तुम इस बाग की खूबसूरत फूल हो
जिस पर तितलियां
और भौंरे अक्सर मंडराते रहते हैं
इनकी शराफत
काबिले तारीफ होती है
लेकिन सब ऐसे नहीं होते
कुछ राह चलते जानवर
इसे कुचलने की जुर्रत भी करते हैं
धरती के किसी कालखंड से लेकर
शराफत की उच्चतम ऊंचाई का पैमाना
जब तब बदलता रहा है
यह कभी भरोसे का नहीं रहा
और बेहतर है अपने बचाव में कुछ
नागफणि कांटें भी रख लो
तुम्हारा अपना वजूद है
तुम कोई संरक्षित धरोहर नहीं
शो केश में रखी सजावट की वस्तु नहीं
प्रकृति के अप्रतिम जीव जगत में
तुम अकेली मादा नहीं हो
जहां कोई नर तुम्हारे बचाव में आता रहे
अपने बचाव की लड़ाई तुम्हें खुद लड़नी है
प्रकृति ने हर मादा जीव को असीम ताकत दी है
अपने बचाव और संरक्षण के लिए
अगर तुम्हारे पास नहीं है
तो सोचना होगा : क्यों नहीं ?
ऐसा कौन-सा कारक है
जो तुम्हें परतंत्र परावलंबी बनाता है ?
तुम्हें जानना और समझना होगा
उस कारक और उन कारणों को
जो तुम्हें दुर्बल, अस्वाभिक कर देता है ?
चाह से राह और सोच से
इच्छित शक्ति मिलती रही है
लेकिन जब तक तुम कवि कल्पित कोमलांगी
मनोभाव के बस बसाव में हो
तुम्हें सदियों की बेड़ियां ही नसीब होगी
कठिन और कठोर जरूर है
लेकिन दुर्भाग्यवश यही सच है
और आज या कल इससे
रु ब रु होना ही होना है
मुझे नहीं मालूम मंत्रों के मंत्र में बंधना है या नहीं
ये मेरे और तुम्हारे विचार हो सकते हैं
कोई फतवा या फरमान नहीं
मानने न मानने की आजादी
प्रकृति प्रदत्त अवसर हो न कि व्यक्ति
या समूह विशेष की कृपालु वाध्यता
(समस्त महिलाओं से क्षमा याचना सहित)
- राम प्रसाद यादव
(18.03.2018)
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