जार्ज ओरवेल
सरकार की इच्छा के खिलाफ यूक्रेनी क्षेत्र के विदेशी कब्जे के रूप में रूसी सैनिकों की तैनाती को देखते हुए अमरीकी सरकार ने यूक्रेन की संप्रभुता के उल्लंघन के रूप में डोनेट्स्क और लुहान्स्क की मान्यता की निंदा की. अपने लगातार आक्रमणों और अन्य राष्ट्रों के कब्जे के लिए दुनिया भर में सबसे कुख्यात देश से आने वाली इस टिप्पणी से अधिक पाखंडी स्थिति की कल्पना करना कठिन है. उदाहरण के लिए, सीरिया में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त असद सरकार के स्पष्ट विरोध के बावजूद उत्तर के अलगाववादी-नियंत्रित क्षेत्रों में नाटो सैनिक अभी भी तैनात हैं – ठीक उसी तरह जैसे अमेरिका ने यूक्रेन में रूस पर आरोप लगाया है.
सोवियत संघ और पूर्वी यूरोप के समाजवादी खेमे के टूटने के बाद से, साम्राज्यवादी नाटो सैन्य गठबंधन ने 1999 और 2020 के बीच 14 पूर्व समाजवादी राज्यों को अपने विस्तार में शामिल करते हुए, पूर्व की ओर तेजी से विस्तार किया है. इनमें से तीन देश – लातविया, लिथुआनिया और एस्टोनिया – यूएसएसआर के पूर्व गणराज्य थे. रूस की सीमा तक शत्रुतापूर्ण सैन्य गठबंधन का यह विस्तार रूस के खिलाफ एक गंभीर खतरे के रूप में मौजूद था. लेकिन सबसे बुरा यह होगा कि अगर यूक्रेन ने भी इसका अनुसरण किया. रूस के बाद यूक्रेन सोवियत संघ में दूसरा सबसे बड़ा गणराज्य था, रूस के साथ 1,200 मील की सीमा साझा करता है, और ऐतिहासिक रूप से रूस में प्रवेश करने वाली पश्चिमी यूरोपीय सेनाओं के लिए एक आक्रमण मार्ग रहा है. ध्यान रहे अमेरिका और उसके सहयोगियों के सैन्य, आर्थिक और राजनयिक समर्थन के साथ यूक्रेन में 2014 के तख्तापलट द्वारा सत्ता में लाई गई सरकार नाटो में शामिल होने के लिए दृढ़ बनी हुई है.
वर्तमान संकट की तात्कालिक जड़ें इस तख्तापलट में वापस देखी जा सकती हैं, जिसने विक्टर यानुकोविच की सरकार को उखाड़ फेंका, जो एक तटस्थ विदेश नीति का अनुसरण कर रही थी. जिसने रूस और पश्चिम दोनों के साथ सकारात्मक संबंधों की मांग की थी. 2013 में यूक्रेन में अमेरिका के पूर्ण समर्थन के साथ एक विरोध आंदोलन को भड़काकर – विदेश विभाग के एक उच्चस्तरीय अधिकारी विक्टोरिया नुलैंड ने भी खुले रूप से एक विरोधस्थल का दौरा किया और सरकार विरोधी प्रदर्शनकारियों को कुकीज़ सौंपी. कई हफ्ते बाद, नूलैंड और यूक्रेन में अमेरिकी राजदूत जेफ्री पायट के बीच एक बातचीत लीक हुई थी, जिसमें नुलैंड और पायट विस्तार से चर्चा कर रहे थे कि भविष्य में यूक्रेनी सरकार में कौन-सी विपक्षी हस्तियों को क्या भूमिका निभानी चाहिए.
यानुकोविच सरकार को अंतिम झटका फरवरी 2014 में नव-नाजी अर्धसैनिक बलों द्वारा दिया गया था, जिसने राष्ट्रपति भवन पर धावा बोल दिया था. खुले तौर पर नाजी समर्थक राजनीतिक ताकतें तेजी से बढ़ीं और तख्तापलट के बाद राज्य में अधिक प्रभाव वाले पदों पर कब्ज़ा कर लिया. उन्होंने, नई यूक्रेनी सरकार में अन्य ताकतों के साथ, देश के पूर्व में केंद्रित यूक्रेन की जातीय रूप से रूसी आबादी के प्रति रूसी विरोधी राजनीति और शत्रुता का समर्थन किया. कीव में नए शासन के अधिकार को खारिज करते हुए, डोनेट्स्क और लुहान्स्क के पूर्वी प्रांतों में एक अलगाववादी आंदोलन उभरा, स्वतंत्रता की घोषणा की और एक सशस्त्र संघर्ष शुरू किया. इस सशस्त्र संघर्ष का सबसे तीव्र चरण 2014 के अंत में मिन्स्क समझौतों पर हस्ताक्षर के साथ समाप्त हो गया था, हालांकि युद्धविराम का अपेक्षाकृत मामूली उल्लंघन होता रहा। लेकिन जिन समझौतों में राष्ट्रीय संवाद और डोनेट्स्क और लुहान्स्क में स्थानीय अधिकारियों को स्वायत्त शक्तियां देने का आह्वान किया गया था, उन्हें कभी भी पश्चिम द्वारा पूरी तरह से लागू नहीं किया गया और संघर्ष गतिरोध में बंद रहा.
पिछले कई हफ्तों में, इस क्षेत्र में यू.एस. सरकार की संदेहास्पद गतिविधियां दुगनी हो गई. उसी समय, संयुक्त राज्य अमेरिका और उसके सहयोगियों ने हस्तक्षेप की स्थिति में रूस को तबाह करने के लिए चौतरफा आर्थिक युद्ध की धमकी दी. रूस की सभी मुख्य मांगें – यूक्रेन को नाटो में नहीं लाने का संकल्प, उसे रूस की ओर तैनात करते हुए भारी हथियारों को भेजना बंद करना – ‘नॉन-न्यूट्रल’ के रूप में वर्णित किया गया था. यह रूस को एक कोने में धकेलने के लिए योजनाबद्ध तरीके से प्लान किया गया था.
इसने रूस को ऐसी स्थिति में डाल दिया जहाँ रूस या तो सैन्य कार्रवाई करने को मजबूर हो जाये या पश्चिम के प्रतिबंधों के खतरे से डरकर पीछे हटे और दुनिया को डर के मारे हट गया प्रतीत भी हो. पिछले हफ्ते की शुरुआत में, युद्धविराम उल्लंघनों में एक बड़ी तीव्रता आई, जिसमें यूक्रेनी सेना के तोपखाने व अन्य यूनिटों ने एक साथ डोनेट्स्क और लुहान्स्क पर हमले शुरू कर दिए. जैसे ही संकट सामने आया, रूस का स्पष्ट रूप से घोषित लक्ष्य यूरोप के लिए एक नए सुरक्षा ढांचे पर अपने और पश्चिम के बीच एक संवाद की शुरुआत करना था, जो रूस के हितों को ध्यान में रखे जिसे यूएस और उसके सहयोगियों ने असफल कर दिया.
रूस के इस प्रयास का मकसद यूरोप में स्थायी शांति की स्थापना और पूर्वी यूरोप के लोगों को युद्ध के कहर से बचाने का एकमात्र तरीका ऐसी कूटनीतिक व्यवस्था तक पहुंचना है. यू.एस. साम्राज्यवाद द्वारा स्थिति को भड़काने के किसी भी अन्य प्रयास से रूस, यूक्रेन, संयुक्त राज्य अमेरिका और पूरी दुनिया के मजदूर वर्ग के लिए तबाही का खतरा है.
नाटो हमलावर है. नाटो क्रूर युद्धमशीन है. नाटो अवैध है. नाटो गैर जरूरी है
पूर्व सोवियत संघ के राज्यों में जातीयता और राष्ट्रीयता के सवाल के अलावा, भू-राजनीतिक दृष्टिकोण से एक स्पष्ट औचित्य है कि रूस यूक्रेन में पश्चिम की कार्रवाइयों से अस्तित्व में खतरा क्यों महसूस करता है. यूक्रेन की राष्ट्रवादी सरकार के तहत पीड़ित एथनिक रूसियों की दुर्दशा रूसी निर्णय लेने में एक महत्वपूर्ण कारक है और निर्णायक रूप से कार्य करने के लिए रूसी सरकार पर महत्वपूर्ण आंतरिक राजनीतिक दबाव उत्पन्न करती है लेकिन अंत में रूस को प्रेरित करने वाली व्यापक भू-राजनीतिक चिंता नाटो सैन्य गठबंधन का विस्तार ही है.
नाटो का अस्तित्व ही दुनिया भर में शांति के लिए एक गंभीर खतरा है. सोवियत संघ को नष्ट करने के लिए भविष्य के युद्ध की तैयारी में सभी प्रमुख साम्राज्यवादी शक्तियों को एक साथ समूहित करने के उद्देश्य से शीत युद्ध की शुरुआत में 1949 में नाटो की स्थापना की गई थी. यूएसएसआर के पतन के बाद से, यह संयुक्त राज्य अमेरिका के ‘महान शक्ति प्रतियोगिता’ सिद्धांत के अनुरूप रूस विरोधी गठबंधन के रूप में फिर से उन्मुख हो गया है जो एक नया शीत युद्ध चाहता है. इसका उपयोग पूर्व यूगोस्लाविया, अफगानिस्तान और लीबिया के लोगों पर युद्ध छेड़ने के लिए भी किया गया है. नाटो के बारे में कुछ भी ‘रक्षात्मक’ नहीं है – यह युद्ध और आक्रमण का एक उपकरण है.
नाटो का उन्मूलन एक तरफ पूर्वी यूरोप में विस्फोटक तनाव को हल करेगा तो दूसरी ओर विश्व शांति की दिशा में भी एक ऐतिहासिक कदम का प्रतिनिधित्व करेगा. आज इस संघटन के अस्तित्व में होने का कोई वैध कारण नहीं है. कोई भी देश संयुक्त राज्य अमेरिका और पश्चिमी यूरोप पर हमला करने की धमकी नहीं दे रहा है, या वास्तविक रूप से ऐसा खतरा पैदा कर सकता है. नाटो अमेरिकी साम्राज्यवाद के प्रभुत्व वाली अन्यायपूर्ण विश्व व्यवस्था का एक प्रमुख स्तंभ है – एक विश्व व्यवस्था जो दुनिया भर के देशों के लिए असहनीय होती जा रही है.
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