Home गेस्ट ब्लॉग ‘घर-घर तिरंगा उखाड़ो’ वाले ‘घर-घर तिरंगा लगाओ’ कह रहे

‘घर-घर तिरंगा उखाड़ो’ वाले ‘घर-घर तिरंगा लगाओ’ कह रहे

5 second read
0
0
149
'घर-घर तिरंगा उखाड़ो' वाले 'घर-घर तिरंगा लगाओ' कह रहे
‘घर-घर तिरंगा उखाड़ो’ वाले ‘घर-घर तिरंगा लगाओ’ कह रहे
kanak tiwariकनक तिवारी

‘घर-घर तिरंगा उखाड़ो’ वाले ‘घर-घर तिरंगा लगाओ’ कह रहे हैं. तिरंगा ध्वज ! यह लोग शीर्षासन क्यों कर रहे हैं ? ‘हर हाथ को काम’, ‘हर खेत को पानी’ कहने वाले देश में अब हर हाथ में तिरंगा झंडा आ गया है. सारे देश में हल्ला मचा हुआ है. जो लोग आजा़दी की लड़ाई के वक्त तिरंगे झंडे से नफ़रत करते थे, जो यूनियन जैक को सलाम करते थे, जो अपनी समझ के कारण केसरिया या भगवा झंडे को अपनी छाती से लगाए हुए थे, आज तिरंगे झंडे के सबसे बड़े पैरोकार बने घूम रहे हैं. देश में बेरोज़गारी है, महंगाई है, भुखमरी है, प्रदूषण है, कुपोषण है, खाने की किल्लत हैं, हिंसा और झगड़े हैं, सब…

क्या है यह झंडा ? यह झंडा कागज पर छपी हुई चीज़ है या कपड़े पर उकेरा गया कोई चेहरा है ? यह झंडा है किसी कौम के ईमान का परचम ! यह उसके इतिहास का, उपन्यास उसकी कहानी का, कुर्बानी का जलजला है. यह किसी देश का इतिहास है. इस झंडे को बचाए रखने के लिए लाखों करोड़ों ने कुर्बानी दी. तब भी कुछ लोग अंग्रेज के तलुवे सहला रहे थे, उनके जूते झाड़ रहे थे.

आज भी तिरंगे झंडे से कोई अपना मुंह पोंछ रहा है, कोई उल्टा तिरंगा झंडा लगाकर विदेशों में अपने देश की शान में बट्टा लगा रहा है, फिर भी उसके चेहरे पर कोई शिकन नहीं आती है. विदेश से या देश के कारपोरेट से लाखों करोड़ों का झंडा किसी औद्योगिक उत्पाद की तरह पैदा कराया जा रहा है. कहीं चरखा नहीं है. कहीं हैंडलूम नहीं है. कहीं स्वदेशी नहीं है. कहीं खादी भी नहीं है. देश का सूती उद्योग भी नहीं है. इसे जिन माध्यमों से बनाया जा रहा है. वे न तो भारतीय हैं, न स्वदेशी हैं, फिर भी झंडे का रोजगार किया जा रहा है.

कभी लोग कहते थे कांग्रेस में रहकर ऐ खुदा मुझे जीवन में कुछ मिले न मिले लेकिन जिस दिन मैं अंतिम सफर पर चलूं. मेरा जिस्म, मेरी लाश इस तिरंगे झंडे से लिपटी हो. हमारे सैनिक भी कहते हैं हमें कोई पुरस्कार नहीं चाहिए, लेकिन हमारा जीवन धन्य हो जाएगा जिस दिन देश की सेवा करते हमारा शव तिरंगे झंडे में लिपटे परिवार के लोग हमारे दोस्त और देश के लोग देखेंगे. उस तिरंगे झंडे को आपने उस तरह के व्यापार डाल दिया, जैसा आपके दोस्त अडानी अंबानी और दूसरे आपकी मदद से कर रहे हैं. शर्मनाक है !

अफसोस होता है. लोगों से कहते हैं गरीबों से अपने घरों पर झंडा लगाओ. घर ही नहीं हैं. लाखों लोग बेघर हैं. आपने वादा किया था कि 2022 तक हर एक के सिर के ऊपर छत होगी, कहां है वह छत ? कहां गए सब लोग ? इस देश में गरीबी का इंडेक्स बढ़ गया है. प्रदूषण का भी भुखमरी का भी. इस देश की मीडिया दुनिया में सबसे ज्यादा बिकाऊ और सरकार की गुलाम है.

संविधान की एक-एक हिदायत की धज्जियां उड़ा रहे हो. काहे का स्वतंत्रता दिवस ? किस बात का जोश और क्या करेगा तिरंगा झंडा ? तिरंगा झंडा तो उनके हाथों में था जो अपने देश को आजा़द करने तबाह हो गए. कुर्बान हो गए. मिट गए. हम उन स्वतंत्रता संग्राम सैनिकों की औलादें हैं. हम इस तिरंगे झंडे के शान और सम्मान को कभी कम नहीं होने देंगे लेकिन हम देश के अवाम हैं, तिरंगे झंडे और उसके सम्मान को राजशाही का रुक्का नहीं बनने देंगे.

Read Also –

तिरंगा को आतंक बना कर गद्दार सावरकर को स्थापित करने का कुचक्र रचा मोदी ने
‘घर घर तिरंगा’ अभियान के इस गौरवगान में स्मृति, विस्मृति और कारोबार का खेल है
भाजपा-आरएसएस का तिरंगा प्रेम : जब गद्दार देशभक्त होने का नौटंकी करने लगे …
देश, देशभक्ति और तिरंगा

प्रतिभा एक डायरी स्वतंत्र ब्लाॅग है. इसे नियमित पढ़ने के लिए सब्सक्राईब करें. प्रकाशित ब्लाॅग पर आपकी प्रतिक्रिया अपेक्षित है. प्रतिभा एक डायरी से जुड़े अन्य अपडेट लगातार हासिल करने के लिए हमें फेसबुक और गूगल प्लस पर ज्वॉइन करें, ट्विटर हैण्डल पर फॉलो करे… एवं ‘मोबाईल एप ‘डाऊनलोड करें ]

scan bar code to donate
scan bar code to donate
G-Pay
G-Pay
Load More Related Articles
Load More By ROHIT SHARMA
Load More In गेस्ट ब्लॉग

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Check Also

कामरेडस जोसेफ (दर्शन पाल) एवं संजीत (अर्जुन प्रसाद सिंह) भाकपा (माओवादी) से बर्खास्त

भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) ने पंजाब और बिहार के अपने कामरेडसद्वय जोसेफ (दर्शन पाल…