कृष्णकांत
गृहमंत्री एक सरकारी चैनल को फिक्स टाइप का इंटरव्यू देते हैं. उनसे उसी वक़्त की सबसे भयानक घटना के बारे में कोई सवाल नहीं पूछा जाता. अपने इंटरव्यू का बड़ा हिस्सा वे प्रधानमंत्री की तारीफ में खर्च करते हैं, फिर आरोप लगाते हैं कि प्रधानमंत्री बहुत लोकतांत्रिक हैं, ये तो बुद्धिजीवी लोग हैं जो उनकी छवि खराब कर रहे हैं.
पूरी दुनिया जानती है कि भारत में इस समय डेढ़ लोगों की सरकार है. एक आदमी ही सरकार है, वही पार्टी है, वही सबकुछ है और बाकी बचा आधा आदमी अपने मंत्रालय पर उठे सवालों को एड्रेस करने की बजाय प्रधानमंत्री की तारीफ करता है. पूरे मंत्रिमंडल का मुख्य काम है ट्विटर पर प्रधानमंत्री की तारीफ करना और उन्हें बात-बात पर ‘थैंक यू’ बोलना. यही लोकतंत्र है ?
जो प्रधानमंत्री बिना किसी को भनक लगे 5-5 मुख्यमंत्री बदल देते हैं, वही प्रधानमंत्री तमाम गंभीर आरोपों के बाद भी एक गृह राज्यमंत्री को नहीं हटाते लेकिन गृहमंत्री कहते हैं कि वे बेहद लोकतांत्रिक हैं और जनता की आवाज को सुनते हैं. और फिर कहते हैं कि बुद्धिजीवी छवि खराब कर रहे हैं !
जिस तरह ये सरकार चल रही है, जिस तरह आप व्यवहार कर रहे हैं, उसके बाद क्या बुद्धिजीवियों को कुछ करने की जरूरत है ? प्रधानमंत्री और आप दोनों मिलकर उनकी छवि खुद ही खराब कर हैं. जनता के बीच बना तिलिस्म टूट रहा है और विकास पुरुष का ग्राफ तेजी से नीचे आ रहा है. आप यकीन मानिए, बुद्धिजीवी नहीं, आप खुद ये काम कर रहे हैं.
3000 किलो हेरोइन पर भारी तीन ग्राम गांजा
तीन ग्राम गांजे पर गदर काटने वाला गोदी मीडिया 3000 किलो हेरोइन पर खामोश क्यों हैं ? देश के लिए ज्यादा बड़ा खतरा कौन-सा है ? एक केस है जिसमें कुछ लड़के ड्रग्स का सेवन कर रहे थे. एक केस है जिसमें विदेश से भारतीय सीमा में 21000 करोड़ की ड्रग्स घुसाई जा रही थी. यह पड़ोसी देशों की साजिश हो सकती है कि वे भारतीय युवाओं को बर्बाद करने के लिए नशाखोरी में धकेलने के लिए ड्रग्स पेनेट्रेट कर रहे हों. मीडिया को आखिर सांप क्यों सूंघ गया है ? क्या सिर्फ इसलिए क्योंकि यह खेप अडानी के पोर्ट पर पकड़ी गई है ?
यह दुनिया की लार्जेस्ट कंसाइनमेंट थी. क्या इतनी बड़ी खेप तस्करी में लाई गई या फिर इसमें कुछ बड़े लोग शामिल हैं ? क्या इसमें पोर्ट के अधिकारियों की भी मिलीभगत थी ? बिना प्रशासनिक आश्वासन के इतनी बड़ी खेप कैसे मंगाई जा सकती है ? क्या यह अकेली खेप थी ? क्या गारंटी है कि ऐसी खेप और नहीं आई होंगी ? इसे कौन मंगा रहा है ? इसे कौन भेज रहा है ? क्या इसके पीछे कुछ एक व्यक्ति हैं या यह अंतरराष्ट्रीय रैकेट के तहत हो रहा है ? क्या यह कॉरपोरेट का खेल है या इसमें नेता भी शामिल हैं ? मीडिया इन सवालों के जवाब क्यों नहीं ढूंढ रहा है ?
इस केस की जांच कर रही एनआईए ने मीडिया को बताया है कि दिल्ली, नोएडा में पांच जगह छापेमारी करके उसे कुछ सबूत हाथ लगे हैं. इस केस में चेन्नई, अहमदाबाद, गांधीधाम, और मांडवी में भी छापेमारी हो चुकी है. चेन्नई का एक कपल दिल्ली से अरेस्ट हुआ है. ड्रग्स का ये कंसाइनमेंट आंध्रप्रदेश की किसी कंपनी के नाम आया था. इसका मतलब है कि इसका नेटवर्क संभवत: पूरे भारत में हो सकता है. क्या इतने बड़े खतरे पर पर्दा डालने के लिए आर्यन खान का केस उछाला गया ?
सब जानते हैं कि मुंबई में ड्रग्स का कारोबार धड़ल्ले से चलता है और अमीरजादे इसमें फंसे हुए हैं. यह तो ऐसा है कि किसी खौफनाक हत्याकांड को नजरअंदाज कर दिया और पुलिस किसी ऐसे शख्स को तलाशने लगे जिसने खुद ही अपना नाखून काट लिया हो !
आना था काला धन आ गया पैंडोरा
स्विस बैंक से काला धन आना था. हर भारतीय के अकॉउंट में 15-15 लाख जाना था. स्विस बैंक वाला तो आया नहीं, उल्टा पनामा, पैराडाइज और पैंडोरा पेपर्स और आ गए, जो बताते हैं कि बड़ी संख्या में अमीर भारतीय भारत का धन चोरी करके विदेश में जमा कर रहे हैं. हाल ही में खबरें आई थीं कि 2020 तक स्विस बैंक में जमा भारतीयों की रकम में इजाफा हुआ है.
जो सरकार काला धन लाने के वादे के साथ सत्ता में आई थी, वह हमारी आपकी अम्मा के तकिया के नीचे और पुरानी संदूक में काला धन खोजने लगी. विदेश से काला धन लाने की तो छोड़िए, यहां से बैंक लूटकर कई धनपशु विदेश भाग गए, जिन्हें आदरपूर्वक जाने दिया गया.
अब हालत ये है कि पूरे देश की इकॉनमी ढह चुकी है और अब घर का बर्तन-भाड़ा, टीन-टाँगड़ा, खेत-खलिहान सब बेच कर खर्चा चलाया जा रहा है. कितना अद्भुत विकास है कि पूरी एयरलाइन बेचकर प्रधानमंत्री ने अपने लिए दुइ ठो जहाज खरीद लिया. जनता से कह रहे थे चप्पल वाले को हवाई जहाज में सैर कराएंगे, चप्पल वालों का चप्पल तो पैदल चलकर घिस गया, उनसे उनकी बसें और ट्रेनें भी छीनी जा रही हैं. अब प्रधानमंत्री 8000 करोड़ के विमान से उड़ेंगे और आप बजाइए ताली-थाली.
गोसेवा ऐसी कि रूह कांप जाए
मध्य प्रदेश की ये खबर देखकर मेरा दिमाग हिल गया. रीवा में करीब डेढ़ सौ गायों को हजारों फीट गहरी खाई धकेल दिया गया. गहरे खाई में गिरने से इन गायों की हड्डियां चकनाचूर हो गईं. इनमें से 30 गायों की मौत हो गई, 50 के करीब गाय जीवन और मौत से जूझ रही हैं. गायों की हड्डियां टूट गई हैं और खाई इतनी गहरी है कि उन्हें बाहर निकालना संभव नहीं है. वे एक एक कर मर रही हैं.
खबर कहती है कि इस निर्मम घटना को अंजाम देने वाले दरिंदों को बीजेपी के बड़े नेताओं का संरक्षण प्राप्त है. पुलिस ने आरोपियों के खिलाफ मामूली धाराओं में एफआईआर की और 10 दिन बाद तक किसी को पकड़ा नहीं गया है क्योंकि आरोपी बीजेपी नेताओं के करीबी हैं. बीजेपी और उसके सहयोगी चिंटू दलों के गुंडे आए दिन गोसेवा के लिए उपद्रव करते रहते हैं. मध्य प्रदेश में गोसेवक सरकार है. गायों के लिए मंत्रालय है.
दरअसल, गाय इनकी राजनीति के सबसे कारगर हथियारों में से एक है. सदियों से चली आ रही पशुपालन की व्यवस्था को नष्ट कर दिया गया. सरकारी गोसेवा का नाटक हुआ. गोशाला चलाने के नाम पर जमीन और पैसे हड़पने का खेल चल रहा है और हर जगह गोशालाओं में गायें चारा पानी बिना मर रही हैं. आये दिन गोशालाओं में बड़ी संख्या में गायों के मरने की खबरें आती हैं.
इनकी गोसेवा की राजनीति का परिणाम ये हुआ कि पशुओं की खरीद बिक्री बंद हो गई. गाय पर आधारित अर्थव्यवस्था पूरी तरह ध्वस्त हो गई. लोग गायों को आवारा छोड़ने लगे. पूरे यूपी के गांव आवारा जानवरों से परेशान हैं. वे खेती नष्ट करते हैं, सड़कों पर हादसे की वजह बनते हैं. फसल बचाने के लिए किसान खेतों को ब्लेड वाले तार से घेर देते हैं, जिनसे गायें कट जाती हैं. उनका घाव सड़ता है, कुछ दिन बाद वे मर जाती हैं.
जब मैं पैदा हुआ तो मेरे बाबा मेरे लिए एक गाय लाए थे ताकि मेरे लिए शुद्ध दूध उपलब्ध हो. जब मैंने होश संभाला, तब तक उसकी तीन और बेटियां हो चुकी थीं. उसका नाम उम्र के लिहाज से बुढ़नकी पड़ गया था. वह बेहद सीधी थी. मुझे उससे खासा लगाव था. एक बार मैं स्कूल से लौटा तो पाया कि उसकी मौत हो चुकी है. मैं बहुत रोया. मुझे लग रहा था कि वह चरने गई होगी और लौट आएगी.
हमारे गांव में लोग बूढ़ी गायों को बेचते नहीं थे. अपने खूंटे पर ही उसका मरना ठीक समझा जाता था. किसान परिवारों में गाय परिवार के सदस्य जैसी होती हैं. मेरे पिता गायों के लिए भी रोटी बनवाते थे. मैंने गायों की पूजा देखी है, उनका पालन पोषण देखा है, लेकिन मैंने अपने जीवन में गायों की ऐसी दुर्दशा कभी नहीं देखी.
इनके विरोध का आधार ये था गायों को कसाईघर में नहीं कटना चाहिए तो फिर खाईं में धकेलकर मारने से देवता प्रसन्न होते हैं ? उनके चारा बिना गोशालाओं में मरने से देवता प्रसन्न होते हैं ? इनकी गोसेवा नफरत से भरे पाखंड के सिवा और कुछ नहीं है. राजनीति ने जो गोसेवा शुरू की थी, वह दरअसल गोहत्या है.
हमारे गांव में किसी के हाथ से गाय मर जाए तो समाज उसे गोहत्या का दोषी मानकर सजा देता है. इन नेताओं को क्या सजा दी जाएगी जिन्होंने करोड़ों जानवरों की जिंदगी नरक बना दी है. मेरी यह धारणा हर दिन और पुख्ता हो जाती है कि भाजपा, खासकर नरेंद्र मोदी ने जिसके भी कल्याण का नारा लगाया, उसका बेड़ा गर्क कर दिया.
हम दो, हमारे दो. बाकी लोग आत्मनिर्भर
जिस वक्त देश में तकरीबन 23 करोड़ लोग गरीबी रेखा से नीचे चले गए हैं, करोड़ों लोगों की नौकरी चली गई है, उस वक्त गौतम अडानी पिछले एक साल से रोजाना 1002 करोड़ की कमाई रहे हैं. पिछले साल यानी 2020 में गौतम अडानी की संपत्ति में करीब 50 अरब डॉलर का इजाफा हुआ जो कि एक साल में दुनिया भर के किसी भी अरबपति की तुलना में सबसे ज्यादा था.
नरेंद्र मोदी के 2014 में सत्ता में आने के बाद से लेकर नवंबर 2020 तक अडानी की संपत्ति में 230% का इजाफा हुआ. पिछले एक साल में अडानी की संपत्ति में 261 फ़ीसदी का इजाफा हुआ. अब उनकी संपत्ति बढ़कर 5,05,900 करोड़ रुपये हो गई है. एक साल पहले अडानी की संपत्ति 1,40,200 करोड़ रुपये थी.
जनवरी 2021 में बीजेपी सांसद सुब्रमण्यन स्वामी ने आरोप लगाया कि ‘अडानी ग्रुप के पास बैंकों का 4.5 लाख करोड़ रुपये एनपीए के रूप में बकाया है. हर दो साल में इस समूह की संपत्ति दोगुनी होती जा रही है, फिर भी वे जिन बैंकों का कर्ज लिए हुए हैं उसका कर्ज क्यों नहीं चुका रहे हैं ? हो सकता है कि जल्दी ही जिस तरह उन्होंने छह एयरपोर्ट खरीदे हैं, उसी तरह उन सभी बैंकों को भी खरीद लें जिनके वे कर्जदार हैं.’
जिस समय आजाद भारत का सबसे भयानक पलायन हुआ और लोगों को खाने के लाले पड़ गए, बिजनेस व्यापार सब ठप था, उस दौरान भी अडानी की संपत्ति बुलेट ट्रेन हो गई थी. जब सारी सर्विसेज, व्यापार और उद्योग बंद थे तो अंबानी-अडानी के पास पैसा आ कहां से रहा था ? (ये सवाल मेरी अज्ञानता का नतीजा हो सकता है.)
पिछले साल में भारत में 179 नए लोग अरबपतियों की सूची में शामिल हुए हैं. कोरोना संकट के दौरान देश में अरबपतियों की संख्या 1,000 के पार चली गई. सार संक्षेप ये है कि जिस दौरान जनता तेजी से गरीब हो रही है, मुट्ठी भर लोग तेजी से अमीर हो रहे हैं. यही आज के विकास की सच्चाई है. सार्वजनिक नारा है- ‘सबका साथ, सबका विकास’. लेकिन गुप्त नारा है- ‘हम दो, हमारे दो. बाकी लोग आत्मनिर्भर बनो’.
देश भर में निकलेंगी शहीद किसानों की कलश यात्राएं
जिन्होंने अंग्रेजों की तरह दमन करना सीखा है, उन्हें अंग्रेज बहादुर के अंत से ये भी सीखना चाहिए था कि जनता ठान ले तो हर दमन और दमनकारी का अंत तय है. गांधी के समय चंपारण सत्याग्रह हुआ, बारदोली सत्याग्रह हुआ, असहयोग आंदोलन हुआ, दूसरे कई बड़े आंदोलन हुए. इस दौरान दमन भी साथ-साथ चल रहा था. लेकिन हर दमन के बाद आंदोलन तेज होता गया और आखिरकार आंदोलन की जीत हुई. यही जनता की ताकत है.
इस आंदोलन में कई सौ किसान मारे जा चुके हैं. पांच किसानों को कुचल देने से आंदोलन खत्म नहीं होगा. यह और बढ़ने जा रहा है. लखीमपुर खीरी पर हर व्यक्ति को साफ दिख रहा है कि सरकार आरोपी को बचा रही है. न्याय मिलने की उम्मीद बेहद क्षीण है. किसान क्या करें ? ऐसे में संयुक्त किसान मोर्चा ने इसे लेकर भी आंदोलन छेड़ने की तैयारी कर ली है.
18 अक्टूबर को छह घंटे तक रेल रोको आंदोलन होगा. 15 अक्टूबर को प्रधानमंत्री और गृहमंत्री का पुतला दहन होगा. 26 अक्टूबर को लखनऊ में एक महापंचायत होगी. जब तक गृहराज्य मंत्री इस्तीफा नहीं देते तब तक देश भर में आंदोलन जारी रहेगा और पूरे देश में शहीद किसानों की कलश यात्राएं निकाली जाएंगी.
Read Also –
[प्रतिभा एक डायरी स्वतंत्र ब्लाॅग है. इसे नियमित पढ़ने के लिए सब्सक्राईब करें. प्रकाशित ब्लाॅग पर आपकी प्रतिक्रिया अपेक्षित है. प्रतिभा एक डायरी से जुड़े अन्य अपडेट लगातार हासिल करने के लिए हमें फेसबुक और गूगल प्लस पर ज्वॉइन करें, ट्विटर हैण्डल पर फॉलो करे…]