Home गेस्ट ब्लॉग द शिप गोज डाउन विद कैप्टन !!!

द शिप गोज डाउन विद कैप्टन !!!

2 second read
0
0
193
द शिप गोज डाउन विद कैप्टन !!!
द शिप गोज डाउन विद कैप्टन !!!

सुकरात, प्राचीन ग्रीस के माने हुए दार्शनिक थे, जिनकी समाज, नीति और राजनीति पर शिक्षाओं को उनके शिष्य प्लेटो ने रिपब्लिक नाम की किताब में संकलित किया.

सुकरात शिष्यों से पूछते हैं कि आप एक शिप में हैं. एक नेविगेटर है, जो दिन रात आंखें आसमान में गड़ाए रखता है, कुछ चप्पू चलाने वाले भी है. वो धूप, बारिश, ठंड में दिन रात मेहनत करते हैं. अब शिप का कैप्टन चुनने की बारी आये तो आप किसे चुनेंगे ?? ज्यादा संख्या की वजह से चप्पू चलाने वाला या नेविगेटर ??

क्या चप्पू चलाने वाले को मालूम है कि शिप किस तरफ ले जाना है ?

डेमोक्रेसी अराजकता का सुखद रूप है- सुकरात ने कहा.

उन्होंने कई तरह की गवरनेंट के बारे में विश्लेषण दिया. अभी सीजर का दौर नहीं आया था और रोम तथा ग्रीस में एक एरिस्टोक्रेसी थी. इसका मतलब शिक्षित, राजकीय मसलों में समझ रखने वाले कुलीन लोग बहस और राजकर्म भी भागीदारी करते हुए अपने आपको बड़ी जिम्मेदारियों के लिए तैयार करते.

आपस में वोटिंग से लीडर चुनते, जो निर्धारित समय तक काम करता, पर सबके सलाह मशवरे से. यह गवरनेंस के एक्सपर्ट्स द्वारा, गवर्न करने की व्यवस्था थी.

पर सुकरात का मानना था कि एरिस्टोक्रेट्स अपनी पोजिशन्स के कारण धनी होते जाएंगे. फिर अधिक धन के लिये भ्रष्ट होते जाएंगे. सत्ता का खुलापन, खत्म होकर, कुछ लोगों के हाथ सीमित हो जाएगी. इस तरह ओलीगोर्की बन जाएगी.

ओलीगोर्की में समाज में विषमता बढ़ेगी, असंतोष बढ़ेगा और इससे डेमोक्रेसी जन्म लेगी. डेमोक्रेसी में हर व्यक्ति को वोट का अधिकार मिलेगा. जो अशिक्षित है, अर्धशिक्षित है, जो भ्रमित है, जो गुस्से में है, जो डरा हुआ है, जिसे लालच दिया गया है – हर व्यक्ति को वोट का अधिकार. यह अराजकता को आमन्त्रण है.

सुकरात फिर एक उदाहरण देते हैं.

एक व्यापारी और एक डॉक्टर दोनों ही प्रत्याशी हैं. व्यापारी कहेगा- देखो, वो डॉक्टर तुम्हें परहेज को कहता है, दर्द देता है, तुम्हें कसरत को कहता है.

मैं तुम्हें अपने मन की करने दूंगा, जो चाहो खाओ, पहनो, आराम करो. लोग प्रत्याशी के रूप, रंग, भाषण कला, उसके वैभव, किस्सेबाजी से प्रभावित होकर वोट देते हैं, जिससे अयोग्य हाथों में सत्ता चली जाती है.

दार्शनिक, वैज्ञानिक, अर्थशास्त्री किनारे कर दिए जाते हैं. शासन लोकप्रियता को गवरनेंस मान लेता है, जो अराजकता पैदा करती है. मगर यह अराजकता चुनी हुई है, इसलिये लोग इसमें सुख पाते हैं.

सुकरात के अनुसार अंततः डेमोक्रेसी एक टोटलेरियन तानाशाही में बदल जाती है. लोगों के बीच तमाम कठिन समस्याओं का आसान सुझाव बताने वाला एक डेमीगॉड उठ खड़ा होता है. वह तमाम सत्ता अपने हाथ मे ले लेता है. इस तरह डेमोक्रेसी ही तानाशाही का मार्ग प्रशस्त करती है.

भारत की डेमोक्रेसी, किस अवस्था में है, यह आपकी समझ पर छोड़ता हूं. एक चीज तो तय है, हमने नेविगेटर की जगह एक चप्पू चलाने वाले को कैप्टन चुना है.

वह डेमीगॉड, खुद को बचाने के लिए शिप डुबाने को उद्यत है. और हम इस अराजकता में सुख महसूस कर रहे हैं इसलिए कि ये अराजकता हमने ही चुनी है. सो, अवर शिप…इज गोइंग डाउन विद कैप्टन !!!

  • मनीष सिंह

Read Also –

भारतीय लोकतंत्र का पतनकाल है मोदी राज – फाइनेंशियल टाइम्स
मैंने इस देश के लोकतंत्र का जो भयानक चेहरा देखा है उससे मुझे अब किसी पर भरोसा नहीं रहा – हिमांशु कुमार
भारतीय लोकतंत्र पूंजी के हाथों का खिलौना
अदानी के बाद वेदांता : क्या लोकतंत्र, क्या सत्ता और क्या जनता–सब इस पूंजीवाद के गुलाम हैं
धार्मिक उत्सव : लोकतंत्र के मुखौटे में फासिज्म का हिंसक चेहरा
कटघरे में खड़े सुकरात…

प्रतिभा एक डायरी स्वतंत्र ब्लाॅग है. इसे नियमित पढ़ने के लिए सब्सक्राईब करें. प्रकाशित ब्लाॅग पर आपकी प्रतिक्रिया अपेक्षित है. प्रतिभा एक डायरी से जुड़े अन्य अपडेट लगातार हासिल करने के लिए हमें फेसबुक और गूगल प्लस पर ज्वॉइन करें, ट्विटर हैण्डल पर फॉलो करे… एवं ‘मोबाईल एप ‘डाऊनलोड करें ]

scan bar code to donate
scan bar code to donate
Pratibha Ek Diary G Pay
Pratibha Ek Diary G Pay
Load More Related Articles
Load More By ROHIT SHARMA
Load More In गेस्ट ब्लॉग

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Check Also

कामरेडस जोसेफ (दर्शन पाल) एवं संजीत (अर्जुन प्रसाद सिंह) भाकपा (माओवादी) से बर्खास्त

भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) ने पंजाब और बिहार के अपने कामरेडसद्वय जोसेफ (दर्शन पाल…