8 अक्टूबर से इजराइल द्वारा गाजा में किए जा रहे नरसंहार के कलेजा चीरने वाले आंकडे याद रखे जाने चाहिएं. ज़ायनवादी फ़ासिस्टों और उनके अमेरिकी मालिकों का ये घिनौना चेहरा, छुपने नहीं दिया जाना चाहिए. 20,000 बच्चों समेत, कुल 40,000 लोगों का क़त्ल; (मलबे में दबे लोगों को मिलाकर, लगभग 1,75,000); इनके ढाई गुना ज़ख़्मी; मारे गए पत्रकार 165, मारे गए संयुक्त राष्ट्र संघ के कर्मचारी/ अधिकारी 190.
कुल 40 किमी लम्बी और 9 किमी चौड़ी, मतलब दिल्ली के क्षेत्रफल से आधी, गाजा पट्टी में मौजूद, कुल 36 अस्पतालों में से 34 पूरी तरह तबाह हो चुके हैं. सभी 19 उच्च शिक्षा संस्थान और सैकड़ों स्कूल, मलबे के ढेर में बदल गए, जिनमें 555 छात्र और 100 अध्यापक दबकर मर गए. कुल 1,75,000 बिल्डिंगें जमींदोज हो गईं. कुल 23 लाख आबादी का 80% हिस्सा, 5 बार, यहां से वहां भगाया गया. सुरक्षित जगह बोलकर उन्हें जहाँ ठहरने को बोला गया, वहां भी भीषण बमबारी हुई. मलबा हटाने में 40 साल लगेंगे. मौत के साथ ही हर दिन फिलिस्तीनियों को ज़लील किया गया.
इजराइल, गाजा पर कुल 70,000 टन बम गिरा चुका, जो दूसरे विश्वयुद्ध में, जर्मनी तथा इंग्लैंड पर हुई बमबारी से कहीं ज्यादा है. पीने के पानी, सीवर की व्यवस्था, बर्बाद कर दी गई हैं. भुखमरी तथा महामारी को हथियार की तरह इस्तेमाल किया जा रहा है. दुनिया का कोई नियम-क़ायदा इजराइल नहीं मानता. नेतन्याहू तथा रक्षामंत्री को युद्ध अपराधी तथा नरसंहार-सह-नस्ली सफाए का गुनहगार मानते हुए, अंतर्राष्ट्रीय क्रिमिनल कोर्ट, उनके ख़िलाफ़ गिरफ़्तारी वारंट ज़ारी कर चुकी है.
सारी दुनिया इजराइल पर थूक रही है, लेकिन कितना भी क़त्लोगारत कर ले, एक देश है, जो इजराइल को ना सिर्फ़ संरक्षण देता है, शाबाशी देता है, विनाशकारी हथियार देता है, बल्कि लगातार जंग ज़ारी रखने के लिए, उसे उकसाता है; वह है दुनियाभर में डेमोक्रेसी और मानवाधिकारों का स्वयंघोषित ठेकेदार – अमेरिका.
24 जुलाई को अमेरिकी कांग्रेस में युद्ध अपराधी नेतन्याहू की बकवास और उस पर कांग्रेस सदस्यों द्वारा 42 बार उछल-उछल कर ताली बजाना, इस शताब्दी का, अब तक का सबसे शर्मनाक मंज़र नमूद होगा. आख़िर क्यों ? ईरान के मेहमान, इस्माइल हेनिये को ईरान में क़त्ल कर देने की नृशंस वारदात के बाद ईरान के हमले से अपने सैन्य अड्डों को बचाने के डर से अमेरिकी हुक्मरान ख़ुद को अलग बता रहे हैं; ‘हमें कुछ नहीं मालूम, हमारा कोई संबंध नहीं’, लेकिन अमेरिकी विदेशमंत्री, इसके बाद भी यह कहने से नहीं चूका, ‘हम इजराइल की सुरक्षा के लिए प्रतिबद्ध हैं !! अमेरिकी हुकूमत की इस स्तर की बगैरती की वज़ह क्या है ? यह जानना, दुनिया के हर इंसाफ पसंद इंसान के लिए है.
‘अमेरिकन-इसरायली पब्लिक अफेयर्स कमेटी (AIPAC)’ क्या बला है?
अमेरिका में इजराइल लॉबी, ‘अमेरिकन-इसरायली पब्लिक अफेयर्स कमेटी (AIPAC)’ नाम से जानी जाती है. इसका पहला निशाना था इराक़. ये लोग जानते थे कि ईराक में ‘नरसंहार के हथियार’ होने की बात बक़वास है. इराक़ को बर्बाद करने की, इस घृणित लॉबी की, असली यह वज़ह थी कि सद्दाम हुसैन, फिलिस्तीन का बहुत पक्का समर्थक था. फिलिस्तीनी आज़ादी के जिन आंदोलनकारियों को इजराइल गिरफ्तार कर लेता था, सद्दाम हुसैन और उसकी सरकार उनके परिवारों की मदद करते थे.
यह बात, फिल गिराल्दी, नाम के, अमेरिकी ख़ुफ़िया एजेंसी, सीआईए के सेवानिवृत्त अधिकारी ने भी स्वीकार की है. इसी लॉबी ने, ‘एंटी सेमितिज्म’, अर्थात यहूदियों के विरुद्ध घृणा के नाम पर अमेरिका में ऐसा क़ानून पास कराया है, जिसके तहत इजराइल की कितनी भी जघन्य आपराधिक कारस्तानी का विरोध करना गैर-क़ानूनी है. अमेरिका के कुल 50 राज्यों में से 35 राज्य इस क़ानून को अपने राज्यों में लागू कर चुके हैं.
एक न्यूज़ रिपोर्ट के अनुसार इसी इजराइल लॉबी ने अभी हाल में डोनाल्ड ट्रम्प को $100 मिलियन की मदद दी है, जिसकी शर्त ये है, कि राष्ट्रपति बनने के बाद, अमेरिका, इजराइल को, समूचा फिलिस्तीन हड़पने में मदद करेगा. यह लॉबी, अमेरिकी कांग्रेस के 90% सदस्यों को रिश्वत पहुंचाती है, जिससे वे इजराइल को हर तरह की ज्यादा से ज्यादा मदद पहुंचाने के लिए, हमेशा अमेरिका पर दबाव बनाए रखें.
यह घृणित लॉबी, सिर्फ अमेरिकी राजनेताओं को ही रिश्वत नहीं खिलाती, बल्कि अख़बारों के संपादकों, पत्रकारों, बुद्धिजीवियों, प्रोफ़ेसरों को भी ये लोग पैसा खिलाते हैं, जिससे, वे, इजराइल की ख़ूनी वारदातों, नरसंहारों पर पर्दा डाले रखें, और उसके विरोधियों को ‘एंटी-सेमाईट’ (यहूदी नस्ल विरोधी), अमेरिका विरोधी ठहराते रहें.
‘इस्लामी आतंक’ नाम का हौव्वा पैदा करने, और उसे व्यापक बनाने में, इसी प्रचंड धनी लॉबी का हाथ है. इसरायली ख़ुफ़िया एजेंसी, मोसाद, अमेरिकी सांसदों, मंत्रियों की भी जासूसी करता है. कुछ दिन पहले पेंटागन के सभी फ़ोन में एक इलेक्ट्रॉनिक चिप पाई गई, अमेरिकी जांच एजेंसी, एफबीआई ने जांच शुरू भी की, लेकिन कुछ ही दिन बाद बंद कर दी गई.
आजकल, अमोस होस्टीन, नाम के एक यहूदी को, अमेरिका का पश्चिमी एशिया का विशेष दूत इसी लॉबी ने ही बनवाया है. आज जब, अरब का जन-मानस, इसरायली दक्षिणपंथी उन्मादियों की वज़ह से, यहूदियों के ख़िलाफ़ घृणा और क्रोध से उबल रहा है, तब, एक यहूदी को, शांति क़ायम करने के लिए तैनात करने का मतलब ही है, शांति क़ायम ना होने देना. लेबनान और जॉर्डन के, समूचे जल-संसाधन के संसाधनों पर क़ब्ज़ा जमाना, अब इसरायली आतंकी निज़ाम का असल मक़सद बन गया है.
1948 में वज़ूद में आने से, जून 2024 तक, अमेरिका ने, इजराइल को $280 बिलियन (1 बिलियन = 1 लाख करोड़) की मदद दी है, जिसमें से उसने, अमेरिकी सांसदों (कांग्रेस तथा सीनेट सदस्यों) को, कुल $6 बिलियन की रिश्वत खिलाई है. किसी भी व्यक्ति अथवा संस्था के व्यवसायिक हित में, सरकार पर दबाव बनाना, जिसे लॉबी करना कहा जाता है, अमेरिका में क़ानूनी गतिविधि है. इसका अर्थ हुआ कि लॉबिंग में किया गया खर्च, अर्थात कमीशन/ कट/ रिश्वत भी क़ानूनी है.
कृपया ध्यान रहे, यह रक़म, उस भारी-भरकम रक़म में शामिल नहीं है, जो अमेरिकी युद्ध सामग्री उत्पादक कॉर्पोरेट मगरमच्छ, अमेरिकी सांसदों, राष्ट्रपति, उप-राष्ट्रपति, मंत्रियों, संत्रियों के चुनावों में, उन्हें निर्णायक पदों में तैनाती में खर्च करते हैं, जिससे हर वक़्त, दुनियाभर में यह शोध ज़ारी रहे कि युद्ध कहां-कहां भड़काया जा सकता है, कौन-कौन से नेताओं में ‘ज़ेलेंसकी’ बनने की कमज़ोरी वाले कीटाणु मौजूद हैं. साथ ही, युद्ध भड़कने के बाद, युद्ध-विराम की किसी भी पेशकश को नाकाम करना भी, इन मौत के सौदागरों का प्रमुख काम है.
इजराइल को मिलने वाली मदद खर्च कैसे होती है ?
अमेरिका द्वारा, इजराइल को मिलने वाली मदद का भुगतान, सीधे युद्ध हथियार निर्माताओं के बैंक खातों में होता है. यही कारण है, कि अमेरिकी इजराइल लॉबी और हथियार निर्माता कॉर्पोरेट, एक ही थैली के चट्टे-बट्टे हैं. ये लोग, आधिकारिक रूप से, हथियार निर्माता कंपनियों में शेयर होल्डर भी हैं. इसरायली एयर फ़ोर्स बहुत ही विनाशकारी है, हर रोज़ क़हर बरपाती है. इसरायली एयर फ़ोर्स का ब्यौरा इस तरह से है: एफ-16 = 196; एफ-15 = 83; सबसे आधुनिक, एफ-35 = 30; मारक हेलीकाप्टर = 142 तथा अत्याधुनिक अपाचे हेलीकाप्टर = 43.
हालांकि जिस तरह बाईडेन ने युक्रेन के साथ ‘लैंड-लीज समझौता किया हुआ है, जिसके तहत उसे हथियारों को ख़रीदने की बजाए, किराए पर इस्तेमाल करने की छूट है, वह इजराइल को मंज़ूर नहीं है. युक्रेन के साथ हुए, अमेरिकी सैन्य समझौते का एक बहुत ही ख़तरनाक पहलू यह है, कि वह, अमेरिकी टैंकों, तोपों, मारक जहाज़ों को किराए पर भी ले सकता है, लेकिन उसके बाद, वह, उन्हें इस्तेमाल करने से मना नहीं कर सकता, क्योंकि निश्चित भाड़े का भुगतान, उसे करना ही होगा.
इजराइल लॉबी का ये कहना है कि युक्रेन के साथ हुआ, यह समझौता, ‘राष्ट्रीय आत्म-हत्या वाला समझौता’ है, इजराइल ऐसा नहीं करेगा. ज़ेलेंसकी तो अमेरिकी गुलाम ही है, इसलिए उसे कुछ भी बोलने की अनुमति नहीं है.
अमेरिका का इजराइल के साथ, एक दूसरा, अघोषित क़रार है, ‘अमेरिका जब चाहे, जब भी कहे, इजराइल को युद्ध छेड़ना होगा, और जब तक अमेरिका मना ना करे, उसे ज़ारी रखना होगा. जब भी अमेरिका के बम गोले नहीं बिक रहे होते, स्टॉक ज्यादा हो जाता है, वह, इजराइल को इशारा कर देता है, और गाजा पर गोले बरसने लगते हैं, चीखें उठने लगती हैं, चिंगारियां-लपटें उठने लगती हैं, धरती दहलने लगती है. इजराइल को निश्चित मात्रा में, अमेरिकी हथियार ख़रीदने ही होते हैं. याद कीजिए, नेतन्याहू इसीलिए, फ़ोन पर बाईडेन पर चिल्लाया था, ‘तुम 2000 पौंड वाले बम की सप्लाई रोकने की जुर्रत कैसे कर सकते हो ?’.
बाईडेन है, सबसे ख़तरनाक अमेरिकी राष्ट्रपति
अमेरिका के हर राष्ट्रपति के चुनाव का खर्च, इसरायली लॉबी ने ही उठाया है, लेकिन सबसे ज्यादा रक़म, बाईडेन ने मांगी. बाईडेन के चुनाव पर, इस ख़ूनी लॉबी ने, कुल $56,88,069 खर्च किए. 1980 के दशक में, जब बाईडेन सेनेटर था, तब उसने ‘इजराएल टाइम्स’ के साथ इंटरव्यू में, ख़ुद को ‘इसाई ज़ायनवादी’ घोषित करते हुए कहा था, ‘इजराइल उतने फिलिस्तीनियों का क़त्ल नहीं कर रहा, जितनों की उससे उम्मीद थी.’
तब ही से, इजराइल लॉबी, उसे राष्ट्रपति बनाने में लगी हुई थी. बाईडेन ने जब राष्ट्रपति के लिए उम्मीदवारी घोषित की, तब ही उसे, इजराइल लॉबी ने $6,00,000 की पेशगी यह कहते हुए दी थी, ‘हमारे बच्चों का कोई नुकसान ना होने देना !!’
इतना ही नहीं, इस लॉबी ने, बाईडेन के चुनाव में, ग़रीब बस्तियों में, हर वोटर को लाइन में खड़ा कर $1 का सिक्का दिया था !! 2020 के राष्ट्रपति चुनावों में, अमेरिका में हथियारों की सबसे बड़ी ठेकेदार कंपनी, ‘नोर्थ्रूप गुमान’ की ‘पोलिटिकल एक्शन कमेटी’ ने उस कंपनी को मिले हथियार सप्लाई के $25 बिलियन ठेके, चुनाव के बाद भी सलामत रहें, इसलिए $2 मिलियन खर्च किए थे.
फासिस्ट मोदी सरकार ने चुनाव बांड द्वारा, कॉर्पोरेट से उगाही की, वह इसी अमेरिकी ‘जनवादी नीति’ का छोटा रूप है. अमेरिका के हर राष्ट्रपति ने वही किया है, जो इस लॉबी ने चाहा है. बराक ओबामा, बहुत लच्छेदार भाषण देता था, मानव अधिकारों और फिलिस्तीन की आज़ादी की लफ्फाजी ख़ूब करता था, लेकिन उसने गाजा पर बम बरसाने, इजराइल की ज्यादतियों के खिलाफ, संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् में आए, हर प्रस्ताव में वीटो कर पलीता लगाने में ज़रा सी भी कमी नहीं की.
बाईडेन, राष्ट्रपति चुनाव की रेस से ना हटने पर अड़ गया था, लेकिन, जब इसरायली लॉबी ने उसे चुनाव में पैसा देने से मना कर दिया, तो चुपचाप, मुंडी नीचे कर, हट गया. उसने इजराइल को 2000 पौण्ड वाले सबसे ख़तरनाक बम, जो 200 तक ज़मीन फाड़ देते हैं, की सप्लाई में देर करने का एक हलका सा बयान मात्र दिया था, सप्लाई रोकी नहीं थी. उसे हटाए जाने की, लेकिन वही प्रमुख वज़ह थी.
चुनावी बहस में, ट्रम्प के मुकाबले बाईडेन कमज़ोर पड़ गया; यह शोर मचाने वाला, अमेरिकी मीडिया बिका हुआ था, मानो ट्रम्प तो महान विद्वान है !! जॉर्ज बुश जूनियर जैसा डफर भी राष्ट्रपति बना था, क्या दुनिया नहीं जानती ? ‘बम सप्लाई रोकने को कहने की तुम्हारी जुर्रत कैसे हुई ?’ नरसंहार के अपराधी नेतान्याहू की धमकी हवाई नहीं थी !!
युक्रेन युद्ध को भी यह लॉबी ही देख रही है. लगभग सभी युद्धों को गिद्धों की यह जमात ही देखती है. ज़ेलेंसकी ने कुल $100 बिलियन का क़र्ज़ ले रखा है, जिसके लिए, उसे $5 मिलियन, अमेरिकी सांसदों को रिश्वत खिलानी पड़ी थी. इस लॉबी ने, उसे साफ़ बोल दिया है, ‘युद्ध करते रहो, या मर जाओ’. कुछ ही दिन में वह मर ही जाने वाला है, ऐसा साफ़ नज़र आ रहा है.
अमेरिका का वार्षिक पेंटागन बजट, मतलब रक्षा बजट $800 बिलियन का है. (हमारे देश का कुल बजट ₹48.26 बिलियन, अर्थात $0.58 बिलियन ही है, अमेरिकी रक्षा बजट के आधा प्रतिशत से कुछ ज्यादा). यह पैसा, दुनियाभर में फैले, 280 अमेरिकी सैन्य अड्डों की मदद से, युद्ध भड़काने, देशों को डराने और हथियारों की बिक्री में ही इस्तेमाल होता है.
काफ़ी दिन से, हमास तथा इजराइल के बीच जो युद्ध विराम की वार्ताएं, कभी इजिप्ट, कभी क़तर और कभी रोम में चल रही थीं, इन सभी वार्ताओं में, इसरायली और अमेरिकी ख़ुफ़िया एजेंसियों, मोसाद और सीआईए के सरगना भी भाग ले रहे थे. उनके, दरअसल दो मक़सद थे; पहला युद्ध बंदी लागू नहीं होनी चाहिए, दूसरा; हमास के पोलिट ब्यूरो प्रमुख इन्स्माइल हेनिये की हत्या का षडयंत्र कैसे रचा जाए ?
वार्ताएं, ऐसी फ़र्ज़ी गंभीरता से चलीं कि किसी को इन ख़तरनाक ख़ुफ़िया एजेंसियों के ख़तरनाक मंसूबों की भनक ना लग जाए. अब तो यह साबित ही हो गया कि युद्ध-विराम वार्ताएं जब चल रही थीं, तब इस्माइल हनिये के क़त्ल का इंतेज़ाम हो चुका था, विस्फोटक, उसके कमरे में फिट हो चुका था. इजराइल और अमेरिकी हत्यारों ने यह पहली बार नहीं किया है. यही तो उनका असल धंधा है.
अमेरिकी यू ट्यूब पोर्टल ‘काउंटर पंच’, कई इंटरव्यू तथा ‘अल-ज़ज़ीरा न्यूज़ एजेंसी’, जिन स्रोतों से, इस लेख का अधिकतर डेटा, साभार लिया गया है, उससे, एक बहुत सुखद जानकारी यह भी मिलती है कि इजराइल द्वारा गाजा में किए जा रहे मौजूदा नरसंहार की नंगई से, इस घृणित इसरायली लॉबी की करतूतों की गंभीरता, अमेरिकी अवाम की समझ में आ गई है.
वे जान गए हैं कि इजराइल वह बला है, जो उनकी सामाजिक सुरक्षा का बजट खा रही है. उनकी सेहत, बेरोज़गारी भत्ते का बजट, गाजा में बेक़सूरों के नरसंहार में इस्तेमाल हो रहा है. वे, यह भी जान चुके हैं कि अमेरिकी हुकूमत को सुधारकर सही रास्ते पर लाने की बात फ़िज़ूल है. इसीलिए वे हाथों में लाल झंडे लेकर सड़कों पर उतर रहे हैं.
- सत्यवीर सिंह
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