रविश कुमार
अमरीका में ब्यूरो ऑफ लेबर स्टेटिस्टिक है, जो हर महीने एक डेटा देता है कि इतने लोगों को नौकरी मिली है. भारत में सरकार के मंत्री प्रोजेक्ट लांच करते समय कुछ भी दावा कर देते हैं. अक्तूबर, 2020 में नितिन गडकरी वीडियो कांफ्रेंसिंग से एक योजना मल्टी मॉडल लॉजिस्टिक पार्क MMLP, लांच कर रहे थे. उन्होंने कहा कि प्रोजेक्ट के पूरा होने पर बीस लाख लोगों को काम मिलेगा. कुछ महीने बाद असम में चुनाव होने वाले थे. इसी मार्च में जब असम से ही कांग्रेस के सांसद ने पूछा कि कितनी नौकरियां मिलेंगे तो सरकार जवाब देती है कि डिटेल़्ड प्रोजेक्ट रिपोर्ट के अनुसार प्रोजेक्ट के पूरा होने और चालू होने के बाद करीब 11000 नौकरियां मिलेंगी.
कहां तो मंत्री जी बीस लाख का दावा कर रहे थे, कहां संसद में बता रहे हैं कि 12000 से कम नौकरियां मिलेंगी. ऐसे दावों से छुट्टी मिलने का एक ही रास्ता है – भारत में भी ब्यूरो ऑफ लेबर स्टेटिस्टिक जैसा कुछ बने, जो हर महीने कितने लोगों को नौकरियां मिले, इसकी ठोस जानकारी दे ताकि रोज़गार के सवाल पर हवा-हवाई बातें न हों. अमरीका में ब्यूरो ऑफ लेबर स्टेटिस्टिक के अनुसार इस साल फरवरी में 7, 50,000 रोज़गार पैदा हुए. मार्च में 4,30,000 रोज़गार पैदा हुए हैं. बेरोज़गारी की दर गिर कर 3.6 प्रतिशत पर आ गई है. अधिक पैसा मिलने से ज्यादा लोग काम पर आने लगे हैं, मगर महंगाई चालीस साल में सबसे अधिक है.
राजनीतिक दल रोज़गार की बात करने लगे हैं, अच्छा है. इस मुद्दे को लेकर दबाव बनाए रखने से युवाओं का ही भला होगा. यही वक्त है कि रोज़गार की गिनती का पारदर्शी सिस्टम बने. इस रिपोर्ट में अर्थशास्त्री सवाल कर रहे हैं कि पांच साल में बीस लाख रोज़गार देने मुश्किल है. केजरीवाल सरकार ने अपने रोज़गार बजट में दावा किया है. बेहतर है कि दिल्ली में ही सरकार एक ऐसा सिस्टम बनाए कि हर तरह का काम दर्ज हो और वो जानकारी पब्लिक हो.
कितने लोगों ने आज काम छोड़ा, बदला, पाया और निकाले गए अगर इसका डेटा मिलना शुरू हो जाए तो रोज़गार की संख्या को लेकर दावेदारी ठोस होने लगेगी. इससे अंत में सरकार को ही लाभ होगा. उसे पता चल जाएगा कि प्रोजेक्ट बनाते समय जो सपने बचे गए उसके हिसाब से रोज़गार पैदा होता है या नहीं. हर दिन हर सरकार की तरफ़ से ऐसी खबरें छपी रहती हैं. आज ही अख़बारों की पहली ख़बर है कि भारत और ऑस्ट्रेलिया के बीच व्यापारिक समझौता हुआ है. इसके कारण दस लाख रोज़गार पैदा होगा. अब इतना पैदा होगा या नहीं इसकी जांच कैसे करेंगे ? तो रोज़गार की गिनती का सिस्टम तो होना ही चाहिए.
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