हिमांशु कुमार
मैंने सोचा था पहले खुद सुखी होऊंगा, फिर दुनिया को दुःख से निकलने के बारे में बताऊंगा और मरने से पहले दुनिया को कुछ बेहतर करके जाऊंगा. खुद के दुःख खोजते-खोजते आधी उम्र गुज़र गई. जाति का गर्व, राष्ट्र का गर्व, मर्दानगी का गर्व, पढ़े लिखे होने का गर्व, शहरी होने का गर्व दुःख दे रहा था पहले उनसे आज़ाद हुआ. अब मैं सिर्फ इंसान था, जिसके ऊपर कोई वज़न नहीं था. अब मुझे काफी हल्का महसूस होने लगा.
पैसे इकठ्ठा करने, मकान बनाने, उसकी सुरक्षा करने की फिजूल कोशिशों को समझा और उनसे आज़ाद हुआ. मरने का डर समझा उससे आज़ाद हुआ. अब मैं बेफिक्र और आज़ाद इंसान था, जिसे मरने, जेल जाने, गरीब हो जाने जैसा कोई डर नहीं डरा पा रहा था. ऐसी हालत में मेरे पास करने के लिए सिर्फ ये था कि दुनिया में जो तकलीफें हैं, उन्हें दूर करने की कोशिश करूं.
मैंने देखा कि पैसों के लालच में सरकारें आदिवासियों का क़त्ल कर रही हैं, मैं उसे रोकने में लग गया. मैंने देखा लोग जिस ऊपर वाले के बारे में बिलकुल नहीं जानते, उसे बचाने के लिए एक दुसरे को मार रहे हैं, नफरत कर रहे हैं, अपनी और दूसरों की ज़िन्दगी तबाह कर रहे हैं. मैंने उसके बारे में सच्चाई लोगों को बतानी शुरू की. जहां भी दंगा होता मैं वहां पहुंच जाता और लोगों को समझाता. मैं मुज़फ्फरनगर गया, दिल्ली हिंसा के बाद वहां काम करने गया.
जाति की नफरत से बीमार लोगों को समझाने और पीड़ितों के साथ खड़ा होने के लिए काम करने लगा. हरियाणा, उत्तर प्रदेश, दिल्ली, राजस्थान, पंजाब में जाति हिंसा से पीड़ितों के पास गया. उनके साथ वख्त गुज़ारा, उनके साथ खड़ा रहा, गालियां खाई.
मुझे नहीं पता मैं दुनिया को बेहतर बना पाया या नहीं. अब मेरे सामने जेल का फाटक खुल चुका है. किसी भी समय मुझे एनआईए उठा कर जेल में डाल देगी. मैं जानता हूं मैं जेल से ज़िंदा बाहर नहीं आऊंगा लेकिन मुझे इस बात का ज़रा भी ना तो दुःख है, ना डर है.
मुझे इस बात का पूरा संतोष है कि मैंने अपना जीवन ठीक से जिया और मेरी मौत भी एक मकसद के लिए हो रही है. इसलिए ना कोई मलाल है, ना किसी के लिए कोई गुस्सा है.
सिर्फ मुझे ही माओवादी समर्थक नहीं कहा गया. मैं संयुक्त राष्ट्र संघ गया था. संयुक्त राष्ट्र संघ में आदिवासियों के लिए बने कमीशन के कमिश्नर जब भारत आए, छत्तीसगढ़ सरकार से जुड़े लोगों ने उन्हें माओवादी कहा. अंतरराष्ट्रीय रेड क्रॉस को माओवादी संगठन कहा गया. डॉक्टरों के संगठन डॉक्टर्स विदाउट बॉर्डर्स को माओवादी संगठन कहा गया.
2011 में जब सुप्रीम कोर्ट ने सलवा जुडूम को गैर संवैधानिक घोषित किया तो छत्तीसगढ़ के भाजपाई गृहमंत्री ननकीराम कंवर ने सुप्रीम कोर्ट के जज को माओवादी कहा. जब सीबीआई छत्तीसगढ़ पुलिस की जांच करने गई तो छत्तीसगढ़ पुलिस ने सीबीआई की टीम पर हमला किया था. ऐसा मैं नहीं कह रहा, सीबीआई का एफिडेविट है सुप्रीम कोर्ट में.
छत्तीसगढ़ में कानून का राज खत्म हो चुका है. वहां गुंडाराज चल रहा है. आदिवासियों की हत्या की जा रही है. लगातार बलात्कार किए जा रहे हैं. जमीनों पर कब्जा किया जा रहा है. कोर्ट न्याय नहीं दे रहे हैं.
हम इसलिए लड़ रहे हैं ताकि हम आपको एक अपराध बोध से भर सकें. आपकी अमीरी और अय्याशी पर आदिवासियों का खून लगा है, हम वह बताना चाहते हैं. हमें जेल में डाल दीजिए. हमें मार दीजिए. हम अपना काम कर चुके हैं.
[ प्रतिभा एक डायरी स्वतंत्र ब्लाॅग है. इसे नियमित पढ़ने के लिए सब्सक्राईब करें. प्रकाशित ब्लाॅग पर आपकी प्रतिक्रिया अपेक्षित है. प्रतिभा एक डायरी से जुड़े अन्य अपडेट लगातार हासिल करने के लिए हमें फेसबुक और गूगल प्लस पर ज्वॉइन करें, ट्विटर हैण्डल पर फॉलो करे… एवं ‘मोबाईल एप ‘डाऊनलोड करें ]