राम अयोध्या सिंह
आज भारत में हर जगह जिसके पदचापों का भयानक शोर सुनाई दे रहा है, वह है बुल्डोजर. उत्तर से दक्षिण और पूरब से पश्चिम तक और शहरों से गांवों तक इसकी गड़गड़ाहट सुनी जा सकती है, जो लोगों के मन में एक अदृश्य भय उत्पन्न कर रही है और, यह सब कुछ हो रहा है विकास के नाम पर. आज बुल्डोजर विकास और निर्माण का पैमाना बन गया है. पर, यदि गौर से देखा जाए तो यह स्पष्ट हो जाता है कि इस विकास के नाम पर कितना बड़ा विध्वंस का नंगा नाच हो रहा है.
सचमुच अर्थ का अनर्थ हो रहा है. विध्वंस को निर्माण के मुखौटे में पेश किया जा रहा है. कहीं मंदिर, कहीं मस्जिद, तो कहीं अवैध कब्जा और अतिक्रमण के नाम पर विध्वंस का यह शैतानी खेल बुल्डोजरों के माध्यम से चल रहा है, और लोगों के घरों और झोपड़ियों को ढाहा जा रहा है. और ये मेहनतकश गरीब खुले आकाश के नीचे घुट घुटकर मरने के लिए अभिशप्त हैं. पता नहीं, निर्माण का यह कौन-सा मानदंड है !
पर, आश्चर्य तो यह है कि देश के पूंजीपतियों और कारपोरेट घरानों, नेताओं, नौकरशाहों, अफसरों, दलालों, तस्करों, ठेकेदारों और माफियाओं तथा पुजारियों , साधुओं, बाबाओं, महंतों और दूसरे धर्माचार्यों द्वारा अतिक्रमित किए गए सरकारी या सार्वजनिक स्थलों पर किए गए अतिक्रमण को देखते ही इन भयानक बुल्डोजरों की घिग्घी बंध जाती है, और वे आगे बढ़कर उन अतिक्रमणों को ध्वस्त करने के बदल अपने पांव पीछे की ओर मोड़ लेते हैं. धर्म के नाम पर अतिक्रमण कर बनाए गए आश्रम, मंदिर और मठ बुल्डोजर प्रुफ हैं, जहां तक आते-आते इन दैत्याकार बुल्डोजरों के पांव थककर थम जाते हैं और उनके पांव आगे बढ़ने के बजाय पीछे मुड़ जाते हैं.
इन बुल्डोजरों के माध्यम से पूंजीपतियों और कारपोरेट घरानों के हक में जंगलों, खदानों और पहाड़ों को जमींदोज किया जा रहा है, ताकि जंगलों से पेड़ों को साफ कर वहां पूंजीपतियों और कारपोरेट के कारखाने और उद्योग-धंधे स्थापित किए जा सकें, खदानों से विभिन्न खनिजों को निकाला जा सके और पहाड़ों को ध्वस्त कर मनमाना मुनाफा कमाया जा सके. पूंजीपतियों और कारपोरेट घरानों के इशारे पर सरकार उन सारी बाधाओं को ध्वस्त कर रही है, जो पूंजीपतियों और कारपोरेट घरानों के मुनाफे के रास्ते का रोड़ा बने हुए हैं. जिधर भी उनका इशारा होता है, बुल्डोजर उधर ही मुड़ जाते हैं.
बनारस को क्योटो बनाने के नाम पर जिस तरह से बुल्डोजर चलाए गए, और काशी विश्वनाथ मंदिर तक जाने के रास्ते को जिस तरह से चौड़ा किया गया, वह अपने आप में बहुत कुछ कह जाते हैं. हजारों मकानों, मंदिरों और मूर्तियों को तोड़कर कूड़ेदान में फेंक दिया गया. राम, लक्ष्मण, शिव और पार्वती, गणेश और न जाने कितने ही देवताओं की मूर्तियों को जमींदोज कर दिया गया, पर न किसी हिन्दू की आत्मा रोई और न ही किसी के मुंह से कोई आवाज ही निकली. रात-दिन मंदिर, मंदिर चिल्लाने वाली सरकार खुद ही इन मंदिरों और मूर्तियों को तोड़वाने में लगी हुई थी, और अंधभक्त ताली बजा रहे थे.
विकास के मानदंड बने इन बुल्डोजरों को भी शायद सांप्रदायिकता का पाठ पढ़ा दिया गया है, जिससे वे मुस्लिम बस्तियों और मस्जिदों की ओर बिना कहे ही स्वयं मुड़ जाते हैं. उनके मस्जिद, उनके घर और उनकी दुकानें उसी तरह ध्वस्त की जा रही हैं, मानो वहां किसी विदेशी आक्रमणकारी ने कब्जा जमा लिया हो. दिल्ली में मुस्लिम बस्तियों में जिस तरह से चुनचुनकर उनके घरों और दुकानों को निशाना बनाया गया, वह स्पष्ट साबित करता है कि यह सब कुछ पूर्व प्रायोजित था मुस्लिमों को सबक सिखाने के लिए.
लोग बाग यह बात अक्सर ही दोहराते रहते हैं कि गरीबों की आह में बड़ी ताकत होती है, जिसमें लोहे जैसी कड़ी वस्तु भी भस्म हो जाती है. पता नहीं, ऐसा कब और कहां होता है ? मैंने तो ऐसा होते न तो कभी देखा है और न ही सुना है. हां, इस आग में गरीबों को जलते जरूर देखा है. अगर ऐसा संभव होता तो अब तक दुनिया के सारे लूटेरे, पूंजीपति और कारपोरेट घराने, नेताओं, नौकरशाहों, अफसरों, दलालों, ठेकेदारों, माफियाओं, तस्करों और अन्य परजीवियों का नामोनिशान ही मिट जाता.
ताकत गरीब मेहनतकशों की आह में नहीं, उनकी बंद और तनी मुट्ठियों में होती है. दुनिया के तमाम बहुसंख्यक मेहनतकश जनता को आंसू बहाने की नहीं, बल्कि स्वयं ही बुल्डोजर बनने की जरूरत है, ताकि हर तरह के शोषकों को समाप्त कर अपने लिए एक ऐसी नई दुनिया और एक ऐसे नए समाज का निर्माण कर सकें, जहां किसी तरह का अन्याय, उत्पीड़न, दमन, भेदभावपूर्ण व्यवहार और ऊंच-नीच की खाई न हो.
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