सुब्रतो चटर्जी
ग़लती मोदी जी की नहीं है. ठंढे दिमाग़ से सोचिए. अगर 60 लाख लोग कोरोना कुप्रंधन के चलते मर जाते हैं और आप फिर भी मोदी को वोट देते हैं, तो मोदी सरकार को स्वास्थ्य सेवा सुधारने की ज़रूरत क्या है ?
यदि देश में पिछले 45 सालों में सबसे ज़्यादा बेरोज़गारी है और आप फिर भी मोदी को वोट देते हैं, तो सरकार को रोज़गार पैदा करने की ज़रूरत क्या है ? अगर डॉलर के मुक़ाबले रुपया ऐतिहासिक स्तर पर कमज़ोर हुआ है और आप फिर भी अच्छे दिनों की आशा में मोदी को वोट देते हैं, तो सरकार को अर्थव्यवस्था ठीक करने की ज़रूरत क्या है ?
यदि देश भर में 66 हज़ार स्कूलों के बंद होने से आपको कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता है तो सरकार को शिक्षा पर खर्च करने की ज़रूरत क्या है ? यदि पूरे देश को सांप्रदायिक दंगों से होने वाली मौतों से कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता है और आप हिंदुत्व के नाम पर झोली भर के मोदी को वोट देते हैं तो सरकार क्यों न दंगे करवाए ?
अगर आपको 82 करोड़ मोदी झोला पर शर्म नहीं आती है तो मोदी जी क्यों न इसकी संख्या 100 करोड़ तक पहुंचाए ? अगर डार्विन और न्यूटन को हटा देने से आपकी सनातन चेतना को बल मिलता है और आप झुंड बना कर मोदी को वोट देते हैं तो सरकार क्यों न विज्ञान और इतिहास की पढ़ाई को ही पाठ्यक्रम से हटाए ?
अगर आपको बलात्कारियों और हत्यारों की महिमामंडन से कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता है और आप हरेक क्रिमिनल को अपना हीरो समझ कर मोदी को वोट दे आएं तो मोदी जी क्यों न सभी क्रिमिनल लोगों को संरक्षण दे कर सांसद या विधायक बना दें ? सोचते रहिए. बुरा जो देखन मैं चला, मुझसे बुरा न कोए.
इस बात की क्या गारंटी है कि अगर कल बलात्कारी बृजभूषण की गिरफ़्तारी हो जाए तो ये पहलवान घर लौट कर कल भाजपा को वोट नहीं देंगे ? क्या टेनी पुत्र द्वारा हत्या करने के बाद उसके इलाक़े के लोगों ने भाजपा को वोट नहीं दिया था ?
क्या सुबोध सिंह की हत्या के बाद यूपी के राजपूतों ने योगी को वोट नहीं दिया था ? क्या किसान बिल लौटा लेने के बाद आंदोलन के इलाक़ों के किसानों ने मोदी को वोट नहीं दिया था ? क्या शव वाहिनी गंगा के किनारे बसी गोबरपट्टी ने मोदी को वोट नहीं दिया था ?
दरअसल जब धर्म की राजनीति दिलोदिमाग़ पर हावी रहती है तो लोगों को अपने बच्चों की बलि लेने से भी गुरेज़ नहीं होता. धार्मिक ग्रंथों को पढ़िए. बेटे के लिए कफ़न मांगकर अपनी पत्नी को नंगा करने वाला हरिश्चंद्र पूजनीय है और दैवी परीक्षा पास करने के लिए अपने बेटे की बलि देने को तैयार शख़्स भी पूजनीय है. जब आपकी आस्था ही ग़लत के साथ खड़ी है तो आपका जीवन कैसा होगा ?
तो फिर इसका मतलब यह है कि हम अपने देश की बेटियों के साथ हो रहे अत्याचार के विरूद्ध एक नहीं हों ? बिल्कुल होना चाहिए, लेकिन इस विश्वास के साथ कि आज भारत में हर पीड़ित अपने अत्याचारी के पक्ष में खड़ा है. यही वजह है कि भारत में कम्युनिस्ट आंदोलन मर गया है.
आख़िरी सवाल ये है कि मोदी जी क्यों चुप हैं ? जवाब में एक सवाल, क्या ये खिलाड़ी क्रिमिनल हैं ? नहीं. फिर क्या कारण है कि मोदी इनके समर्थन में आएंगे ?
सौमित्र राय लिखते हैं, बीजेपी का एक सांसद महिला पहलवानों के यौन उत्पीड़न का आरोपी है. उस पर पॉक्सो कानून के तहत आरोप हैं लेकिन खुलेआम गोदी मीडिया को इंटरव्यू दे रहा है. सवाल पूछने पर धमकाता है. पुलिस उसे गिरफ्तार करने के लिए सत्ता के इशारे का इंतजार कर रही है.
उधर, दिल्ली पुलिस आधी रात को जंतर–मंतर पर बैठी देश की गोल्ड मेडलिस्ट पहलवानों पर गुंडों की तरह टूट पड़ती है. पत्रकारों से बदतमीजी, उनके कपड़े फाड़ना, हिरासत में लेना, ताकि बची–खुची आवाज़ भी न उठे.
वाह, नरेंद्र मोदीजी ! कल आप कर्नाटक में नारी शक्ति का जुमला फेंक रहे थे. रात में ही प्रेस स्वतंत्रता को कुचल दिया आपकी पुलिस ने. कमाल का काम किया है आपने !
आप बस यूं ही हर मिनट पर हमारे 3 लाख रुपए अपने प्रचार में खर्च करते जाएं और हमारी बेटियां सड़कों पर नोची जाती रहें. यही आपका हिंदू राष्ट्र है ? एक मरे हुए लोकतंत्र का आपने जनाज़ा निकाल दिया. यही आपके काम करने की शैली–गुजरात मॉडल रहा है ?
भारत की तमाम नारीवादियों को वर्दीधारी गुंडों के इस आतंक का समर्थन करना चाहिए. आज कपड़े फाड़े, कल सरेआम रेप भी कर दें, क्या फ़र्क पड़ता है ? एंजॉय करें, चरमसुख लें.
वे संविधान और पुलिस की शान में कविताएं लिखें. मोमबत्ती जलाएं. मौन, मानव श्रृंखला बनाएं लेकिन सड़कों पर आवाज़ बुलंद न करें. खौफ में जीयें, खौफ में मरें, बेटियों को 7 तालों में बंद कर दें.
आज पूरा देश लहूलुहान है. अदालतों का संज्ञान शून्य है. शर्म का पानी सूख चुका है. ये मेरा भारत नहीं है. ये तालिबानियों का भारत है.
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