Home लघुकथा पुण्य आत्मा को साधु का ज्ञान

पुण्य आत्मा को साधु का ज्ञान

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प्रचीन भारत भी धार्मिक अंधविश्वासों के खिलाफ वैज्ञानिक विचारधारा के बीच के संघर्ष को बखूबी निभाया है. इसमें लोगों को जागरूक करने के लिए कहानियों का भरपूर सहयोग लिया है. ऐसी ही एक कहानी है, जिसमें धार्मिक कठ्ठमुल्ला के खिलाफ संघर्ष को स्थापित किया गया है.

एक बार एक बहुत ही पुण्य आत्मा अपने परिवार सहित तीर्थ के लिए निकला. कई कोस दूर जाने के बाद पूरे परिवार को प्यास लगने लगी. ज्येष्ठ का महीना था, आस पास कहीं पानी नहीं दिखाई पड़ रहा था. उसके बच्चे प्यास से ब्याकुल होने लगे. समझ नहीं आ रहा था कि वो क्या करे. अपने साथ लेकर चलने वाला पानी भी समाप्त हो चुका था.

एक समय ऐसा आया कि उसे भगवान से प्रार्थना करनी पड़ी कि ‘हे प्रभु अब आप ही कुछ करो मालिक…’, इतने में उसे कुछ दूर पर एक साधू तप करता हुआ नजर आया. व्यक्ति ने उस साधू से जाकर अपनी समस्या बताई. साधू बोले – ‘यहां से एक कोस दूर उत्तर की दिशा में एक छोटी दरिया बहती है. जाओ जाकर वहां से पानी की प्यास बुझा लो.’

साधू की बात सुनकर उसे बड़ी प्रसन्नता हुई और उसने साधू को धन्यवाद बोला. पत्नी एवं बच्चों की स्थिति नाजुक होने के कारण वहीं रुकने के लिया बोला और खुद पानी लेने चला गया.

जब वो दरिया से पानी लेकर लौट रहा था तो उसे रास्ते में पांच व्यक्ति मिले जो अत्यंत प्यासे थे. पुण्य आत्मा को उन पांचों व्यक्तियों की प्यास देखी नहीं गई और अपना सारा पानी उन प्यासों को पिला दिया. जब वो दोबारा पानी लेकर आ रहा था तो पांच अन्य व्यक्ति मिले जो उसी तरह प्यासे थे. पुण्य आत्मा ने फिर अपना सारा पानी उनको पिला दिया.

यही घटना बार बार हो रही थी और काफी समय बीत जाने के बाद जब वो नहीं आया तो साधू उसकी तरफ चल पड़ा. बार-बार उसके इस पुण्य कार्य को देखकर साधू बोला – ‘हे पुण्य आत्मा तुम बार-बार अपना बाल्टी भरकर दरिया से लाते हो और किसी प्यासे के लिए ख़ाली कर देते हो. इससे तुम्हें क्या लाभ मिला ?’ पुण्य आत्मा ने बोला – ‘मुझे क्या मिला ? या क्या नहीं मिला इसके बारें में मैंने कभी नहीं सोचा. पर मैंने अपना स्वार्थ छोड़कर अपना धर्म निभाया.’

साधू बोला – ‘ऐसे धर्म निभाने से क्या फ़ायदा जब तुम्हारे अपने बच्चे और परिवार ही जीवित ना बचे ? तुम अपना धर्म ऐसे भी निभा सकते थे जैसे मैंने निभाया…’

पुण्य आत्मा ने पूछा – ‘कैसे महाराज ?’

साधू बोला – ‘मैंने तुम्हें दरिया से पानी लाकर देने के बजाय दरिया का रास्ता ही बता दिया. तुम्हें भी उन सभी प्यासों को दरिया का रास्ता बता देना चाहिए था ताकि तुम्हारी भी प्यास मिट जाये और अन्य प्यासे लोगों की भी. फिर किसी को अपनी बाल्टी ख़ाली करने की जरुरत ही नहीं.’  इतना कहकर साधू अंतर्ध्यान हो गया.

साधु की बात पुण्य आत्मा के समझ में आ गया और अपनी गलती का अहसास भी. भूखे को रोटी देने के बजाए रोटी अर्जित करने का रास्ता बताना चाहिए न कि अपनी रोटी देकर खुद और अपने परिवार को भूखा मारना चाहिए.

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ROHIT SHARMA

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