Home गेस्ट ब्लॉग महिषासुर का फैलता दायरा और मिथकों की राजनीति

महिषासुर का फैलता दायरा और मिथकों की राजनीति

7 second read
0
0
508
महिषासुर का फैलता दायरा और मिथकों की राजनीति
महिषासुर का फैलता दायरा और मिथकों की राजनीति
तुषार कांति, भूतपूर्व माओवादी नेता

सबसे पहले मनु…स्मृति ईरानी को धन्यवाद. जेएनयू की घटनाएं और युनिवर्सिटी ऑफ़ हैदराबाद के शोध छात्र वेमुला चक्रवर्ती रोहित की आत्महत्या के सवाल पर बहस के दौरान मनु…माफ़ कीजिये,…स्मृति ईरानी ने लोकसभा में जो धुंआंधार भाषण डे डाला, उस रौ में उन्होंने जवाहरलाल विश्वविद्यालय में महिषासुर शहादत दिन मनाये जाने का भी जिक्र किया.

असल में उनके इरादे पर शक नहीं किया जाना चाहिए. उनकी पार्टी के प्रति सहानुभूति जगाने और विरोधी पार्टियों को निरुत्तर कर देने के इरादे से ही उन्होंने इस क्रियाकलाप का जिक्र किया होगा. पर हाय रे सेरियलों में अतिनाटकीयता और आवेश में भावुक होने-करने की जवानी से लग चुकी आदत ! यही आदत लगता है ले डूबेगी स्मृति और उनकी पार्टी को.

एक बार महिषासुर को महिमामंडित करने पर उन्होंने लोकसभा में आवेश क्या जाहिर कर दिया, पासा लगता है उलटा पड़ गया. जिन बहुजनों को धार्मिक भावनाएं भड़का कर आरएसएस और भाजपा आजतक अपनी राजनीति कि रोटियां सेंकती आई है वही गैर-ब्राह्मण बहुजन स्मृति ईरानी के भाषण से भड़क गया. कुछ विरोधी पार्टियों ने तो उनके संसद में विशेषाधिकार भंग करने की नोटिस सभापति सुमित्रा महाजन को थमा भी दी है. परन्तु हम हैरान कुछ दुसरी ही वजह हुए.

दरअसल ईरानी जी ने मधुमक्खियों के छत्ते को झकझोर दिया है और फिर भी वहीं डटी रहीं. अब दंश भी झेलना होगा. खैर, बात महिषासुर कि हो रही थी. स्मृति ईरानी तो निमित्त बन कर आयीं. महिषासुर के पौराणिक/मिथकीय चरित्र ने हमेशा ही मन में कई सवाल उठाये हैं.

करीब दस साल पहले मुझे बिहार सरकार की एन्थ्रोपोलोजिकल डिपार्टमेंट की आदिम जातियों से सम्बंधित प्रकाशन में ढूंढ़ते हुए एक परिच्छेद का एक इन्दराज दर्ज मिला और इसके साथ एक महिला का चित्र. असुर नामक एक आदिम जाति के बारे में बिहार सरकार के पास केवल इतनी-सी जानकारी थी. महिला को चट्टान से रिसते पानी को पत्ते के सहारे मटके में समेटते दिखाया गया था.

मेरी उत्सुकता बढ़ती गयी और मैंने जब दोस्तों मित्रों से जानकारी हासिल की तो यह जान कर और भी उत्साहित हुआ कि मिथकीय असुरों के स्टीरिओ टाइप से अलग हमारे आज के झारखण्ड राज्य में बसे असुर तो हज़ारों साल पहले ही लोहा के खनिज को गलाकर उससे अशुद्धियां अलग कर इस्तेमाल करना जानते थे. वे महिषासुर को अपना आराध्य और पूर्वज मानते हैं. वे जहां रहते हैं उन में से एक जिले का नाम ही लोहरदग्गा है ! खैर इन असुरों में पहली महिला स्नातक सुषमा असुर से बाद में परिचय हुआ.

बंगालियों और उत्तर भारतीयों में लोकप्रिय दुर्गा पूजा के समय महिषासुर-वध करती देवी के बुत को बचपन से देखता और मन ही मन यह सोच कर हैरान होता कि महिषासुर का चेहरा-मोहरा संथाल आदिवासियों से इतना साम्य क्यों रखता है ? अब ईरानी जी की आवेशपूर्ण टिपण्णी के बाद समझ आया कि बंगाल झारखंड के संथाल तो महिषासुर को अपना पूर्वज मान कर उनकी आराधना ही करते हैं.

अब जब खोज में निकल पड़ा तो किसी रहस्य की परतों की तरह महिषासुर की महिमा मेरे आगे खुलती चली गईं. सिर्फ संथाल और असुर आदिवासी ही नहीं, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र की सीमा पर रहने वाले कोरकू आदिवासी भी महिषासुर को आराध्य मानते हैं. और् तो और, मध्य प्रदेश और उत्तरप्रदेश के कई जिलों में फैले बुंदेलखंड में भी महिषासुर के एक दो नहीं, कई मंदिर हैं.

और इनमें कोई आदिवासी नहीं, यादव/अहीर लोग महिषासुर की पूजा करते हैं ! देवासुर युद्ध का मिथक बेशक आर्य और आदिवासियों के बीच चली लम्बी लड़ाईयों के आर्य पाठ के आधार पर गढ़ लिया गया हो, ऐसा मुझे विश्वास हो चला है. अंग्रेजों ने आर्य/द्रविड़ जातियों का अंतर दिखला दिया. क्या अंग्रेजों के पहले कम से कम एक सहस्राब्दी तक ऐसा विभाजन नज़र आता रहा है ?

नागार्जुन से शंकराचार्य और रामानुजाचार्य-रामानन्द तक सभी प्रकट रूप से दक्षिण के विद्वान थे, जिन्हें उत्तर में भी पूरी मान्यता और आदर मिला. जो भी हो, महिषासुर की खोज में दक्षिणमुखी हुआ तो कर्नाटक राज्य के दूसरे बड़े शहर मैसूरु पर आ कर नज़र ठहर गयी. ‘ऊरु’ द्रविड़ भाषाओं में ‘गांव’ का पर्यायवाची है.

महिषासुर+ऊरु=मैसूरु. यह समीकरण कोई मेरी उपजाऊ खोपड़ी की पैदावार नहीं, वास्तविक है. वहां तो महिषासुर की विशाल प्रतिमाएं सार्वजनिक स्थलों की शोभा बढ़ाती नज़र आती है. पछले दिनों अखबारों में ऐसी एक प्रकांड प्रतिमा की तस्वीर देखने का सौभाग्य मिला.

तो फिर कह सकते हैं कि समूचे देश में महिषासुर के प्रशंसक फैले नज़र आये. मनु… (माफ़ करें)…स्मृति ईरानी का महिषासुर की शहादत पर जेएनयू के छात्रों का समावेश करने को देशद्रोह मान कर राष्ट्रविरोधी कार्रवाई घोषित करना भजपा के लिए गले की हड्डी साबित हो सकती है. न निगलते बने न उगलते !

तमाम बहुजन आदिवासी अगर अपने अपने महिषासुर के पक्ष में लामबंद हो रहे हैं तो भाजपा की वोटबैंक की राजनीति के लिए यह अशुभ संकेत है. महिषासुर ही बचाये ऐसी विपदा से. वरना मैदान छोड़ कर कृष्ण का रणछोड़ दास का नाम सार्थक करते नज़र आने में देर न होगी…! वैसे भी, अगले महीने-दो महीने में चार राज्यों में चुनाव हैं. बाबा साहेब आंबेडकर को जिस तरह समरसता में समाहित करने की कवायद चल रही है, उसी तरह किसी दिन मोदी जी और मोहन भागवत अगर महिषासुर वंदना करते नज़र आने लगें तो एक बार मुझे याद कर लीजिये.

  • यह लेख 6 मार्च, 2016 को लिखा गया था, जो आज भी समीचीन है.

Read Also –

हमारा अपना महिषासुर : एक दैत्य अथवा महान उदार द्रविड़ शासक, जिसने अपने लोगों की लुटेरे-हत्यारे आर्यों से रक्षा की ?
महिषासुर का शहादत दिवस मनाते लोग
दुर्गा किसकी हत्या की थी – महिषासुर की या गांधी की ?
दुर्गा-महिषासुर पर लिखी गई कहानियां कोरी गप्प है ?
जननायक महिषासुर बनाम देवी दुर्गा

प्रतिभा एक डायरी स्वतंत्र ब्लाॅग है. इसे नियमित पढ़ने के लिए सब्सक्राईब करें. प्रकाशित ब्लाॅग पर आपकी प्रतिक्रिया अपेक्षित है. प्रतिभा एक डायरी से जुड़े अन्य अपडेट लगातार हासिल करने के लिए हमें फेसबुक और गूगल प्लस पर ज्वॉइन करें, ट्विटर हैण्डल पर फॉलो करे… एवं ‘मोबाईल एप ‘डाऊनलोड करें ]

scan bar code to donate
scan bar code to donate
Pratibha Ek Diary G Pay
Pratibha Ek Diary G Pay
Load More Related Articles
Load More By ROHIT SHARMA
Load More In गेस्ट ब्लॉग

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Check Also

शातिर हत्यारे

हत्यारे हमारे जीवन में बहुत दूर से नहीं आते हैं हमारे आसपास ही होते हैं आत्महत्या के लिए ज…