रूस-यूक्रेन युद्ध के दो साल पूरे हो गये हैं. युद्ध जारी है. रूस का यूक्रेन के अवदीवका शहर पर कब्जे के बाद नाटो अमरीका खुद को मातमी सन्नाटे में महसूस कर रहे हैं. नाटो के 31 देशों की रणनीति को धता बताते हुए पुतिन ने साबित कर दिया कि दुनिया अब रूस चाइना के इशारे पर थिरकेंगी. जिस नाटो संगठन के एक इशारे पर मुल्कों की राजनीतिक तस्वीर रातों रात बदल जाती थी, आज उसी नाटो अमरीका की हालत ये हो चुकी है हूथी, हिजबुल्ला, हमास जैसे लड़ाकू संगठन भी अमरीका के सैन्य अड्डों को तबाह कर रहे हैं और अमरीका घुड़की देते रहने से अलावा कुछ नहीं कर पा रहा है.
रूस यूक्रेन युद्ध में नाटो का यूक्रेन पर अति भरोसे ने नाटो देशों की अर्थव्यवस्था को इतनी बुरी तरह तबाह कर दिया है कि बहुत सारे नाटो देश फिर से चुपचाप पिछले दरवाजे के रास्ते रूस से तेल आयात कर रहे हैं. खुद अमरीका इस बात को जानता है कि उसके मंहगे तेल को थोपकर उसके पिट्ठू देश बहुत दिनों तक नहीं चल पायेंगे और उसने यूक्रेन में अपनी किरकिरी से दुनिया का ध्यान भटकाने के लिए अपने को हमास इजरायल के पेंच में फंसा लिया.
हम रूस यूक्रेन के इन दो सालों का कुल जमा निकालें तो भूमंडलीकरण आर्थिक नीतियों के बारे में मानवतावादी विद्वानों का जो मूल्यांकन था, वो बिल्कुल सटीक निकला. खूनी पूंजीवाद मुनाफे की अंधी लूट पर बौराया यह भूल गया था कि राजनीतिक भूमंडलीकरण एक दिन उसके आर्थिक भूमंडलीकरण के दिवास्वप्न का मजा कसैला कर देगा. इसीलिए कार्ल मार्क्स ने सटीक भविष्यवाणी की थी कि ‘पूंजीवाद के विनाश के बीज उसी में समाये हुए हैं.’ यानी कि पूंजीवाद भले ही कितना ही लोक लुभावन होने की डुगडुगी पीटता रहे, एक दिन उसके साम्राज्य का ‘यूक्रेन’ होना तय है.
दरअसल बात ये है कि रूस को नाटो अमरीका से भी ज्यादा परेशानी नहीं है. रूस तो सिर्फ यूक्रेन धरती में बेहिसाब यूरेनियम व सोने के खनिजों पर कब्जा चाहता है, जिसे यूक्रेन से अमरीका हड़पना चाहता था. दूसरा यह कि यूक्रेन दुनिया की 30 प्रतिशत आबादी को अनाज सप्लाई करता है, जिसकी इंटरनेशनल मानटरिंग अमरीकी हितों पर आधारित है.
रूस का मानना है कि कृषि क्षेत्र पर बीज, रसायनिक खाद, दवायें व सभी तरह के कृषि औजारों पर पश्चिमी देशों का एकाधिकार है, जिसकी वजह से कृषि उपज की उपलब्धता के बावजूद दुनिया में कुपोषण व खाद्य संकट बना रहता है. रूस चाहता है कि दूसरे मुल्कों को निर्यात किए जाने वाले अनाज व कृषि उपकरणों पर बेलगाम मुनाफे के कायदों को दरकिनार रखा जाना चाहिए और कृषि व्यापार पर मानवता की न्यूनतम शर्तों का पालन किया जाना चाहिए.
हालांकि ये अलग बात है कि अमरीका व नाटो गैंग की डिक्शनरी में ‘मानवता’ शब्द कभी था ही नहीं. अब मामला ये हो चुका है कि अमरीका व नाटो देशों के लिए यूक्रेन गले की हड्डी बन चुका है. नाटो अमरीका की नादानी का आलम ये है कि अगर वो यूक्रेन का साथ छोड़ते हैं तो पुतिन यूक्रेन के बाद पोलैंड, लिथुआनिया जैसे मुल्कों को ‘छठी का दूध’ याद दिलाने की तरफ बढ़ेंगे और अगर युद्धरत रहते हैं तो इतना निश्चित है कि पुतिन अमरीका व ब्रिटेन पर परमाणु बम फोड़कर ही शांत होंगे.
अमरीका, ब्रिटेन के बारे में अब सुगबुगाहट ये है कि वो यूक्रेन को मदद देने से ज्यादा अपनी सुरक्षा पर चिंतित होने लगे हैं. चिंता का दूसरा पहलू ये भी है कि दुनिया के मुल्कों को अमरीका, ब्रिटेन, जर्मन, फ्रांस के अत्याधुनिक टैंक, मिसाइल, जेट विमान आकर्षित नहीं कर पा रहे हैं क्योंकि यूक्रेन युद्ध में रूस ने नाटो देशों के हथियारों के परखच्चे उड़ाकर साबित कर दिया कि दुनिया में रूसी तकनीक के हथियारों का कोई विकल्प नहीं है.
इसलिए आज लगभग 60 से अधिक देशों ने रूसी हथियारों को खरीदने की उत्सुकता दिखाई है. नवंबर 2023 में पश्चिमी मीडिया ने जब रूसी अर्थव्यवस्था को दुनिया की सबसे मजबूत अर्थव्यवस्था का डेटा जारी किया तो अमरीकी खेमे में कोहराम मच गया था और बहुत सारे नाटो देशों ने यूक्रेन को मदद देने से हाथ खींच लिए थे.
हालांकि युद्ध का अंत जल्दी नहीं होने जा रहा है. पुतिन ने साफ कहा ‘हम शांति चाहते हैं लेकिन शांति का मतलब समझौता बिल्कुल बर्दाश्त नहीं होगा.’ नाटो देशों की रूस की लाख घेराबंदी के बावजूद भी पुतिन टस से मस नहीं हुए. इसका साफ मतलब है रूस को विजयश्री लेनी ही लेनी है वरना पुतिन तो कह ही चुके हैं कि ‘कोई भी अच्छी याददाश्त रखने वाला देश रूस पर परमाणु हमले के बारे में नहीं सोचेगा. अगर रूस के अस्तित्व पर बात आयेगी तो हम परमाणु हमला कर देंगे.’
रूस पर 500 नये प्रतिबंध का झुनझुना
रूसी रक्षा मंत्रालय की तरफ से दिमित्री मेदवेदेव ने एक ताजा बयान में कहा है कि रूस के लिए कीव बहुत बड़ा खतरा है. यानी कि रूस अवदीवका फतह से विजयोत्साहित अब कीव पर चढ़ाई करने जा रहा है. कीव, यूक्रेन की राजधानी है. अगर कीव पर रूसी सेना ने नियंत्रण कर लिया तो जेलेंस्की के पास भागने से अलावा कोई विकल्प नहीं है.
जेलेंस्की को मनाने के लिए अमरीका सिर्फ कोरे आश्वासन दे रहा है. जर्मन खुफिया विभाग बीएनडी के एक वरिष्ठ अधिकारी की जो रिपोर्ट लीक हुई है, उसने नाटो अमरीका की सारी दबंगई को धूल में मिला दिया है. बीएनडी के अधिकारी के अनुसार –
‘यूक्रेन के सहयोग के लिए गठित किए गए 50 देशों की विशेष काउंसिल ने एकतरफा फैसला लेकर यूक्रेन को रूस के विरुद्ध सैन्य कार्रवाई के लिए उकसाया. काउंसिल के पास रूसी सैन्य ताकत का पूर्वानुमान मनोगत भावनाओं से ग्रस्त सिद्ध हुआ. नाटो के लिए खुफिया जानकारी जुटाने वाली सभी खुफिया एजेंसी असफल साबित हुई हैं. रूस के बारे में हर स्तर पर विश्वनीयता से कोसों दूर झूठी जानकारियां सही मान ली गई.
‘यूक्रेन को बचाने की कोशिशें कभी नहीं हुई बल्कि रूस को चुनौती देने की कार्रवाई पर अमल किया गया. हमने यूक्रेन को ही नहीं हराया है बल्कि यूक्रेन के साथ लामबंद 50 देशों की लोकतांत्रिक व्यवस्था पर रूसी तलवार लटका दी है. हमें पुतिन के बारे में स्पष्ट होना चाहिए कि पुतिन अपने दुश्मनों को कभी माफ नहीं करते. हमें इस संकट में बची हुई शांति की संभावनाओं पर विचार करना चाहिए और यही युद्ध को टालने का विकल्प बचा है.’
बहरहाल, रुस-यूक्रेन युद्ध के दो साल बाद तस्वीर कुछ इस प्रकार बनी है –
- युद्ध के बाद रूस दुनिया की सबसे बड़ी इकनामी.
- तेल व खनिज संसाधनों पर रूस के एकाधिकार से पश्चिमी देशों में हाहाकार
- रूस का 30 फीसदी यूक्रेन पर पूर्ण कब्जा
- नाटो अमरीका को एड़ियों के बल रगड़ने तक नहीं छोड़ेंगे पुतिन
- चीन, उत्तर कोरिया, बेलारूस, ईरान जैसे देशों के खुले समर्थन से दुनिया दो धड़ों में बंटी
- यूक्रेन के 3 लाख 50 हजार सैनिकों की मौत, लाखों नागरिक विस्थापित बेघर व पड़ोसी देशों में बने शरणार्थी.
- ए. के. ब्राईट
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