जगदीश्वर चतुर्वेदी
भारत में नव जनवाद की नींव रखी नामवर सिंह ने, मोदी का सन् 2014 में लोकसभा चुनाव में समर्थन करके. नया जनवादी सिद्धांत है- लेखक स्वतंत्र है और कलम उससे भी स्वतंत्र है. इन दोनों से लेखक के आचरण स्वतंत्र हैं. इन तीनों के विचारधारात्मक पक्षों को काशी की गंगा में बहा दो, शान से कहो हम जनवादी हैं !
नए जनवाद में विचारधारा के लिए कोई स्थान नहीं है. सिर्फ लेखक का नाम बड़ा हो. वह जो मन आए करे, जो मन में आए लिखे. हम खुश हैं कि वह हमारा मित्र है. मित्रता ही जनवाद है !
नए जनवाद के झंडाबरदार लेखकों के मुखिया ने पहले नए नागरिकता कानून के खिलाफ आंदोलनरत मुसलिम महिलाओं को आंदोलन न करके स्वेटर बुनने का सुझाव दिया था. इस बार एक कदम आगे जाकर गांधी-गोडसे को समान खड़ा किया. यह नए किस्म का जनवाद है, जो खासतौर पर प्रचारित किया जा रहा है.
नए जनवाद का बड़ा लक्ष्य है मोदी के पीछे गोलबंद रहो. अफसोस है कि सीपीआई (एम) की सारी पोल इसने कम से कम साहित्य में खोल दी है. वैसे साहित्य में यह नयी चीज नहीं है.
बांग्ला के जो महान लेखक बुद्धदेव भट्टाचार्य के साथ चाय पीते थे, वे सब ममता के गुंडाराज के साथ चले गए और एक लुटेरे चिटफंड वाले के पैसों पर मौज करने अमेरिका में विश्व बांग्ला सम्मेलन में निकल पड़े थे. यह है नए जनवाद का जनविरोधी साहित्यिक चेहरा.
इसने हिन्दी-उर्दू में पैर पसारने शुरु कर दिए हैं. बड़ी संख्या में हिन्दी-उर्दू के तथाकथित प्रगतिशील-जनवादी लेखक इन दिनों आरएसएस के फ्रंट संगठनों की मलाई खाने और मोदी के अनुसार काम करने में लगे हैं.
जनवादी लेखक संघ भी इस बीमारी से मुक्त नहीं है, क्योंकि बांग्ला में गणतांत्रिक लेखक-शिल्पी संघ के अनेक प्रतिष्ठित लेखक ममता के प्रेम में मगन हैं. इनमें बंगाल के कई बड़े हिन्दी लेखक भी शामिल हैं. नए जनवाद का लक्ष्य है मलाई खाओ मजे में रहो. साहित्य इसी तरह चारण साहित्य में नए ढ़ंग से रुपान्तरित किया जा रहा है.
नए जनवादी मोदी की किसी नीति के खिलाफ नहीं लिखते. वे शिक्षा नीति का विरोध नहीं करते, वे नए नागरिकता कानून का विरोध नहीं करते, वे करोड़ों लोगों को बेरोजगार कर देने वाली मोदी की आर्थिक नीतियों पर कभी एक अक्षर नहीं लिखते.
वे सिर्फ कहानी, उपन्यास, नाटक लिखते हैं और फेसबुक पर लघु कहानियां लिखते हैं. वे खुश हैं कि उन्होंने साहित्य की सेवा की है. जनता जाए भाड़ में, सिर्फ उनका नाम ऊंचा रहे.
लेखकीय स्वतंत्रता का चरम यह है गांधी-गोडसे समान मनुष्य हैं. लेखक महान है ! हम सिर्फ निंदा प्रस्ताव पास कर रहे हैं. हम भी जनवादी हैं ! आओ हम इस नए किस्म के जनवाद की प्रशंसा करें !!वाह वाह करें ! पतन काल में वाह वाह और निंदा प्रस्ताव से अधिक कुछ नहीं कर सकते. हम सब जनवादी हैं !
Read Also –
रूढ़िबद्धताओं और विचारधारा से भी मुक्त है नामवर सिंह की विश्वदृष्टि
फैंटेसी के युग में लेखक का अवमूल्यन
अ-मृत-काल में सरकार, लेखक और उसकी संवेदनशीलता
चेतन भगत जैसे लेखक कारपोरेट के प्रवक्ता बन गए हैं
तटस्थ बुद्धिजीवी
अराजनीतिक बुद्धिजीवी
[ प्रतिभा एक डायरी स्वतंत्र ब्लाॅग है. इसे नियमित पढ़ने के लिए सब्सक्राईब करें. प्रकाशित ब्लाॅग पर आपकी प्रतिक्रिया अपेक्षित है. प्रतिभा एक डायरी से जुड़े अन्य अपडेट लगातार हासिल करने के लिए हमें फेसबुक और गूगल प्लस पर ज्वॉइन करें, ट्विटर हैण्डल पर फॉलो करे… एवं ‘मोबाईल एप ‘डाऊनलोड करें ]