Home गेस्ट ब्लॉग ‘भारत में वसंत का वज़नाद’ : माओ त्से-तुंग नेतृत्वाधीन चीनी कम्युनिस्ट पार्टी की केंद्रीय कमेटी के मुखपत्र पीपुल्स डेली (5 जुलाई, 1967)

‘भारत में वसंत का वज़नाद’ : माओ त्से-तुंग नेतृत्वाधीन चीनी कम्युनिस्ट पार्टी की केंद्रीय कमेटी के मुखपत्र पीपुल्स डेली (5 जुलाई, 1967)

21 second read
0
0
457

भारत की सशस्त्र कम्युनिस्ट क्रांतिकारी आंदोलन ने पहली बार दुनिया की क्रांतिकारी मेहनतकश अवाम का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया था. इसका श्रेय मेहनतकश अवाम के पांचवें महान शिक्षक माओ त्से-तुंग की नेतृत्व वाली चीनी कम्युनिस्ट पार्टी की केंद्रीय कमेटी के मुखपत्र पीपुल्स डेली ने 5 जुलाई, 1967 में प्रकाशित इस अतिमहत्वपूर्ण लेख ‘भारत में वसंत का वज़नाद’ ने ऐतिहासिक नक्सलबाड़ी सशस्त्र किसान संघर्ष का न केवल अभिनंदन किया था और इसके महत्व को बताया था बल्कि भारतीय कम्युनिस्ट क्रांतिकारियों को जोश से भर दिया था.

इतना ही नहीं, महान नक्सलबाड़ी सशस्त्र संघर्ष को शासक और संशोधनवादियों ने खून में डुबो कर खत्म करना चाहा. इसके लिए उसने 70-71 के महज एक वर्ष में 20 हजार से अधिक बंगाली नौजवानों को मौत के घाट उतार दिया परन्तु, जैसा कि माओ त्से-तुंग की नेतृत्वाधीन चीनी कम्युनिस्ट पार्टी ने अपने इसी लेख में भविष्यवाणी किया था कि –

‘भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के क्रांतिकारियों और दार्जिलिंग के क्रांतिकारी किसानों के द्वारा प्रज्ज्वलित सशस्त्र संघर्ष की मशाल कभी बुझ नहीं सकती. एक चिनगारी सारे जंगल में आग लगा सकती है. दार्जिलिंग की चिनगारी दावानल बनकर धधक उठेगी और भारत के विशाल इलाकों को अपने लपटों में समेट लेगी. यह ध्रुवसत्य है कि क्रांतिकारी सशस्त्र संघर्ष की प्रचंड आंधी अंततोगत्वा भारत के कोने-कोने में फैल जाएगी.’

और सचमुच यह छोटी-सी चिनगारी दावानल बनकर आज धधक उठी है और सीपीआई (माओवादी) के रुप में विकसित होकर भारत की तमाम मेहनतकश जनता की आंखों का तारा बनकर समूचे भारत में फैलकर माओ त्से-तुंग की भविष्यवाणी को सच साबित कर गई कि ‘एक चिनगारी सारे जंगल में आग लगा सकती है.’

यहां हम इसी ऐतिहासिक और महत्वपूर्ण लेख को प्रकाशित कर रहे हैं, जिसे समकालीन प्रकाशन से प्रकाशित ‘चारु मजुमदार : संग्रहित रचनाएं’ द्वितीय संस्करण, जुलाई 2001 से साभार प्रस्तुत कर रहे हैं. इस महत्वपूर्ण लेख ने पहली बार अंतरराष्ट्रीय कम्युनिस्ट नेतृत्व द्वारा भारतीय क्रांति का आधारभूत मूल्यांकन किया था और अंतरराष्ट्रीय क्रांतिकारी कम्युनिस्ट खेमा में स्थापित किया था. इसके साथ ही हम पाठकों को यह भी बताना चाहेंगे कि ‘समकालीन प्रकाशन’ सीपीआई (एमएल) लिबरेशन का प्रकाशन संस्थान है, जो आज संशोधनवाद में गले तक डूबकर शासक वर्गों के चरणों में शरणागत होकर क्रांतिकारी जनता पर ही हमलावर हो चुकी है. – सम्पादक

'भारत में वसंत का वज़नाद' : माओ त्से-तुंग नेतृत्वाधीन चीनी कम्युनिस्ट पार्टी की केंद्रीय कमेटी के मुखपत्र पीपुल्स डेली (5 जुलाई, 1967)
‘भारत में वसंत का वज़नाद’ : माओ त्से-तुंग नेतृत्वाधीन चीनी कम्युनिस्ट पार्टी की केंद्रीय कमेटी के मुखपत्र पीपुल्स डेली (5 जुलाई, 1967)

भारतभूमि पर वसंत का वज़नाद गड़गड़ा उठा है. दार्जिलिंग इलाके के क्रांतिकारी किसान विद्रोह कर उठे हैं. भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के एक क्रांतिकारी हिस्से के नेतृत्व में, भारत में ग्रामीण क्रांतिकारी सशस्त्र संघर्ष का एक लाल इलाका कायम किया जा चुका है. भारतीय जनता के क्रांतिकारी संघर्ष के लिए यह विकास काफी महत्वपूर्ण है.

पिछले कुछ महीनों में, इस इलाके के किसान जनसमुदाय ने भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के एक क्रांतिकारी हिस्से के नेतृत्व में आधुनिक संशोधनवाद की जंजीरों को तोड़ डाला है और उन्हें जिन बंधनों ने बांध रखा था, उन्हें चकनाचूर कर डाला है. उन्होंने जमींदारों और बागान मालिकों से अनाज, जमीन और हथियार जब्त कर लिया है, स्थानीय जुल्मियों और बुरे शरीफजादों को सजा दी है तथा प्रतिक्रांतिकारी सेना और पुलिस को, जो उन्हें दबाने के लिए आई थी, एम्बुश किया है. इस तरह उन्होंने किसानों के क्रांतिकारी सशस्त्र संघर्ष की प्रचंड ताकत का प्रदर्शन किया है. तमाम साम्राज्यवादी, संशोधनवादी, भ्रष्ट पदाधिकारी, स्थानीय जुल्मी और बुरे शरीफजादे तथा प्रतिक्रियावादी सेना और पुलिस उन क्रांतिकारी किसानों, जो उन्हें धूल में मिला देने को कमर कसे हैं, की नजरों में कुछ भी नहीं हैं. भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के क्रांतिकारी हिस्से के द्वारा एक बिलकुल सही चीज की गई है और उन्होंने इसे शानदार ढंग से किया है. दार्जिलिंग इलाके के भारतीय किसानों के इस क्रांतिकारी तूफान का अभिनंदन चीनी जनता आनंद विभोर होकर करती है जैसा कि दुनिया भर की मार्क्सवादी-लेनिनवादी और क्रांतिकारी जनता करती है.

यह एक अनिवार्य तथ्य है कि भारत के किसान विद्रोह करेंगे ही और भारतीय जनता क्रांति करेगी ही, क्योंकि, प्रतिक्रियावादी कांग्रेस शासन ने उनके लिए कोई दूसरा रास्ता नहीं छोड़ा है. कांग्रेस शासन के अंतर्गत भारत नाममात्र को ही स्वतंत्र है; दरअसल यह एक अर्धऔपनिवेशिक और अर्धसामंती देश के अलावा और कुछ नहीं. कांग्रेस शासन भारतीय सामंत राजकुमारों, बड़े जमींदारों और दलाल नौकरशाह पूंजीपतियों के हितों का प्रतित्रिधित्व करती है. देश के अंदर एक ओर, वह भारतीय जनता की निर्ममतापूर्वक दमन करती है और खून चूसती है, तो दूसरी ओर, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर वह अपने पुराने आका ब्रिटिश साम्राज्यवाद के अलाबे, नए मालिक अमरीकी साम्राज्यवाद और उसके अब्वल दजें का साझीदार सोवियत संशोधनयादी शासक गुट की खिदमत करता है और इस तरह राष्ट्रीय हितों को बड़े पैमाने पर बेच रहा है. अत: साम्रान्यवाद, सोवियत संशोधनवाद, सामंतवाद और दलाल नौकरशाह पूंजीवाद भारतीय जनता, खासकर मेहनतकश मजदूर-किसान जनता की पीठ पर भारी पहाड़ों की तरह लदे हैं.

कांग्रेस शासन ने पिछले कुछ सालों से भारतीय जनता के दमन और शोषण को और भी तेज कर दिया है तथा राष्ट्रीय गद्दारी की नीति अपनाई है. साल-दर-साल अकाल चक्कर काटती रहती है. खेत अनाहार और भूखमरी से मरे लोगों की लाशों से पटी है. भारतीय जनता और सववोपरि, भारतीय किसानों के लिए जीना दुर्लभ हो गया है. दार्जिलिंग इलाके के क्रांतिकारी किसान अब विद्रोह के लिए उठ खड़े हुए हैं, हिंसक क्रांति के लिए उठ खड़े हुए हैं. यह लाखों-करोड़ों जनता की भारतव्यापी हिंसक क्रांति की प्रस्तावना है. भारतीय जनता निश्चय ही इन पहाड़ों को अपनी पीठ पर से उतार फेंकेगी और पूरी मुक्ति हासिल करेगी. यह भारतीय इतिहास की आम प्रवृत्ति है जिसे धरती की कोई भी ताकत नहीं रोक सकती और न अटका सकती है.

भारतीय क्रांति को कौन-सा रास्ता अपनाना है ? यह भारतीय क्रांति की सफलता और 50 करोड़ भारतीय जनता के भाग्य को प्रभावित करने वाला एक बुनियादी सवाल है. भारतीय क्रांति को किसानों पर भरोसा करने, देहातों में आधार इलाका कायम करने, दीर्घकालीन सशस्त्र संघर्ष पर डटे रहने और शहरों को देहातों से घेर लेने तथा अंत में उनपर कब्जा कर लेने का रास्ता अपनाना चाहिए, यह माओ त्सेतुंग का रास्ता है, यह वह रास्ता है, जिसने चीनी क्रांति को विजय तक पहुंचाया, यह तमाम उत्पीड़ित राष्ट्रों और जनता की क्रांति के विजय का एकमात्र रास्ता है.

हमारे महान नेता चेयरमैन माओ त्सेतुंग ने 40 साल पहले ही बताया था, कुछ ही दिनों के अंदर चीन के मध्यवर्ती, दक्षिणी और उत्तरी प्रांतों में दसियों करोड़ किसान एक प्रबल झंझावात या प्रचंड तूफान की तरह उठ खड़े होंगे, यह एक ऐसी अद्भुत वेगवान और विध्वंसकारी शक्ति होगी कि बड़ी से बड़ी ताकत भी उसे दबा न सकेगी. किसान अपने उन समस्त बंधनों को जो अभी उन्हें बांधे हैं, तोड़ डालेंगे और मुक्ति के मार्ग पर तेजी से बढ़ चलेंगे, वे सभी साम्राज्यवादियों, युद्ध सरदारों, भ्रष्ट अफसरों; स्थानीय अत्याचारियों और बुरे शरीफजादों को यमलोक भेज देंगे.

चेयरमैन माओ ने बहुत पहले ही स्पष्ट रूप से बताया था कि किसानों का सवाल जनता को क्रांति में अतिमहत्वपूर्ण स्थान रखता है. साप्राज्यवाद और उसके पिछलग्गुओं के खिलाफ राष्ट्रीय जनवादी क्रांति में किसान मुख्य ताकत हैं, वे सर्वहारा के सबसे ज्यादा विश्वसनीय और बहुसंख्यक मित्र हैं. भारत 50 करोड़ आबादी का एक अर्धऔपनिवेशिक और अर्धसामंती देश है, जिसके पूर्ण बहुमत किसान, अगर एक बार जागृत किए जाएं, तो वे भारतीय क्रांति की एक अजेय ताकत बन जाएंगे. किसानों के साथ एकरूप होकर भारतीय सर्वहारा भारत के देहाती इलाकों में भूकपकारी परिवर्तन ले आने और थर्रा देने वाले लोकयुद्ध में किसी भी ताकतवर दुश्मन को परास्त कर देने में समर्थ होंगे.

हमारे महान नेता चेयरमैन माओ हमें सिखाते हैं – शस्त्र बल द्वारा सत्ता छीनना, युद्ध द्वारा मसले को सुलझाना, क्रांति का केंद्रीय कार्य और सर्वोच्च सर्वोच्च रूप है. क्रांति का यह मार्क्सवादी-लेनिनवादी उसूल सर्वत्र लागू होता है, चीन पर और अन्य सभी देशों पर लागू होता है.

चीनी क्रांति की तरह भारतीय क्रांति की ठोस विशेषता भी सशस्त्र प्रतिक्रांति के खिलाफ सशस्त्र क्रांति का युद्ध है. भारतीय क्रांति के लिए सशस्त्र संघर्ष ही एकमात्र सही रास्ता है; और कोई दूसरा रास्ता नहीं. गांधीवाद, संसदीय मार्ग और इस तरह के अन्य जाल भारतीय शासक वर्गों के द्वारा भारतीय जनता को पंगु बनाने के लिए इस्तेमाल किया जाने वाला अफीम है. सिर्फ हिंसक क्रांति पर विश्वास करके और सशस्त्र संघर्ष के रास्ते को अपनाकर ही भारत को बचाया जा सकता है और भारतीय जनता पूरी मुक्ति प्राप्त कर सकती है. खासकर, यह किसान जनता को निर्भीक रूप से जागृत करना, क्रांतिकारी सशस्त्र ताकतों की स्थापना और विस्तार करना, चेयरमैन माओ द्वारा खुद तैयार की हुई लोकयुद्ध की सारी रणनीति और कार्यनीति का इस्तेमाल कर साम्राज्यवादियों और प्रतिक्रियावादियों के सशस्त्र दमन पर चोट करना, जो अस्थायी तौर पर क्रांतिकारी ताकतों से ज्यादा शक्तिशाली हैं, और दीर्घकालीन सशस्त्र संघर्ष पर डटे रहना तथा कदम-ब-कदम जीत हासिल करना है.

चीनी क्रांति की विशेषताओं की रोशनी में हमारे महान नेता चेयरमैन माओ ने देहाती क्रांतिकारी आधार इलाके कायम करने की महत्ता बताई है. चेयरमैन माओ हमें सिखाते हैं – दीर्घकालीन सशस्त्र संघर्ष पर डटे रहने तथा साम्राज्यवाद और उसके पिछलग्गुओं को हराने के लिए, क्रांतिकारी कतारों के लिए पिछड़े हुए गांवों को आगे बढ़े हुए सुसंगठित आधार क्षेत्रों में बदलना, क्रांति के सैनिक, राजनीतिक, आर्थिक और सांस्कृतिक गढ़ के रूप में परिणत करना, जहां से वे अपने दुष्ट शत्रुओं से लड़ सकें जो शहरों को ग्रामीण इलाकों पर हमला करने के लिए इस्तेमाल कर रहा है, और इस प्रकार धीरे-धीरे दीर्घकालीन लड़ाई के जरिए पूरी विजय प्राप्त कर लेना अनिवार्य है.

भारत एक विशाल भूभागों वाला देश है. इसका देहाती इलाका, जहां प्रतिक्रियाबादी शासन कमजोर है, एक विशाल इलाका प्रदान करता है, जहां क्रांतिकारी स्वतंत्र रूप से कौशलों का इस्तेमाल कर सकते हैं. जब तक भारतीय सर्वहारा क्रांतिकारी मार्क्सवाद-लेनिनवाद-माओ त्सेतुंग विचारधाण कौ क्रांतिकारी लाइन पर डटे रहेंगे और अपने महान मित्र किसानों पर भरोसा रखेंगे तब तक उनके लिए विशाल पिछड़े हुए देहाती इलाकों में एक के बाद एक आगे बढ़े हुए देहाती इलाके कायम करना और एक नए किस्म की जनसेना का निर्माण करना बिलकुल संभव है; भारतीय क्रांतिकारियों को ऐसे क्रांतिकारी आधार इलाके कायम करने के दौरान चाहे जिन कठिनाइयों और चढ़ाव-उतारों का सामना करना पड़े, आंततोगत्वा वे अलग-अलग पड़े बिंदुओं से एक विशाल फैलाव में, छोटे-छोटे इलाकों से एक विस्तृत इलाके में, लहरों की एक श्रृंखला के विस्तार के समान ऐसे इलाके विकसित कर लेंगे. इस तरह शहरों और नगरों पर अंतिम रूप से कब्जा करने और राष्ट्रव्यापी जीत हासिल करने की राह साफ करने के लिए देहातों से शहरों को घेरने की स्थिति भारतीय क्रांति में धीरे-धीरे लाई जाएगी.

दार्जिलिंग में देहाती सशस्त्र संघर्ष के विकास से भारतीय प्रतिक्रांतिकारी आतंकित हो उठे हैं. बे आसन्न विपत्ति को भांप गए हैं और घबराहट से चीख रहे हैं कि दार्जिलिंग के किसानों का विद्रोह एक राष्ट्रीय विपत्ति में बदल जाएगा. साप्राज्यवाद और भारतीय प्रतिक्रियावादी दार्जिलिंग के किसानों के इस सशस्त्र संघर्ष को हजारों तरीकों से दबा देने और उसे कली की अवस्था में ही टूंग देने की कोशिश कर रहे हैं. डांगे गद्दार गुट और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के संशोधनवादी सरगने भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के क्रांतिकारियों पर और दार्जिलिंग के क्रांतिकारी किसानों पर, उनकी महान उपलब्धियों के लिए, भयंकर हमला कर रहे हैं और उन्हें बदनाम कर रहे हैं. पश्चिम बंगाल की तथाकथित गैरकांग्रेसी सरकार दार्जिलिंग के क्रांतिकारी किसानों के खूनी दमन में खुलेआम भारतीय प्रतिक्रियावादी सरकार का पक्ष ले रही है. यह अतिरिक्त सबूत पेश करता है कि ये गद्दार और संशोधनवादी साम्राज्यवाद के पालतू कुत्ते हैं तथा भारत के बड़े जर्मीदारों और पूंजीपतियों के पिछल्लगू हैं. जिसे वे गैरकांग्रेसी सरकार कहते हैं, वह इन जमींदारों और पूंजीपतियों का एक हथियार भर है.

लेकिन, साम्राज्यवादी, भारतीय प्रतिक्रियावादी और आधुनिक संशोधनवादी विध्वंस और दमन के लिए चाहे आपस में जितना भी सहयोग क्यों न करें, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के क्रांतिकारियों और दार्जिलिंग के क्रांतिकारी किसानों के द्वारा प्रज्ज्वलित सशस्त्र संघर्ष की मशाल कभी बुझ नहीं सकती. एक चिनगारी सारे जंगल में आग लगा सकती है. दार्जिलिंग की चिनगारी दावानल बनकर धधक उठेगी और भारत के विशाल इलाकों को अपने लपटों में समेट लेगी. यह ध्रुवसत्य है कि क्रांतिकारी सशस्त्र संघर्ष की प्रचंड आंधी अंततोगत्वा भारत के कोने-कोने में फैल जाएगी. यद्यपि भारतीय क्रांतिकारी संघर्ष का रास्ता लंबा और कष्टकर होगा, तथापि मार्क्सवाद-लेनिनवाद-माओ त्सेतुंग विचारधारा से निर्देशित भारतीय क्रांति निश्चय ही विजयी होगी.

Read Also –

भारत की कम्युनिस्ट पार्टी का इतिहास, 1925-1967
चारु मजुमदार के शहादत दिवस पर उनके दो सैद्धांतिक लेख
माओवादी विद्रोही बेहद उन्नत वियतनामी गुरिल्ला रणनीति से लैस है
परिष्कृत दस्तावेज : चीन एक नई सामाजिक-साम्राज्यवादी शक्ति है और वह विश्व पूंजीवाद-साम्राज्यवादी व्यवस्था का अभिन्न अंग है – भाकपा (माओवादी)
भाकपा (माओवादी) के गद्दार कोबाद पर शासक वर्ग का अविश्वास
भाकपा (माओवादी) ने पार्टी विरोधी गतिविधियों के लिए वरिष्ठ नेता कोबाड गांधी को निष्कासित किया
सत्ता जब अपने ही नागरिकों पर ड्रोन से बमबारी और हेलीकॉप्टर से गोलीबारी कर रहा है तब ‘हिंसक और खूंखार क्रांति हुए बिना ना रहेगी’ – गांधी
केन्द्रीय माओवादी नेता ‘किसान’ का साक्षात्कार
‘गैंग ऑफ फोर’ : क्रांतिकारी माओवाद की अन्तर्राष्ट्रीय नेता जियांग किंग यानी मैडम माओ
चुनाव बहिष्कार ऐलान के साथ ही माओवादियों ने दिया नये भारत निर्माण का ‘ब्लू-प्रिंट’
एक देश दो संविधान : माओवादियों की जनताना सरकार का संविधान और कार्यक्रम

प्रतिभा एक डायरी स्वतंत्र ब्लाॅग है. इसे नियमित पढ़ने के लिए सब्सक्राईब करें. प्रकाशित ब्लाॅग पर आपकी प्रतिक्रिया अपेक्षित है. प्रतिभा एक डायरी से जुड़े अन्य अपडेट लगातार हासिल करने के लिए हमें फेसबुक और गूगल प्लस पर ज्वॉइन करें, ट्विटर हैण्डल पर फॉलो करे… एवं ‘मोबाईल एप ‘डाऊनलोड करें ]

scan bar code to donate
scan bar code to donate
Pratibha Ek Diary G Pay
Pratibha Ek Diary G Pay

ROHIT SHARMA

BLOGGER INDIA ‘प्रतिभा एक डायरी’ का उद्देश्य मेहनतकश लोगों की मौजूदा राजनीतिक ताकतों को आत्मसात करना और उनके हितों के लिए प्रतिबद्ध एक नई ताकत पैदा करना है. यह आपकी अपनी आवाज है, इसलिए इसमें प्रकाशित किसी भी आलेख का उपयोग जनहित हेतु किसी भी भाषा, किसी भी रुप में आंशिक या सम्पूर्ण किया जा सकता है. किसी प्रकार की अनुमति लेने की जरूरत नहीं है.

Load More Related Articles
Load More By ROHIT SHARMA
Load More In गेस्ट ब्लॉग

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Check Also

मीडिया की साख और थ्योरी ऑफ एजेंडा सेटिंग

पिछले तीन दिनों से अखबार और टीवी न्यूज चैनल लगातार केवल और केवल सचिन राग आलाप रहे हैं. ऐसा…