Home गेस्ट ब्लॉग आदमी को कुत्ता समझने और बनाने की संघी परंपरा रही है

आदमी को कुत्ता समझने और बनाने की संघी परंपरा रही है

2 second read
0
0
1,060

आदमी को कुत्ता समझने और बनाने की संघी परंपरा रही है

एक बार मैंने अपने एक सीनियर से पूछा, ‘संघियों को ज्ञान से इतनी नफरत क्यों है ?’ सीनियर एबीवीपी में रह चुके हैं, भाजपा के समर्थक हैं और पत्रकार के रूप में थोड़े बहुत आलोचक भी हैं. उन्होंने एक किस्सा सुनाया. किस्सा कुछ इस तरह है –

संघ के गुरु गोलवलकर एक अपने नागपुर कार्यालय पहुंचे तो उन्हें आता देखकर एक स्वयंसेवक ने किताब उठा ली और पढ़ने लगा. उसने सोचा कि पढ़ता देख गुरु जी सराहेंगे. गुरु जी पास पहुंचे तो उसके हाथ से किताब छीन ली और फेंक दिया. बोले, यहां पढ़ने लिखने वालों की ज़रूरत नहीं है. जाओ शाखा लगाओ.

संघ लोगों को अपने तरीके से साक्षर बनाना चाहता है लेकिन उन्हें शिक्षित नहीं देखना चाहता इसीलिए संघ के पास बुद्धिजीवियों की कमी है. शिक्षित लोग सवाल करते हैं. सत्ता को कभी सवाल पसंद नहीं होते इसलिए संघ को भी सवाल पसंद नहीं हैं.

एक बार मुझसे निजी बातचीत में राकेश सिन्हा ने कहा था, ‘हां, यह सही है कि हमारे पास बुद्धिजीवी नहीं हैं. यह हमारी कमजोरी है.’ लेकिन संघ उस कमजोरी को ही अपनी महानता मानता है. इस बीच संघ की तरफ से कई नए कथित बुद्धिजीवी अखाड़े में उतारे गए जिन्होंने जहर उगलते हुए अपनी लॉन्चिंग की. वे नारा तो मर्यादा पुरूषोत्तम का लगाते हैं लेकिन लोक मर्यादा और उदात्तता से कोसों दूर हैं.

भाजपा की नीतियां देखिए तो आपको लगेगा कि यह सरकार शिक्षा विरोधी नीतियों पर काम कर रही है. सत्ता में आते ही सबसे पहले शिक्षा बजट घटाया गया था. हर बच्चे को मिला शिक्षा का अधिकार प्राथमिकता सूची से हटाया गया. स्कॉलरशिप बंद की गई. तबसे जेएनयू समेत देश भर के विश्वविद्यालयों में लगातार सीटें घटाई जा रही हैं. आज सरकार की सबसे बड़ी योजना है कि 5 किलो राशन लो और जिंदा रहो. जिंदा रहना ही विकास है.

देश के लाखों युवा आईएएस बनने के सपने देखते थे. आज बिना परीक्षा के पार्टी और सरकार के मनपसंद लोगों को उच्च स्तर का अधिकारी बनाया जा रहा है. प्रतियोगिता खत्म की जा रही है. निजीकरण के सहारे आरक्षण खत्म किया जा रहा है. भाजपा की सरकार बनने के बाद जो शिक्षा प्राथमिकता में निचले दर्जे पर चली गई थी, वह अब रसातल जा रही है. पिछले तीन सालों से प्राथमिक शिक्षा से लेकर उच्च शिक्षा तक का बैंड बज गया है.

शिक्षा और रोजगार की लंका लगा दी जाए तो बच्चों और युवाओं के पास क्या काम बचता है ? प्रोपेगैंडा फ़िल्म देखो, व्हाट्सएप पढ़ो और दिनभर जहर उगलो. लोगों को शायद इन सब बातों से कोई फर्क नहीं पड़ता. अगर आप चाहते हैं कि आपके बच्चे डीएम-एसडीएम बनने की जगह दंगाई बनें तो आज का माहौल सबसे मुफीद है.

2

भूख, भय और भ्रष्टाचार, पुराना राजनीतिक नारा है. अब इसके साथ एक और शब्द जुड़ गया है – भीख. संघियों या 35 सालों तक भीख मांगकर खाने वाले प्रधानमंत्री की कृपा से !

पिछले दिनों, आप के संजय सिंह के विश्व भूख सूचकांक की रिपोर्ट के हवाले भारत में बढ़ती हुई भुखमरी की समस्या पर जवाब देते हुए प्राक्तन भिखारी के मंत्री ने संसद में कहा कि ‘भारत में कोई भुखमरी की समस्या नहीं है, क्योंकि यहां लोग आवारा कुत्तों को भी भोजन देते हैं.’

आदमी को कुत्ता समझने की संघी परंपरा रही है. भूतपूर्व भिखारी कहता है कि उसे गाड़ी के नीचे कुत्ते के बच्चे के मरने पर भी दु:ख होता है तो गुजरात में नरसंहार करवाने का दु:ख क्यों नहीं होगा. पैटर्न समझिए और सोच को भी.

न तो भूतपूर्व भिखारी और न ही उसके मंत्री को मालूम है कि इस देश में जहां कुत्तों और गाय को अपना पर लोक सुधारने के लिए लोग खाना खिलाते हैं, वहीं झारखंड की एक बच्ची भात-भात चीखते हुए दम तोड़ देती है. वे नहीं जानते कि साठ प्रतिशत कुपोषित बच्चों के इस देश में करोड़ों लीटर दूध पत्थर के लिंग पर रोज़ लोक सुधारने के लिए चढ़ाया जाता है. क्या वाक़ई वे नहीं जानते, या उनका अस्तित्व ही ऐसे कूपमण्डूकों की वजह से है ?

अंतरराष्ट्रीय संस्थानों के प्रति इनका अविश्वास स्वाभाविक है, क्योंकि गोदी मीडिया की तरह वे झूठ नहीं बोलते. भूतपूर्व भिखारी सिर्फ़ अनर्गल झूठ ही नहीं बोलता, वह झूठ को जीता है, personified falsehood (व्यक्तिगत झूठ) का इतना बड़ा दृष्टांत हिटलर और मुसोलिनी के बाद दुनिया आज देख रही है.

भारत सरकार के लिए यह शर्म की बात होनी चाहिए कि कोरोना काल में 3.20 करोड़ लोग ग़रीबी रेखा के नीचे चले गए और 12 करोड़ जाने की प्रतीक्षा में हैं. यह आंकड़ा सिर्फ़ उन लोगों का हैं जिन्होंने अपनी नौकरी और कारोबार इस दौरान खोया. अगर इसमें नोटबंदी के दौरान बर्बाद हुए लोगों की संख्या को जोड़ दिया जाए तो भारत में नव दरिंद्रों की संख्या पाकिस्तान की आबादी के बराबर होगी, यही है इनका नया भारत.

कालांतर में भूतपूर्व भिखारी के द्वारा भारत को विश्व के सबसे बड़े ग़ुलामों की मंडी में विकसित करने के चैप्टर को विश्व इतिहास के एक कलंकित अध्याय के रूप में पढ़ाया जाएगा. इसके लिए सबसे बड़ी ज़िम्मेदारी, भूतपूर्व भिखारी की नहीं, हमारे देश के करोड़ों स्वैच्छिक ग़ुलामों की होंगी, जिसका सबसे बड़ा हिस्सा मध्यम वर्ग है.

निम्न मध्यम वर्ग जब ग़रीबों की श्रेणी में डिमोट हो रहे हैं, तब क्या उनका वर्ग चरित्र बदल रहा है ? ये सामाजिक शोध का विषय है. चुनावी जीत हार के पैमाने पर नापा जाए तो हिंदी क्षेत्र में तो बिल्कुल नहीं. जैसे नव धनाढ्य दिखावे पर ज़्यादा खर्च कर अपनी उपस्थिति समाज में दर्ज करवाते हैं, उसी तरह नव भिखारी भी उंची आवाज़ में भजन गाकर अपनी उपस्थिति दर्ज करवाता है.

और भजन भी किसका ? उसी भूतपूर्व भिखारी का ! दूसरे किसी देवता को पूजने में शर्म आती है न ? पांच किलो गेंहू और एक किलो चने पर संतुष्ट समाज ऐसा ही होता है. अपना हक़ भी भीख मांग कर लेने वाले लोगों के लिए मोदी का कोई विकल्प नहीं है !

  • कृष्ण कांत और सुब्रतो चटर्जी

प्रतिभा एक डायरी स्वतंत्र ब्लाॅग है. इसे नियमित पढ़ने के लिए सब्सक्राईब करें. प्रकाशित ब्लाॅग पर आपकी प्रतिक्रिया अपेक्षित है. प्रतिभा एक डायरी से जुड़े अन्य अपडेट लगातार हासिल करने के लिए हमें फेसबुक और गूगल प्लस पर ज्वॉइन करें, ट्विटर हैण्डल पर फॉलो करे… एवं ‘मोबाईल एप ‘डाऊनलोड करें ]

Donate on
Donate on
Pratibha Ek Diary G Pay
Pratibha Ek Diary G Pay

ROHIT SHARMA

BLOGGER INDIA ‘प्रतिभा एक डायरी’ का उद्देश्य मेहनतकश लोगों की मौजूदा राजनीतिक ताकतों को आत्मसात करना और उनके हितों के लिए प्रतिबद्ध एक नई ताकत पैदा करना है. यह आपकी अपनी आवाज है, इसलिए इसमें प्रकाशित किसी भी आलेख का उपयोग जनहित हेतु किसी भी भाषा, किसी भी रुप में आंशिक या सम्पूर्ण किया जा सकता है. किसी प्रकार की अनुमति लेने की जरूरत नहीं है.

Load More Related Articles
Load More By ROHIT SHARMA
Load More In गेस्ट ब्लॉग

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Check Also

कामरेडस जोसेफ (दर्शन पाल) एवं संजीत (अर्जुन प्रसाद सिंह) भाकपा (माओवादी) से बर्खास्त

भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) ने पंजाब और बिहार के अपने कामरेडसद्वय जोसेफ (दर्शन पाल…