हिमांशु कुमार
मुझसे मिलने एक मित्र आए हैं. उन्होंने महाराष्ट्र के एक गांव में खेती करना शुरू किया. उन्होंने अपने खेत में पीपल का पेड़ लगाया तो गांव वालों ने आकर विरोध किया और कहा कि पीपल के पेड़ पर भूत रहता है, इसलिए पीपल का पेड़ मत लगाइए. अभी कुछ दिन पहले मैंने एक पोस्ट डाली थी कि मैं आधी रात को इमली के पेड़ के नीचे बैठकर चांदनी रात का आनंद ले रहा हूं, तो कमेंट में कहा गया कि इमली के पेड़ पर चुड़ैल रहती है.
ऐसा भारत के ज्यादातर लोग मानते हैं. भारत बहुत ज्यादा अंधविश्वास और मूर्खता में डूबा हुआ है. सभी धर्मों के लोगों के दिमाग के भीतर अंधविश्वास और मूर्खता भरी हुई है. भारत को एक सांस्कृतिक पुनर्जागरण की बहुत जरूरत है.
मैं गांव में काम करता हूं. गांव-गांव जाता हूं. गांव में जातिवाद तो है ही, इसके अलावा अब कुरीतियां और ज्यादा मजबूत होती जा रही है. शादी-ब्याह में खर्चे बढ़ते जा रहे हैं. किसी की मृत्यु होने पर होने वाला खर्चा भी बढ़ता जा रहा है. मोबाइल और सूचना तकनीक बढ़ने के साथ-साथ मूर्खता व्यापक होती जा रही है. एक जगह की मूर्खता दूसरी जगह पहुंच रही है.
जो करवा चौथ कभी सिर्फ छोटे से इलाके में होता था, टीवी सीरियलों की वजह से अब वह नए नए इलाकों में फैल रहा है. बाल विवाह कम होने की बजाय बढ़ रहा है. व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी के कारण नफरत भी अब गांव-गांव में फैल रही है. भारत का युवा मूर्खता और नफरत में डूबता जा रहा है.
यह मूर्खता जानबूझकर राजनैतिक कारण से बढ़ाई जा रही है. आरएसएस को एक मूर्ख समाज चाहिए क्योंकि सवाल पूछने वाला अपनी बुद्धि से चलने वाला समाज आरएसएस की मुट्ठी में नहीं रहेगा. भारत को मूर्ख बनाने के लिए तरह-तरह के बाबाओं को बढ़ावा दिया जा रहा है. यह लोग जादू टोना, भूत भभूत से इलाज करने का दावा करते हैं. सोशल मीडिया पर उसका लाइव प्रसारण करते हैं.
सरकार की कानूनी जिम्मेदारी है कि वह इस पर रोक लगाये और ऐसे लोगों को जेल में डाले, लेकिन सरकार जानबूझकर ऐसे बाबाओं को बढ़ावा दे रही है और नए-नए बाबाओं को मार्केट में उतार रही है. सद्गुरु जग्गी, रविशंकर, बागेश्वर बाबा यह सब आरएसएस के खड़े किए हुए एजेंट हैं. हम सबको मिलकर अंधविश्वास और अवैज्ञानिक सोच व कुरीतियों के खिलाफ अभियान चलाना चाहिए. इस सब के रहते भारत का कोई भविष्य नहीं है.
साथी सुदर्शन जुयल लिखते हैं कि माथे पर तिलक, हाथ में कलावा, रिक्शा की विंडस्क्रीन पर झूलती मालाएं, देवी देवताओं की छवियां, मुंह पर हर वाक्य के बाद सियाराम, भोले, नारायण …, यानी पहली नजर में एकदम मोदी योगी का पक्का वोटर…! पंडितजी…! प्रेस की हुई टेरीकॉट की कमीज के कोने से जनेऊ का एक हिस्सा भी झांक रहा था…!
मेरा इरादा भी शांति से बैठ कर रास्ता गुजारने का था. पिछले कई वर्षों से मैं सफर के दौरान मुंह बंद रखने का भरसक प्रयास करता हूं ‘ना जाने किस भेष में तुमको %©¢ मिल जायेंगे’ वाली गूंजती पंक्तियां चेतन सिंह और मोनू मानेसर का डर मन में उत्पन्न करती हैं.
ये रिक्शा देहरादून में विक्रम कहलाता है और डीजल वाले इंजन के तमाम शोरगुल के बावजूद मेरी प्रिय सवारियों में से एक है. किफायती. जरूरत पड़ने पर 10 लोग इसमें एडजस्ट हो जाते हैं, जबकि बड़ी-बड़ी एसयूवी में एक पिद्दी सा आदमी 4 विक्रम की जगह घेर कर पौ-पौ करता गाड़ी के डिजाइन की और पर्यावरण की ऐसी तैसी करता है…!
वाहन पूरा भर चुका था, चालक ने मुझे साथ में आगे बिठा लिया. ये वाला विक्रम एकदम नया सीएनजी मॉडल का था. मैने बस यूंही जिक्र छेड़ दिया कि कितनी सब्सिडी मिली डीजल से सीएनजी वाला मॉडल खरीदने में ? बस … चालक बर्रे के छत्ते की तरह बिफर पड़ा…!
कोई गाली गलौज नहीं थी उद्गार में. शुद्ध हालाते हाजरा पर जमीनी अभिव्यक्ति…नफरत की राजनीति के खिलाफ अंदर तक भरा आक्रोश…बीच बीच में सवारियों को अगले स्टॉप की सूचना, रास्ते के गड्ढों की सपाट अभियांत्रिकी रिपोर्ट, भ्रष्टाचार का ऑडिट, पैदल भीड़ को ठीक से चलने की सलाह, भोले से क्रॉसिंग सुरक्षित पार करने की याचना…और मोदी को चेतावनी कि सब पाप पुण्य का लेखा जोखा इसी जन्म में होगा…! नफरत का खेल बंद करो…मुसलमान हिन्दू मत करो…मौत के आगे पीएम सीएम सब बराबर हैं…कीड़े पड़ेंगे…अस्पताल में बरसों सड़ोगे…राम को हृदय में बसाओ, मंदिर में नहीं …!
कोमा, फुल स्टॉप, पैराग्राफ चेंज में सियाराम, नारायण, भोले इत्यादि का लिबरल इस्तेमाल. अगले 15 मिनट किसी भी रवीश कुमार की रिपोर्ट से ज्यादा विश्लेषण से भरे हुए थे…! जय श्रीराम का हिंसक उद्घोष और बजरंग दल के कानफोडू हिंसक धुन वाले संगीत का असर टूट गया…
मेरा सोशल मीडिया का बना हुआ मायाजाल थोड़ी देर के लिए तार तार हो गया. जमीनी सच्चाई ये है कि आम जनता बड़ी तादाद में हतप्रभ और हताश है. मैंने अपना फोन छुपा करके वीडियो ऑन कर दिया. पर व्यक्ति की निजता भंग नहीं होनी चाहिए. ‘कुछ लाइक्स कमाने और अपने मन को खुश करने के लिए और एक नया भ्रम गढ़ने के लिए ये मत कर…!’ मैंने अपने मन की बात सुनी और वीडियो डिलीट कर दिया.
लब्बोलुआब यह कि कई चेतन सिंह और मोनू मानेसर छुट्टे घूम रहे हैं, पर उससे ज्यादा संख्या में कलावा, तिलक जनेऊधारी, पंडितजी रिक्शा चालक हैं, रामायण और मानस के असली पाठक हैं और ऊबड़ खाबड़ रास्ते की तमाम दिक्कतों के बावजूद लोकतंत्र की राह और विवेक को कायम रखे हुए हैं…! उम्मीद अभी बाकी है, मेरा भ्रम बना रहे …!
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