सिर पर बैठ गए धर्म-ग्रन्थ
छाती पर बैठ गया ईश्वर
आंखों पर बैठ गए धर्म-गुरु
पैरों को बांध लिया परंपराओं ने
चरण स्पर्श करते रहे हाथ
पेट को दबाए
मरी हुई आत्मा लेकर
हम चलते रहे उन रास्तों पर
जो हमें नर्क में ले गए
स्वर्ग का वास्ता देकर
2
हम धर्म-ग्रंथों को सिर पर उठाकर घूमते रहे
धर्म-गुरुओं के चरण धोते रहे
राजाओं के लिए युद्ध लड़ते रहे
शहीद होते रहे और महान बनते रहे
ईनाम पाते रहे और नृत्य करते रहे
देखिए किस तरह हम मरे
और बचे रहे तानाशाह !
3
बच्चे बूढ़ों की तरह हो गए हैं बहुत बूढ़े
और बूढ़े जैसे खुदाई से निकले कंकाल
पिता जैसे करंट लगे पक्षी
और मांएं आकाश में खोई-खोई सी
ईश्वर को ताकती हुई
ईश्वर जा छिपा है कण-कण में
अंतर्ध्यान हो गए हैं देवता
समाधी में चले गए हैं दिव्य संत
चरणों में गिर पड़े हैं राष्ट्र
तानाशाह निकला है शिकार पर !
- जयपाल
[ प्रतिभा एक डायरी स्वतंत्र ब्लाॅग है. इसे नियमित पढ़ने के लिए सब्सक्राईब करें. प्रकाशित ब्लाॅग पर आपकी प्रतिक्रिया अपेक्षित है. प्रतिभा एक डायरी से जुड़े अन्य अपडेट लगातार हासिल करने के लिए हमें फेसबुक और गूगल प्लस पर ज्वॉइन करें, ट्विटर हैण्डल पर फॉलो करे… एवं ‘मोबाईल एप ‘डाऊनलोड करें ]