Home कविताएं वे मजदूर थे

वे मजदूर थे

0 second read
0
0
130

सभ्यता की पहली ईट उन्होंने ही रखी थी
उनके सख्त हाथों ने उकेरे थे दुनिया के रास्ते
उनके आने भर से शहरों के शहर आबाद हुए
समंदरों में उतारे गए जहाज
गाड़ियों में चढ़ा पहिया
मकानों में मजबूती थी उनके ही दम से

वो राजा नहीं थे पर राजा थे उनके दम से
वो व्यापारी नहीं थे पर व्यापारी थे उनके दम से
वे देश नहीं थे पर देश टिका था उनके ही दम से

वे मजदूर थे
हां वो मजदूर थे

शहरों में कोई जगह उनके लिए नहीं थी
राजा का कोई आदेश उनके लिए नहीं था
यहां तक कि उनके लिए कोई देश भी नहीं था

झुण्ड के झुण्ड चींटियों की तरह
निकल आए थे सड़कों पर
की शहरों ने पहली बार उनके होने को जाना था
उनके इस तरह निकल पड़ने पर
पैरों के नीचे से खिसक गई थी कालीनें
थर्रा उठे थे राजपथ
हिल उठे थे बादशाहों के मुकुट

पर वे जा रहे थे शहरों से दूर
हजारों हजार मीलों का सफर तय करके
अपने घरों को सर पर उठाए
भूखे बेहाल अपमान से भरे
पुलिस की लाठियां को सहते
भाग रहे थे इधर से उधर

इधर राजा के आदेश पर जश्न के उन्माद में डूबा था शहर
मोमबत्ती पटाखों की रोशनी में दिख रहा था
इस सभ्यता का सबसे क्रूर और करूप चेहरा

सब डरे थे
कही अगर मांग लेते अपना हिस्सा
श्रम की लुटेरी व्यवस्था भरभरा कर
गिर जाती उनके कदमों में
सत्ता उनके बागी होने से डरी थी
पर उनकी खामोशी में भी थी
एक बगावत उनके अंदर
फूटने को बेचैन किसी ज्वालामुखी की तरह

  • लॉकडाउन के समय कॉमरेड खालिद ए. खान द्वारा लिखी गयी कविता

प्रतिभा एक डायरी स्वतंत्र ब्लाॅग है. इसे नियमित पढ़ने के लिए सब्सक्राईब करें. प्रकाशित ब्लाॅग पर आपकी प्रतिक्रिया अपेक्षित है. प्रतिभा एक डायरी से जुड़े अन्य अपडेट लगातार हासिल करने के लिए हमें फेसबुक और गूगल प्लस पर ज्वॉइन करें, ट्विटर हैण्डल पर फॉलो करे… एवं ‘मोबाईल एप ‘डाऊनलोड करें ]

Donate on
Donate on
Pratibha Ek Diary G Pay
Pratibha Ek Diary G Pay
Load More Related Articles
Load More By ROHIT SHARMA
  • गुरुत्वाकर्षण के विरुद्ध

    कई दिनों से लगातार हो रही बारिश के कारण ये शहर अब अपने पिंजरे में दुबके हुए किसी जानवर सा …
  • मेरे अंगों की नीलामी

    अब मैं अपनी शरीर के अंगों को बेच रही हूं एक एक कर. मेरी पसलियां तीन रुपयों में. मेरे प्रवा…
  • मेरा देश जल रहा…

    घर-आंगन में आग लग रही सुलग रहे वन-उपवन, दर दीवारें चटख रही हैं जलते छप्पर-छाजन. तन जलता है…
Load More In कविताएं

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Check Also

कामरेडस जोसेफ (दर्शन पाल) एवं संजीत (अर्जुन प्रसाद सिंह) भाकपा (माओवादी) से बर्खास्त

भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) ने पंजाब और बिहार के अपने कामरेडसद्वय जोसेफ (दर्शन पाल…