मनमीत, यायावर
आगामी 13 अप्रैल को जलियावाला बाग कांड हुआ था और अगले माह मई में रवाईं के तिलाड़ी कांड को 90 वां साल हो जायेगा. दोनों ही नरसंहार मानव जीवन के सबसे क्रूरतम घटनाएं हैं. जलियावाला बाग़ में लोग आज़ाद भारत के लिए जुटे थे, जबकि पंजाब से हिमालय की उत्तर पूर्व की ओर 478 किमी दूर तिलाड़ी में आज़ाद पंचायत का नारा दिया जा रहा था.
जलियावाला बाग़ में जुटी जनता को आज़ाद भारत का आह्वान गांधी और नेहरू जैसे नेताओं ने किया था लेकिन, तिलाड़ी में आज़ाद पंचायत का कॉन्सेप्ट कहांं से लोगों के जेहन में आया ? क्योंकि, उस समय तक गुलाम भारत समेत यूरोप और अमेरिका के किसी भी देश में आज़ाद पंचायत का ख्याल भर नही था। हांं, 1917 में रूस में जरूर आज़ाद पंचायत जिसे रुसी भाषा (स्लाविक) में सोवियत कहते हैं, स्थापित हो चुकी थी.
मेरे पास कुछ सवाल हैं. मसलन, क्या तिलाड़ी कांड की शुरूआत मेरठ षडयंत्र केस से शुरू होती है ? तिलाड़ी कांड की पटकथा क्या देहरादून जेल में लिखी गई थी ? आखिर कैसे और क्यों वो गुलाम भारत की पहली आजाद पंचायत बनी, जिसको तिलाड़ी के जनता ने राजशाही के सामानंतर घोषित कर दिया था ? ये ऐसे कई सवाल है, जिनके जवाब अभी तलाशे जाने हैं.
असल में, इतिहास में बहुत-सी ऐसी घटनायें हुई, जिसके दस्तावेज तैयार नहीं किये गये. किये भी गये तो उन्हें देश की आजादी के बाद की सरकारों ने नष्ट किये. ऐसे ही एक इतिहासिक घटना है, जौनपुर का तिलाड़ी कांड, जिसे भारत के जलियावाला बाग कांड से भी बड़ा मानव इतिहास का नरसंहार माना जाता रहा है. असल में, 30 मई 1930 को इतिहास में एक रक्तरंजित तारीख है इसी दिन तत्कालीन टिहरी रियासत के राजा नरेन्द्र शाह ने रवाई के बड़कोट तिलाड़ी मैदान में जलियांवाला बाग कांड को अंजाम दिया.
ये वो राजशाही का वक्त था जब टिहरी रियासत की जनता करों के बोझ से दबी पड़ी थी, जिसमें कर औताली, गयाली, मुयाली, नजराना, दाखिला खारिज, देण खेण (राजदरबार में मांगलिक कार्योंं पर) आढ़त , पौणटोटी, निर्यातकर, चिलम कर (भांग, सुलफा, अफीम पर), आबकारी, डोमकर (मांग के भगोड़े व अनीसुती बुनकारों पर ), दास-दासियों का विक्रय (हरिद्वार में 10 रू. से 150 रू. तक दास बेचे जाते थे), भूमिकर मामला (ठेक देय शेष), प्रधान चारी दस्तुर, बरा-बिसली, वनों से चरान चुगान, छुट, तूलीपाथा, जारी, चन्द्रायण, छाट (जादू करने वाले पर ), पाला बिसाउ (राज घराने के घोड़े खच्चर, गाय, भैंस के लिए हर वर्ष प्रति परिवार एक बोझ घास), चार पाथा चावल, दो पाथा गेंहु, एक शेर घी, एक बकरा टिहरी में राजमहल को दिया जाता था. न देने वाला दंड का भागी होता था.
1930 में राजा ने जंगलों में मुनार बन्दी कार्य शुरू करवाया, इसमें किसानों की गायों के चरने के जंगल भी छीन लिये गये. राजा ने हुक्म दिया कि ‘गाय बछियों के लिए सरकार नुकसान नहीं उठायेगी, इन्हें पहाड़ी से नीचे गिरा दो.’ ये शब्द आम किसान के दिलों को चीरने के लिए काफी थी. इसके बाद वहां की जनता ने आजाद पंचायत का नारा दिया और राजशाही के सामानंतर आजाद पंचायत की घोषणा कर दी. राजा को कैसे एक आजाद पंचायत राजशाही के सामानंतर स्वीकार होती, लिहाजा, तिलाड़ी कांड हुआ.
लेकिन ये आजाद पंचायत का सपना कैसे देखे गया ? कहां से ये सपना आया ? और कैसे जमीन पर संघर्ष के रूप में उतरा ? असल में इसकी कहानी कानपुर से शुरू होती है.
कानपुर में 1925 में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी की स्थापना होती है, जिसके कुछ सालों बाद ही ब्रिटिश सरकार ने 1929 में सारे देश से 32 कम्युनिस्ट मजदूर नेताओं को गिरफ्तार कर मेरठ जेल में बंद कर दिया. ये मुकदमा मेरठ षडयंत्र केस के नाम से इतिहास में दर्ज है. इन गिरफ्तार कम्युनिस्टों को कुछ माह बाद ही देहरादून जेल में शिफ्ट किया गया.
दून जेल में उस समय जौनपुर तिलाड़ी क्षेत्र के कई कैदी सजा काट रहे थे. जौनपुर क्षेत्र के कैदियों ने भी सुना था कि ये कम्युनिस्ट कैदी मजदूरों के हकों के लिये लड़ते हैं. लिहाजा, एक सहानुभूति उनके मन में उनके लिये थी. हर दिन कम्युनिस्ट कैदियों के साथ रहने से उन्हें 1917 में हुई रूसी क्रांति के बारे में पता चला. कम्युनिस्टों ने उन्हें रूस की सोवियत ‘आजाद पंचायत’ के बारे में बताया. साथ ही उन्हें दुनिया के तमाम मजदूर आंदोलनों के बारे में भी बताया.
मामूली अपराधों में सजा काट रहे जौनपुर के कैदी कुछ माह बाद ही जब जेल से बाहर खुले आसमान के नीचे आये तो उनके आंखों में अपने क्षेत्र को सोवियत में बदलने का क्रांतिकारी सपना था. लिहाजा, वो सीधे अपने क्षेत्र में गये और सोवियतों (आजाद पंचायत) के बारे में राजशाही से पीड़ित जनता को बताया. अब सभी आजाद सोवियत का सपना देखने लगा.
यहीं से तिलाड़ी क्रांति की नींव पड़ी. उस वक्त के दस्तावेजों पर अगर गौर किया जाये तो तिलाड़ी के लोगों ने राजशाही के सामानंतर आजाद पंचायत का गठन कर लिया था. याद रहे, ये देश की पहली आजाद पंचायत थी, जिसकी अवधारणा रूस की सोवियत से लिया गया. बाद में इसी आजाद पंचायत को कुचलने के लिये तिलाड़ी कांड हुआ. उसी दौरान टिहरी के राजा नरेंद्र शाह ने भी कार्ल मार्क्स को पढ़ना शुरू किया. राजा नरेंद्र शाह की वो किताबें राजपुर रोड स्थित उनके परिवार के एक सदस्य की लाईब्रेेरी में भी है.
मेरठ षडयंत्र से तिलाड़ी नरसंहार का इतिहास में अभी कई शोध होने बाकी है लेकिन, अगर कोई देहरादून जेल के दस्तावेजों को खंगाले तो उस वक्त के रिकॉर्ड में जौनपुर के उन कैदियों की सूची मिल सकती है, जिससे ये एक छुपा हुआ इतिहास सामने आ सकता है. मैं कवायदों में जुटा हूं. देखते हैं कितना सफल हो पाता हूं. सवाल बस ये है कि तिलाड़ी की जनता ने कैसे आज़ाद पंचायत का नारा दिया ?
Read Also –
मार्क्स की 200वीं जयंती के अवसर पर
कौम के नाम सन्देश – भगतसिंह (1931)
विज्ञान हमें जलवायु परिवर्तन समझा सकता है, तो उसे रोकता क्यों नहीं है ?
[प्रतिभा एक डायरी स्वतंत्र ब्लाॅग है. इसे नियमित पढ़ने के लिए सब्सक्राईब करें. प्रकाशित ब्लाॅग पर आपकी प्रतिक्रिया अपेक्षित है. प्रतिभा एक डायरी से जुड़े अन्य अपडेट लगातार हासिल करने के लिए हमें फेसबुक और गूगल प्लस पर ज्वॉइन करें, ट्विटर हैण्डल पर फॉलो करे…]