युद्ध के डर से
मैं ताउम्र उससे दूरी बनाए रखा
और इस दूरी बनाए रखने के युद्ध में
असमय मारा गया
टेलिविज़न स्क्रीन पर
अग्निगर्भा जहाज़ों को
आग थूकते हुए देख कर
रोमांचित होता रहा
और अपनी मृत मां के शरीर से लिपटे हुए
बच्चे के क्रंदन पर आंसू भी बहाता रहा
ठीक जिस समय पर तुम
मेरी बेहिसी और संवेदना के बीच उलझ कर
मुझे मनुष्य की एक निश्चित कोटि में डालने की
कोशिश कर रहे थे
ठीक उसी समय पर मैं
अपने घर की मरम्मत में व्यस्त था
इस सोच के साथ कि
सारे बमों के बाप की जद से बाहर है मेरा घर
साथ साथ यह भी सोच रहा था कि
किस उम्मीद के साथ वे बनाते होंगे अपना घर
जिनको इतनी बड़ी दुनिया में
सिर्फ़ ग़ज़ा या बेरुत की जलती हुई ज़मीन पर
मिली है एक बित्ता जगह
क्या वे घर बनाते हुए सोचते होंगे कि
क्यों उनके घरों की शक्लें
ताबूत से मिलती जुलती नहीं हैं
जबकि उन्हें तो किसी भी क्षण
दिन हो या रात
सुबह हो या शाम
दफ़्न हो जाना है उन्हीं घरों में
हो सकता है कि मेरे इस शान्तिप्रिय देश में भी
एक दिन कोई आकर मुझे बताए कि
मेरे घर की लाईब्रेरी में
बारूदी सुरंगों की खबर मिली है
जैसे कि ग़ज़ा के घरों के नीचे
अक्सर मिल जाते हैं
हमास के लड़ाकों के बंकर
और इसी बहाने ढहा दिया जाए मेरा घर
बम या बुलडोज़र से
यह तो हुक्मरानों की मर्ज़ी है
अगर मैं बच गया तो
मैं भी भाग कर छुप जाऊंगा किसी जंगल में
या किसी अन्य देश में
(मौत से भागते हुए आदमी के लिए
कोई सरहद मायने नहीं रखता है और
ये बात तुम नहीं समझोगे)
अपनी बारूदी किताबों की स्मृतियों के साथ
एक दिन
तुम्हें ज़रूर याद दिलाऊंगा कि
सबसे ख़तरनाक हथियार
किसी फ़ैक्ट्री में नहीं बनता है
सबसे ख़तरनाक हथियार
आदमी का दिमाग़ होता है
जो तुम्हारी खानातलाशी की जद के बाहर
हमेशा रहा है और हमेशा रहेगा.
- सुब्रतो चटर्जी
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