आभा शुक्ला
राम नवमी के अवसर पर जगह-जगह से मस्जिद और मजारें जलाए जाने के वीडियो आ रहे हैं. मन दु:खी है तो सोचा आपको एक कहानी सुना दूं…!
मौलाना हुसैन अहमद मदनी (रह.) ने अंग्रेजी हुकुमत के खिलाफ फतवा दिया कि अंग्रेजों की फौज में भर्ती होना हराम है. अंग्रेजी हुकुमत ने मौलाना के खिलाफ मुकदमा दायर किया. सुनवाई में अंग्रेज जज ने पूछा – ‘क्या आपने फतवा दिया है कि अंग्रेजी फ़ौज में भर्ती होना हराम है ?’
मौलाना ने जवाब दिया – ‘हां, फतवा दिया है. और सुनो यही फतवा इस अदालत में अभी भी दे रहा हूं और याद रखो…आगे भी जिंदगी भर यही फतवा देता रहूंगा…’.
जज ने कहा – ‘मौलाना…! इसका अंजाम जानते हो…? सख्त सज़ा होगी…’.
मौलाना – ‘फतवा देना मेरा काम…और सज़ा देना तेरा काम. तू सज़ा दे…!’
जज गुस्से में आ गया – ‘तो इसकी सज़ा फांसी है.’
मौलाना मुस्कुराने लगे और झोले से कपडा निकाल कर मेज पर रख दिया.
जज ने कहा – ‘ये क्या है..?’
मौलाना ने फरमाया – ‘ये कफ़न का कपडा है…मैं देवबंद से कफ़न साथ में लेकर आया था.’
‘लेकिन कफन का कपडा तो यहां भी मिल जाता…!’
‘हां…! कफ़न का कपडा यहां मिल तो जाता…लेकिन … जिस अंग्रेज की सारी उम्र मुखालफत की…उसका कफ़न पहन के कब्र में जाना मेरे जमीर को गंवारा नहीं.’
(फतवे और इस घटना के असर में हजारों लोग फौज की नौकरी छोड़ कर जंगे आज़ादी में शामिल हुए.)
ये कहानी तो महज आइना है. अशफाकउल्लाह खां साहब याद हैं आपको ?
यदि आज उनकी आत्मा कहीं से देख रही होगी कि जिस आजादी को पाने के लिए उन्होंने क़ुर्बानी दी, आज उसी आजादी में उनकी क़ौम को गद्दार कहा जाता है…!
मौलाना अबुल कलाम आज़ाद…, आख़िरी तक विभाजन के खिलाफ थे. विभाजन पर कहा था कि हमारे संघर्ष को भेड़ियों के आगे फेक दिया गया.
आज देश में जो मुसलिम हैं वो हमारे वो भाई हैं जिन्होंने बंटवारे के समय हमें चुना था, पाकिस्तान को नहीं. आज आप उन्हें इसका ये इनाम दे रहे हैं कि एक विज्ञापन ने आपको दहला दिया….!
जब मैं मुसलिम की पैरोकारी करती हूं तो मुझे गद्दार कहा जाता है. दोगला कहा जाता है. कमीना कहा जाता है. पर क्या करूं, दोगली, कमीनी सब हूं परन्तु चाह कर भी एहसान फरामोस नहीं बन सकी कभी….!
चाह कर भी अब्दुल हमीद और अब्दुल कलाम को नहीं भूल सकती ….! बेगम हज़रत महल को गद्दार नहीं कह सकती….! हैदर अली पर कीचड़ नहीं उछाल सकती…! मुहम्मद रफी को सुने वगैर नींद नहीं आती…और यदि ये किसी की नज़र में दोगलापन है तो हां ये आरोप मेरे सिर माथे….!
और एक बात कहना चाहूंगी कि हरामीपन का कभी कोई मजहब नहीं होता. यदि देश से एक-एक मुसलमान को बाहर निकाल दीजिए तो भी अंबेडकर की मूर्ती की उंगली तोड़ने की घटनायें बन्द नहीं होंगी. जो युद्ध आज मुसलामानों के खिलाफ है…कल वो दलितों के खिलाफ होगा…. और सबसे आख़िर में महिलाओं के खिलाफ….!
यदि हमें एक बार गद्दार कहा जाए तो हम तिलमिला उठते हैं. उनका सोचिये जो सालों से ये सुनाते चले आ रहे हैं…!
आप कहते हैं वो हलाला की पैदाइश हैं.., फलाना हैं…, धिमका हैं…,
अरे वो कुछ भी हैं….किसी की पैदाइश कैसी भी… परन्तु यदि आज वो आपके सामने खड़ा है तो वो ख़ुद में एक व्यक्तित्व है….!
एक खरी बात कहूं…! राजनीति के लिए जब उनके घर जोधा ब्याही थी तब वो मुसलमान नहीं थे क्या….? जोधा को ब्याहना आपका स्वार्थ था….तो ब्याह दी. मस्तानी को स्वीकार करने में आपका स्वार्थ नहीं था तो मस्तानी नहीं स्वीकार हुई…, क्यूं ?
आज जैसे पद्मावती के नाम पर लड़ जाते हो वैसे ही यदि तब पद्मावती के साथ, मेवाड़ के साथ खड़े हुए होते तो शायद उस सम्मानित महिला को जौहर नहीं करना पड़ता.
दिल पर हाथ रखकर बताइये कि क्या आप सदैव ईमानदार रहे हैं अपने आदर्शों में ? वो लोग आज ख़ुद को राष्ट्रवादी कहते हैं जिन्होंने नफ़रत के आगे न देश की सुनी, न संविधान की सुनी. समय बदल गया किन्तु शासन की नीति नहीं बदली. शासन तब भी ‘बांटो और राज करो’ की नीति से होता था और आज भी होता है.
अंततः बस इतना ही कहूंगी कि हर मुसलमां न गद्दार था…., न है…. और न होगा….! लेकिन आज आप जो साएनाइड की फ़सल बो रहे हैं न…. वो एक दिंन आपको ही काटनी होगी….!
आने वाली पीढ़ियां इस गर्वित हिंदू पर थूकेंगी, जो सिर्फ मुसलमानों से नफ़रत के नाम पर देश को तबाह होने दे रहा था..!
यक़ीन मानिए और मुझे पता है कि मैं ये अपने जीवनकाल में देखूंगी. ठीक वैसे ही जैसे आज हिटलर के नाम पर जर्मन शर्मिंदा होते हैं…!बिल्कुल यही होगा…!
और हां, मुझे गर्व है कि मैं सही के साथ खड़ी हूं…तर्क के साथ खड़ी हूं…! एक बात और…! मैं मुसलमानों या इस्लाम के साथ नहीं खड़ी ...मैं नास्तिक हूं और मनुष्यता के साथ खड़ी हूं…!
I am a Proud Secular Atheist…..
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