Home लघुकथा देश की बहुसंख्यक जनता मोदी सरकार के कारनामे से अनजान

देश की बहुसंख्यक जनता मोदी सरकार के कारनामे से अनजान

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आज एक इलाहाबादी चचा मिल गए. माथे पर चन्दन लगाए, पान खाए एकदम भौकाल टाइट. इलाहाबाद के एक अस्पताल में गार्ड हैं. थोड़ी बहुत जान-पहचान और हालचाल हुई. इसके बाद अचानक यूं ही बोले, ‘इस बार किसका माहौल है ?’

हमने कहा, ‘आप बताइए किसे आना चाहिए ?’

चचा बोले, ‘माहौल तो बहुत टाइट लग रहा है लेकिन मुझे लगता है कि भाजपा को आना चाहिए.’

मैंने पूछा, ‘भाजपा को क्यों आना चाहिए ?’

चचा- ‘आप बताइए कि भाजपा को क्यों नहीं आना चाहिए ?’

मैंने कहा, ‘क्योंकि हम आप जिस इलाहाबाद के हैं, वह कभी आईएएस और आईपीएस बनाने की फैक्ट्री के नाम से मशहूर था, आज वहां बेरोजगार नौजवान आत्महत्या कर रहे हैं. क्योंकि पिछले पांच साल में एक भी नई भर्ती नहीं निकली. क्योंकि किसानों का खेत छुट्टा जानवर चर रहे हैं. क्योंकि जिस पार्टी ने 70 लाख नौकरी का वादा किया था, उसने 16 लाख नौकरियां छीन लीं…’

चचा ने बात काट दी- ‘क्या बात कर रहे हैं ? छीन कैसे ली ?’

मैंने उन्हें भास्कर में छपी खबर खोलकर दिखाई. चचा ने एक नजर डाली और बोले, ‘ये तो बहुत गलत है.’

मैंने कहा, ‘और भी बहुत कुछ गलत हो रहा है, कहिए तो बताएं ?’

चचा थोड़ा विस्मय से बोले, ‘क्या ?’

मैंने कहा, ‘आपको एबीजी शिपयार्ड घोटाले के बारे में पता है ? 28 बैंकों का 23 हजार करोड़ रुपये लूटा गया है ?’

‘ये क्या है ?’

‘ये एक कंपनी है जो जहाज बनाती है. 28 बैंकों से 23 हजार करोड़ रुपये लोन ली और सब हड़प गई.’

‘अच्छा !’

‘पिछले सात साल में, जबसे मोदी जी प्रधानसेवक हैं, भारत के बैंकों का साढ़े पांच लाख करोड़ रुपये का घोटाला हो चुका है. ये सारे पैसे डूब चुके हैं. बड़े बड़े पूंजीपति माल्या, चौकसी, नीरव मोदी जैसे लोग हजारों करोड़ लेके निकल गए विदेश…!’

चचा लगभग चिल्ला उठे, ‘क्या क्या ? कितने करोड़ ?’

मैंने दोहराया, ‘लगभग साढ़े पांच लाख करोड़.’

चचा ने अपना दाहिना हाथ अपने माथे पर जोर से मारा और बोले, ‘सत्यानाश !’

मैंने कहा, ‘ठीक है चचा चलते हैं. आपकी जिंदगी जैसी भी थी, लगभग गुजर चुकी है लेकिन अगली पीढ़ी का भविष्य बर्बाद नहीं होना चाहिए. सब लुट रहा है.’

चचा कुछ बोले नहीं, बस हैरानी से मुझे देखते रहे.

मुझे लगता है कि देश की बहुसंख्यक जनता मोदी सरकार के कारनामे नहीं जानती. इसे जनता को ठीक ढंग से बताने की जरूरत है.

  • कृष्णकांत

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