हमारे एक सहकर्मी थे विद्या शंकर दुबे. वो बहुत बार कहते रहते थे कि ‘मुझे त्रिकालदर्शी बनना है.’ वेद, पुराण, उपनिषद, रामायण, महाभारत, गीता के साथ-साथ अन्य धर्म ग्रंथों के बारे में भी अच्छी खासी बकलोली किया कर लेते थे. मैंने उनसे कहा कि ‘दुनिया के सारे धर्मग्रंथों के बारे में तो आप जान ही चुके हो अब कसर कहां रह गई है जो त्रिकालदर्शी नहीं होने का रोना रो रहे हो ?’
दुबे जी ने कहा ‘ऐसा नहीं है. मेरा मतलब मैं ज्ञान की उस अवस्था को प्राप्त करना चाहता हूं जिससे मुझे संसार की हर चीज में समाधान दिखे. मुझे कहीं पर ऐसा न लगे कि भगवान ने जो भी चीज बनाई है, उसमें कोई खोट रह गया हो.’
मैंने कहा ‘जब आप शिशु मंदिर में पढ़ा करते थे तो कहीं सीढ़ियों या फर्श पर सिर तो नहीं पटक गया था.’ दुबे जी ‘बोले नहीं तो ऐसा क्यों कह रहे हो ?’ मैंने कहा ‘ऐसा ही लग रहा है. आपको किस चीज में खोट नजर आता है.’
दुबे जी बोले ‘खोट का मतलब नाराजगी से है. भगवान ने जन्म मृत्यु के बीच पीड़ादायक संघर्ष जिसमें कई अपने बिछुड जाते हैं, मर जाते हैं, बिना मतलब के लोगों को मार दिया जाता है, ये सब देखकर भगवान की रचना में शक होता है. अगर ये सब नियति है तो भगवान ने मेरे अंदर इन दु:खों को सहन करने की शक्ति क्यों नहीं दी है ?’
मैंने मन ही मन सोचा ये आदमी सही दर्शन के अभाव में फ्रस्ट्रेशन का शिकार हो चुका है. सभी धर्मों ने हमेशा ही जिज्ञासाओं का कभी समाधान नहीं दिया बल्कि सवालों को और अधिक भ्रमित व रहस्यमय बनाया गया है. मैंने दुबे जी से कहा ‘आप मुझे ये सब क्यों बता रहे हो ? आप तो रात दिन संत महंतों के प्रवचन वाले वीडियो देखते रहते हैं, उन्हीं में से किसी संत महंत से संपर्क कीजिए.’ दुबे जी बोले ‘सब घुमा फिराकर बातें करते हैं. सही जबाब कोई नहीं दे सकता है.’
मैंने कहा ‘आपने अपनी जिंदगी के इन 50 सालों में पता नहीं कौन कौन सी धर्म की किताबें पढ़ी होंगी, फिर भी आपको भगवान की लीला समझ नहीं आयी. और मैं आपको सिर्फ एक किताब दूंगा जिसे सिर्फ आप थोड़ा-थोड़ा करके दो तीन में पूरा पढ़ जायेंगे.’ मेरी बात सुनकर दुबे जी थोड़ा सा मुस्कुराये और बोले ‘दुनिया में हजारों लाखों किताबें लिखी गई हैं, तब भी भगवान की कलाओं को नहीं समझा गया और आप कह रहे हो कि एक ही किताब से त्रिकालदर्शी हो जाओगे !’
मैंने कहा ‘अगर आप सच में सीरियस होकर कह रहे हैं कि आपको त्रिकालदर्शी बनना है तो मैं वो पुस्तक आपको दे सकता हूं. और मैं सौ फीसदी दावे के साथ कहता हूं कि उस किताब को पढ़ने के बाद आप सर्वज्ञान को इतने ऊंचे स्तर तक प्राप्त कर लेंगे कि आप अपने जीवन के सभी धार्मिक किताबों को पढ़ने के लिए अपने को धिक्कारने लगेंगे. चूंकि किताब बहुत छोटी है और उसमें सारी पृथ्वी के सिस्टम का खाका खींचा गया है इसलिए उसे पढ़ने की खास शर्तें हैं.’
दूबे जी बोले ‘शर्त ? कैसी शर्त ?’ मैंने कहा ‘सबसे पहले तो आपको समझना होगा कि आप वास्तव में त्रिकालदर्शी होने के लिए यह पढ़ रहे हैं, दूसरा ये कि किताब में जो भी चीज समझ नहीं आ रही है उसे तुरंत बताओ और आखिरी ये कि किताब को एक बार नहीं कई बार पढ़ो.’
दुबे जी थोड़ी देर तो कुछ नहीं बोले, फिर कहने लगे कि ओह मतलब कि आप कहना चाह रहे हो कि आप त्रिकालदर्शी हो ! मैंने कहा ‘बकलोली बंद करो. मैं कोई त्रिकालदर्शी नहीं हूं. मैं तो सिर्फ आपके अंदर पैठ बना चुकी गलतफहमियों को दूर करने की कोशिश कर रहा हूं.’
इसके बाद … कोरोना लाकडाउन. वर्ष 2021 में दुबे जी के पास मार्क्स एंगेल्स की महान कृति ‘कम्युनिस्ट घोषणा पत्र’ को पढ़ने व समझने के लिए मनमाफिक समय मिल गया था. चूंकि दुबे जी हिंदू कर्मकांड करने वाले पुरोहित परिवार से ताल्लुक रखने वाले शख्स थे तो उनके अंदर पाखंडवाद, ब्राह्मणवाद का प्रतिशत भी ज्यादा ही था. लेकिन व्यथित जिज्ञासाओं को दूर करते करते दुबे जी धीरे-धीरे अपने घर परिवार में ही पाखंडवाद के शत्रु बनते गए.
दुबे जी इस समय किसान आंदोलन के सक्रिय समर्थक हैं. उनके पास ट्रैक्टर है, जिससे किसान आंदोलन स्थलों तक रसद ढोने का काम कर रहे हैं. दार्शनिक रुचि होने के कारण अब चीजों को सही दिशा से समझ लेते हैं. धार्मिक किताबों को षड्यंत्र रचने का ज्ञान कहते हैं. वो खुद कहते हैं हमारी शिक्षा व्यवस्था ने हमें स्वस्थ ज्ञान से अछूता रखा है.
- ए. के. ब्राईट
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