तैयारी बताती है कि अगले दो दशक दुनिया के लिए बिल्कुल भी सुरक्षित नहीं हैं. जब तक यूरोप में रूस और एशिया में चीन की तूती नहीं बोलती तब तक युद्ध जारी रहेंगे. इन युद्धों में अमरीका ब्रिटेन जर्मनी जैसे हत्यारे देशों को अपने मुल्कों की पूरी सभ्यता रूस, चाइना, उत्तर कोरिया जैसे महाशक्तियों के परमाणु कहर के लिए छोड़ देनी होगी.

रूसी समाचारों के अनुसार रूस ने यूक्रेन के 40 फीसदी हिस्से पर कब्जा कर लिया है, जल्दी ही उन्हें क्रेमलिन प्रशासन के नियंत्रण में ले लिया जायेगा. फिलहाल, बेलारूसी समाचार एजेंसियों की मानें तो इस बीच एक राहत वाली खबर ये आ रही है कि भारत व अफ़्रीकी देशों के तटस्थ रवैए से आशंकित नाटो देशों ने यूक्रेन को उसकी हालत पर छोड़ देने की मंशा जाहिर की है.

अगर ये खबर सही है तो यूरोप में जहां कुछ वक्त के लिए शांति की गुंजाइश होगी वहीं दूसरी ओर रूस के आगे नाटो का अघोषित सरेंडर होगा…और…पोलैंड व फिनलैंड पर रूसी सैन्य कार्रवाई को अमरीका व नाटो सिर्फ देखने के लिए अभिशप्त होंगे. हालांकि रूसी विद्वान व राजनेता पहले ही कह चुके हैं कि रूस को जीत से अलावा कोई नतीजा गंवारा नहीं होगा.

  • ऐ. के. ब्राईट

Read Also –

मिटता हुआ यूक्रेन, अस्त होता नाटो
नाटो और अमरीका का सरेंडर ही अब परमाणु युद्ध से पृथ्वी को बचा सकता है

प्रतिभा एक डायरी स्वतंत्र ब्लाॅग है. इसे नियमित पढ़ने के लिए सब्सक्राईब करें. प्रकाशित ब्लाॅग पर आपकी प्रतिक्रिया अपेक्षित है. प्रतिभा एक डायरी से जुड़े अन्य अपडेट लगातार हासिल करने के लिए हमें फेसबुक और गूगल प्लस पर ज्वॉइन करें, ट्विटर हैण्डल पर फॉलो करे… एवं ‘मोबाईल एप ‘डाऊनलोड करें ]

scan bar code to donate
scan bar code to donate
Pratibha Ek Diary G Pay
Pratibha Ek Diary G Pay

ROHIT SHARMA

BLOGGER INDIA ‘प्रतिभा एक डायरी’ का उद्देश्य मेहनतकश लोगों की मौजूदा राजनीतिक ताकतों को आत्मसात करना और उनके हितों के लिए प्रतिबद्ध एक नई ताकत पैदा करना है. यह आपकी अपनी आवाज है, इसलिए इसमें प्रकाशित किसी भी आलेख का उपयोग जनहित हेतु किसी भी भाषा, किसी भी रुप में आंशिक या सम्पूर्ण किया जा सकता है. किसी प्रकार की अनुमति लेने की जरूरत नहीं है.

Load More Related Articles
Load More By ROHIT SHARMA
Load More In गेस्ट ब्लॉग

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Check Also

नारेबाज भाजपा के नारे, केवल समस्याओं से लोगों का ध्यान बंटाने के लिए है !

भाजपा के 2 सबसे बड़े नारे हैं – एक, बटेंगे तो कटेंगे. दूसरा, खुद प्रधानमंत्री का दिय…