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गांधी को गाली देने वाले इस देश के सबसे बडे गद्दार हैं

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गांधी को नोबेल नहीं मिला और मिलना भी नहीं चाहिए क्योंकि गांधी का वो कद है कि अल्फ्रेड नोबेल को गांधी पुरस्कार मिलना चाहिए. हालांकि 1948 में गांधी की मृत्यु पर उनके सम्मान हेतु किसी को नोबेल नहीं दिया गया और भारत सरकार ने कभी गांधी को नोबेल देने कि सिफारिश भी नहीं की क्योंकि उनका कद इससे ऊंचा है. यह भारतीयों की आम धारणा है जबकि सच्चाई इससे अलग है.

गांधीजी नोबेल पुरस्कार के लिए नोमिनेट हुए थे लेकिन इंग्लैंड की सरकार के खिलाफ जाने की हिम्मत नॉबेल कमिटी में नहीं थी. एक गुलाम देश के स्वतंत्रता सेनानी को ये इनाम मिलता तो इनाम वितरण के दिन ही माइक पकड़ के गांधीजी इंग्लैंड के अत्याचारों की बात कर के इंग्लैंड के इज़्ज़त की धज्जियां उड़ा देते, ये डर इंग्लैंड को आखिर तक रहा. मैं तो कहता हूं दुनिया भर के जितने महात्मा है सबके लिए सबसे बड़ा पुरस्कार गांधी पुरस्कार होना चाहिए.

ये अलग बात है गांधी के समर्थक और विरोधी तब भी थे औऱ आज भी है, सबके अपने तर्क है. जैसे वर्तमान में ही लोग कहते है कि पाकिस्तान को पैसे देने के कारण गांधी को गोडसे ने मारा जबकि सत्य ये है कि गांधी पर आज़ादी से पहले भी पांच बार जानलेवा हमला हो चुका था.

इधर कुछ सालों से उनके विरोधी भी समझ गए कि उन पर सीधा हमला करके उनकी ही हार है इसलिये शातिर लोगों ने कुछ साल पहले गोडसे का महिमांडन शुरू किया लेकिन उनकी इस मूर्खता से उल्टा उनकी ही फ़ज़ीहत होती गई. हाल ये हुआ कि शाखा में दिन रात गांधी को गाली देने वाले को भी विदेश में जाकर उनका ही गुणगान करना पड़ा.

इन्हें भी पता है कि गांधी का कद क्या है और मजबूरी देखिये अपने ईष्ट गोडसे के लिए दो शब्द भी नहीं निकाल सकते. आस्था पे ये पाबंदी विरले ही देखने को मिलती है. अब ये चाल दो कौड़ी की साबित हुई इसलिये नया दांव खेला.

दो अक्टूबर को लाल बहादुर शास्त्री के जन्मदिन को गांधी से ऊपर रखकर बधाई देना शुरू की, उन्हें लगा ऐसा करके वो गांधी के अस्तित्व को धुंधला कर देंगे लेकिन ये पैतरा भी चला नहीं क्योंकि गांधी का कद सिर्फ भारत तक ही सीमित नहीं है जबकि लाल बहादुर शास्त्री के खुद आदर्श महात्मा गांधी थे. उन्होंने तो उनकी हत्या करने वाले संगठन के खिलाफ सबसे पहले आधिकारिक शिकायत दर्ज कराई थी.

विचारों का पवित्र व्यक्ति लाल बहादुर शास्त्री को भी उतना ही सम्मान देता है जैसे भगत सिंह, चंद्रशेखर आज़ाद आदि को. इसलिये जब इन लोगों ने लाल बहादुर को सम्मान देना शुरू किया तो लोगों ने सहर्ष स्वीकार किया. लेकिन दिक्कत ये है कि इनको गांधी के समकक्ष लाकर मुक़ाबले पर खड़ा नहीं कर सकते.

ये महान विभूतियां स्वयं गांधी जी के विचारों का सम्मान करती थी, यहां तक सुभाष चंद्र बोस ने भी अपनी आज़ाद हिंद फौज की टुकड़ियों के नाम गांधी और नेहरू के नाम पर रखा था. जबकि भगत सिंह, चंद्रशेखर आदि के विचार गांधी जी से मेल नहीं खाते थे लेकिन उन्हें भी पता था गांधी जी जो बात बोलते हैं लाखों लोग उसे दोहराते हैं, जिधर चलते हैं पूरा भारत उस दिशा की ओर चलने लगता है.

एक बात याद रखिये गांधी जी अहिंसा कहीं विदेश से खरीद कर नहीं लाये थे बल्कि ये भारतवासियों के भीतर उगती थी, उगती है, इसलिए अब ये मूर्खता छोड़िये की गांधी को आप मिटा देंगे.

गांधी को आप पढ़ेंगे तो अनुभव करेंगे कि वो जन्मजात महान नहीं पैदा हुए, उन्होंने बहुत सी गलतियां की, लेकिन हर गलती को उन्होंने स्वीकारा और उसे सुधारा. पहले पहल उन्होंने अपने लिए ही सोचा, जैसे एक बड़ी आबादी सोचती है, जैसे हर आम व्यक्ति सोचता है, अपने जीवन को बेहतर बनाना, अच्छी पढ़ाई करना और अपने परिवार का दायित्व उठाना.

सब कुछ व्यक्तिगत ही था, कई अप्रत्याशित घटनाएं भी हुई इसलिए मैं कहता हूं कि कोई बुराई नहीं है अपनी व्यक्तिगत जीवन के लड़ाई लड़ने में. गांधी को जब ट्रेन से फेंका गया तो उनके अहं को ठेस लगी, ये पूरी तरह से व्यक्तिगत लड़ाई थी लेकिन व्यक्तिगत लड़ाई भी व्यापक होनी चाहिए. उन्होंने ‘मुझे नीचे फेंका’ को हथियार बनाया और ‘क्यो फेंका’ इस कारण के विरुद्ध व्यापक युद्ध छेड़ा.

उन्होंने कारण तलाशा. वो चाहते तो जिसने फेंका है उससे सीधे लड़ाई लड़ते लेकिन उन्होंने उस कारण के विरुद्ध लड़ाई लड़ी जिसकी वजह से कोई भी गांधी ट्रेन के नीचे फेंका जा सकता था. कई बार जब हम जातिवाद, भ्र्ष्टाचार को स्वयं झेलते और उसके विरुद्ध लड़ते है तो ये लड़ाई केवल हमारी नही सबकी हो जाती है.

अंत मे इतना कहूंगा कि आप अपनी भी लड़ाई लड़िये तो कारणों पे लड़िये, जिसका लाभ पूरा समाज उठा सके. ये क्रोध का समाज से होता हुआ राष्ट्र, और राष्ट्र से होता हुआ विश्व हित हेतु ‘असाधारिकरण’ है.

गांधी बनना इसलिए आसान नहीं है क्योंकि हम सबको पता है पैग़ंबर नये मूल्यों की प्रेरणा देते हैं, लेकिन उनकी ज़िंदगी में जनसाधारण शायद ही उन्हें गौरवान्वित करता है या उनका अनुसरण करता है. बहुत से उदहारण हैं जहां उस समय की बड़ी संख्या उनकी प्रशंसा उनके किसी विचार पर बहुत कम ही करता हैं. विचार से पहले चमत्कार जैसे बीमार को चंगा करना, मरे हुए को ज़िंदा करना लेकिन इसके उलट गांधी के विचारो को उनके जीवनकाल में बहुत सम्मान मिला जबकि वर्तमान में उनकी छवि को धूमिल करने की कोई कसर नहीं छोड़ी जा रही. वैसे भी किसी महान व्यक्ति को नीचा दिखाने के लिए सबसे पहले उसके चरित्र पर आक्षेप लगाया जाता है और ये काम निम्नस्तरीय सोच रखने वाले करते हैं.

अहिंसा गांधी का वो अस्त्र था जिसका इस्तेमाल गांधी से पहले किसी ने भी राजनीतिक सत्ता के विरुद्ध नहीं किया था. व्यक्तिगत रूप से मैऔ उन्हें मार्क्स तथा लेनिन से बड़ा विचारक मानता हूं. जबकि उनके अलावा भी देश कि स्वतंत्रता में बहुत से देशभक्तों का योगदान मानता हूं. हम सब उन महान आत्माओं के ऋणी हैं लेकिन गांधी एक अलग छाप छोड़ते हैं.

संघ और बीजेपी एक ही सिक्के के दो पहलू हैं. इनकी पूरी राजनीति झूठ, छल, कपट, घमंड, पाखंड व दुष्प्रचार पर आधारित है. ये वे लोग हैं जो महात्मा गांधी व स्वामी अग्निवेश जैसे महापुरुषों को गाली देते हैं और गोडसे व सावरकर जैसे गद्दारों के गीत गाते हैं. बलात्कारियों का फूल मालाओं से स्वागत करते हैं.

उतराखंड की अंकिता को वेश्या वृत्ति को मजबूर करने व उसकी हत्या करने वाले भी यही लोग हैं. कुलदीप सैंगर, चिन्मयानंद व टैनी जैसे दुराचारी, बलात्कारी, भ्रष्टाचारी भरे पड़े हैं इसमें. गोडसे गंदी नाली का कीड़ा बन कर कहीं रेंग रहा होगा, गांधी मोक्ष सुख भोग रहा होगा. सरदार पटेल, जवाहरलाल नेहरू व लालबहादुर शास्त्री महात्मा गांधी को अपना गुरु मानते थे, महात्मा गांधी को गाली देने वाले इस देश के सबसे बडे गद्दार हैं. राष्ट्र पिता महात्मा गांधी को कोटि कोटि नमन !

  • डॉ. मुमुक्षु आर्य

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