Home कविताएं जनवादी कवि विनोद शंकर की दो कविताएं : ‘गुलामी की चादर’ और ‘जनताना सरकार’

जनवादी कवि विनोद शंकर की दो कविताएं : ‘गुलामी की चादर’ और ‘जनताना सरकार’

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1. गुलामी की चादर

यहां कुछ भी एका-एक नहीं होता है
जो भी होता है
उसके पीछे एक योजना होती है
जिसकी तैयारी हफ्तों,
महीनों या सालों से चलती रहती है

अगर आज हजारों लोग
सड़क पर सो रहे हैं
तो इसकी योजना भी
कई साल पहले ही बन चुकी थी

अगर आज करोड़ों लोग गरीबी और
बदहाली में जीवन जीने को मजबूर है
तो इसकी योजना भी कई दशक पहले ही बन चुकी थी

यहां ऐसा कुछ नही होता है की
आप पैदा होते ही गरीब बन जाएं
या अमीर बन जाएं

अगर आपको ऐसा लगता है
तो आप अपनी नजर से नहीं
उस धर्म के नजर से दुनिया को देख रहे हैं
जिसमें आप को बचपन से ही प्रशिक्षित किया गया है

ऐसी नजर से आप दुनिया को तो क्या
खुद को भी नही समझ पायेंगे
और सदियों अंधेरे में भटकते रहेंगे
जैसे भटक रहे है अपने देश में करोड़ों लोग
जो अपनी मुक्ति और सुख के लिए
किसी धर्मगुरु या देवता के सामने सिर झुका रहे हैं
और अपने को निलाम करके मुस्कुरा रहे हैं

अगर आपको ऐसे ही गुलाम बन के
जीना है तो शौक से जीईये पर
अपनी गुलामी का रोना मत रोइये
क्योंकि इस गुलामी की चादर आप ने खुद ओढ़ रखी है

अगर आप चाहते हैं मुक्ति
अगर आप चाहते हैं आजादी
अगर आप चाहते हैं आत्मसम्मान के साथ जीना
तो सबसे पहले इस गुलामी के चादर को
उठा के फेंक दीजिये

तभी आप को इस दुनिया की हकीकत दिखेगी
अपनी गरीबी और बदहाली के
असल कारण का पता चलेगी

तब आप अपने दुःखों को दूर करने
किसी मंदिर या मस्जिद में नहीं जायेंगे
नहीं किसी गिरजाघर का दरवाजा खटखटायेंगे

तब आप भी हमारी तरह
किसी जुलूस या धरने में नजर आएंगे
अपने आप को उस कतार में खड़ा पायेंगे
जो इस दुनिया को बदलने के लिए
हर जगह संघर्ष कर रहे हैं

ये दुनिया किसी भगवान ने नहीं
इंसानों ने ही बनाई है
और इसे इन्सान ही बदल सकता है
इसके लिए हमें किसी के इंतजार करने की जरुरत नही है
बस हमें अपने काम पर लगने की जरुरत है !

2. जनताना सरकार

आजादी से इतना प्यार नहीं होता
मां का इतना दुलार नहीं होता
तो कब के घुटने टेक दिए होते
शोषकों की सेना के सामने
जिनसे घिरता जा रहा है हमारा जंगल-पहाड़,
खेत-खलिहान
जो रोज ही उजाड रहे हैं हमारा गांव-घर
जो हमारी मां-बहनों पर अपनी मर्दानगी दिखा रहे हैं
जिसके लिए इस देश का राष्ट्रपति दे रहा है उन्हें पुरस्कार

पर हम हताश नहीं हुए हैं
निराश नहीं हुए हैं
किसी भी भाई का खून
या बहन के बलात्कार के बाद भी
हमारी ताकत बढ़ती जा रही है
उनकी चीखें हमारे लिए
उनकी आखिरी इच्छा है
जिसे पुरा करने की
हम सभी कामरेड कसम खाया करते हैं

आज भी हम डटे हुए हैं
तो इसके पीछे है मां का प्यार
भाई का बलिदान
बहन का साथ
जिनकी आंखो में है पुरा विश्वास
की हम बचा लेंगे अपनी धरती, अपना आकाश

जहां दीदी भय मुक्त हो कर नाच सके
चाचा मादल बाजा सके
पहले के तरह ही हारा-भरा रहे
हमारा जंगल-पहाड़, खेत-खलिहान
और आगे बढ़े हमारा जनताना सरकर !

  • विनोद शंकर

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