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जो सबूत थे

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जो सबूत थे
काफी नहीं नहीं थे
दोष को
दोष साबित करने के लिए

सदी जब भी निचुड़ती है
कोई न कोई खलनायक
रिसता है
टप टप टप्प
ग्रहों नक्षत्रों की चाल देखी जाती है
देखी जा रही है
उसी विषाक्त मिट्टी से
एक और भवन निर्माण ज़ोरों पर है

तिल, मूंगफली अभी भी कच्ची है
सरसों की कच्ची घानी चढ़ी है
उस शुन्य से
इस शुन्य तक
जो अवतरित हो रहा है
सामने है

आप बधाइयां लो
किन्नरों, आप कहां हो
तुम्हें तो पहले आना चाहिए था
सोहर कौन गाएगा
गालियाँ कौन देगा

सब के सब प्रेमगीत लिख रहें हैं
सब के सब विरह में विरहा गीत गा रहें हैं
फिर भी तेज़ाब की बिक्री में कोई कमी नहीं आई है

सब हलवाई लड्डू बनाने में जुटे हैं
गणेश जी तो खुश होंगे ही
बाकी देवताओं का क्या होगा
जो इंसुलिन लेते लेते परेशान हैं

ठीक है, आप को मधुमेह है
आप गुलाब जामुन नहीं खाएंगे
लेकिन सब को ओड़हुल ही पसंद हो
भट्टार्चार्जी जी, यह जरुरी तो नहीं है

तुम्हारा लज़ीज़ खाना बन रहा था
मेरी जान जा रही थी
तुम्हें स्वाद मिल रहा था
कहीं किसी का अस्तित्व मिट रहा था

तुम्हारे कब्जे का रक़बा बढ़ गया
और मैं वंशहीन उजड़ता गया

  • राम प्रसाद यादव

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