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टिक-टॉक वर्सेज यू-ट्यूब की बहस

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टिक-टॉक वर्सेज यू-ट्यूब की बहस

टिक-टॉक के बहाने मिडिल क्लास, अपर मिडिल क्लास का, आर्थिक रूप से सबसे निचले वर्ग के लिए पूर्वाग्रह बाहर निकल कर सामने आ रहा है. आप देखेंगे कि टिक-टॉक पर लगभग हर वर्ग के लोग जुड़े हैं लेकिन इस पर एक बहुत बड़ी पकड़ गांव के सामान्य जन ने बनाई है, जिसे Hello and Everyone, Good Morning Ladies and gentlemen वाली भाषा नहीं बोलनी होती. वो राम राम और अस्सला मालेकुम से शुरुआत करते हैं, गांव की चीजें दिखाते हैं, अपनी क्षमता में हंसाने की कोशिश करते हैं.

टिक-टॉक पर अधिक एडिटिंग की आवश्यकता नहीं पड़ती, अधिक टेक्नोलॉजी का सामना भी नहीं करना पड़ता. बस दो क्लिक पर ही वीडियो बनकर तैयार. यही कारण है कि सामान्य जन ने यहां पर जोरदार एंट्री की है. टिक-टॉक की इसी खूबी के चलते गांव की झोपड़ियों में नाचते गाते पति-पत्नी और उनके छोटे-छोटे बच्चों की हजारों वीडियोज आपको टिक-टॉक पर मिल जाएंगी.

इस देश में किसी ने कल्पना भी नहीं की होगी कि फ़िल्म, कैमरा, एक्शन, एक्टिंग का इतना लोकतांत्रिकरण हो जाएगा कि गांव के किसान, प्रवासी, खेतिहर, झुग्गीवासी भी अपने स्कील को दुनिया को दिखा पाएंगे. ये एक तरह से आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग की सिनेमा में एंट्री है, जिस पर अब तक मिडिल क्लास और कपूर एंड खान जैसी एलीट फैमिलीज का ही एकाधिकार था.

यही बात मिडिल क्लास को नहीं पचती. उसने टिकटोकर्स को क्लासलेस का लेबल लगाने में कोई कमीं नहीं छोड़ी. चूंकि यूट्यूब इस मामले में थोड़ा टेक्निकल है इसलिए वहां पर बने रहने के लिए अधिक तकनीकी की आवश्यकता पड़ती है. हैशटेग लगाने होते हैं. ट्रेंडिंग, नॉन ट्रेंडिंग का गेम देखना होता है, एडिटिंग करनी पड़ती है. इस कारण यूट्यूब पर आर्थिक रूप से निचले वर्ग की एंट्री नहीं हो सकी. वहां पर मिडिल क्लास का दबदबा बना हुआ है. वीडियोज देखने में भी, वीडियोज बनाने में भी.

अब जब टिक-टॉक के बहाने सबसे कमजोर लोगों को चेहरा मिलने लगा, उनकी देश दुनिया में बात होने लगी, तो यूट्यूब पर मठाधीश बनी बैठी मिडिल क्लास ये पचा नहीं पाई. यू-ट्यूब की मीडियम, लोअर मीडियम क्लास की ऑडियस में भी टिक-टॉक बनाने वालों के लिए उतना ही पूर्वाग्रह था, इसलिए उन्हें यू-ट्यूब पर ऐसे यूट्यूबर्स की तलाश हुई, जो इनकी फ्रस्टेशन को निकाल सके. इनके पूर्वाग्रह को आवाज दे सके इसलिए रोस्ट करने वाली वीडियोज बनने लगीं. मार्केट में डिमांड थी तो बड़ी मात्रा में उत्पादन भी होना था, और जो हुआ भी.

यू-ट्यूब वर्सेज टिक-टॉक की लड़ाई कंटेंट से अधिक दो आर्थिक वर्गों में आपस में वर्चस्व की लड़ाई है. टिक-टॉक पर सबसे निचले वर्ग की उपस्थिति को ये देश पचा नहीं पाया इसलिए उसने अपने समाज के उन टैग्स को देना शुरू कर दिया, जो उनके हिसाब से गाली हैं. टिकटोक यूजर्स को छक्के, नामर्द, औरत से लेकर तमाम टैग्स दिए गए, चूंकि समाज ने इसे ही गाली के प्रतिरूप के रूप में स्वीकृति दे रखी है.

इसी बहाने इस देश में व्याप्त होमोफोबिया ही नंगा नहीं हुआ बल्कि मिडिल क्लास, अपर मिडिल क्लास, एलीट क्लास की सबसे निचले वर्ग के प्रति पूर्वाग्रह भी बाहर आ गया. टिक-टॉक वर्सेज यू-ट्यूब की बहस को इस नजरिए से देखने की जरूरत है.

टिक-टॉक पर कंटेंट क्वालिटी किसी भी स्तर की रही हो लेकिन उसने ऐसे लोगों को अभिनय का मौका दिया जो मनरेगा में काम करते हैं, जो सीमेंट की बोरियां ढोते हैं, जो बेलदारी करते हैं, जो घरों में काम करते हैं. टिक-टॉक पर सबसे निचले वर्ग की इस शानदार उपस्थिती को ये देश कभी नहीं पचा पाएगा, खासकर मिडिल क्लास.

– श्याम मीरा सिंह

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