‘कश्मीर फाइल्स’ की इजरायली जूरी नदाव लिपिड की टिपण्णी के बाद अन्तर्राष्ट्रीय बिरादरी के सामने इतनी ज्यादा भद्द पिट गई है कि जल्दी ही इस फिल्म को इतिहास के कबाड़ में धकेल दिया जायेगा. इसका एक कारण यह भी है कि यहूदियों ने ही नाजी हिटलर के सबसे क्रूर दंश को झेला है, भोगा है और अब वह सब इन क्रूर यादों को समेटे इजराइल में बस गये हैं. ऐसे में इजरायली फिल्मकार नदाव लिपिड ने ‘कश्मीर फाइल्स’ में बसे नाजीवाद को तुरंत पहचान लिया और दुनिया को आगाह कर दिया.
नदाव लिपिड ने आने वाले नाजीवादी खतरे से अन्तर्राष्ट्रीय समुदाय को आगाह कर अपना महती कर्तव्य पूरा कर लिया है. अब गेंद अन्तर्राष्ट्रीय समुदाय के पाले में है कि वह इस नाजीवादी खतरे से कैसे निपटती है. पत्रकार गिरीश मालवीय लिखते हैं कि – कश्मीर फाइल्स एक प्रोपेगेंडा मूवी है, ये बात हम सब जानते हैं लेकिन आखिरकार इस तरह की फिल्में बनाई क्यों जाती हैं, इनका क्या प्रभाव पड़ता है, ये जानना बहुत जरूरी है.
प्रोपेगेंडा फिल्में समाज में क्या प्रभाव पैदा करती हैं, इसे समझने के लिए आपको हिटलरकालीन जर्मनी को समझना होगा. फिल्म नाजी जर्मनी में प्रचार के सबसे महत्वपूर्ण रूपों में से एक थी क्योंकि फिल्में उस वक्त भी मनोरंजन का सबसे महत्वपूर्ण माध्यम मानी जाती थी. हिटलर स्वयं फिल्म के माध्यम को लिखित शब्द से श्रेष्ठ मानता था.
आपको जानकर आश्चर्य होगा कि जर्मन घरों के अन्दर तक घुसने के लिए नाज़ी पार्टी ने 1933 में Department of Film तक बना दिया था. हम सब देख ही रहे हैं कि भारत में भी आज बॉलीवुड में अघोषित तौर पर ऐसा एक डिपार्टमेंट बना हुआ है.
नाजी जर्मनी के इस डिपार्टमेंट ऑफ़ फिल्म का मकसद जर्मन लोगों को आक्रामक राष्ट्रवाद का सन्देश देना और यहूदी लोगों के बारे में नकारात्मक भावनाएं फैलाना था. शुरू में इस डिपार्टमेंट की सहायता से शहरों में फिल्म दिखाना शुरू किया, फिर इन्होंने धीरे-धीरे नाज़ी सिनेमा बनाना भी शुरू किया.
इस विभाग ने ‘आर्यन प्रकार के गुण, जर्मन सैन्य और औद्योगिक ताकत और नाजी के दुश्मनों की बुराइयों’ पर ध्यान केंद्रित करने वाली फिल्मों का चयन किया, फिर उनका प्रदर्शन किया. ऐसी फिल्में बनाने के लिए कम ब्याज पर ऋण प्रदान करने के लिए एक फिल्म बैंक (फिल्म क्रेडिट बैंक जीएमबीएच) की स्थापना की गई.
अक्सर ये प्रचार फिल्में जर्मनी के दुश्मनों पर केंद्रित होती है. यह डिपार्टमेंट सिनेमाघरों में ऐसी फिल्में प्रदान कर इनके शो सुनिश्चित करवाता. अगला चरण स्थानीय नाजी नेता संभालते. दर्शकों को लाने की जिम्मेदारी उनको ही दी जाती. जैसे प्रोपगैंडा फिल्म ‘कश्मीर फाइल्स’ को टैक्स फ्री किया गया, वैसे ही नाजीकालीन जर्मनी में अनेक प्रोपेगेंडा मूवी को टैक्स फ्री किया गया था.
अनेक फिल्मों का निर्माण हुआ. लेनी राइफेनस्टाहल की डेस विलेंस (विल की जीत) और डेर हिटलरजंज क्यूक्स (हिटलर यूथ मेंबर क्यू) जैसी फिल्मों ने नाजी पार्टी और उसके सहायक संगठनों का महिमामंडन किया. The Wandering Jew नामक एक फिल्म थी जो की 1940 में आई थी और यहूदी लोगों को बुरा दिखाती थी. कुल मिलाकर एक हजार के आस पास ऐसी फिल्में/डाक्यूमेंट्री बनाई गई.
भारत में भी आप ऐसा ही कुछ देख रहे हैं. कल देश के जाने-माने फिल्म समीक्षक अजय ब्रह्मात्मज की एक टिप्पणी पढ़ रहा था. अजय जी के कुछ शब्द यहां उधार ले रहा हूं ताकि आप परिस्थितियों को बेहतर ढंग से समझ सके. वे लिखते हैं –
‘फिल्मों में नफरत खासकर मुसलमानों को खलनायक, दानव और हिंसक रूप में चित्रित करने का अभ्यास पिछले कुछ सालों में तेज हुआ है. दशकों तक नायक का दोस्त रहा मुसलमान किरदार अब खलनायकों के समूह का हिस्सा हो गया है. काल्पनिक, ऐतिहासिक और सच्ची घटनाओं से ऐसी कहानियां जुटाई, लिखी और बनाई जा रही हैं जो वर्तमान सत्ता के हित में काम आ सके. इसे सरकारी तंत्र से बढ़ावा भी मिल रहा है.
‘2019 में आई दो फिल्मों – ‘उरीः द सर्जिकल स्ट्राइक’, ‘केसरी’ और 2020 में आई ‘तान्हाजी’- तीनों ही फिल्मों में आततायी और खलनायक मुसलमान थे. इनके खिलाफ नायक खड़ा होता है, जूझता है, जीतता है या शहीद होता है.
‘याद होगा, ‘उरी : द सर्जिकल स्ट्राइक’ का 1 मिनट 17 सेकंड का टीजर आया था तो उसमें एक वॉइसओवर सुनाई पड़ा था ‘हिन्दुस्तान के आज तक के इतिहास में हमने किसी मुल्क पर पहला वार नहीं किया. 1947, 61,71, 99… यही मौका है उनके दिल में डर बिठाने का. एक हिन्दुस्तानी चुप नहीं बैठेगा. यह नया हिंदुस्तान है. यह हिन्दुस्तान घर में घुसेगा और मारेगा भी.’
‘हम न्यू इंडिया और नया हिन्दुस्तान के बारे में लगातार सुन रहे हैं. इस फिल्म में नायक सर्जिकल स्ट्राइक के पहले पूछता है ‘हाउ इज द जोश ?’ यह संवाद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को इतना पसंद आया था कि फिल्मों के संग्रहालय के उद्घाटन में फिल्म बिरादरी को संबोधित करते हुए उन्होंने इसे दोहराया था. ‘केसरी’ फिल्म में नायक हवलदार ईसर सिंह और ‘तान्हाजी’ के नायक के बलिदान को राष्ट्रीय भावना के उद्रेक से नियोजित किया गया था.’
अब आप समझ ही गए होंगे कि वर्तमान भारत की परिस्थितियां भी हिटलरकालीन जर्मनी से अलग नहीं है. गिरीश मालवीय की यह टिपण्णी यहां खत्म हो जाती है लेकिन नदाव लिपिड की आलोचना करने वाले भारत में इजरायली राजदूत नाओर गिलोन ने भारत के संघी मिजाज का जबरदस्त पर्दाफाश किया है. उन्होंने एक मैसेज का स्क्रीनशॉट ट्वीट करते हुए कहा है कि ‘उन्हें वह ट्विटर पर मिला था. यह संदेश फिल्म ‘द कश्मीर फाइल्स’ को लेकर जारी विवाद के बीच आया. उस मैसेज में हिटलर की प्रशंसा की गई है.’ उन्होंने लिखा है –
‘Just wanted to share one of a few DMs I got in this direction. According to his profile, the guy has a PhD. Even though he doesn’t deserve my protection, I decided to delete his identifying information.’
I’m touched by your support. The mentioned DM is in no way reflective of the friendship we enjoy in 🇮🇳, including on social media. Just wanted this to be a reminder that anti-Semitism sentiments exist, we need to oppose it jointly and maintain a civilized level of discussion🙏. https://t.co/y06JJNbKDN
— Naor Gilon (@NaorGilon) December 3, 2022
भारत में इजरायल के राजदूत का यह ट्वीट यह दर्शाता है कि भारत में केन्द्र की मोदी सरकार के संरक्षण में नाजीवाद का दंश इस कदर फैल चुका है कि अब वह नदाव लिपिड के साथ साथ नाओर गिलोन को भी खुद के नफरत में समेट लेगा. नफरत की आग में यह नाजी गिरोह फिल्मकार नदाव लिपिड और राजदूत नाओर गिलोन के बीच फर्क नहीं करता. यह सबको एक साथ अपनी नफरत की आग में झोंकता है. यही कारण है कि इन नाजियों के प्रति जरा भी हमदर्दी सारी दुनिया को अंधेरे में धकेल देगा. दुनिया को नदाव लिपिड के टिप्पणी पर गौर करना होगा, नाओर गिलोन के हमदर्दी को किनारे रखकर.
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