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बेरोजगारी का दंश और छात्र आन्दोलन का भूकम्प

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बेरोजगारी का दंश और छात्र आन्दोलन का भूकम्प

आन्दोलन की आग भड़काने के लिए एक चिनगारी एक जरूरत होती है, वैसी ही एक चिनगारी भड़की कल पटना में. केंद्र सरकार की ओर से हाल ही में घोषित आरआरबी एनटीपीसी के रिजल्ट में गड़बड़ी के खिलाफ सोमवार को छात्रों का गुस्सा फूट गया. बिना किसा पूर्व सूचना के बड़ी संख्या में आक्रोशित छात्र पटना के राजेंद्र नगर टर्मिनल पहुंच गए. देखते ही देखते छात्रों का हुजूम रेलवे ट्र्रैक पर आ गया और ट्रेनों के परिचालन को ठप कर दिया.

केंद्र सरकार की ओर से आरआरबी एनटीपीसी का हाल के दिनों में रिजल्ट जारी किया गया है. छात्रों ने बताया कि परीक्षा का फॉर्म 2019 में भराया गया. 2021 में एग्जाम लिया गया. रिजल्ट 14 जनवरी 2022 को जारी किया गया. कुल मिलाकर 3 साल में एक परीक्षा का रिजल्ट जारी किया गया और उसमें भी काफी धांधली की गई है.

छात्रों का आरोप है एक ही छात्र को कई अलग-अलग पदों पर बहाल कर दिया गया है. यह सरकार की ओर से बहाली नहीं करने की साजिश है और एक ही छात्र का रिजल्ट कई जगह देकर आंकड़ेबाजी का तरीका है, यह नहीं चलेगा. जल्द से जल्द रिजल्ट को सुधारा जाए नहीं तो आंदोलन को तेज किया जाएगा.

रामराज्य की परिकल्पना को साकार करती भाजपा-आरएसएस संचालित भारत सरकार के केन्द्र में देश के चंद औद्योगिक घरानों के अलावा और कोई नहीं है. चाहे वह छात्र हो, युवा हो, किसान हो, मजदूर हो या वैज्ञानिक समुदाय ही क्यों न हो.

सरकारी नौकरी को भारत सरकार खत्म करने पर तुली हुई है. जो कुछ भी सरकारी नौकरियां अभी तक बची है वह वस्तुतः पहले से ही सत्ता प्रतिष्ठान में अपना सर घुसाये बैठे बड़े-बड़े आला अधिकारियों, मंत्रियों वगैरह के संरक्षण में अपने परिवारों को दी जा रही है. फिर भी अगर कुछ सीटें बच जाती है तब बड़े पैमाने पर रूपयों की लेन-देन से पूरी की जाती है. यहां योग्यता कोई पैमाना नहीं है.

मेरे एक परिचित बताते हैं कि जांच परीक्षा महज खानापूर्ति है. भर्तियों के संबंध में परीक्षा होने से बहुत पहले ही लाखों रुपयों की लेन-देन हो चुकी होती है, बांकी सब खानापूर्ति भर है. यहां तक कि अब आईएएस अधिकारी बनने के लिए भी परीक्षा की जरूरत नहीं रह गई है, बिना किसी परीक्षा को पास किये भी आईएएस-आईपीएस अधिकारी बना जा रहा है, तब परीक्षा की खानापूर्ति क्यों ?

परीक्षा की खानापूर्ति दो कारणों से की जाती है. एक तो सामाजिक लज्जा को बचाये रखने के लिए एक फटा हुआ लबादा ओढ़ लेना, जिसके फटे से उसकी सारी नंगई उजागर होती रहती है. दूसरा कारण है करोड़ों की तादाद में फार्म भरने आये छात्रों से फीस के नाम पर हजारों करोड़ की वसूली करना.

आज जब नौकरी, वह भी सरकारी नौकरी स्टेटस सिंबल बन चुका है, और बिना नौकरी पाये युवा हताश होकर आत्महत्या कर रहे हैं या फिर समाज में अपनी उपयोगिता साबित करने के लिए अपराध जगत की ओर आकर्षित हो रहे हैं, तब यह सवाल देश की सत्ता के सामने मौजूं है कि आखिर ये करोड़ों युवाओं का होगा क्या ??

भाजपा की मोदी सरकार ने इन युवाओं के सामने लठैत बनने का एक रोजगार खोला है, जिसकी कीमत भी आये दिन कम होती जा रही है. लठैत बने यह युवा किसी शिकार की तालाश में समाज में भटक रहे हैं और पहला मौका मिलते ही हत्या, बलात्कार, दंगा का बाजार गर्म कर देते हैं, जिसे मोदी सरकार सरकारी संरक्षण देती तो है, पर वह खुद ही एक जिंदा लाश बन जाता है क्योंकि भले ही सरकारी मूल्य शेष हो गया हो पर सामाजिक मूल्य अभी भी बांकी है.

समय रहते अगर छात्रों-युवाओं का विशाल हुजूम किसानों, मजदूरों, वैज्ञानिकों के साथ मिलकर एक शक्ति का गठन नहीं करती तो समाज आवारों का विशाल चारागाह बन जायेगा, कहना नहीं होगा इस चारागाह में शिकार वे भी होंगे जो आज इन आवारागर्दों का पोषण कर रहा है.

छात्रों युवाओं द्वारा भड़की यह तत्कालीन भूकंप जो आज पटना के राजेन्द्र नगर टर्मिनल में फूटी है, इस भूकम्प को रोज ही सारे देश में फूटना होगा, तभी लगातार शिक्षा और रोजगार से महरुम होते युवा देश को एक नवीन दिशा दे पायेंगे, वरना आवारागर्दों का विशाल चारागाह इनकी प्रतीक्षा कर रहा है. बहरहाल, किसान आन्दोलन की ही तरह छात्र आन्दोलन जिन्दावाद !

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