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सदन में फिर बजटोत्सव है … हिहिहि

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सदन में फिर बजटोत्सव है … हिहिहि
सदन में फिर बजटोत्सव है … हिहिहि

चार साल से एक ही पोस्ट लगा रहा हूं क्योंकि न बजट बदलता है, न बजट मंत्री औऱ न जनता के हालात, तो पोस्ट समीचीन बनी रहती है. ऐसे में छुट्टी पर बैठा मैं, बेनिफिट लेकर फिर वही पोस्ट चेप देता हूं.

बहरहाल, जनता फिर फाग गा रही है, थालियां, गालियां, बेल आइकन, मंजीरे बज रहे हैं. सुर, यक्ष, देवता , दानव, भांड… सब सेंट्रल विस्टा के आकाश पर फिर उत्सुकतापूर्वक विद्यमान हैं.

सदन ठसाठस भरा है. रंग बिरंगी पगड़ियों में, भाल पर तिलक सजाए, चौड़ी मूंछों वाले, अलग अलग इलाके के सरदार,फॉरच्यूनर पर सवार, फिर मेजें ठोकने आये है.

व्यूह सजा है. पीछे नवेड़ी हुल्लड़बाज, बीच में अनुभवी हुल्लड़बाज, और सबसे आगे दूसरी मेज के बाएं .. अपनी कलगी और दाढ़ी फहराता, सब पर भारी सरदार !!! विशाल भवन के एक कोने में सिमटा विपक्ष, टुकुर टुक़ुर देखते, फिर नाखून चबा रहा है. सरदार का इशारा होता है, अनुमति पाकर, आसन्दी अनुमति देती है.

वित्त अमात्य फिर उठती हैं – ‘अब के बरस तुझे धरती की रानी कर देंगे, अब के बरस तेरी प्यासों में पानी भर देंगे, अब के बरस तेरी चुनर को धानी कर देंगे.’ सदन मेजों की गड़गड़ाहट से गूंजता है. सरदार के चेहरे पर दृढ़ता छाती है. वित्त अमात्य उत्साहित हो पढ़ती हैं-

ये दुनिया तो फानी है,
बहता सा पानी है हो,
तेरे हवाले ये ज़िंदगानी,
ये ज़िंदगानी कर देंगे,
अब के बरस…

प्रसारण करते एंकर चौड़ी मुस्कानों के साथ न्यूज ब्रेक कर रहे हैं. सन्नाटे को चीरती हुई सनसनी, टीवी सेट्स से निकल, देश के कोने कोने में तैर रही है –

‘दुनिया की सारी दौलत से,
इज़्ज़त हम को प्यारी

मुट्ठी में किस्मत है अपनी,
हम को मेहनत प्यारी

मिट्टी की कीमत का जग में,
कोई रतन नहीं है,
ज़िल्लत के जीवन से बदतर,
कोई कफ़न नहीं है..

विपक्ष सीट से कोई गद्दार वामपन्थी चिल्लाया – ‘यह बजट नहीं है. ये फिल्मी गाना है. देश संकट में है, और सरकार गाने गा रही है ??’

घनघोर शोर हुआ, भाषण में व्यवधान हुआ. विपक्षी शोर मचाते वेल में घुसने लगे –

 – ‘बेरोज़गारी’
–  ‘मौद्रिक नीति’
–  ‘गरीबी उन्मूलन’
–  ‘टैक्स कम करो’
–  ‘राज्यो को हक़ दो’

भयंकर कोलाहल था. सदन बाधित था. आसन्दी ने माइक ऑफ कराए. टीवी प्रसारण के सिग्नल अचानक बिगड़ गए. जबर कन्फ्यूजन…तो सरदार स्वयं उठे..

घनघोर कड़कती आवाज से सातों गगन हिले. क्षिति, जल, पावक, गगन, समीर, रजत, रुबिका और नाविका थरथरा उठे. गुर्राते सरदार ने इंटरजेक्ट किया-

‘मितरोंss, भाइयों भैनो !
देश का हर दीवाना अपने,
प्राण चीर कर बोला,
बलिदानों के खून से अपना,
रंग लो बसंती चोला!!

अब के हमने जानी है हो,
अपने मन में ठानी है हो,
हमलावरों की ख़तम कहानी,
ख़तम कहानी कर देंगे,
अब के बरस..

घर मंत्री ने बैठे बैठे कुछ फाइलें लहराई. शोर मचाते विपक्षी समझ गए, चुपचाप सीट पर बैठे. प्रसारण पुनः शुरू हो गया. टीवी देखते देशप्रेमियों का जोश हिलोरें मारने लगा. विजयी सरदार भी बैठ गए. वित्त अमात्य ने बात आगे बढ़ाई और विपक्ष पर सधा हुआ हमला किया –

सुख सपनों के साथ हज़ारों,
दुख भी तू ने झेले,
हंसी खुशी से भीगे फागुन,
अब तक कभी ना खेले,

चारों ओर हमारे बिखरे बारूदी अफ़साने,
जलती जाती शमा जलते जाते हैं परवाने..

पढ़ते हुए वित्त अमात्य ने सदन को कनखियों से देखा. विपक्ष क्लियरली कन्फ्यूज्ड था, भयभीत था, नीरवता छाई थी. कनफ्यूजन, भय, नीरवता सफलता की सीढियां हैं. याने बजट अब सदन को समझ आ रहा था. आगे पढ़ती हैं..

फिर भी हम ज़िंदा हैं,
अपने बलिदानों के बाल पर,
हर शहीद फरमान दे गया,
सीमा पर जल जल कर !!

यारों टूट भले ही जाना,
लेकिन कभी ना झुकना,
कदम कदम पर मौत मिलेगी,
लेकिन फिर भी कभी ना रुकना’

घनघोर सन्नाटा था. मंत्राणी की आवाज धधक रही थी. बजट अब पूरे लय में था –

बहुत सह लिया अब ना सहेंगे,
सीने भड़क उठे है,
नस नस में बिजली जागी है,
बाज़ू फ़ड़क उठे हैं,
सिंहासन की खाली करो,
ज़ुल्म के ठेकेदारों…

विपक्षी बेंच से हक्का-बक्का, मिमियाती आवाज आई-

अरे, सरकार तो आपकी है..
तो किसे खाली करने को ललकार रहे हो ?

आसन्दी ने लपककर उसका माइक ऑफ कर दिया. वित्त अमात्य की लय टूटी नहीं थी – ‘देश के बेटे जाग उठे, तुम अपनी मौत निहारो, अंगारों का जश्न बनेगा, हर शोला जागेगा, बलिदानों की इस धरती से, हर दुश्मन भागेगा…

– ‘दुश्मन नहीं इन्वेस्टर भाग रहे हैं मैडम…’
– माइक ऑफ

‘हमने कसम निभानी है, देनी हर क़ुर्बानी है, हमने कसम निभानी है, देनी हर क़ुर्बानी है, अपने सरों की, अपने सरों की अंतिम निशानी भर देंगे, अब के बरस…!’

‘अबके बरस तुझे धरती की रानी कर देंगे.’

बजट समाप्त हुआ, ध्वनिमत से पास हुआ. मंत्राणी के चेहरे पर विराट तेज था. यह गजब रूप देख सन्सद सन्न थी, सब लोग डरे. विपक्षी चुप थे, या थे बेहोश पड़े.

केवल दो नर ना अघाते थे, गौतम और मुकेश फिर से सुख पाते थे. वे कर-जोड़ खड़े थे प्रमुदित निर्भय, दोनों पुकारते थे ‘जय-जय’ ! दोनों पुकारते थे जय जय !!

मोदी सरकार ने देश का बजट महज 10 साल में तीन गुना कर दिया !?

इसमें कोई शक नहीं कि मोदी सरकार ने देश का बजट महज 10 साल में तीन गुना कर दिया है. 2013-14 में भारत सरकार का बजट व्यय 16.58 लाख करोड़ का था. 2024-25 में पेश किए बजट में यह आकलन बढ़कर 50.65 लाख करोड़ का हो चुका है. यह जादू कैसे किया…आओ इसका पता लगायें.

दरअसल पिछली सरकार तक केंद्र, केवल सेंट्रल टैक्स ही लेता था. राज्य अपना अपना टैक्स खुद वसूल करते, अपना बजट खुद बनाते, खुद खर्च करते. यह पैसा केंद्रीय बजट में न आता था, न जाता था तो जुड़ता भी न था.

किसी राज्य का अपना बजट एक लाख करोड़ होता, किसी का पचास हजार करोड़. और सभी 28 राज्यों का, टोटल बजट उस समय करीब 18 लाख करोड़ था. याने केंद्रीय बजट – 16.58 लाख करोड़ और राज्यों का अपना कुल बजट- 18 लाख करोड़. तो सारे देश का टोटल बजट हुआ कोई 34.58 लाख करोड़ – 2014 में.

जब जीएसटी व्यवस्था लागू हुई, तो केंद्र CGST तो वसूलता ही है, वह SGST (या चाहे तो केवल IGST) भी वसूलता है. जब वसूलता है, तो राज्य का हिस्सा उसे किस्तों में देता है. (आपने खबरें पढ़ी होंगी, कि विपक्षी राज्यों को जीएसटी की क़िस्त के लिए कोर्ट तक जाना पड़ा).

अब यदि वसूली और खर्च दोनों केंद्र करेगा, तो वह आय, व्यय के रूप में सेंट्रल बजट में भी दिखेगा. वित्त मंत्री के भाषण में, उसी टोटल फिगर पर बात होगी. तो केवल 2014 की विरासत को असल में जोड़ेंगे, तो टोटल मर्ज्ड बजट मिला था- 34.58 लाख करोड़. लेकिन इसमें मर्जर तो रेल बजट का भी हुआ.

2016 में सुरेश प्रभु ने आख़िरी रेल बजट पेश किया था. ये कोई 1.32 लाख करोड़ का बजट था. अगले साल यह भी मुख्य बजट में मर्ज हो गया. याने अब कोई 35.90 लाख करोड़ तो विरासत में मिले बजट को जोड़ जाड़कर बैठे बिठाए हो गया.

यहां से आगे मामला आज के 50.65 लाख करोड़ तक आया है. लेकिन अब अगर आप 10 साल पहले की कीमतों और आज उस पर बढ़ी महंगाई को जोड़ लें, यदि तब 35 रु. की चीज, आज 50 रु. की हो गई है, तो देश का बजट भी 35 लाख करोड़ से 50 लाख करोड़ हो जाना, कोई बड़ी बात नहीं. ग्रोथ कहां है ? उपलब्धि क्या है ?

तुलना के लिए मनमोहन के 2004-2014 के बीच (केंद्र मात्र की) बजट वृद्धि को देखें, तो वह 4.57 से बढ़कर 16.58 लाख करोड़ पहुंचा था. याने लगभग 4 गुना वृद्धि. यदि उनके हिस्से से महंगाई वाले लाभ को हटा लें और चार की जगह मात्र दोगुनी वृद्धि ही अनुमानित करें…तो इन दस वर्षों में 35 लाख करोड़ (सेंटर+ स्टेट+ रेलवे) बजट बढ़कर 70 लाख करोड़ हो जाना चाहिए था. जो असल में इस वर्ष केवल 50.65 लाख करोड़ पहुंच पाया है. याने 20 लाख करोड़ का नुकसान है.

लेकिन आंकड़ा तो यह भी सच्ची कहानी नहीं कहते. मनमोहन के समय राष्ट्रीय कर्ज कोई 54 लाख करोड़ था…वह बढ़कर 2022 तक ही 250 लाख करोड़ से ज्यादा हो चुका था. बाद में आंकड़े आने बन्द हो गए. आज वह कौन जाने 400 लाख करोड़ पार कर चुका हो. यह पैसा कहां गया ? पूछने पर रामद्रोही, आतंकवादी, गद्दार कहलाये जाने का चांस है.

बहरहाल, बजट किसी समय एक अनुशासित दस्तावेज था. देश की नीतियों, प्राथमिकताओं और प्रशासन की दिशा का आईना था. अब महज, एक कागज का टुकड़ा है. क्योंकि कोई भी टैक्स, कभी भी लगा दिया जायेगा. कभी भी किसी राज्य को 3-4 लाख करोड़ का पैकेज दे दिया जायेगा. 5-7 लाख करोड़ तो कुम्भ के आयोजन में खर्च हो रहे हैं. बस एक बयान, एक हेडलाइन, एक चुनावी मजबूरी और बजट की चिन्दी चिन्दी उड़ा दी जाती है.

याने सरकार के कर्ता-धर्ताओं के लिए निर्मला सीतारमण के बजट भाषण में लिखे बोले आवंटनों का कोई महत्व नहीं. वे इस पद पर शो पीस हैं, और एक निरर्थक जिम्मेदारी निभा रही हैं. दरअसल, इस वर्ष उन्होंने जिस मधुबनी आर्ट की साड़ी पहनी, उसकी कीमत उनके बजट भाषण से ज्यादा थी.

तो इस बजट को लफ्फाजी का पुलिंदा ही समझिए. पर यह तो सच है कि जब आप आंकड़ो को देखते हैं तो कोई शक नहीं कि मोदी सरकार ने देश का बजट महज 10 साल में तीन गुना कर दिया है.
याने 16 लाख करोड़ से पूरे 50.65 लाख करोड़…व्हाट ए जोक !!

ऊपर से मोदी जी कहते हैं- ‘आज अगर नेहरू जी का जमाना होता तो 12 लाख पर एक चौथाई टैक्स देना पड़ता और आज अगर इंदिरा जी की सरकार होती तो 12 लाख में 10 लाख टैक्स में चले जाते. कांग्रेस की सरकार अपना ख़ज़ाना भरने के लिए टैक्स लगाती है.’

सोने की कीमत थी, 1964 में करीब 63 रुपये तोला था. तब अगर आप हर माह 12 लाख कमाते तो 190 किलो सोना खरीद लेते. याने आज की डेट का 15 करोड़. इतना कमाते है तो मौजूदा दौर में आपको 30% टैक्स लगेगा. 1 करोड़ से ज्यादा वाली राशि पर 12% सरचार्ज अलग. याने नेहरू जी के समय 25% टैक्स देना पड़ता, अभी 35-40% बैठेगा. पर शायद ये पैसा सरकार का नहीं, अडानी जी का खजाना भरेगा. नेहरू- 0, मोदी – 1. हिहिहि…

  • मनीष सिंह 

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