हिमांशु कुमार
अपनी बेटी को आठवीं कक्षा की सामाजिक विज्ञान की किताब पढ़ा रहा हूं. इसमें एक पाठ है मर्जिनलाइजेशन का और उससे अगला पाठ है मर्जिनलाइजेशन से संघर्ष का. मर्जिनलाइजेशन का अर्थ है हाशियाकरण. जैसे एक किताब होती है. उस किताब के हर पेज पर बीच का हिस्सा छपा हुआ भाग होता है. पेज के किनारे का हिस्सा खाली होता है. इस खाली हिस्से को ही मार्जिन कहते हैं तो मार्जिन यानी किनारे का हिस्सा.
समाज में भी एक बीच का हिस्सा है और एक मार्जिन है. बीच का हिस्सा यानी जहां नौकरी है, जहां ज़मीनें हैं, बीच के हिस्से में इज्ज़त है, शिक्षा है, अस्पताल हैं. इसके उलट समाज का जो मार्जिन वाला हिस्सा है, वहां गरीबी है, भूख है, बेईज्ज़ती है, पुलिस की मार है, थाने में बलात्कार है, बीमारी है, दवाई नहीं है.
बीच के हिस्से में कौन हैं ? कभी इसकी जांच करनी हो तो अपने चारों तरफ नज़र घुमाओ और जांच करो कि इस जगह में कौन लोग मौजूद हैं ? और कौन लोग बीच के हिस्से से गायब हैं ? उदाहरण के लिए आप किसी महंगे कालेज में जाइए, वहां पढने वालों की ज़ात पूछिए और जांच कीजिये कि इनमें से कितने विद्यार्थी दलित और आदिवासी या मुसलमान हैं ?या किसी महंगे अस्पताल में जाकर यही जांच कीजिये या भारत के सुप्रीम कोर्ट या हाई कोर्ट के जजों की जाति पता लगाइए ? आपके सर्वे के नतीजे देख कर आपकी आंखें खुल जायेंगी.
आप पायेंगे कि ऊंचे कालेज या अच्छे अस्पताल में जजों की कुर्सियों पर बड़ी जातियों के लोगों ने तकरीबन सारी जगहों पर कब्ज़ा किया हुआ है. इन जगहों से दलित बाहर धकेल दिए गए हैं, आदिवासी बाहर हैं, मुसलमान बाहर हैं. इस स्थिति को ही मर्जिनलाइजेशन कहा जाता है. यह किताब सरकारी एजेंसी एनसीआरटी द्वारा छापी गई है. सुना है अब मोदी सरकार इसके पाठों को बदलेगी या किताबें ही हटा देगी.
इस किताब में बताया गया है कि किस तरह से आदिवासियों को कंपनियों के लिए उनकी ज़मीनों से ज़बरदस्ती हटा दिया जाता है. इस किताब में यह भी बताया गया है कि पुलिस वाले किस तरह गरीबों के मानवाधिकारों का हनन करते हैं और कानून को तोड़ते हैं. इस किताब में लिखा गया है कि दलितों और आदिवासियों ने किस तरह से अपने मर्जिनलाइजेशन के खिलाफ संघर्ष किया है.
इस पुस्तक में बताया गया है कि अपने मर्जिनलाइजेशन से संघर्ष के लिए वंचित समुदायों ने कई रणनीतियां अपनाई हैं – इनमें से एक है धर्म में सांत्वना खोजना, यानी, सोचना की हमने पिछले जन्म में पाप किये थे इसलिए इस जन्म में हमारी ये दुर्गति है. दूसरी रणनीति है सशस्त्र संघर्ष, यानी हथियारबंद संघर्ष. तीसरी रणनीति है खुद में सुधार, यानी शिक्षा प्राप्त करना, अपनी आर्थिक स्थिति सुधारना.
यह पुस्तक आगे बताती है कि वंचित समुदायों द्वारा यह रणनीतियां अपने हालात के हिसाब से चुनी जाती हैं. पता नहीं भक्तों ने कभी यह किताबें पढी हैं या नहीं ?
स्वतंत्र विचारों के खिलाफ आरएसएस
हमारे परदादा पंडित बिहारी लाल शर्मा आर्य समाजी थे. वे महर्षि दयानंद के उत्तर प्रदेश में पहले शिष्य थे. आर्य समाज के संस्थापक महर्षि दयानंद मुजफ्फरनगर में हमारे घर में ठहरते थे. उस समय आर्य समाज वाले डंके की चोट पर प्रचार करते थे कि राम कृष्ण शिव भगवान नहीं है, इनकी पूजा मत करो, मंदिर मत जाओ, मूर्ति पूजा मत करो.
आर्यसमाजी अवतारवाद को नहीं मानते. वे रामकृष्ण या शंकर को भगवान का अवतार नहीं मानते. उस समय आर्य समाजी सनातनियों से शास्त्रार्थ करते थे. बड़ी बड़ी सभाएं होती थी और उसमें सनातनी और आर्य समाजियों के बीच शास्त्रार्थ होते थे, जिसमें आर्य समाजी सनातनियों के अवतारों की खूब खिल्ली उड़ाते थे और उनके सिद्धांतों की धज्जियां उड़ा देते थे. एक दौर था कि लाखों लोग सनातन धर्म छोड़कर आर्य समाजी बन गए. भगत सिंह का परिवार भी आर्य समाजी था.
आज आरएसएस ने देश का माहौल इतना जहरीला बना दिया है, आरएसएस ने हिंदू धर्म को इतना कट्टर और खतरनाक बना दिया है कि आज अगर कोई राम-कृष्ण को अवतार मानने से मना करे तो संघी और बजरंग दल की भीड़ उसके घर जाकर उसका घर जला देगी. आज से 70 साल पहले हिंदुओं में जितनी सहिष्णुता थी, आज वह भी आरएसएस ने खत्म कर दी है.
हिंदुओं में शास्त्रार्थ की परंपरा थी. आप खुलकर चर्चा कर सकते थे. एक दूसरे के मतों का खंडन कर सकते थे, अपना मत रख सकते थे. वही हिंदू धर्म की विशेषता थी. आज आरएसएस ने ऐसा माहौल बना दिया है कि आप धर्म के ऊपर शास्त्रार्थ की बात सोच भी नहीं सकते. आप की हत्या कर दी जाएगी या पुलिस में आप के खिलाफ एफआईआर कर दी जाएगी कि ‘इन्होंने मेरी धार्मिक भावनाओं का अपमान किया है.’
हिंदुओं को गंभीरता से सोचना चाहिए कि आरएसएस द्वारा उनके धर्म को क्या से क्या बना दिया गया है ? अगर हम चर्चा नहीं कर सकते, शास्त्रार्थ नहीं कर सकते, अपने स्वतंत्र विचार नहीं रख सकते तो इससे भयानक कट्टरता क्या होगी ! हमसे ज्यादा कट्टर धर्म कौन सा धर्म हुआ ! हम अपनी कौन सी सहिष्णुता की डींग हांकते हैं ?
मैं मानता हूं ईसाईयों मुसलमानों यहूदियों के धर्म में परंपरा ही धर्म है. वहां अगर आप परंपरा छोड़ेंगे तो आप धर्म से बाहर हो जाएंगे लेकिन भारत में धर्म हमेशा से शोध यानी खोज का विषय रहा है. भारत में सत्य की खोज की जाती है और नए सत्य को स्वीकार किया जाता है.
भारत का धर्म कभी परंपरा के पालन को मान्यता देने वाला नहीं रहा. हमारे यहां सत्य खोज लेने के बाद ‘नेति नेति’ कहा जाता था अर्थात, यह भी नहीं यह भी नहीं अर्थात जाओ और नये सत्य खोजो. लेकिन आरएसएस ने हर नए सत्य के लिए दरवाजा बंद कर दिया और अवतारवाद को सनातन धर्म और हिंदू धर्म का रूढ़ सिद्धांत बना दिया.
भारत में षडदर्शन थे, जिसमें वैदिक दर्शन मात्र एक दर्शन था. इसके अलावा यहां सांख्य योग, न्याय मीमांसा, वैशेषिका वेदान्त दर्शन भी थे. सांख्य दर्शन ईश्वर को नहीं मानता, इसी तरह यहां अन्य अनीश्वरवादी दर्शन भी थे जो ईश्वर को मानते ही नहीं, जिसमें जैन दर्शन है, बौद्ध दर्शन है, लोकायत यानी चार्वाक दर्शन है.
आज अगर आप कहे कि मैं ईश्वर को नहीं मानता, मैं राम को भगवान नहीं मानता या मैं शंकर को भगवान नहीं मानता तो आप की हत्या की जा सकती है. भारत का जो धर्म विचार इतना विशाल समुंदर जैसा था, उसे आरएसएस ने एक छोटी-सी गंदी नाली में बदल दिया है. इस गंदी नाली में तैरने वाली कुछ मछलियों और कीड़ों को धर्म रक्षक बना दिया गया है. और भारतीय धर्म विचार का जो विशाल महासागर था, उसकी चर्चा को भी अपराध घोषित कर दिया गया है.
आज मैं खुद को अनीश्वरवादी विचारों के ज्यादा नजदीक पाता हूं. मुझे लोकायत और बुद्ध के विचार ज्यादा सत्य और व्यवहारिक लगते हैं लेकिन अपने इन विचारों के कारण मुझे रोज गाली खानी पड़ती है. मुझे रोज लगता है कि पता नहीं किस दिन मेरे खिलाफ कोई भाजपाई या संघी बजरंगी एफआईआर कर देगा और पुलिस द्वारा मुझे उठा कर जेल में बंद कर दिया जाएगा.
हमारा धार्मिक सामाजिक राजनीतिक चिंतन रोज अपने स्तर से नीचे गिरता जा रहा है. भारत विचारहीनता के भयानक दौर में पहुंच चुका है, जहां कोई भी नया दर्शन, नया विचार, नया रास्ता नहीं खोजा जा सकता क्योंकि ऐसा करना आपकी जान ले सकता है या आप को जेल पहुंचा सकता है.
पाखंडी सोच से अलग वैज्ञानिक सोच विकसित करें
आप सोचते हैं या आपका माहौल सोचता है ? आप वही सोचते हैं जैसा आपके आसपास के लोग सोचते हैं. आप को हिन्दू माहौल मिला तो आप हिन्दू की तरह सोचते हैं. आपको मुस्लिम माहौल मिलता है तो आप मुस्लिम की तरह सोचते हैं. भारत में पैदा हुए तो एक तरह से सोचोगे. पकिस्तान में पैदा हुए तो दूसरी तरह से सोचोगे. बड़ी ज़ात के हो तो एक तरह से सोचोगे. अमीर हो तो एक तरह से सोचोगे. ये ख़ास जगह पर पैदा होने की वजह से अगर आपकी एक ख़ास सोच बन गयी है तो ये आपकी अपनी सोच नहीं है.
आप अपनी सोच विकसित कीजिये, वही असली सोच होगी क्योंकि अपनी ज़ात, अपना मज़हब, अपने वर्ग के हिसाब से सोचना गुलाम सोच है क्योंकि तब आप अपना दिमाग इस्तेमाल कर ही नहीं पा रहे. आप अपने समुदाय की गलत सलत हर बात को सही मान कर चलते रहते हैं. दुनिया के ज्यादातर लोग ऐसे ही सोचते हैं और मर जाते हैं लेकिन चंद लोग सोच के डब्बे से बगावत कर देते हैं. ऐसे लोग आज़ाद होकर सोचना शुरू करते हैं. वे ज़ात, मज़हब, मुल्क की कैद से आज़ाद हो जाते हैं.
आज़ाद सोच का जादू आपको सबसे अलग, सबसे ऊपर ले जाता है. आप खुद ही आश्चर्य में पड जाते हैं की दुसरे लोगों को ये सच्चाई क्यों नहीं दिखाई देती ? मेरे संबंधी तक मेरी बात समझ नहीं पा रहे हैं. उन्हें समझ नहीं आ रहा की एक हिन्दू, ब्राह्मण, मध्य वर्ग का भारतीय व्यक्ति क्यों दलितों के समान अधिकारों, अल्पसंख्यकों के साथ होने वाले अन्याय के खिलाफ, औरतों के अधिकारों के हक में, पाकिस्तान से दोस्ती के पक्ष में क्यों बोल रहा है ?
मेरे सम्बन्धियों के सोशल मीडिया ग्रुप में पाकिस्तान, मुसलमानों, दलितों का माखौल उड़ाने वाले मैसेज होते हैं. मैं अक्सर सोशल मीडिया पर नफरत से भरे मेसेज या कमेन्ट का सामना करता हूं. मैं कभी कभी नफरती बातें लिखने वाले लोगों की वाल पर जाकर उनके बारे में थोडा और जानकारी लेता हूं तो मुझे उन लोगों में जो कॉमन बातें मिलती हैं वो यह हैं –
- अपनी मेहनत से ज्यादा कमाई वाला व्यक्ति (मजदूर, किसान अपनी मेहनत से कम पाता है) बाकी के नौकरी और व्यापार वाले कम मेहनत में ज्यादा कमाते हैं.
- बड़ी ज़ात का होगा.
- बहुसंख्य समुदाय का होगा.
- शहरी होगा.
- उसकी फ्रेंड लिस्ट में उसी के धर्म और जाति के दोस्त होंगे, दुसरे धर्म या जाति के दोस्त नहीं होंगे.
- मोदी भक्त होगा.
- सेना भक्त होगा.
- मुस्लिम विरोधी होगा.
- दलित विरोधी होगा.
- साम्यवाद विरोधी होगा.
- औरतों की बराबरी का मज़ाक उड़ाने वाला होगा.
- पकिस्तान को गाली देता होगा.
- अपना विकास का समर्थन करने वाला लेकिन आदिवासी जाएं भाड़ में वाला होगा.
- अपने ही फोटो पोस्ट करता होगा.
- गोडसे का भक्त होगा.
- गांधी, अम्बेडकर को गाली देगा.
- धार्मिक होगा.
यह लोग अपने जन्म के कारण मिली परिस्थितियों के हिसाब से सोचते हैं. ज़रूरत है वैज्ञानिक ढंग से सोचना शुरू करने की. उसी से आप नफरत और भावुकता से अलग होकर सोच पाते हैं.
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