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इजरायल द्वारा फिलिस्तीनी जनता पर किये जा रहे हमलों से उत्पन्न मानवीय त्रासदी

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इजरायल द्वारा फिलिस्तीनी जनता पर किये जा रहे हमलों से उत्पन्न मानवीय त्रासदी
इजरायल द्वारा फिलिस्तीनी जनता पर किये जा रहे हमलों से उत्पन्न मानवीय त्रासदी
अर्जुन प्रसाद सिंह

इजरायल द्वारा पिछले करीब 7 माह से फिलिस्तीन की जनता पर लगातार सैनिक हमले किये जा रहे हैं. 7 अक्टूबर, 2023 से इजरायल द्वारा किये गए हमले में अब तक गाजा में भारी मात्रा में विस्फोटक गिराकर हजारों हमास के ठिकानों को ध्वस्त करने का दावा किया गया है. विभिन्न स्रोतों से प्राप्त सूचनाओं के मुताबिक पिछले करीब 7 माह से चल रहे इजरायल एवं फिलिस्तीनी जनता व उनके संगठनों के बीच के युद्ध में अबतक 35,000 से अधिक फिलिस्तीनी मारे जा चुके हैं, जिनमें दो तिहाई से अधिक बच्चे एवं महिलायें शामिल हैं. हजारों लोग लापता हैं. लापता लोगों में से अधिकांश इमारतों के मलबों के नीचे दब गये थे, जिनके जिन्दा रहने की संभावना नहीं के बराबर है. इस युद्ध में एक लाख से ज्यादा लोग घायल हो चुके हैं. इजरायली मिसाइलें गाजा स्थित सैकड़ों स्कूलों एवं अस्पतालों की भी निशाना बना चुकी हैं.

संयुक्त राष्ट्र ने 13 नवम्बर, 2023 को अपना झंडा झुकाते हुए कहा है कि संयुक्त राष्ट्र संघ के 78 साल के इतिहास में किसी भी अन्य संघर्ष की तुलना में गाजा में सर्वाधिक (102 मारे गए और 27 घायल) संयुक्त राष्ट्र सहायताकर्मी मारे गए हैं. 25 अस्पतालों एवं दर्जनों एम्बुलेंशों को क्षतिग्रस्त किये जा चुके हैं. इजरायली सैनिकों ने पत्रकारों को भी निशाना बनाया है. एक पत्रकार संगठन सीपीजे के अनुसार 2 अप्रैल, 2024 तक 95 पत्रकारों और मीडियाकर्मियों की मौत (जिसमें 90 फिलिस्तीनी, 2 इजरायली और 3 लेबनानी) हो चुकी है. 16 पत्रकारों के घायल, 4 पत्रकारों के लापता और 25 पत्रकारों को गिरफ्तार किये जाने की खबर है. इसके अलावा मीडियाकर्मियों के परिवारजनों पर अनेकों हमले किये गए हैं, जिसमें कई परिवारवालों की जानें गई हैं.

इजरायल सरकार ने गाजा में रह रहे करीब 23 लाख लोगों के लिए बिजली, पानी एवं अन्य आवश्यक वस्तुओं की आपूर्ति भी बन्द कर दी है, इससे दशकों से प्रताड़ना झेल रही फिलीस्तीनी जनता को काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है. संयुक्त राष्ट्र संघ की सूचना के अनुसार गाजा में ऊर्जा की कमी के चलते करीब एक तिहाई बड़े अस्पतालों एवं दो तिहाई प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रों को बंद कर देना पड़ा है. 29 फरवरी, 2024 को उत्तरी गाजा में राहत सामग्री का इंतजार में जुटे लोगों पर इजरायली सैनिकों द्वारा गोली चला कर 100 से ज्यादा लोगों की हत्या कर दी गई.

20 मार्च, 2024 को गाजा के शिफा अस्पताल पर हमला कर करीब 250 फिलस्तीनियों (मरीजों और शरणार्थीयों) को मौत के घाट उतारा जा चुका है और सैकड़ों को घायल भी कर दिया है. समाचार पत्रों में छपी रिपोर्ट के अनुसार अबतक 17 लाख फिलिस्तीनी जनता विस्थापित हो गई है. 3.60 लाख से ज्यादा रिहाईसी इमारतें ध्वस्त कर दी गई है. इस प्रकार इजरायल का हमला विश्व की अमन पसंद जनता के सामने एक भयानक मानवीय त्रासदी के रूप में सामने आ चुका है.

आश्चर्य है कि न तो संयुक्त राष्ट्र संघ एवं नाटो और न ही अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस या जर्मनी जैसे पूंजीवादी-साम्राज्यवादी देशों द्वारा फिलिस्तीन की जनता एवं मानवता के खिलाफ चलाये या रहे इजरायली हमले को रोकने की कोई ठोस कोशिश की जा रही है. संयुक्त राष्ट्र संघ के महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने जब फिलिस्तीनियों के जनसंहार के लिए इजरायल को दोषी ठहराया तो इजरायल के विदेश मंत्री एली कोहेन में आनन-फानन में उनका इस्तीफा मांग लिया. यहां तक कि एली कोहन ने यूएनओ के महासचिव के साथ तय बैठक में भी शिरकत नहीं की. ध्यान देने की बात है कि अमेरिका-रूस-चीन समेत किसी बड़े साम्राज्यवादी देश ने उनके इस व्यवहार पर कोई प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं की.

दुनिया के बड़े पूंजीवादी-साम्राज्यवादी देशों ने अपने-अपने प्रतिनिधियों को इजरायल भेजकर हमलावरों का मनोबल बढ़ाने का ही काम किया. सबसे पहले साम्राज्यवादी सरगना अमेरिका ने अपने विदेश मंत्री को इजरायल भेजा. विदेश मंत्री के लौटने के तुरंत बाद अमेरिकी राष्ट्रपति जो. बाइडेन ने इजरायल की यात्रा की. जब गाजा के एक अस्पताल को निशाना बनाया गया, जिसमें करीब 500 लोग मारे गये, तब जो. बाईडन इजरायल में ही मौजूद थे. उन्होंने एक बयान देकर इजरायल के इस दावा का समर्थन किया कि अस्पताल पर हमला खुद फिलिस्तीनियों में किया है.

फिर ब्रिटेन के प्रधानमंत्री ऋषि सुनक, फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रॉन एवं जर्मन चांसलर ओलाफ स्कोलेज में बारी-बारी से इजरायल का दौरा किया. इन सभी साम्राज्यवादी नेताओं ने इजरायल की आलोकप्रिय बेंजामिन नेतन्याहू सरकार को हमले रोकने की सलाह नहीं दी. उल्टे, उन्होंने इस युद्धोन्मादी सरकार को सैनिक मदद देने की घोषणायें की.

हालांकि, फिलिस्तीन की सीमा के आस-पास स्थित देश, जैसे सीरिया, लेबनान, जॉर्डन एवं मिस्र, इरान तथा तुर्की ने फिलिस्तीनी जनता के प्रति अपनी एकजुटता दिखाई है, लेकिन वर्तमान भू-राजनीतिक स्थिति में वह ज्यादा असरदार साबित नहीं होगा. खासकर, एक ऐसी स्थिति में जब दुनिया के बड़े साम्राज्यवादी देश अपने-अपने हितों की पूर्ति के लिए इस युद्ध का विस्तार करने की पूरी कोशिश कर रहे हैं, इजारायली हमलों को रोकना काफी मुश्किल है.

इजरायल एक लम्बे अरसे से साम्राज्यवादी अमेरिका का एक सैनिक ऑउटपोस्ट बना हुआ है, इसलिए उसके ‘इजरायल की रक्षा’ के लिए 7 अक्टूबर से ही अपने वार शिप एवं हवाई जहाजों को पूर्वी भूमध्य सागर में भेजना शुरू कर दिया. अखबारी रिपोर्टों से पता चला है कि उसमें अभी तक 3 मैरिन शिपों को भेजा है और साथ ही मध्य-पूर्व के आस-पास स्थिति अपने सैनिक अड्डों में दर्जनों लड़ाकू विमानों को तैनात किया है. इसके अलावा ‘अमेरिकी स्पेशल ऑपरेशन फोर्सेज’ इजरायली सेना के साथ हमले की योजना बनाने एवं जासूसी करने के लिए काम कर रहे हैं.

इसी तरह रूसी साम्राज्यवादियों ने भी काला सागर में अपना युद्धपोत तैनात किया है, जो हाइपसरसोनिक किंजल मिसाइलों से लैस है. इन मिसाइलों की मारक क्षमता 2,000 किमी तक है और इनमें 500 किलों की न्यूक्लियर वॉर हेड ले जाने की क्षमता है. उधर चीन की पूंजीवादी-साम्राज्यवादी सरकार में भी भूमध्य सागर में अपने 6 एयरक्राफ्ट कैरियर तैनात किए हैं. इस तरह, इस युद्ध के विश्व के एक बड़े हिस्से में फैलने की आशंका बढ़ गई है. अब तक यह युद्ध 8 देशों (इजरायल, फिलिस्तीन, जार्डन, सीरिया, लेबनान, ईरान, इराक एंव अमन) में फ़ैल चुका है.

अगर यह युद्ध और फैलता है तो फिलिस्तीन के साथ-साथ इजरायल और कई अरब देशों की भी बर्बादी तय है. इस बीच सीरिया एवं इराक में स्थित अमेरिकी सैन्य अड्डों पर लगातार मिसाइल एवं ड्रोन से हमले किये जा रहे हैं, जिनमें दर्जनों अमेरिकी सैनिक ’घायल हुए हैं और कुछ की मौत हो गई है. लाल सागर स्थित अमेरिकी सैन्य अड्डे पर भी हमले का खतरा बढ़ गया है. वहां तैनात एक अमेरिकी विध्वंसक युद्ध पोत ने 19 अक्टूबर को कई मिसाइलों एवं ड्रोनों को मार गिराने का दावा किया है.

इस तरह इजरायल-फिलिस्तीन युद्ध की आग भड़कती जा रही है. हुती विद्रोहियों ने फिलिस्तीनियों पर हो रहे हमले के विरोध में लाल सागर से गुजरने वाले व्यापारिक जहाजों पर हमले तेज कर दिए हैं. अगर यह और तेज होती है और बड़ी साम्राज्यवादी ताकतें सीधे तौर पर टकराती हैं तो विश्व की अमन पसंद जनता को एक अभूतपूर्व मानवीय त्रासदी का सामना करना पड़ सकता है.

यह अच्छी बात है कि दुनिया के विभिन्न देशों में इस युद्ध के खिलाफ विभिन्न प्रकार के कार्यक्रम आयोजित किये जा रहे हैं. अबतक अमेरिका के वाशिंगटन एवं न्यूयार्क, ब्रिटेन के लंदन, मिस्र के बगदाद के तहरीर चैक, स्पेन के मैड्रिड, जर्मनी के बर्लिन, फ्रांस के पेरिस, तथा पीटसवर्ग एवं पोर्टलैंड में इस युद्ध के खिलाफ बड़े-बड़े प्रदर्शन हुए हैं. फ्रांस एवं ब्रिटेन की सरकारों द्वारा लगाये गए प्रतिबंधों के बावजूद प्रदर्शन में हजारों लोगों की भागीदारी हुई. इसके अलावा अम्मान, जकार्ता, इस्लामाबाद एवं अन्य मुस्लिम देशों में भी लगातार प्रदर्शन आयोजित किये जा रहे हैं.

ध्यान देने की बात है कि इन प्रदर्शनों में मुस्लिमों के अलावा ईसाई, यहूदी एवं सिख समुदायों के लोग भी बड़ी संख्या में भाग ले रहे हैं. यहां तक कि इजरायल के अन्दर भी प्रगतिशील यहूदियों ने इजरायल की नेतन्याहू सरकार के युद्धपरस्ती के खिलाफ प्रदर्शन किया है. पहली बार सैकड़ों यहूदी प्रदर्शनकारियों ने अमेरिकी संसद में घुसकर इजरायल द्वारा युद्ध बन्द करने की मांग की. इतना ही नहीं, इजरायल के तीसरे बड़े शहर हैफा में करीब 3,000 से अधिक लोगों ने एक साथ मिलकर अरबी एवं अन्य दो भाषाओं में करीब 1 घंटा तक शांति के लिए गीत गाये और इस प्रासंगिक व सुखद संगीत आयोजन में प्रसिद्ध गायक मेथ्यू पाउल मिलर भी शामिल हुए.

भारत की मोदी सरकार ने सबसे पहले हमास को आतंकवादी एवं हमलावर करार दिया. फिर उसने अपनी विदेश नीति को बदलकर फिलिस्तीनी जनता के आत्मनिर्णय के अधिकार का समर्थन करने के बजाय इजरायल की नस्लवादी एवं हमलावर सरकार का समर्थन किया. दिल्ली एवं उत्तर प्रदेश जैसे भाजपा शासित राज्यों में इजरायली हमले के खिलाफ आयोजित जन प्रदर्शनों को प्रतिबंधित कर दिया गया. इसके बावजूद दिल्ली में कई जन प्रदर्शन आयोजित किये गये और दिल्ली पुलिस ने तमाम प्रदर्शनकारियों को डिटेन किया.

दूसरी ओर भारत सरकार अपने बदले हुए चेहरे को छुपाने के लिए फिलिस्तीन की धरती पर शांति बहाल करने की अपील भी कर रही है और वहां की अभावग्रस्त जनता के लिए कुछ राहत सामग्रियां भी भेज रही है. यूएनओ, चीन एवं अन्य कई देशों ने भी गाजा की पीड़ित जनता के लिए राहत सामग्रियां भेजी हैं, लेकिन इजरायल की सरकार उन्हें जरूरतमंद जनता तक पहुंचने नहीं दे रही है. ऐसे माहौल में अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा ने इजरायल को चेतावनी दी है कि वह खाना, पानी, बिजली, दवा जैसी राहत सामग्रियों को रोकने से बाज आये, अन्यथा उसे ही इसका फल भुगतना पड़ेगा.

यूएनओ के महासचिव को भी बयान देना पड़ा है कि ‘हमास की ओर को किया गया हमला अचानक या अकारण नहीं है. फिलिस्तीन के लोग पिछले 56 सालों के दमघोटू कब्जे की प्रताड़ना झेल रहे हैं. उन्होंने अपनी जमीन को भी धीरे-धीरे इजरायली बस्तियों या हिंसा की चपेट में आते देखा है. उनकी अर्थव्यवस्था चरमरा गई है, उनके लोग विस्थापित हुए हैं और उनके घरों को तबाह कर दिया गया है. उनके कष्टों के राजनीतिक समाधान की उम्मीदें धुमिल हो रही थीं.’ लेकिन ओबामा की चेतावनी एवं यूएनओ के महासचिव के उक्त बयान के बावजूद इजरायल का हमला तेज होता जा रहा है.

अबतक वह गाजा पर हवाई हमले कर रहा था, लेकिन 26 अक्टूबर, 2023 से उसने टैंकों एवं अन्य हथियारों को लेकर जमीनी हमला भी शुरू कर दिया है. इन हमलों से बचने के लिए अधिकांश फिलिस्तीनी जनता ने अपने घरों को छोड़कर पड़ोसी देशों में जाकर शरण लिया है. इजरायल ने तो उन्हें घर छोड़ने की धमकी काफी पहले ही दे दी थी. फिलिस्तीनी लड़ाके फिर भी लाखों की तदाद में गाजा में टिके हुए थे और इजरायली सेना के हमलों का मुहतोड़ जबाब दे रहे थे लेकिन इस जमीनी हमले के बाद उनका गाजा में टिकना काफी मुश्किल है.

इतनी भीषण प्रताड़ना को झेलते हुए अभी उत्तरी गाजा में (इजरायली स्रोतों के मुताबिक) साढ़े तीन लाख फिलिस्तीनी मौजूद हैं. इजरायल लगातार उत्तरी गाजा में रह रहे फिलिस्तीनियों को (जिनकी संख्या 10 लाख से अधिक है) दक्षिणी गाजा क्षेत्र में जाने की धमकी दे रहा है, जबकि वह दक्षिणी गाजा क्षेत्र में भी बमबारी कर रहा है. सच्चाई तो यह है कि बमबारी की वजह से दक्षिणी गाजा क्षेत्र में गये सैकड़ों लोग उत्तरी गाजा क्षेत्र में लौट गये हैं. ऐसी स्थिति में’ इजरायल द्वारा की गई गाजा की घेराबंदी और गाजा में शुरू किए गए जमीनी हमले में भारी तादाद में फिलिस्तीनियों का मारा जाना तय है.

इस भयानक मानवीय त्रासदी को रोकने के लिए इजरायल के हमले को रूकवाना जरूरी है. हाल में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने इजरायल व हमास के बीच युद्ध विराम करने का एक प्रस्ताव पारित किया है. इस प्रस्ताव के पक्ष में 14 मत पड़े हैं और अमेरिका ने मतदान में भाग नहीं लिया है. प्रस्ताव के पारित होने के बाद अगले ही दिन अमेरिका ने बयान दिया है कि यह किसी भी पक्ष के लिए अनिवार्य नहीं है. उसने यह भी कहा कि इस प्रस्ताव में हमास की निन्दा नहीं की गई है. इस बयान के बाद इस्रायल ने अपना हमला पूर्ववत जारी रखा है उसने घोषणा किया है कि हमला तब तक जारी रहेगा जबतक हमास का अंत नहीं हो जाता.

इजरायल-फिलिस्तीनी संघर्ष का इतिहास करीब 75 साल पुराना है. इस दौरान दोनों के बीच कई युद्ध लड़े गये, लेकिन समस्या का समाधान नहीं हुआ. यूएनओ ने 1947 में फिलिस्तीन की जमीन पर यहूदियों को बसाने के लिए इजरायल नामक अलग देश बनाने की मंजूरी दे दी. इसके बाद 14 मई, 1948 को इजरायल की स्थापना हो गई. इसके अगले ही दिन पहला अरब इजरायल संघर्ष शुरू हो गया. इस लड़ाई के खतम होने के बाद संयुक्त राष्ट्र संघ ने अरब राज्य के लिए आधी जमीन मुकर्रर कर दी. लेकिन इजरायल की सेना ने करीब साढ़े सात लाख-फिलिस्तीनियों को पड़ोसी देशों में खदेड़ दिया.

आज की तिथि में फिलिस्तीन की अधिकांश जमीनों पर इजरायल का कब्जा है और वहां काफी तादाद में यहूदियों को बसा दिया गया है. जब तक फिलिस्तीनियों को अपनी जमीन या अपना राष्ट्र नहीं मिल जाता, तबतक इजरायल-फिलिस्तीन विवाद हल होने वाला नहीं है. और यह भी तय है कि जबतक पूंजीवादी साम्राज्यवादी व्यवस्था बनी रहेगी, तबतक पूरी दुनिया में सैन्यीकरण और युद्ध चलता रहेगा तथा फिलीस्तीन एवं अन्य देशों की मेहनतकश जनता के श्रम को दोहन होता रहेगा.

पूरी दुनिया की जनता मांग करती है कि तत्काल इजरायल द्वारा फिलिस्तीनी जनता पर हमलों को बन्द किया जाये, जरूरतमंद और भूख से त्रस्त फिलिस्तनियों के पास राहत सामग्रियों को पहुंचने दिया जाये और इस करीब 75 साल पुराने विवाद का फिलिस्तीनी जनता के पक्ष में हल निकालने की दिशा में कारगर प्रयास किया जाये.

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