Home कविताएं यह परछाई आपको खा जाएगी एक दिन…

यह परछाई आपको खा जाएगी एक दिन…

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अंततः जीत गये आप
युद्ध भूमि में
अंत के बाद तक
आप ही थे
तब भी जब सारे योद्धा जा चुके थे
यह सोचकर कि युद्ध ख़त्म हुआ

आप घायल थे तो क्या
शेयर बाज़ार में आप गिर चुके थे तो क्या
रहे तो आप ही
वहां युद्ध के मैदान में
सब के जाने के बाद भी अंत तक
मर जाने का स्वांग रचते हुए

आपका जीतना तय था
वे झांसे में आ चुके थे
वे रोक नहीं सकते थे आपको जीतने से
उनके गोला बारूद सब खत्म हो चुके थे
एक रिपोर्ट तैयार करने में
एक फैसला लिखने में
और वे आपको मृत समझकर
लौट चुके थे
लेकिन यह आप ही थे
जो जानते थे कि ख़ुद को
विजयी मान कर लौट जाने से
युद्ध ख़त्म नहीं हो जाता
वहाँ अंत तक डटे रहना होता है
औंधे मुंह गिरे रहकर भी

हूक और चीत्कार के बीच
मानवता के इतिहास को कुचलते हुए
आप जिस तरह उठे
और सरके धीरे-धीरे
मंच की ओर
ऐसा कारनामा
कोई कुटिल योद्धा ही कर सकता था
और जबतक वे कुछ समझते
आपने लोकतंत्र की बखिया उधेड़ कर रख दी
अपनी रणनीति से

आपकी जय हो
आपकी व्यूहरचना के कौशल की
जय हो
वे आपसे लड़ते रहे
और लड़ते लड़ते सिमट गये
आपके छप्पन इंची सीने के इर्दगिर्द
जबकि इधर आपने पूरे देश को
प्रयोगशाला बना दिया
लाशें बिछा दी पूरे देश में
आग के हवाले कर दिया मणिपुर को
मेवात को
देखते देखते मुसलमानों के घर
चिन्हित कर लिये आप
बलात्कार से कोई गली अछूती नहीं रही
तब भी क्या कर पाए वो
न तो उनसे बुलडोजर रुक रहा है
और न वे
आपकी ट्रॉल आर्मी
की मक्कारी का सामना ही कर पा रहे हैं

लेकिन
एक खतरा है महोदय
आपकी परछाईं विकराल है
यह परछाईं आपको खा जाएगी एक दिन

  • विनोद शंकर

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