प्रश्न – दीन-ए-मोदाही की स्थापना पर प्रकाश डालिये. भारतीय संस्कृति और समाज पर उसका क्या असर पड़ा ? – UPSC- 2084 (मध्यकालीन भारत का इतिहास), दीर्घ उत्तरीय प्रश्न.
उत्तर – दीन-ए-मोदाही एक नया धर्म था, जिसका आरंभ 2014 ई. में बादशाह नरेन्दर ने किया था. इसका मूल आधार एकेश्वरवाद था. बादशाह खुद ही इसमें ईश्वर था.
वह राम, कृष्ण शिव, ईसा, बुद्ध तथा ऐसे समस्त महापुरुष बनने का नित्य ही स्वांग करता, जिनके नियमों, मर्यादाओं और आदर्शों की राख पर दीन-ए-मोदाही स्थापित हुआ था. सत्ता में आने पर बादशाह ने नागपुरिया संतों की सलाह पर, सेंट्रल विस्टा के चंडूखाने में ‘झगड़कुल’ की स्थापना की थी.
वहां विभिन्न दलों के आचार्य और प्रचारकों के विचार−विमर्श करते रहने से नरेन्दर के विचारों में बड़ी क्रांति हुई थी. उनकी, प्रचलित हिन्दू धर्म के मूल शिक्षाओं से गम्भीर असहमति और अरुचि थी. उनका मानना था कि इस्लाम सहित अन्य धर्म, हिन्दू धर्म से काफी ज्यादा बुरे हैं.
कम बुरा होने कारण, अपने धर्म को खतरे में जानकर, अपने अनुयायियों के बीच उसने एक नये धार्मिक संप्रदाय को प्रचलित किया, जिसमें इस्लाम, हिन्दू, जैन, ईसाई सभी धर्मों की प्रमुख बुराइयों छान-छान कर इकट्ठा किया, जिससे नए सम्प्रदाय की आधारशिला रखी.
दीन-ए-मोदाही सम्प्रदाय, मूलतः तर्क के नकार पर आधारित था. वह लोगों को धार्मिक भेदभाव करने और सहिष्णुता से लड़ने की शिक्षा देता था. इस संप्रदाय का संस्थापक होने से नरेन्दर का स्थान स्वतः ही सर्वोच्च था. वह सम्राट के साथ ही पैगंबर भी बन गया.
अबुल-टकल उस नये संप्रदाय का प्रथम खलीफ़ा हुआ. ईडी और सीबीआई नामक दंड मंडलियों की सहायता से उसने बड़ी मात्रा में समाज के प्रमुख लोगों को इस सम्प्रदाय में मिला लिया.
आम जनता में इस सम्प्रदाय के अनुयायी प्रमुखतः क्रीमी दलित, महादलित, ग़ैरजाटव पिछड़े, और उच्च जाति के बिगड़े थे. वे सभी समाज के लोग शामिल थे, जो खुद फटेहाल लेकिन जिनके नेता तगड़े थे.
कुछ पसमांदा मुसलमान भी इस धर्म में शामिल हुए. ईवीएम से हुए सर्वे के मुताबिक सब मिलाकर, एक समय इस धर्म के अनुयायियों की संख्या, लगभग 20 करोड़ थी.
उपासना विधि
- दीन ए मोदाही में राष्ट्र की उपासना को प्रधानता दी गई थी. राष्ट्र का अर्थ कमलची पार्टी थी.
- उपासना में अग्नि की पूजा और बुलडोजर को नमस्कार करने का विधान था. इसके लिए प्रात:, दोपहर, सांय और रात्रि में हर चैनल पर आग लगाकर, बादशाह की पूजा की जाती थी.
- प्रात: और मध्य रात्रि में प्रार्थना करने की सूचना सोशल मीडिया पर दी जाती थी. दिन में पांच वक्त की पोस्ट फार्वर्ड करना पड़ता था. पेड भक्त, सोशल मीडिया पर अहर्निश गालियों का उच्चाटन करते.
- अनुयायियों के लिये गोमांस, लहसुन−प्याज खाना वर्जित था. यद्यपि नरमांस से प्रतिबंध हटा लिया गया था.
- किसी भी पद पर बने रहने, या पाकिस्तान जाने से बचने के लिए बादशाह के सामने सज़दा (दंडवत) करना आवश्यक था.
- इस संप्रदाय में एक से अधिक विवाह करना वर्जित था. परन्तु पत्नी छोड़कर भागने पर छूट थी. दूसरे के पति से विवाह की छिटपुट घटनायें भी उल्लेखनीय हैं.
- बलात्कार और अन्य प्रकार की यौन हिंसा पर इस धर्म के मतावलंबियों को छूट थी. परंतु अन्य मतावलंबियों पर कठोर नियम लागू थे.
नये संप्रदाय की उपासना, पूजा−पद्धति का प्रचार करने के लिए भांडजनों द्वारा कई पुस्तकें लिखी गई. बड़ी मात्रा में टीवी शो प्रायोजित हुए. सोशल मीडिया पर पोस्ट, थ्रेड और ट्वीट लिखे गए.
नरेन्दर के शासन काल में इस धर्म के बहुत से अनुयायी हो गए थे. परंतु बादशाह के पदच्यूत होते ही सब समाप्त हो गया. जो लोग दीन-ए-मोदाही के अनुयायी बने थे..तमाशा खत्म होने पर, सब अपने−अपने काम धंधों पे वापिस चले गये.
कुछ इतिहासकारों के अनुसार तब वामपन्थी, लिब्रान्डू, कांगियों ने तब इस नये संप्रदाय का काफी विरोध किया था. माना जाता है कि अधिकांश जनता नये संप्रदाय की उपेक्षा की, और उसका मजाक, मीम वगरैह बनाये. परन्तु समर्थंको ने – आएगा तो मोदी ही, अबकी बार सात सौ पार, तू पाकिस्तानी-तू गद्दार .. जैसे वशीकरण मन्त्र मारकर, काबू कर लिया.
ऐसे में बादशाह नरेन्दर के समय तो विरोध उभर नहीं सका था, किंतु उसके हटते ही वह फूट पड़ा. पार्टी से प्रजा तक, सब उसके विरोधी थे. इसलिए, उसके बाद दीन ए मोदाही का नाम केवल इतिहास में ही शेष रह गया.
उपसंहार
सम्राट नरेन्दर को अपने शासनकाल में अनेक असफलताएं प्राप्त हुई थी. वह प्रशासन के साथ ही साथ आर्थिकी, विदेश नीति, राष्ट्रीय सुरक्षा और विकास के मुद्दों पर असफल रहा. परंतु राजनीति और धर्म में उसे आशातीत सफलता मिली, इसका कारण दीन-ए-मोदाही सम्प्रदाय को बताया जाता है.
- मनीष सिंह
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