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आज फासिज्म की पराजय और जनता की विजय का महादिवस है

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जगदीश्वर चतुर्वेदी

जो लोग मार्क्सवाद और कम्युनिज्म को आए दिन अतार्किकों की तरह गालियां देते हैं और उनके प्रति घृणा का प्रचार करते हैं, वे जान बूझकर कम्युनिस्टों की कुर्बानियों को छिपाते हैं. आज के दिन को एकमात्र कम्युनिस्टों की शक्ति, विचारधारा और जनता की शक्ति के सहारे ही अर्जित किया जा सका. हिटलर और उसके सहयोगी अंतिम दम तक बर्लिन में संघर्ष कर रहे थे. हिटलर के बारे में कोई भी पूंजीवादी मुल्क यह सोच नहीं पा रहा था कि कभी हिटलर को उसके घर में घुसकर कोई मारेगा.

लालसेना की शक्ति और स्टालिन के नेतृत्व का ही कमाल था कि हिटलर और उसकी सेना को उसके घर में घुसकर मारा गया. जर्मनी और सारी दुनिया को हिटलर की बर्बरता से आजाद किया. 28अप्रैल1945 को जब लालसेना बर्लिन में घुसी थी तो उस समय जर्मन सैनिक भयानक प्रतिरोध कर रहे थे, अनेक इलाकों में तो वे हाथापाई तक कर रहे थे.

बर्लिन की एक-एक गली और एक एक इमारत में जर्मन सैनिकों से लालसेना ने मोर्चा लिया और लालसेना ने एक-एक घर को जर्मन सैनिकों से मुक्त कराया. सेनाएं मोर्चों पर लड़ती हैं, लेकिन जर्मनी में 28 अप्रैल से लालसेना बर्लिन की गलियों और घरों घुस-घुसकर जर्मन सैनिकों को मार रही थी और इसने हिटलर को गहरे अवसाद में डुबो दिया और अंत में उसने कायर की तरह आत्महत्या की और आज के दिन राइखस्टाग पर सार्जेंट म.अ. वेगोरोव और म.व. कतारिया ने विजय ध्वज फहराया. इन क्रांतिकारी सेनानियों का हम कृतज्ञता के साथ अभिनंदन करते हैं.

सोवियत सेनाओं के हिटलर को परास्त करके सारी दुनिया को अचम्भित ही नहीं किया साम्राज्याद की समूची मंशा को ही ध्वस्त कर दिया. कुछ तथ्य हमें हमेशा ध्यान रखने चाहिए. द्वितीय विश्व युद्ध 2हजार194 दिन यानी 6 वर्ष चला. उसकी चपेट में 61 राष्ट्र आए. जिनकी कुल आबादी 1 अरब 70 करोड़ थी यानी विश्व की आबादी का लगभग 80 प्रतिशत हिस्सा.

सामरिक कार्रवाइयां यूरोप,एशिया तथा अफ्रीका के 40 देशों के भूक्षेत्र में और अटलांटिक, उत्तरी,प्रशांत तथा हिंद महासागरों के व्यापक भागों में हुईं. कुल मिलाकर 11 करोड़ से अधिक लोगों को सेनाओं में भरती किया गया.

इस दौरान बेशुमार सैन्य सामग्री का उत्पादन किया गया. 1सितम्बर 1939 से लेकर 1945 तक की अवधि के दौरान अकेले हिटलर विरोधी गठबंधन के सदस्य-देशों में 5 लाख 88हजार विमानों (इनमें से 4 लाख 25 हजार नागरिक विमान थे), 2 लाख 36 हजार टैंकों, 14 लाख 76 हजार तोपों तथा 6 लाख 16 हजार मॉर्टरों का उत्पादन किया गया. इसी अवधि में जर्मनी ने कोई 1 लाख 9 हजार विमानों, 46 हजार टैंकों और एसॉल्ट गनों, 4 लाख 34 हजार से अधिक तोपों तथा मॉर्टरों तथा अन्य शस्त्रास्त्र का उत्पादन किया.

विश्वयुद्ध में सन् 1938 के दाम के अनुसार 260 अरब डालर की संपत्ति का नुकसान हुआ. 5करोड़ से ज्यादा लोग मारे गए।सबसे ज्यादा क्षति सोवियत संघ की हुई. सोवियत संघ के 2 करोड़ से ज्यादा नागरिक मारे गए.

एक हजार नगर और 70 हजार गांव नष्ट हुए. 32 हजार औद्योगिक उत्पादन केन्द्र नष्ट हुए. पोलैंड के 60 लाख, यूगोस्लाविया के 17 लाख, अमेरिका के 4 लाख, ब्रिटेन के 3 लाख 70 हजार, जर्मनी के 1 करोड़ 36 लाख आदमी मारे गए या बंदी बनाए गए. इसके अलावा यूरोप के सहयोगी राष्ट्रों के 16 लाख से अधिक लोग मारे गए.

आमतौर पर सेनाएं दुश्मन के शहरों पर कब्जे करती हैं, लूटमार करती हैं, औरतों के साथ बलात्कार करती हैं और विध्वंसलीला करती हैं लेकिन बर्लिन को हिटलर से आजाद कराने के बाद सोवियत सेनाओं ने एक नयी मिसाल कायम की.

उस समय बर्लिन शहर पूरी तरह तबाह हो गया था, आम बर्लिनवासी हिटलर के जुल्मोसितम से पूरी तरह बर्बाद हो चुका था, लोगों के पास खाने के लिए कुछ नहीं था, दवाएं नहीं थीं, ऐसी अवस्था में सोवियत सैनिकों ने अपना राशन-पानी बर्लिन की आम जनता के बीच में बांटकर खाया. इसके अलावा बर्लिन शहर को संवारने और संभालने में मदद की.

सोवियत सरकार ने बर्लिनवासियों को 96 हजार टन अनाज, 60हजार टन आलू, कोई 50 हजार मवेशी और बड़ी मात्रा में चीनी, बसा और अन्य खाद्य सामग्रियां मुहैय्या करायी गयी. महामारियों की रोकथाम के लिए तात्कालिक कदम उठाए गए और 96 अस्पताल (जिनमें 4 शिशु अस्पताल), 10 जच्चाघर, 146 दवाईयों की दुकानें और 6 प्राथमिक चिकित्सा केन्द्र खोले गए. सोवियत सैनिकों ने किसी भी नागरिक के साथ दुर्व्यवहार नहीं किया.

इस तरह सोवियत सेना ने सैन्य व्यवहार की आदर्श मिसाल कायम की. सोवियत सेना के इस व्यवहार की रोशनी में अमेरिका और नाटो सेनाओं के हाल ही में इराक और अफगानिस्तान में किए गए दुराचरण और अत्याचारों को देखें तो समाजवादी सेना और पूंजीवादी सेना के आचरण के अंतर को आसानी से समझा जा सकता है.

बर्लिन आपरेशन के दौरान सोवियत सेनाओं ने शत्रु की 70 इंफेंट्री, 12टैंक और 11 मोटराइज्ड डिविजनों को नष्ट किया. 16 अप्रैल से 7 मई के बीच शत्रु के 4 लाख 80 हजार सैनिकों और अफसरों को युद्धबंदी बनाया और डेढ़ हजार से अधिक टैंकों, साढ़े 4 हजार विमानों और कोई 11 हजार तोपों और मॉर्टरों पर कब्जा किया.

सोवियत लोगों को भी फासिस्ट जर्मनी पर इस अंतिम विजय की भारी कीमत चुकानी पड़ी. 18 अप्रैल से 8 मई 1945 के बीच दूसरे बेलोरूसी मोर्चों और पहले उक्रइनी मोर्चे पर 3 लाख आदमी हताहत हुए. इसके विपरीत आंग्ल-अमरीकी फौजों ने पश्चिमी यूरोप में 1945 की सारी अवधि में केवल 2लाख 60 हजार आदमी गंवाये थे.

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ऊँची जगहों पर आसीन लोगों में
भोजन के बारे में बात करना अभद्र समझा जाता है।
सच तो यह है: वो पहले ही
खा चुके हैं।
जो नीचे पड़े हैं, उन्हें इस धरती को छोड़ना होगा
बिना स्वाद चखे
किसी अच्छे माँस का।
यह सोचने-समझने के लिए कि वो कहाँ से आए हैं
और कहाँ जा रहे हैं
सुंदर शामें उन्हें पाती हैं
बहुत थका हुआ।
उन्होंने अब तक नहीं देखा
पर्वतों को और विशाल समुद्र को
और उनका समय अभी से पूरा भी हो चला।
अगर नीचे पड़े लोग नहीं सोचेंगे
कि नीचा क्या है
तो वे कभी उठ नहीं पाएंगे।
भूखे की रोटी तो सारी
पहले ही खाई जा चुकी है
माँस का अता-पता नहीं है। बेकार है
जनता का बहता पसीना।
कल्पवृक्ष का बाग भी
छाँट डाला गया है।
हथियारों के कारखानों की चिमनियों से
धुआँ उठता है।
घर को रंगने वाला बात करता है
आने वाले महान समय की
जंगल अब भी पनप रहे हैं।
खेत अब भी उपजा रहे हैं
शहर खड़े हैं अब भी।
लोग अब भी साँस ले रहे हैं।
पंचांग में अभी वो दिन नहीं
दिखाया गया है
हर महीना, हर दिन
अभी खुला पड़ा है। इन्हीं में से किसी दिन
पर एक निशान लग जाने वाला है।
मज़दूर रोटी के लिए पुकार लगा रहे हैं
व्यापारी बाज़ार के लिए पुकार लगा रहे हैं।
बेरोजगार भूखे थे। रोजगार वाले
अब भूखे हैं।
जो हाथ एक-दूसरे पर धरे थे अब फिर व्यस्त हैं।
वो तोप के गोले बना रहे हैं।
जो दस्तरख्वान से माँस ले सकते हैं
संतोष का पाठ पढ़ा रहे हैं।
जिनके भाग्य में अंशदान का लाभ लिखा है
वो बलिदान माँग रहे हैं।
जो भरपेट खा रहे हैं वही भूखों को बता रहे हैं
आने वाले अद्भुत समय की बात।
जो अपनी अगवानी में देश को खाई में ले जा रहे हैं
राज करने को बहुत मुश्किल बता रहे हैं
सामान्य लोगों के लिए।
जब नेता शान्ति की बात करते हैं
तो जनता समझ जाती है
कि युद्ध आ रहा है।
जब नेता युद्ध को कोसते हैं
लामबंदी का आदेश पहले ही लिखा जा चुका होता है।
जो शीर्ष पर बैठे हैं कहते हैं: शान्ति
और युद्ध
अलग पदार्थों से बने हैं।
पर उनकी शान्ति और उनके युद्ध
वैसे ही हैं जैसे आँधी और तूफ़ान।
युद्ध उनकी शान्ति से ही उपजता है
जैसे बेटा अपनी माँ से
उसकी शक्ल
अपनी माँ की डरावनी शक्ल से मिलती है।
उनका युद्ध मार देता है
हर उस चीज़ को जिसे उनकी शान्ति ने
छोड़ दिया था।
दीवार पर लिख दिया गया:
वो युद्ध चाहते हैं।
जिस आदमी ने यह लिखा
वो पहले ही गिर चुका है।
जो शीर्ष पर हैं कहते हैं:
वैभव और कीर्ति का रास्ता इधर है।
जो नीचे हैं कहते है:
कब्र का रास्ता इधर है।
जो युद्ध आ रहा है
वो पहला नहीं होगा। और भी थे
जो इसके पहले आए थे।
जब पिछला वाला खत्म हुआ
तब विजेता थे और विजित थे।
विजितों में आम लोग भी थे
भुखमरे। विजेताओं में भी
आम लोग भुखमरी का शिकार हुए।
जो शीर्ष पर हैं कहते हैं साहचर्य
व्याप्त है सेना में।
इस बात का सच देखा जा सकता है
रसोई के भीतर।
उनके दिलों में होना चाहिए
वही एक शौर्य। लेकिन
उनकी थालियों में
दो तरह के राशन हैं।
जहाँ तक कूच करने की बात है उनमें से कई
नहींं जानते
कि उनका शत्रु तो उनके सिर पर ही चल रहा है।
जो आवाज़ उनको आदेश दे रही है
उनके शत्रु की आवाज़ है और
जो आदमी शत्रु की बात कर रहा है
वो खुद ही शत्रु है।
यह रात का वक़्त है
विवाहित जोड़े
अपने बिस्तरों में हैं। जवान औरतें
अनाथों को जन्म देंगी।
सेनाधीश, तुम्हारा टैंक एक शक्तिशाली वाहन है
यह जंगलों को कुचल देता है और सैकड़ों लोगों को भी।
पर उसमें एक खोट है:
उसे एक चालक की ज़रूरत होती है।
सेनाधीश, तुम्हारा बमवर्षी बहुत ताकतवर है,
यह तूफ़ान से भी तेज़ उड़ता है और एक हाथी से ज़्यादा वज़न ले जा सकता है।
पर उसमें एक खोट है:
उसे एक मेकैनिक की ज़रूरत होती है।
सेनाधीश, आदमी बड़े काम की चीज़ है।
वो उड़ सकता है और मार सकता है।
पर उसमें एक खोट है:
वो सोच सकता है।

  • एक जर्मन युद्ध पुस्तिका से / बर्तोल ब्रेख्त
    अंग्रेज़ी से अनुवाद: अनिल एकलव्य

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