विविधता भरे इस देश में समय समय पर धार्मिक एकता की बात करने वालों की कोशिश पर कुछ लोग कुत्तागिरी दिखाते हुए टांग उठाकर मूतने की कामयाब कोशिश भी करते रहे हैं. पंजाब में कुख्यात निहंग, हिटलर वारिस संघी व इस्लामोफोबिया से ग्रस्त फतवा गैंग, सबके सब एक ऐसी संस्कृति के ध्वजवाहक हैं जो चाहते हैं कि यह पृथ्वी इंसानों से बंजर हो जाये और यहां सिर्फ तलवार, त्रिशूल और बंदूकों की खेती भर लहलहाये.
इन धार्मिक लोगों की दुनिया में स्त्री सिर्फ पुरुषों की हवस मिटाने का साधन व बच्चे पैदा करने की एक नकारा मशीन भर है. इनकी दुनिया में ज्ञान-विज्ञान इनका खूनी दुश्मन है. तीन साल पहले RSS प्रमुख ने महिलाओं के बारे में कहा कि ‘औरतों को अपने पति के हर जघन्यतम क्रूरता का दंडवत् सम्मान करना चाहिए. अगर कोई पत्नी अपने पति की बात नहीं मान रही है तो पति को यह अधिकार है कि पत्नी को ठोकर-धक्के मारते हुए घर से निकाल दे.’
आपको यह जानकर हैरानी होगी कि जब जब RSS-BJP की सरकार रही है तब-तब वैज्ञानिक शोधों को न केवल हतोत्साहित किया गया है बल्कि विज्ञान की किताबों को संस्कृत भाषा में जारी करने की भोथरी व हास्यास्पद वकालत भी की जाती रही है. गवेषणा संदर्भ एवं प्रशिक्षण प्रभाग, मानव संसाधन विकास मंत्रालय भारत सरकार द्वारा पिछले एक दशक से भौतिक, रसायन, वनस्पति, जीव, खगोल, भूर्गभ आदि वैज्ञानिक क्षेत्रों में कोई भी केन्द्रीय स्तर पर पुरस्कार वितरण समारोह आयोजित नहीं किया गया है, जो भी समारोह होते हैं उनके अंदरखाने RSS लाबी का कुचक्र रचा होता है.
आज न्यायिक क्षेत्रों से लेकर हर एक क्षेत्र को भगवा मंसूबों की गुबरैली खूंटी से बांधने का षड्यंत्र हो रहा है. आप चाहते हैं कि आपके बाद की नस्लें अमन चैन से इंसानियत की पैरोकार बने तो आपको बच्चों को धार्मिक जहर पिलाने की उछड़ैल कोशिशों से बाज आना चाहिए. बच्चों को धार्मिक मामलों पर प्रोत्साहित कर, आप बच्चों के मासूम मस्तिष्क पटल पर उनकी तबाहियों की इबारत लिख रहे होते हैं. अफगानिस्तान से लेकर भारत तक आप इस दौर की धार्मिक एकता का अंजाम बखूबी देख सकते हैं, जहां हर 10 मौतों में से 4 मौतें किसी न किसी रूप में जाति धर्म से जुड़े होते हैं.
हालांकि इस समय के सरकारी नुमाइंदों में इस तरह का जमीर नहीं है कि अप्रसांगिक धार्मिकता पर बात करें लेकिन मुर्दाघाट में सब मुर्दे नहीं होते हैं, वहां कफनखसोटों का अपना एक कानून होता है जो कीमती कफन और सस्ते कफ़न को भांपकर मुर्दों को जलाने में वरीयता देते हैं. ऐसे ही कफनखसोटों की सल्तनत से कभी कभी बात उठ जाती है कि ‘धर्म के नाम पर लोगों को बेवकूफ बनाने वाली सरकार पर जनता अपना जनादेश देगी.’ लेकिन दूसरी सरकारें क्या करती हैं ?
क्या किसी सरकार ने आज तक प्राइमरी स्कूल स्तर से विज्ञान, संगीत, कृषि पढ़ाई को बाल मनोविज्ञान में सख्त रूप से शामिल किया है ? इंटरनेशनल चाइल्ड केयर फैडरेशन लंदन मुख्यालय से जारी सूची में वरीयता क्रम के साथ दुनिया में कुछ ही देश हैं जो अंतर्राष्ट्रीय बाल विकास मानकों को ध्यान में रखकर अच्छा परफार्मेंस कर रहे हैं, जिसमें शामिल 10 देशों की सूची इस प्रकार है –
- उत्तर कोरिया
- जापान
- चाइना
- नार्वे
- वियतनाम
- तुर्की
- क्यूबा
- ईराक
- ब्रिटेन
- कनाडा
इस लिस्ट में ‘विश्व गुरु देश’ का नाम नहीं है. बच्चों को तलवार- त्रिशूल बांटने वाली सरकार के होते हुए न ही इस लिस्ट में इस देश का नाम आने की कल्पना की जा सकती है.
- ए. के. ब्राईट
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