Home कविताएं बुद्धिलाल पाल की दो कविताएं

बुद्धिलाल पाल की दो कविताएं

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गुर्गे

यह साहित्य है
या साहित्य का
अपराधिक बाजार है
कोई कहता है कि
डाकू बाल्मिकी ने
पोथी रामायण लिखा
इसलिए उसकी डकैती माफ
उसकी सब हत्याएं माफ
पोथी रामायण लिखो
फिर डाकू बन जाओ
हत्यारे बन जाओ
यह भी जायज होता है
कोई कहता है कि
लेखक संत नही होता है
नैतिक अपेक्षा उचित नही
कोई कुछ कहता है
और कोई कुछ कहता है
विश्व रंजन को लाता है
कहता है कि क्या
उसके कार्यक्रम जायज थे
इसलिए बद्रीनारायण भी
सब तरह से जायज
अजीब तर्क हैं गुर्गों के
अजीब तर्क हैं मुर्गों के
जाओ बैठो भाई
बद्रीनारायण की गोद में
सत्ता की संघ की गोद में
पर अपने को फूहड़ता से
प्रगतिशील न बतलाओ
न मार्क्सवादी बतलाओ
महान समता के पक्षधर
दीनदयाल की गोद में बैठो
ईश्वर तुल्य मोदी की गोद में
कोई रोक थोड़े ही रहा है
आपका अपना मौलिक
अधिकार है कहीं भी जाओ
पोथी रामायण लिखो फिर
चोर डाकू भाट बन जाओ

वे अजेय बने

कई कई भुजा कई कई हाथ
कई कई आंख कई कई कान
कई कई पौरुष कई कई बल
तुम में ही है यह तुम ही हो

उनके कई कई हथकंडे
तुम्हे कई कई छल से छले
तुम्हारी सामूहिक भुजाएं काट दिए
तुम्हारे सामूहिक हाथ काट दिए
तुम्हारी देखने की क्षमता छीन लिए
तुम्हारी घ्राणशक्ति छीन लिए
तुम्हारे कान में रुई भर दिए
तुम्हारे पौरुष को ताड़ के पीछे
होकर छीने/तुम्हारी हत्या किए
छल से अंगूठा लिए कवच लिए
तीन पग जमीन के नाम पर
तुम्हारा सब कुछ हड़प लिए

तुम्हे नष्ट किए भ्रष्ट किए
भक्त बनाए उसमें उलझाए
स्मृतिविहीन किए गुलाम बनाए
इस तरह वे अजेय बने दिग्विजयी बने

  • 26.12.2022

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