पृथ्वी के एक निर्जन एकांत में
अंजुरी भर जल था
और जल में उतरता
दिन शेष की माया थी
यहां उजाले थे.
उन बच्चों की आंखों में
जो पतंगों की उड़ान का
पीछा करते हुए भूल जाते थे
युद्ध में मारे गए उनके माता-पिता को
यहां उजाले थे.
दिन भर की ड्यूटी के बाद
थक कर लोको शेड में
ख़ाली लौटते हुए
रेल के डिब्बों में म्लान मुख
ख़ाली सीटों की क़तारें
यहां उजाले थे.
झरे हुए अमलतासी दिन
जब रात की आंधी में
सर पटकती थी सूनी सड़कों पर
गलियों के उजले बदन
यहां उजाले थे.
अंधेरों में भी दिख जाते थे उजाले
वह मेरी आशाओं के दिन रात थे
यहां उजाले थे.
- सुब्रतो चटर्जी
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