Home कविताएं पीले पड़ते पत्तों ने कहा…

पीले पड़ते पत्तों ने कहा…

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एक दिन पीले पड़ते पत्तों ने
कोंपलों से कहा,
हमारे विदा लेने के दिन आ रहे हैं
तुमलोग जब हरियाओगे
हम धरती पर हवा के झोंकों के साथ
इधर-उधर उड़ते हुए सूखते चले जायेंगे
या तो मिट्टी में दबकर
खाद बन जायेंगे
या फिर जलेंगे
अंधेरे में थोड़ी रोशनी
और जाड़े में थोड़ी ताप
पैदा करते हुए
कुछ देर के लिए

इसी तरह जंगल में गतायु होकर
गिरते हैं पुराने पेड़
और नये पौधे उनकी जगह लेते हैं
मिट्टी भी बदलती है
और हवा भी
और हिमनदों की बर्फ़ भी
और नदियों और समंदर का पानी भी
पुराने विचारों की जगह लेते हैं नये विचार
पुरानी कविता की स्मृतियां नये जीवन के
रसायनों से मिलकर नयी कविता को
जन्म देती है
जीवन गत होता है
फिर आगत होने को
पुनर्नवा होकर

तमाम चीज़ें, जैसे कि कोई ऐतिहासिक युग
या कोई सामाजिक व्यवस्था,
अगर अपनी स्वाभाविक आयु से अधिक
टिकी रह जाती हैं
अपनी प्रासंगिकता खोने के बाद भी,
तो जीवन की लय खण्डित हो जाती है
फिर एक दिन ऐसा भी आता है जब
लोग जैसे दुस्स्वप्नों भरी
गहरी और लम्बी नींद से जागते हैं
और जीवन को पुनर्व्यवस्थित करने के लिए
ध्वंस और निर्माण के कामों में,
जुट जाते हैं

इसी तरह बेहद घुटन भरे सुदीर्घ ठहराव के
कठिनतम दिनों में भी
आखिरकार नयी शुरुआत को
जन्म तो लेना ही होता है !

  • कात्यायनी
    (2 फरवरी 2023)

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ROHIT SHARMA

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