प्रेतों के वचनों में हमेशा मानवीय भाषा होती है, जैसे झगड़े का समाधान बातचीत से होना चाहिए, हमें झगड़ा पसंद नहीं है. हम चाहते हैं कि सब लोग शांति से रहें, प्रेम से रहें, भाईचारे के साथ रहें. हमारे प्रशासन का काम है लोगों को सुरक्षा देना. मानवीय मंगलवचनों का इनके मुख से निरंतर पाठ चलता रहता है. यह वैसे ही है जैसे अमरीकी विदेश विभाग सारी दुनिया में अपने नेताओं के मुंह से मंगलवचनों को उगलवाता रहता है.मंगलवचन की राजनीति नए अमरीकी जनतंत्र की राजनीति है. ग्लोबल प्रेत सिर्फ अंधविश्वासी, पुनर्जन्म विश्वासी नहीं है, वह यदि संघियों के शरीर में प्रवेश कर सकता है तो वैज्ञानिक नजरिए के कायल कम्युनिस्टों के अंदर भी प्रवेश कर सकता है. ग्लोबल प्रेत की कोई विचारधारा नहीं होती. वह कहीं भी और कभी भी किसी के अंदर प्रवेश कर सकता है.
जगदीश्वर चतुर्वेदी
पश्चिम बंगाल में ममता सरकार के बनने के एक साल बाद भी ‘मैं’ और ‘तू’ में चला आ रहा राजनीतिक विभाजन खत्म नहीं हुआ है. यह एक बड़ी सामाजिक प्रक्रिया की देन है, इसके कारण ममता के दल और माकपा में खूनी झडपें हुईं. कांग्रेस और ममता के दल के बीच हिंसाचार हुआ. यह हिंसाचार किस तरह एक ग्लोबल बीमारी का हिस्सा है, इसे मैंने नंदीग्राम (2008) पर लिखी किताब में प्रेत के रूपक के जरिए वर्चुअल परिप्रेक्ष्य में विश्लेषित किया था. उस किताब के ये अंश आज भी प्रासंगिक हैं, पढ़ें और आनंद लें-
प्रेत कभी अकेले नहीं आते. हमेशा अनेक के साथ आते हैं. यह वर्णशंकर प्रेत है. यह आधा भारतीय है और आधा विलायती है. इसका राजनीतिक शरीर भी वर्णशंकर है. आधा ”हमारा’ और आधा ‘तुम्हारा.’ यह अद्भुत मिश्रित क्लोन है. ग्लोबल कल्चर की उपज है. इसके कपड़े और मुखौटे जरूर राजनीतिक दलों के हैं किंतु इसकी आत्मा ठेठ अमरीकी है. ग्लोबल है. कहने को इसका शरीर भारतीय है किंतु मन-मिजाज, स्वभाव, भाव-भंगिमा, बयान, चाल- ढाल, संगठनशैली सब अमरीकी हैं. यह नयी विश्वव्यापी जनतंत्र स्थापना की अमरीकी मुहिम के सभी लक्षणों से युक्त है. नया अमरीकी जनतंत्र जबरिया थोपा जनतंत्र है, लाठी का जनतंत्र है. इसमें सत्ता जैसा चाहेगी वैसा ही विपक्ष भी होगा. पश्चिम बंगाल या भारत के लिए यह पराया जनतंत्र है.
प्रेतों के वचनों में हमेशा मानवीय भाषा होती है, जैसे झगड़े का समाधान बातचीत से होना चाहिए, हमें झगड़ा पसंद नहीं है. हम चाहते हैं कि सब लोग शांति से रहें, प्रेम से रहें, भाईचारे के साथ रहें. हमारे प्रशासन का काम है लोगों को सुरक्षा देना. मानवीय मंगलवचनों का इनके मुख से निरंतर पाठ चलता रहता है. यह वैसे ही है जैसे अमरीकी विदेश विभाग सारी दुनिया में अपने नेताओं के मुंह से मंगलवचनों को उगलवाता रहता है.
मंगलवचन की राजनीति नए अमरीकी जनतंत्र की राजनीति है, यह ‘तेरे’, ‘मेरे’ के प्रेतों की निजी खूबी है. प्रेतों ने यह भाषा अमरीकी तंत्र से सीखी है. यह लोकल भाषा नहीं है. ग्लोबलाईज जनतंत्र की ग्लोबल भाषा है. ग्लोबल प्रेतों का दादागुरू नव्य- उदारतावाद है. यह अचानक नहीं हैं कि नव्य-उदारतावादी प्रेतों के साथ हैं, प्रेतों के ताण्डव के साथ हैं. ग्लोबल प्रेत सिर्फ अंधविश्वासी, पुनर्जन्म विश्वासी नहीं है, वह यदि संघियों के शरीर में प्रवेश कर सकता है तो वैज्ञानिक नजरिए के कायल कम्युनिस्टों के अंदर भी प्रवेश कर सकता है.
ग्लोबल प्रेत की कोई विचारधारा नहीं होती. वह कहीं भी और कभी भी किसी के अंदर प्रवेश कर सकता है और उसके अंदर स्थायी और अस्थायी डेरा जमा सकता है. प्रेत की कोई जाति नहीं होती, धर्म नहीं होता, राजनीति नहीं होती, चेहरा नहीं होता. प्रेत तो प्रेत है, उसे मनुष्य समझने की भूल नहीं करनी चाहिए.
प्रेत का धर्म ही अलग होता है. प्रेत वर्चुअल होता है. अनुपस्थिति होता है. प्राणरहित होता है. प्रेत में मानवता की खोज संभव नहीं है. प्रेत कोई व्यक्ति नहीं है. प्रेत ग्लोबल बहुराष्ट्रीय निगम व्यवस्था का प्रतीक है. इस प्रेत को साक्षात किसी ने देखा नहीं है. सिर्फ इसके उत्पात देखे हैं, प्रेत के ताण्डव देखे हैं, प्रेत की हिंसा और प्रतिहिंसा देखी है. इलाका दखल देखा है. ग्लोबल प्रेत को किसी के घर में आग लगाते, बलात्कार करते, बंदूक से गोलियां बरसाते देखा गया है, उसकी बंदूकों की आवाजें सुनी हैं, दनदनाती मोटर साईकिलों पर हथियारबंद जुलूसों की दहशत महसूस की है, प्रेतों के द्वारा किए गए अत्याचारों के आख्यान सुने हैं.
बलात्कार की शिकार औरतों के आख्यान सुने हैं. किंतु किसी ने प्रेतों को देखा नहीं है. आश्चर्य की बात है कि इन प्रेतों को कोई पंडित, कोई ओझा, कोई तांत्रिक बोतल में कैद नहीं कर पाया. कोई पुलिस वाला, सेना वाला, टीवी वाला पकड़ नहीं पाया. प्रेतों को हम देख नहीं पाए किंतु उनके आख्यान और महाख्यान को लगातार सुनते रहे हैं.
काश ! प्रेतों के चेहरे होते. प्रेतों के पैर होते. शरीर होता तो कितना अच्छा होता हम साक्षात् प्रेतों को देख पाते, हमारे पास टीवी द्वारा पेश किया गया प्रेतों का आख्यान है किंतु रियलिटी शो नहीं है. प्रेतों की रियलिटी नहीं है. प्रेतों के द्वारा सताए लोगों के यथार्थ बाइट्स हैं, यथार्थ आख्यान नहीं हैं. हम यथार्थ बाइट्स से ही काम चला रहे हैं. अधूरे यथार्थ से ही काम चला रहे हैं. काश प्रेतों का रियलिटी शो कोई अपने कैमरे में कैद कर पाता !
सवाल यह है कि जब प्रेतों के ताण्डव के आख्यान हम जानते हैं तो प्रेतों को खोजने का काम क्यों नहीं करते, प्रेतों को दण्डित कराकर उन्हें प्रेत योनि से मुक्ति क्यों नहीं दिलाते ? क्या हमें ‘हमारे’ और ‘तुम्हारे’ सभी प्रेतों को दण्डित कराने का प्रयास नहीं करना चाहिए ? क्या लोकतंत्र की वैज्ञानिक चेतना यही कहती है कि प्रेतों को आराम से रहने दो ?
हमारे देश में जिस प्रेत ने कब्जा जमाया है वह वर्णशंकर प्रेत है, हाइपररीयल प्रेत है. इच्छाधारी प्रेत है. जब इच्छा होती है तो किसी शरीर में प्रवेश कर जाता है और जब इच्छा होती है गायब हो जाता है. यह ऐसा प्रेत है जिसे इच्छा मृत्यु का वरदान प्राप्त है. यह सत्ताधारी प्रेत है. इसी अर्थ में इच्छाधारी है. इच्छाधारी प्रेत बड़ा खतरनाक होता है. वह कभी भी किसी के भी अंदर प्रवेश कर जाता है और अभीप्सित लक्ष्य को प्राप्त करके गायब हो जाता है. हमने गली, मुहल्लों से लेकर गांवों-शहरों में ऐसे असंख्य प्रेत पाले हुए हैं. ये जनतंत्र के नए संरक्षक और भक्षक हैं.
इच्छाधारी प्रेत के पास वैचारिक हिमायती भी हैं, ये ज्ञान-विज्ञान और समाजविज्ञान के धुरंधर हैं. इन लोगों ने अनेक प्रेताख्यान लिखे हैं. असल में ये विद्वान ही हैं जो इसे मंत्रोच्चारण करके प्रेतों को जिंदा रखे हुए हैं. यह विलक्षण संयोग है कि प्रेत मंत्रों से मरते नहीं है, प्रेत में क्लोनकल्चर होती है. यह भी कह सकते हैं प्रेत हमेशा क्लोन कल्चर के जरिए ही निर्मित किए जाते हैं, प्रेत एक जैसे होते हैं. प्रेतों की हरकतें एक जैसी होती हैं, भाषा एक जैसी होती है, संस्कृति एक जैसी होती, विचारधारा एक जैसी होती है. प्रेत के आख्यान लेखक भी एक जैसे होते हैं. काश ! हम प्रेत को देख पाते.
प्रेतों का चरित्र और स्वभाव गुब्बारे की तरह होता है. आप जितना बड़ा करना चाहें गुब्बारे को फुला सकते हैं. प्रेत और मनुष्य में फर्क यह है कि प्रेत प्रेत है और मनुष्य मनुष्य है. मनुष्य को स्वच्छ प्राणवायु की जरूरत होती है जबकि प्रेत को प्राणवायु की जरूरत नहीं होती. स्वच्छ हवा में प्रेत जिंदा नहीं रह सकते. प्रेत मरते नहीं हैं, वे अमर होते हैं. नई शक्लों और नारों के साथ बार-बार लौट आते हैं और बार-बार इनके मोक्ष की प्रार्थना करनी पड़ती है. प्रेतों का अंधविश्वास ,अंधआस्था, वैज्ञानिकचेतना, मार्क्सवाद, अध्यात्म और पुनर्जन्म में गहरा विश्वास होता है. मनुष्य को ये तीनों चीजें उनसे ही विरासत में मिली है.
प्रेतों को हमेशा तंत्र का संरक्षण मिलता है. प्रेतों से सब डरते हैं और सब प्रेतों को प्यार करते हैं और अनेक लोग तो ऐसे भी हैं जो स्वयं प्रेत होना चाहते हैं. प्रेतों की कतारों में शामिल होना चाहते हैं, प्रेत बनने के लिए तरसते रहते हैं. उन्हें लगता है कि प्रेत नहीं बने तो जीवन वृथा है. प्रेत बनने के लिए आपको कुछ भी खर्च नहीं करना, सिर्फ इच्छा होनी चाहिए, प्रेत आपकी आत्मा में प्रवेश कर जाएगा और आप उसके बाद जो चाहेंगे कर पाएंगे. प्रेतों को नियम, कानून, व्यवस्था, सभ्यता, संस्कृति आदि से कोई लेना-देना नहीं है, ये सारे क्षेत्र प्रेतों के चयन के क्षेत्र नहीं हैं. आप किसी भी कल्चर, राजनीति, सभ्यता के मानने वाले हों, एकबार प्रेत के संपर्क में आ जाओ, उसके बाद सारा खेल प्रेत तय करेंगे.
प्रेत के खेल के नियम सभ्यता के नियमों के बाहर हैं. प्रेत के खेल के नियमों का तिलिस्मी जाल बहुराष्ट्रीय निगमों और सत्ता केन्द्रों के विराटकाय भवनों, अट्टालिकाओं, संस्थानों आदि में तय होता है. प्रेतों के खेल में शामिल होने के लिए प्रेत होना अनिवार्य शर्त है. प्रेत कभी गैर प्रेतों से नहीं मरते. यही प्रेत की खूबी है वह हमेशा अपना क्लोन तैयार करता है. प्रेत को श्मशान पसंद है, संवेदनहीनता पसंद है. प्रेत को संवेदनशीलता से घृणा है. प्रेत सिर्फ प्रेतों को प्यार करते हैं, गैर प्रेत उन्हें पसंद नहीं है.
प्रेत हमेशा प्रेतों के हितों के लिए प्रतिबद्ध होते हैं। उसे मनुष्यों के हितों से कोई मोह नहीं, ममता, दया, दुःख-दर्द नहीं. प्रेत का आख्यान मानवीय आख्यान नहीं है. यह परा-मानवीय आख्यान है. यही वजह है नंदीग्राम की तबाही पर समग्रता में प्रेत दुःखी नहीं हैं. वे चुनकर दुःख व्यक्त कर रहे हैं. काश ऐसा चुनिंदा दुःख मनुष्य भी सीख पाता ! मजेदार बात यह है जो आज नंदीग्राम के हिंसाचार पर आंसू बहाना नहीं चाहते, उन्हीं लोगों के लिए सन् 1972-77 में कष्टों के लिए मनुष्यों ने आंसू बहाए थे. उन आंसुओं का ही सुफल था कि प्रेतों को सत्ता मिली.
नंदीग्राम में सलीम ग्रुप का ग्लोबल प्रेत जब 2006 के दिसम्बर में दाखिल हुआ था तो किसी ने नहीं सोचा था कि हम सब उसके गुलाम प्रेत हो जाएंगे. सलीम ग्रुप को हमने निवेशकारी समझा. यह हमारी महानता थी ! हम प्रेत को कंपनी समझ रहे थे. प्रेतों की कंपनियां होती हैं, बहुराष्ट्रीय कंपनियां होती हैं. इन कंपनियों में मानवीय सुख के गहने तैयार नहीं होते बल्कि मानवीय दुःख के रत्न तैयार किए जाते हैं. प्रेतशालाओं में मानवीय सुख की खोज करने वाले भूल ही गए कि प्रेतशाला में न तो खेती होती है, न उत्पादन होता है, न विकास होता है, प्रेतशाला में न वेदमंत्र पढ़े जाते हैं.
प्रेतशाला मुर्दाघर है, वहां सिर्फ प्रेत रहते हैं अथवा शव होते हैं. शवों के बीच में प्रेत फबते हैं, आकर्षक लगते हैं.
सलीम गुप के कैमीकल हब के प्रस्ताव की सबसे बड़ी उपलब्धि है कि यह हब तैयार होने के पहले ही नंदीग्राम को श्मशान बना चुका है. सलीम का प्रेत समूचे इण्डोनेशिया के वैभवशाली समाज और चमत्कृत कर देने वाले कम्युनिस्ट आंदोलन को निगल चुका है, हजारों कम्युनिस्टों को सलीम का प्रेत खा चुका है. अब उसके निशाने पर पश्चिम बंगाल के गरीब लोग हैं और कम्युनिस्ट हैं. दुःख यह है कि पश्चिम बंगाल के कम्युनिस्ट इस बात को समझ नहीं रहे हैं. वे सलीम के प्रेत के साथ स्वयं प्रेत बन गए हैं. नंदीग्राम में जो कुछ हुआ वह सलीम के प्रेतों की देन है. इसका मार्क्सवाद, लोकतंत्र आदि से कोई लेना-देना नहीं है.
आप आधुनिक युग में जितनी प्रेतशालाएं बनाते जाएंगे, उतने ही फबते जाएंगे. उतने ही प्रेतों से मुक्ति दिलाने वाले पंडित आपके समाज में पैदा हो जाएंगे. प्रेत होंगे तो उनके पण्डित भी होंगे. प्रेतों को आप मार नहीं सकते. आप सिर्फ प्रेत बनकर ही प्रेत को भगा सकते हैं. यही वजह है हम प्रेतों के साथ संघर्ष करते हुए हम प्रेत बनते जा रहे हैं. राजनीतिक दल विशेष का प्रेत बनना ऐतिहासिक दुर्घटना है. राजनीतिक दल का सारा रसायन मानवीय था किंतु अचानक प्रेतों के संसर्ग और संपर्क ने उसे प्रेत बना दिया. राजनीतिक दल विशेष का प्रेत में रूपान्तरण अकेली घटना नहीं है. हमारे देश में अन्य राज्यों में भी नए-नए प्रेत पैदा हो रहे हैं.
मजेदार बात यह है प्रेतों में अपडेटिंग होती रहती है, प्रेत अपने को हमेशा अपडेट रखते हैं. प्रेत किसी भी व्यवस्था, विचारधारा, तकनीक, संचार के रूपों के साथ सहज ही घुलमिल जाते हैं, उसकी काया में प्रवेश कर जाते हैं. प्रेत कभी गाली नहीं देते और न कभी गाली सुनकर भागते हैं. प्रेतों को मंत्र पसंद हैं. वे मंत्र बोलते हैं, मंत्रों से ही विध्द करते हैं. मंत्रों से ही मरते हैं. प्रेतों के पास पण्डितों की समूची पीढ़ी हमेशा से रही है. आज भी है. ये पण्डित मानवीय भाषा में मंत्रोच्चार करते रहते हैं. प्रेतों के आख्यान का रेशनल तैयार करते रहते हैं. इस अर्थ में प्रत्येक प्रेत के पास अपना रेशनल होता है. तंत्र होता है. प्रेत तंत्र के बिना काम नहीं करते. प्रेत को परकाया, मंत्र और तंत्र इन तीनों की जरूरत होती है.
प्रेत की खूबी है कि वह कभी सीधे नहीं आते, प्रेत के आने के लिए ‘अन्य’ का होना जरूरी है. प्रेत पहले ‘अन्य’ को रेखांकित करता है, उसके अंदर प्रवेश करता है. जिसकी काया के अंदर प्रवेश करके प्रेत ताण्डव करते हैं उसे लोग विस्मित नजरों से देखते हैं. पश्चिम बंगाल की खूबी है कि प्रेतों ने राजनीतिक दलों को निशाना बनाया हुआ है. एक दल का प्रेत जगता है तो दूसरे का प्रेत स्वत: जग जाता है. वे फिर मिलकर डब्ल्यू डब्ल्यू फाइट करते हैं. आनंद से रहते हैं. पश्चिम बंगाल में विगत तीस सालों में प्रेतों के पौ-बारह हुए हैं.
प्रेत तरंगों की तरह होते हैं, हवा की तरह वातावरण में तैरते रहते हैं. जिसको भी उनकी हवा लग जाती है उस पर सवारी तान लेते हैं. प्रेत का आख्यान गैर-मानवीय आख्यान है, अतृप्त मनुष्य का आख्यान है. ऐसे व्यक्ति का आख्यान है जिसकी आत्मा को मोक्ष नहीं मिली. प्रेत वही बनते हैं जिनको मोक्ष नहीं मिलती. प्रेत बनना इस अर्थ में मानवीय है कि वह हमारे अंदर, समाज में, संस्कृति में इच्छा में रूपान्तरण कर लेता है. प्रेत की उम्र और इच्छाएं कभी पूरी नहीं होती जबकि मनुष्य की उम्र और इच्छा पूरी होती हैं. अतृप्त मनुष्य प्रेत का आसान शिकार होते हैं. उसी तरह अतृप्त राजनीति को प्रेत आसानी से अपनी गिरफ्त में ले लेते हैं. हमें देखना चाहिए कि हमारे समाज में अतृप्त राजनीतिक दल कौन से हैं और वे किस तरह प्रेतात्माओं की गिरफ्त में जा रहे हैं ?
इन दिनों जिस प्रेत का हमारे समाज पर सबसे ज्यादा प्रभाव है, वह है भूमंडलीकरण का प्रेत. यह अकेला नहीं है, यह व्यक्ति नहीं है बल्कि फिनोमिना है. यह दल नहीं है, यह तो सिर्फ प्रेत है. प्रेत के लोकल और ग्लोबल हित होते हैं. प्रेत कभी भी परमार्थी नहीं होता बल्कि सबसे बड़ा स्वार्थी होता है. प्रेत हमेशा अदृश्य रहता है उसके सिर्फ एक्शन दिखाई देते हैं, परिणाम दिखाई देते हैं, प्रेत कभी दिखाई नहीं देता. नंदीग्राम में ग्लोबल और लोकल प्रेतों ने सामाजिक हितों का मुखौटा ओढ़ लिया है. इनके पास अनेक बहाने हैं जिनके जरिए मुखौटों को वैधता प्रदान की जा रही है.
हमारे देश में ग्लोबल प्रेत जो कर रहे हैं उनकी हमने पश्चिम बंगाल में नकल शुरू कर दी है, नकल हमेशा असल से भी सुंदर लगती है. बल्कि यह कहें कि असल फीकी और नकल चमकदार और आकर्षक लग रही है. नंदीग्राम के प्रेतों में ग्लोबल का क्लोन भी है, नंदीग्राम के प्रेतों में ग्लोबल के प्रतिरूप भी हैं. आप कुछ देर के लिए इनके ऊपरी आवरण, विचारधारा, चरित्र, स्वभाव, संस्कृति, राजनीति, सरकार आदि को भूल जाइए क्योंकि प्रेत के यहां इन सबका कोई महत्व नहीं है. प्रेत की खूबी है वह कभी भी किसी मनुष्य के अंदर प्रवेश कर जाता है और उसे बदल देता है. ग्लोबल प्रेतों ने भारत में जबर्दस्त बदलाव पैदा किया है. अपने सैंकडों-हजारों प्रतिरूप पैदा कर दिए हैं. वे हमारे जीवन में पेंगुइन की तरह चलते नजर आते हैं.
प्रेत अदृश्य होता है उसे आप पकड़ नहीं सकते. महाशक्तिशाली होता है उसे पछाड़ नहीं सकते. प्रेत को आप पकड़ने की कोशिश करेंगे तो स्वयं क्षतिग्रस्त होंगे. प्रेत हमें अच्छे लगते हैं, हम प्रेतों से प्यार करने लगे हैं और स्वयं प्रेत बनते जा रहे हैं. यही प्रेतों की सबसे बड़ी सफलता है. प्रेत का हमारी काया में प्रवेश इच्छाओं के माध्यम से होता है और अंतत: हम प्रेत बनकर रह जाते हैं. हमारे पास इच्छाएं होती हैं, बर्बरता होती है और प्रेतभावना होती है.
विकास और तरक्की की इच्छा का उदय अद्भुत मुश्किलें पैदा करता है. मनुष्य के नाते विकास के सपने देखना बंद नहीं कर सकते और सपने में छलांगे लगाना भी बंद नहीं कर सकते, किंतु सपने में छलांगें लगाते हुए हमें अदृश्य हाथों का सहारा मिलता है, हम खुश होते हैं कि सपने में कोई तो आया जिसने अदृश्य हाथों के जरिए हमारी मदद की. हम कभी अदृश्य हाथों को देख नहीं पाते और छलांगें लगाते चले जाते हैं. सपने में विकास और छलांगें. विकास की छलांगों के पीछे सक्रिय अदृश्य हाथ सक्रिय रहता है.
प्रेतों के सपने वैसे ही होते हैं जैसे कोई व्यक्ति अपने बिस्तर पर पड़ा हुआ सपने देखता है, सपनों में कुलांचे भरता है और जब अचानक बिस्तर से नीचे गिरता है तो उसकी हड्डियां टूट जाती हैं, चोट लग जाती है. यही प्रेतों के सपनों की वास्तविकता है. टूटी हड्डी और उसका दर्द सपने हमें विरासत में छोड़ जाते हैं. यही ग्लोबल विकास की त्रासदी है. ग्लोबल प्रेत की पटखनी है.
ग्लोबल प्रेत इच्छाधारी हैं. सारी दुनिया उनकी सैरगाह है. वे कहीं भी बेरोकटोक आ जा सकते हैं. सारी दुनिया उनकी कर्मभूमि है. पहले ग्लोबल प्रेत सिर्फ अमरीका, जापान, फ्रांस, जर्मनी आदि में रहते थे अब उन्होंने सारी दुनिया को अपना घर बना लिया है. इस अर्थ में ग्लोबल प्रेतों का आख्यान अनंत रूपों में विश्व आख्यान बन चुका है. प्रेतों का अब जितने राष्ट्रों में डेरा है उतने ही आख्यान हैं. प्रेतों को कहानियां अथवा आख्यान सबसे ज्यादा पसंद हैं, इसी अर्थ में वे महाख्यान के सर्जक हैं और महान भी हैं. वे अब सिर्फ अमरीका आदि देशों में ही निवास नहीं करते बल्कि भारत में भी आ गए हैं. हमारे आपके सबके भीतर प्रेतात्मा बनकर आ गए हैं. जब इच्छा होती हैं प्रगट हो जाते हैं और खुलकर खेलने लगते हैं. ग्लोबल प्रेतों का इच्छाधारी राजनीति में रूपान्तरण 21वीं शताब्दी की सबसे बड़ी उपलब्धि है.
भारत में इच्छाधारी नागिन, इच्छाधारी भगवान और इच्छाधारी राक्षसों की मिथकीय परंपरा रही है किंतु यह परंपरा काफी पहले लुप्त हो गयी थी. अचानक प्राचीन और मध्यकालीन लुप्त परंपराओं को नए युग की राजनीति ने पुनर्जीवित किया है. नए मीडिया ने जीवित किया है. लंबे समय से प्रेतों का प्रिय क्षेत्र मीडिया रहा है. प्रेतों के आख्यान मीडिया में सबसे ज्यादा बिकते हैं.
21वीं सदी की सबसे बड़ी ताकत ग्लोबल प्रेत हैं. वे अदृश्य तरीकों से विभिन्ना दलों में घुस आए हैं. इनमें वे दल भी हैं जो क्रांतिकारी हैं, सामाजिक परिवर्तन के लिए आए दिन जयघोष करते हैं. ऐसे दलों का ग्लोबल प्रेतों के स्वरों में बोलना मानवीय राजनीति की सबसे बड़ी पराजय है. जो आदमी एक बार मनुष्यता अर्जित कर लेता है वह पलटकर पीछे नहीं लौट सकता.क्योंकि मनुष्यता अर्जित करना बेहद मुश्किल काम है और मनुष्य बन जाने के बाद प्रेत बन जाना सबसे बड़ी दुर्घटना है. ऐतिहासिक दुर्घटना है. मिथकीय दुर्घटना है. अमानवीयता का चरम है. यही परिप्रेक्ष्य है जिसमें हमें तटस्थभाव से नंदीग्राम के महाख्यान को समझना चाहिए. नंदीग्राम में प्रेत पहले भी थे आज भी हैं. नंदीग्राम में कष्ट, अपमान, अवसाद, त्रासदी का माहौल पहले भी था आज भी है.
नंदीग्राम कहने को एक इलाका है. बहुत बड़ा हरा-भरा इलाका है, जहां हजारों लोग रहते हैं. हरे-भरे खेत हैं. आपसी भाईचारा रहा है. सब एक ही विचारधारा के इर्द-गिर्द गोलबंद थे. कहीं पर कोई पंगा, दंगा, घृणा, हिंसा, अत्याचार नहीं था. एक साल पहले तक नंदीग्राम में मानवता निवास करती थी. अचानक एक साल पहले दिसम्बर महीने में नंदीग्राम में ग्लोबल की आत्मा ने प्रवेश किया और उसके बाद नंदीग्राम प्रेतों का ढेरा बन गया.
ग्लोबल प्रेत कब किसके अंदर प्रवेश कर जाएं कह नहीं सकते. प्रेत परकाया प्रवेश में सिध्दहस्त होते हैं. हमारे बीच में ग्लोबल प्रेत शांति, मुक्ति, लोकतंत्र, संत्रास से मुक्ति, विकास, उपभोग, नव्य- उदारवाद, नई-नई उपभोगवादी संस्कृति के विभिन्न रूपों के बहाने प्रवेश कर रहे हैं. ग्लोबल प्रेत इतने आकर्षक होते हैं कि सबको अपनी ओर खींचते हैं. सब उनसे प्यार करने लगे हैं. इस प्यार का आलम ही है कि हमारे यहां ग्लोबलपंथी राजनीति का वर्चस्व बढ़ा है. यही वजह है कि ग्लोबल प्रेत जिसके अंदर प्रवेश करते हैं, उसे बेचैन करते हैं, तनाव में रखते हैं, बर्बर बनाते हैं.
‘हम’ और ‘तुम’ का खेल ग्लोबल प्रेतों का खेल है, उनके प्रतिरूपों का ताण्डव है, यह हम सबके लिए खुशी का समय नहीं है बल्कि त्रासद समय है. प्रेतों का ताण्डव आनंद की नहीं त्रासदी की अनुभूति देता है. प्रेतों के कंधे पर सवार होकर आयी शांति अथवा इलाका दखल अंतत: नरक और बर्बरता के लोक में ले जा सकते हैं. प्रेतों का रास्ता लोकतंत्र की ओर कम से कम नहीं जाता. ग्लोबल प्रेतों और उनके अनुगामी लोकल प्रेतों ने जहां पर भी कदम रखा है वहां सिर्फ चीखें ही सुनाई दी हैं, चीखों को शांति की आवाज नहीं कहते ! वेदमंत्र नहीं कहा जा सकता. नंदीग्राम का सच चीखों का सच है. त्रासदी का सच है. मनुष्यों की चीखों से सिर्फ प्रेत खुश होते हैं. नंदीग्राम में प्रेतों के ताण्डव से जो शांति लौटी है वह चैन देनी वाली नहीं है. प्रेतात्माओं के जरिए अर्जित की गई शांति कभी टिकाऊ नहीं होती.
ग्यारह नवम्बर 2007 को माकपा के श्यामल चक्रवर्ती ने प्रेस को बताया कि नंदीग्राम ‘पूरी तरह संत्रासमुक्त’ हो गया है. बारह नवम्बर को माकपा नेता विमान बसु ने कहा नंदीग्राम में ‘नया सूरज उदित हुआ है.’ अब वहां शांति लौट आयी है. इसे उन्होंने ‘घर वापसी’ भी कहा. यह उन लोगों की घर वापसी थी जो ग्यारह महीना पहले नंदीग्राम को छोड़कर जाने को मजबूर किए गए.
इस प्रसंग में पहली बात यह है नंदीग्राम संत्रासमुक्त नहीं हुआ है, बल्कि मार-मारकर जनता को अधमरा करके लायी गयी शांति है, जनता ज्योंही स्वस्थ होगी फिर से प्रतिवाद करेगी. जनता जो नंदीग्राम में नहीं कर पाएगी अन्य जगह करेगी. नंदीग्राम की जनता अकेली नहीं है, उसका अन्य क्षेत्र की जनता के साथ भाईचारा है और भाई भाई के लिए लड़ेगा, इस अर्थ में नंदीग्राम खत्म नहीं होगा.
नंदीग्राम की जनता का सबसे बड़ा अपराध यही है कि उसने प्रेतों के इशारे पर चलने से मना किया, यदि वह ग्लोबल और लोकल प्रेतों के इशारे पर चलती तो उसे यह दुर्दशा देखनी नहीं पड़ती. नंदीग्राम का ताण्डव ग्लोबल और लोकल प्रेतों का साझा ताण्डव था, जो ग्यारह महीने से चल रहा था, इसके केन्द्र में जनता को सबक सिखाने का भाव था, सामूहिक तौर पर जनता को दण्डित करने और सजा देने का भाव था, इस मायने में नंदीग्राम में शांति लौट आयी है. जनता की सामूहिक ठुकाई यदि शांति है तो इसे शांति नहीं कह सकते. इस ताण्डव को हम जितना जान पाए वह सब मीडियानिर्मित था.
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