Home कविताएं सुब्रतो चटर्जी की तीन कविताएं

सुब्रतो चटर्जी की तीन कविताएं

0 second read
0
1
118

1. कोशिश

घर से दूर एक घर बसाने की कोशिश है
और बंदूक़ के निशाने पर मेरी रोटी भी है
कितना अच्छा होता अगर
एक रोटी के पीछे हज़ारों लोग नहीं होते
या हज़ारों रोटियां कुछ लोगों के पीछे नहीं होती

ऐसे में
मुझे अपने घर से दूर
और कोई घर बसाने की
ज़रूरत भी नहीं होती

ध्यान से देखो
घर से दूर बसा हुआ घर
ईंटों के तीन दिवारों से बना होता है
जबकि चौथा कोने में दरवाज़ा होता है
हवा, रोशनी, मेरे और मेरे बच्चों के
आने जाने के लिए

हम सब मिलकर
इसी चौथे कोण से
भरते हैं इस ख़ाली घर में
हवा, आग, और पानी

क़रीब से देखने पर
घर से दूर बसा हुआ घर
तीन ईंटों से बने हुए
एक आदिम चूल्हे सा दिखता है
जिसके अंदर पकतीं हैं रोटियां
कभी कभार
जब कोई अदद रोटी
उनके बंदूक़ के निशाने पर नहीं होता.

2. असाधारण

बारिश हो रही है
और मैं पैदल घर लौटते हुए
एक टिन की शेड के नीचे खड़े
तुम्हें याद कर रहा हूं

इस समय
मैं एक भीगे हुए परिंदे सा दिखता हूं
जिसके भीगे हुए पर उसे
उड़ने नहीं देंगे
लेकिन मैं जल पक्षी हूं

इस असाधारण समय में
जब जंगल के सारे पेड़
आपस में गुत्थम-गुत्था करते हुए
एक काला परिदृश्य बना रहे हैं
जिस बैकग्राउंड पर मैं
उभरने की कोशिश में हूं
किसी अनाम चित्रकार के
हस्ताक्षर की तरह
उसी समय मुझे
बारिश के बहते हुए पानी में धुले
तुम्हारे पैरों के टखने याद आ रहे हैं

दुनिया का सबसे दुखद चित्र है
टूटे हुए छज्जों को ढोते हुए
टूटते हुए घर
और चूते हुए छतों के नीचे दुबके
किसी परिवार की सफ़ेद आंखों में
रोटी की प्रतीक्षा

मैं इस असाधारण समय में
तुम्हें याद करते हुए
ग्लानि से भर जाता हूं

अपना कितना हिस्सा बचा कर रखूं
तुम्हारे लिए
मेरे लिए
और उनके लिए
जिनके हिस्से में वे खुद को भी
बचा कर नहीं रख पाये

इस असाधारण समय के पास
कोई जवाब नहीं है
जिधर देखो उधर
प्रसूताओं की हत्या हो रही है
गो के हम अपनी आने वाली पीढ़ी से
उब गये हैं

ऐसे में
तुम्हें याद करते हुए
बहुत दूर निकल आता हूँ मैं
बारिश का हाथ थामे
और फिर ख़बर आती है कि
सेंट्रल लाईन डूब चुकी है

मेरी रीढ़ की हड्डियों में
बहा कर बर्फ़ की एक नदी
बीत जाती है बारिश
और तुम्हारी चाहत

तुम्हारे ख़ाली घर की तरफ़
बस एक पल के लिए देखता हूं
और आगे बढ़ जाता हूं अदिति
बदन पर भीगे कपड़ों का बोझ लिए
पैरों में भीगे हुए जूतों की ज़ंजीर लिए

इस असाधारण समय में भी
मैं एक साधारण व्यक्ति ही रहा प्रिये…

प्रेम है या मृत्यु

जब वह
आख़िरी बार हंसी थी
कितनी बेफ़िक्री थी
उस हंसी में
नहीं समझोगे तुम

जैसे
तुम कभी नहीं समझ पाए
बीज गणित का अर्थशास्त्र
मद्धम पड़ती ढिबरी की लौ की तरह
योगक्षेमं महाम्यहम के कुलुंगी की तरह
अपने दोनों हाथों को सर पर उठाए
आत्मसमर्पण की मुद्रा में
कालिख़ बटोरते हुए

काल निशा के अभ्यंतर में
कंधे और कटि प्रदेश के संधि स्थलों पर
आत्म समर्पण की सरल मुद्राओं के
जटिल अर्थों की तलाश में
अनर्गल स्वेद की भाषा में
अभिव्यक्त मेरा प्रेम
एक घर की सबसे सरल परिभाषा है अदिति
जिसके खोह में जलते रहे हैं
तुम्हारे प्रेम के चिराग़

छीः
शर्म नहीं आती
ब्रह्म मुहूर्त में व्यसन की वृत्ति को
संध्या आह्निक तक
लिंग शीर्ष पर ढोते हुए ?

नश्वर योनी के पार
एक उच्छृंखल जीवन है
शरद का आभास ढोते
काश वन के नृत्य की तरह

कभी देखा है तुमने
कजराए हुए पृथ्वी के मलिन
कटाक्ष तक
किसी पिशाचिन के केशों को झूमते हुए
देवी के आह्वान की सूचना देते हुए ?

या देवी सर्व भूतानां निद्रा रूपेण संस्थिताः

मुझे बहुत नींद आ रही है अदिति
मुझे बहुत प्यास लगी है अदिति
मुझे बहुत भूख लगी है अदिति

नाचे मृत्यु
नाचे झंझा
नाचे संज्ञा
नाचे प्रज्ञा
नाचे स्मृति
विस्मृति
नाचे देह
नाचे छाया
प्रच्छाया
नाचे मौनं
नाचे वाणी
नाचे मुद्रा
नाचे स्थिति
नाचे मंत्रं
विभावरी
नाचे रात्रि
नाचे संध्या
अघोरी उषा
शुभांगिनी

अहो भाग्यम्
अहो जीवनम्
परलौकम्
अथ मृत्यु
अथ अर्थम्

खुरचने की प्रक्रिया का अंतिम चरण
प्रेम है या मृत्यु
मेरे अलीक अस्तित्व को चूम कर बता जाओ
इस अनंत रात्रि में अदिति…

  • सुब्रतो चटर्जी

प्रतिभा एक डायरी स्वतंत्र ब्लाॅग है. इसे नियमित पढ़ने के लिए सब्सक्राईब करें. प्रकाशित ब्लाॅग पर आपकी प्रतिक्रिया अपेक्षित है. प्रतिभा एक डायरी से जुड़े अन्य अपडेट लगातार हासिल करने के लिए हमें फेसबुक और गूगल प्लस पर ज्वॉइन करें, ट्विटर हैण्डल पर फॉलो करे… एवं ‘मोबाईल एप ‘डाऊनलोड करें ]

scan bar code to donate
scan bar code to donate
Pratibha Ek Diary G Pay
Pratibha Ek Diary G Pay

ROHIT SHARMA

BLOGGER INDIA ‘प्रतिभा एक डायरी’ का उद्देश्य मेहनतकश लोगों की मौजूदा राजनीतिक ताकतों को आत्मसात करना और उनके हितों के लिए प्रतिबद्ध एक नई ताकत पैदा करना है. यह आपकी अपनी आवाज है, इसलिए इसमें प्रकाशित किसी भी आलेख का उपयोग जनहित हेतु किसी भी भाषा, किसी भी रुप में आंशिक या सम्पूर्ण किया जा सकता है. किसी प्रकार की अनुमति लेने की जरूरत नहीं है.

Load More Related Articles
Load More By ROHIT SHARMA
  • शातिर हत्यारे

    हत्यारे हमारे जीवन में बहुत दूर से नहीं आते हैं हमारे आसपास ही होते हैं आत्महत्या के लिए ज…
  • प्रहसन

    प्रहसन देख कर लौटते हुए सभी खुश थे किसी ने राजा में विदूषक देखा था किसी ने विदूषक में हत्य…
  • पार्वती योनि

    ऐसा क्या किया था शिव तुमने ? रची थी कौन-सी लीला ? ? ? जो इतना विख्यात हो गया तुम्हारा लिंग…
Load More In कविताएं

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Check Also

शातिर हत्यारे

हत्यारे हमारे जीवन में बहुत दूर से नहीं आते हैं हमारे आसपास ही होते हैं आत्महत्या के लिए ज…