Home गेस्ट ब्लॉग ‘हमारे सामने चुनौतियां गंभीर हैं लेकिन सच यह भी है कि अवसर उससे भी ज्यादा पैदा हुए हैं’ – गणपति

‘हमारे सामने चुनौतियां गंभीर हैं लेकिन सच यह भी है कि अवसर उससे भी ज्यादा पैदा हुए हैं’ – गणपति

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भारत के क्रांतिकारी आंदोलन के इतिहास में सीपीआई (माओवादी) के पूर्व महासचिव गणपति को वही दर्जा हासिल है, जो चारु मजुमदार का हुआ करता है. गणपति का वास्तविक नाम मुप्पला लक्ष्मण राव है. ये सीपीआई (माओवादी) के सैद्धान्तिक और रणनीतिक मामलों में सबसे विश्वसनीय और दूरदर्शी नेता हैं, जिन्होंने सीपीआई (माओवादी) को तेजी से विकसित किया. इनकी दूरदर्शिता और राजनीतिक तीक्ष्णता का प्रमाण यह प्रस्तुत आलेख है, जिसे उन्होंने आज से तकरीबन 10 साल पहले लिखा था, जब मोदी सरकार सत्ता पर काबिज हुई थी.

यह लेख हलांकि उस दौर में एक भविष्यवाणी की तरह थी, लेकिन मोदी सरकार के 10 साल के शासनकाल के बाद अब यह लेख भविष्यवाणी नहीं लग रही है, बल्कि यर्थाथ बन गई है. आज जब माओवादी आंदोलन को 31 मार्च, 2026 तक खत्म कर देने का दावा मोदी सरकार के गृहमंत्री अमित शाह कर रहे हैं, और इस वर्ष 2024 के 10 महीनों में 171 माओवादियों को मार गिराया गया है, तब गणपति के इस लेख को पढ़ना समीचीन हो गया है. यह लेख 10 साल पहले वेबसाइट रिवोल्यूशनरी डेमोक्रेसी पर अंग्रेजी में प्रकाशित हुआ था, जिसका हिन्दी अनुवाद हम प्रकाशित कर रहे हैं – सम्पादक

'हमारे सामने चुनौतियां गंभीर हैं लेकिन सच यह भी है कि अवसर उससे भी ज्यादा पैदा हुए हैं' - गणपति
‘हमारे सामने चुनौतियां गंभीर हैं लेकिन सच यह भी है कि अवसर उससे भी ज्यादा पैदा हुए हैं’ – गणपति

हमारी पार्टी की केंद्रीय कमेटी ने पार्टी की 10वीं बर्षगांठ के मौके पर दिये अपने संदेश में पिछले 10 सालों का मूल्यांकन किया है, जिसमें हमारे द्वारा प्राप्त उपलब्धियों व विस्तार को दर्शाया गया है. उसमें हमारी कमजोरियों व खामियों सहित वस्तुगत परिस्थिति में अनुकूल व प्रतिकुल पहलूओं पर भी ध्यान दिलाया गया है. यह लेख पूरी पार्टी के सामने रखे गए सीसी संदेश के कुछ मुद्दों का विस्तार है, जो केन्द्रित है कुछ महत्वपुर्ण सबकों व चुनौतियों पर, जिसको हमें हराना है.

हमारी पार्टी नवजनवादी क्रांति को संपन्‍न करने के लिये शासक वर्गों के खिलाफ दीर्घकालीन जनयुद्ध के रास्ते पर पीएलजीए का नेतृत्व कर रही है. यह एक पूर्ण यूद्ध है. यह हर पहलू से – सैद्धांतिक, राजनैतिक, सैनिक, सांस्कृतिक, मानसिक और आर्थिक रूप से दीर्घकालिक है. यह भारतीय राजसत्ता को ध्वस्त करके, नयी राजसत्ता का निर्माण करेगा, जैसे अभी वर्तमान में क्रांतिकारी जनताना सरकार है. यह अभी छोटी ताकत है. इसे बड़े और शक्तिशाली दुश्मन को हराना है. इसलिए इसके सामने युद्ध के अलावा और कोई रास्ता नहीं है.

क्रांतिकारी युद्ध का हर तरीकों से दमन करने के लिए शासक वर्गों द्वारा प्रतिक्रांतिकारी युद्ध चलाया जा रहा है. इसका मकसद हमारा पूरी तरह से सफाया करना है. यह हमारी पार्टी की सामान्य समझदारी है और हम व्यवहार में प्रतिक्रांति को हरा कर उपलब्धि हासिल कर सकते हैं. लेकिन अभी तक हमारे द्वारा जो पर्याप्त समय व ध्यान इस पर दिया जाना चाहिए था, नहीं दिया गया.

दुश्मन ने अपनी प्रतिक्रांतिकारी युद्ध रणनीति व कार्यनीति (लो इनटेनसिटी कन्फ्लिक्ट, एलआईसी) को, विश्वव्यापी अनुभव से विकसित कर लिया. इसलिये हमारे सिद्धांत के अनुसार, हमारे व्यापक दृष्टिकोण के चलते हमारे अपने अनुभव को रोक नहीं पाया. हमने बाद में दुश्मन की एलआईसी नीति के खिलाफ अपनी नीति बनाई. लेकिन इसमें विलम्ब के चलते, हमारी पूरी पार्टी इसकी तीव्रता की गहरी समझदारी को नहीं पकड़ पाई कि प्रतिक्रांतिकारी युद्ध ठोस रूप से, व्यापक पैमाने पर पुर्ण युद्ध है. इस बाधा के कारण हम दुश्मन द्वारा खड़ी की जा रही चुनौतियों व उसके नये तरीकों का सामना करते हुए, अपेक्षित सफलतायें प्राप्त नहीं कर पाये.

हमारी पार्टी ने बड़ी संख्या में, दुश्मन के हमलों में हमारे कामरेडों को खो दिया. इसमें सीसी से लेकर ग्राम स्तर तक के कामरेड हैं. 2005 मई से अब तक नेतृत्व की भारी क्षति हुई है, एकता कांग्रेस के बाद भी यह जारी रही और 2011 में इस स्थिति ने गंभीर रूप ले लिया. नेतृत्व बड़े स्तर पर खुद की व कतारों की रक्षा करने में विफल हो गया. इसके चलते नवजनवादी क्रांति के तीन जादूई हथियार – पार्टी, पीएलजीए व संयुक्त मोर्चा भी कमजोर हुआ है. यह एक बहुत गंभीर विफलता है.

क्रांति में बलिदान अनिवार्य है. कभी भी क्रांति की अंतिम जीत दुश्मन की शक्ति को ध्वस्त करते हुए खुद की शक्ति को विकसित करते हुए हो सकती है. यही सूत्र दीर्घकालीक जनयुद्ध पर लागू होता है. जब जनता हथियार उठाती है, विद्रोह कर दुश्मन का सफाया करती है, वे क्रुरतम प्रति हमला करेंगे. वे क्रांति का खात्मा करने के लिये अत्यंत खूंखार व क्रूर हमले करेंगे.

नेतृत्व को हथियारबंद क्रांति की विजय के लिये, प्रतिक्रांति को हराते हुए, अंततः उसे पूरी तरह साफ कर देने के लिये तैयार रहना चाहिए, युद्ध में पार्टी को दुश्मन के हमलों से, वामपंधी, दक्षिणपंथी रुझानों से बचाते हुए विजय की ओर ले जाने में जीत के लिये निर्णायक पहलू है. यह नेतृत्व की जिम्मेदारी है. हम दुश्मन को टुकड़ों-टुकड़ों में खत्म करते हुए, कदम दर कदम अपनी शक्ति को बढ़ाते हुए दीर्घकालिन लोकयुद्ध को हमलों से बचा पायेंगे.

नक्सलबाड़ी दौर में पीछे-हट (Set-back) होने का सबसे महत्वपूर्ण कारण था, केंद्रीय नेतृत्व सहित आत्मगत ताकतों की भारी क्षति. यही कारण एपी व तेलंगाना के आंदोलन पर भी लागू होता है. पेरु की क्रांति पूरे केन्द्रीय नेतृत्व के गिरफ्तार होने से सेटबैक का सामना कर रही है. यह कड़वा अनुभव हमें शिक्षा देता है कि नेतृत्व की सुरक्षा का व आत्मगत ताकतों का संरक्षण कितना महत्वपुर्ण है. यह एक सैद्धांतिक व राजनीतिक मुद्दा है. इसे रणनीतिक रूप से देखा जाना चाहिए. यह दुश्मन की एलआइसी नीति को समझने से जुड़ा हुआ है. और यह पार्टी, सेना व संयुक्त मोर्चा की ताकत के निर्माण व उसे शक्तिशाली बनाने, जनाधार को विकसित करने से भी जुड़ा हुआ है.

इस मुद्दे पर हमारी पार्टी की सामान्य समझदारी ये है कि हमारा नुकसान उदारतावाद व व्यवहार में ठोस कमियों के कारण हुआ है. पिछले एक दशक के अनुभव से निचोड़ निकलता है. वस्तुगत परिस्थितियां क्रांति के बेहद अनुकूल हैं, फिर भी, इन अनुकूल परिस्थितियों का उपयोग क्रांति की विजय के लिये करना है तो योजनाबद्ध ढंग से, लगातार संघर्ष में आत्मगत ताकतों का सरंक्षण करना व विकसित करना बेहद जरुरी है.

वर्तमान में, जब दुश्मन का हमला बेहद गंभीर है, जब उसकी निगरानी व इनफिल्टरेशन (टोही) तरीके बहुत ही उन्‍नत हैं, आधुनिक तकनीक से लैस है, हमारे लिये जरुरी हो जाता है कि हम हमारी क्षमताओं को उन्नत करें और गुप्त ढांचे के लिये कार्यनीति सूत्रबद्ध करें और गुप्त तरीकों से हमारी आत्मगत ताकतों का सरंक्षण करें. हमें इन कार्यनीतियों को बहुत दृढ़तापूर्वक लागू करना होगा. इसे ही लागू करते हुए हम कदम व कदम विकसित हो सकेंगे.

हमें हमारे अनुभवों को दिमाग में रखना चाहिए. महान मार्क्सवादी शिक्षकों की शिक्षाओं व अनुभवों को जो बहुत देशों के क्रांतिकारी इतिहास से निकले हैं, उन शिक्षाओं से मार्गदर्शन करना चाहिए.

हमारी पार्टी को शक्तिशाली संगठन के रूप में विकसित करते हुए दीर्घकालीक लोकयुद्ध के पथ पर आगे बढ़ाना चाहिए. जनयुद्ध व जनाधार के बीच रिश्ता विकसित करते हुए उस पर उचित पकड़ कायम करनी चाहिए. न केवल वहां जहां आरपीसीस हैं बल्कि अन्य ग्रामीण इलाकों में भी किसानों व खेत मजदूरों को कृषि क्रांति में व्यापक रूप से गोलबंद करना चाहिए और गुरिल्ला युद्ध को आगे की ओर विकसित करना चाहिए.

इसके साथ-साथ ग्रामीण इलाकों में विकसित हो रहे नये मध्यम वर्ग को, अन्य उत्पीड़ित तबकों को क्रांतिकारी आंदोलन से जोड़ने में खामियों के चलते गुरिल्ला युद्ध के विकसित होने में नकारात्मक प्रभाव पड़ा है. पिछले 10 सालों में आंदोलन शहरी व मैदानी इलाकों में कमजोर हो गया है. इसके साथ-साथ हम गुरिल्ला जोनों के आसपास गैर किसानी व्यापक जनता को उल्लेखनीय स्तर पर गोलबंद नहीं कर पाये.

यह दोनों कमजोरियां हमारे केंद्रीय कार्यभार को पूरा करने में बड़ा नकारात्मक प्रभाव डाली हैं. लेकिन हमें देश के कई हिस्सों में व्यापक जनता को गोलबंद करने का अनुभव भी प्राप्त हुआ है जैसे – नंदीग्राम, लालगढ़, नरायणपटना आंदोलन, पृथक तेलांगाना आंदोलन व अन्य विस्थापन विरोधी आंदोलन. ये हमारे लिये नये अनुभव हैं, जिनसे हमें ध्यान देते हुए सीखना है.

हमें ग्रामीण इलाके के शहरी केंद्रों के सामाजिक मुद्दों पर पकड़ कायम करते हुए, अलग-अलग वर्गों की एकता का निर्माण करते हुए नये तरीकों के साथ जन गोलबंदी पर जोर देना चाहिए. यह सच्चाई है कि ‘भारतीय क्रांति की रणनीति-कार्यनीति‘ दस्तावेज में अन्य-अन्य मैदानी इलाकों में क्रांतिकारी आंदोलन खड़ा करने के लिये व्यापक कार्यनीतिक मार्गदर्शक नियम दिये गए हैं. उनको दिमाग में रखते हुए हमें देश में आ रहे बदलावों पर भी ध्यान देना है.

शहरी कामकाज से संबंधित योजना-दस्तावेज भी हमारे पास है. लेकिन उसकी परीक्षा तभी अच्छे से हो सकेगी कि हम उसे कैसे व कितनी गहराई से उसकी रणनीतिक महत्ता को समझ कर दोनों एरियाओं में लागू करते हुए कठिन कार्य को संपन्न करेंगे. इसके संबंध में खामियों व विफलताओं के कारण हम काफी आत्मगत ताकतों का नुकसान झेल चुके हैं, यहां दुश्मन के लिये हमारा दमन करना बहुत आसान होता है.

इस तरह की खामियों का महत्वपुर्ण कारण दृढ़ता के साथ सामाजिक जांचपड़ताल व अध्ययन न कर पाना है. मैदानी व शहरी इलाकों में ज्यादातर जनता साम्राज्यवाद, सामंतवाद व दलाल नौकरशाह पूंजीपति के शोषण से पीड़ित है. बहुत सारे आंदोलन मैदानी व शहरी इलाकों में उठ रहे हैं. दोनों ही इलाकों में वैश्विक आर्थिक संकट जनता को कुचल रहा है. जनता सैंकड़ों मुसीबतें उठा रही है. उसके पास क्रांति के बिना कोई विकल्प नहीं है. और हमारे जनयुद्ध का इन इलाकों की जनता पर बहुत प्रभाव पड़ा है.

इन इलाकों की वस्तुगत परिस्थिति क्रांति के बहुत अनुकूल हैं. यहां जनता के विभिन्न तबकों व वर्गों की मांगों पर परिस्थितियों के अनुकूल ठोस व सृजनात्मक रूप से पहुंच बनाने की जरूरत है. पहले से ही इन इलाकों में काम करने का हमारा दशकों का अनुभव है. और पिछले एक दशक की नयी परिस्थितियों में काम करने का अनुभव भी हमें प्राप्त है, जो आगे हमारी मदद करेगा. हमें अब
सृजनात्मक कार्य, योजनाबद्ध ढंग से करना है.

दुश्मन की बदली कार्यनीति व परिस्थितियों के अनुरूप नये तरीके लागू करने हैं. इसके साथ-साथ हमें दीर्घकालीन जनयुद्ध के तहत व्यापक इलाके में गुरिल्ला युद्ध का निर्माण करना होगा. जब दुश्मन गंभीर हमले करते हुए हमें जनता से अलग-अपने दीर्घकालीन युद्ध के राजनीतिक, सांगठनिक, सैनिक कार्यभार पूरे करने हैं व जनाधार को बढ़ाना है.

दुश्मन की नीति है हमें जनता से अलग-थलग करके खत्म करना. हमारी नीति होनी चाहिए गहराई से जनता में जाना, उनके साथ गहराई से जुड़ जाना व दुश्मन को ध्वस्त कर देना. वर्तमान वस्तुगत परिस्थितियां हमें ये सब करने के अच्छे मौके दे रही हैं. हमें इसका इस्तेमाल करते हुए राजनीतिक रूप से किसानों व अन्य तबकों की उत्पीड़ित जनता को कई राजनैतिक, आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, पर्यावरणीय आदि मुद्दों पर लामबंद करना चाहिए.

इन संघर्षों से जो सक्रिय तत्व आगे आएंगे हमें उन्हें सुदृढ़ करते हुए उनकी राजनैतिक, सैद्धांतिक चेताना को बढ़ाना चाहिए. इस प्रकार हम जरूर हमारे जनाधार व आत्मगत ताकतों को बढ़ा पाएंगे. हमें जरूर राजनैतिक रूप से दुश्मन के अंतरविरोधों का इस्तेमाल करने की पहलकदमी मुख्य दुश्मन को अलग-थलग करने के लिये लेनी चाहिए और उसे अंत में उसे खत्म कर देना चाहिए.

कई इलाकों की परिस्थिति के मुताबिक, सरकार जनता से हमें अलग-थलग कर खत्म करने के लिये विकास का भ्रम फैला रही है. हमें दुश्मन की एलआईसी को पराजित करने के लिये, हमारे द्वारा पहले से बनाई गयी नीति व खुद के अनुभवों के आधार पर कार्यनीति कार्यक्रम तैयार करने चाहिए.

इसके साथ-साथ पार्टी, पीएलजीए व जन संगठनों को दुश्मन द्वारा जारी निर्दयी मानसिक हमलों को हरा देना चाहिए. हमें व्यापक रूप से मालेमा, व नवजनवादी क्रांति की राजनीति को जनता में प्रचारित करते हुए आंदोलन को सफल करना चाहिए. हमें अपनी तमाम कमियों को हराने के लिये पर्याप्त रूप से सैद्धांतिक, राजनैतिक अध्ययन, सामाजिक विश्लेषण, अनुभावों का संश्ठेषण करते हुए व गैर सर्वहारा वर्ग रुझानों को दूर करना चाहिए.

लौह अनुशासन, जनवादी केंद्रीयता लागू करने में, गुप्त ढांचे व गुप्त कार्यपद्धति में और नेतृत्व की कार्यपद्धति व शैली में खामियां पार्टी के अंदर विचारों की एकता व कार्रवाई को ध्वस्त कर रही है. उपरी नेतृत्व सहित हमारी आत्मगत ताकतों के भाग जाने में यह एक कारण है… हमारी पार्टी की सैद्धांतिक, राजनीतिक, सैनिक लाईन सही है. यही दीर्घकालीन जनयुद्ध की अंतिम विजय में निर्णायक तत्व है.

फिर भी हमारे व्यवहार की गलतियों व कमियों के कारण हमारी मंजिल तक पहुंचने में तात्कालिक रूप से विफलता व कठिनाई सामने आयी है. हमें हमारी राजनैतिक व सैनिक लाईन को मजबूती के साथ पकड़े रहना है. मालेमा की रोशनी में हमारी राजनैतिक, सांगठनिक व सैनिक कामकाज को ठीक करना है. हम फिर विजय पथ पर आगे बढ़ सकते हैं.

हमारी पार्टी ने 1970 को दौरान भी इसी तरह देशव्यापी सेटबैक का दौर झेला है, फिर से कदम व कदम आंदोलन को विकसित किया है. उस समय हम भारतीय क्रांति के दृश्यपटल से ओझल हो गए थे और फिर मजबूती से उभर कर सामने आए. कई देशों की सफल क्रांतियों का ऐसा ही अनुभव है. वे हार कर सही रवैया अपनाई.

वर्तमान परिस्थितियों में हमारी पार्टी का कुंजीभूत कार्य है कि जिन कठिन परिस्थितियों व कमजोरियों का हम सामना कर रहे हैं, उनसे निकलने के लिये पार्टी को उस योग्य बनाना, उस रास्ते की तरफ मोड़ना और आंदोलन को आगे बढ़ाना. इसके लिये हमें हमारे पुराने अनुभवों से सबक लेने चाहिए. और हर स्तर पर चर्चा की जानी चाहिए.

हर स्तर पर हमारे कामरेडों को अपने अनुभवों पर चर्चा करनी चाहिए, अपनी गलतियों मानना चाहिए. उनको सुधारने के लिये कदम उठाने चाहिए. हमें महान मार्क्सवादी शिक्षकों की शिक्षाओं का अध्ययन करना चाहिए. अगर हम केवल सफलताओं को ही देखते रहेंगे, विफलताओं व कठिन परिस्थिति को अनदेखा करते रहेंगे तो अवश्य ही हम पिछली गलतियों को नहीं सुधार पायेंगे व निराशावाद का शिकार हो जायेंगे….. एक और अन्य महत्वपूर्ण काम है पार्टी निर्माण में गुणवत्ता को बढ़ाना. जब नये लोगों को पार्टी सदस्यता दी जाती है, जब उनको पेशेवर क्रांतिकारी के रूप में विकसित किया जाता है, जब उनको पदोन्नति दी जाती है हमें गुणवत्ता को महत्व देना चाहिए.

हमे जनसंगठनों व पीएलजीए में से सक्रिय सदस्यों को पार्टी सदस्यता देनी चाहिए. उनको पार्टी संविधान के अनुसार प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए. पार्टी के अंदर नई भर्तियों से न केवल हमारा विस्तार होता है. ब्लकि युवा खून व नया अनुभव भी साथ में आता है. पार्टी की गुणवत्ता का सुधार करने के लिये मालेमा अध्ययन व प्रशिक्षण को एक अभियान के तौर पर चलाना चाहिए. हमें चाहिए कि हम ठोस परिस्थितियों का अध्ययन करें, उन पर चर्चा करें और उन के अनुरूप सृजनात्मक रूप से हमारी राजनीति व सिद्धांतों को लागू करें. पार्टी निर्माण के सारे प्रयास बोल्शेविकीकरण अभियान से जोड़े जाने चाहिए.

इस कार्यक्रम को सफल बनाने के लिए हमें सैद्धांतिक, राजनैतिक स्तर उंचा उठाना चाहिए. और पार्टी की सांगठनिक एकता को बढ़ाना चाहिए. इससे व्यापक जनाधार को बढ़ाने की योग्यता, पीएलजीए को दक्षता के साथ नेतृत्व करने की क्षमता बढ़ाते हुए जनयुद्ध को आगे बढ़ाना चाहिए.

वर्तमान अनुकूल परिस्थितियों में आंदोलन को विकसित करने के लिये जरुरी है पर्याप्त आत्मगत शक्तियां. यहां तक कि जब हमारी ताकतें कमजोर हैं, अगर हम दृढ़ता के साथ सही राजनैतिक व सांगठनिक प्रयास करें, तो अनुकूल वस्तुगत परिस्थितियां हमें अच्छे तरीके से अपनी आत्मगत ताकतों को बढ़ाने का मौका दे रही हैं.

हमारा पूराना अनुभव यही साबित करता है. अगर हम इसे ध्यान में न रखते हुए अदिभौतिकवादी (metaphysical) दृष्टिकोण से सोचेंगे तो निष्क्रिय हो जायेंगे, यह सोचना की हमारी आत्मगत ताकत कमजोर है, तो हम कभी भी इन कठिन परिस्थितियों को तोड़ नहीं पायेंगे. दीर्घकालीन जनयुद्ध का रास्ता हमें सिखाता है कि कैसे एक कमजोर ताकत शक्तिशाली ताकत में बदल जाती है, कि कैसे एक कमजोर आंदोलन शक्तिशाली आंदोलन में विकसित हो जाता है.

रुसी क्रांति सफल होने से पहले, अंतर्राष्ट्रीय कम्युनिस्ट आंदोलन पर संशोधनवादियों का नियंत्रण था और लेनिन के नेतृत्व में बोल्शेविक जैसे सच्चे क्रांतिकारी अल्पमत में थे. अक्तुबर क्रांति ने दूसरे इंटरनेशनल के संशोधनवाद को चकनाचुर कर दिया और इसके बाद दुनिया के स्तर पर बड़ी संख्या में क्रांतिकारी व कम्युनिस्ट पार्टियों का उदय हुआ. और जब खुश्चेवी संशोधनवाद के खिलाफ माओ के नेतृत्व में चीन कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीसी) ने संघर्ष छेड़ा तब सीपीसी के साथ कुछ ही पार्टियां खड़ी हुई थी.

लेकिन महान सर्वहारा सांस्कृतिक क्रांति फिर से नयी पार्टियों और क्रांतियों की शक्तिशाली लहर लेकर आई. हमारा क्रांतिकारी आंदोलन व फिलिपिन्स का दीर्घकालीन जनयुद्ध उसी लहर का हिस्सा है. फिर एक बार, जब संशोधनवादी देंग के नेतृत्व में चीन की सत्ता पर कब्जा किया, उसके खिलाफ कुछ ही पार्टियां खड़ी हुई थी. लेकिन संघर्ष ने पेरु और नेपाली क्रांति को जन्म दिया. हालांकि वे भी नव संशोधनवाद के कारण सेटबैक का शिकार हुई. लेकिन सबक अभी बचा है. क्रांति के निर्माण में पूरी शक्ति के साथ अनुकूल परिस्थितियों का उपयोग करते हुए साम्राज्यवाद और उसके प्रतिक्रियावादी हथियार संशोधनवाद को हराना होगा.

मालेमा पर दृढता के साथ खड़े रहते हुए, सर्वहारा के सिद्धांत से और क्रांतिकारी पथ पर डटे रहकर चुनौतियों का सामना करते हुए विजय प्राप्त की जा सकती है. 2008 से साम्राज्यवादी व्यवस्था का विश्वव्यापी संकट जारी है. यह उत्पीडित देशों और साम्राज्यवाद दोनों के लिए संदेश है कि एक बार फिर संघर्षों का समय आ रहा है. दीर्धकालीन लोकयुद्ध जारी है. हमारी पार्टी के नेतृत्व में जारी जनयुद्ध को पूरी दुनिया में व्यापक समर्थन मिल रहा है.

प्रचंड भट्टराई गुट के विश्वासघात व परिसमापनवाद (liquidationism) से लड़ते हुए माओवादी ताकतों की एकता बढ़ रही है. दुनिया की वस्तुगत परिस्थितियां क्रांतिकारी लहर के लिए शक्तिशाली व बहुत प्रबल दिखाई दे रही है. लेकिन यह भी दिख रहा है कि हमारी आत्मगत ताकतें गंभीर रुप से वस्तुगत परिस्थितियों की प्रबलता व माओवादी ताकतों की आत्मगत क्षमता में बड़ा अंतर है.

दुनिया की क्रांतियों का इतिहास हमें सिखाता है कि विजय की ओर बढ़ने का एक ही रास्ता है हिलाकर रख देने वाली (waging) क्रांति. इस के लिये हमारी बड़ी जिम्मेदारी बनती है. पार्टी के अंदर कई तरह के विचारों का संघर्ष, समाज में जारी वर्ग संघर्ष का प्रतिबिम्ब है. हमेशा और खासकर तब हमें दिमाग में रखना चाहिए, जब आंदोलन कठिन परिस्थितियों का सामना करता है, पार्टी के अंदर वामपंथी व दक्षिणपंथी अवसरवादी रुझान पार्टी में आने की संभावना ज्यादा रहती है. अगर ऐसे समय में हम सतर्क नहीं रहते और इसके खिलाफ संघर्ष नहीं करते, उस समय हम ज्यादा नुक्सान उठायेंगे.

अगर हम क्रांतिकारी ताकतों का अंकलन बढ़ा-चढ़ाकर करते हैं और दुश्मन को छोटा करके देखते हैं, तब हमारी पार्टी वामपंथी गलती से ज्यादा नुक्सान झेल सकती है. और अगर हम दुश्मन की ताकतों का ज्यादा आंकलन करते हैं, हमारी ताकत को कम आंकते हैं. तब फिर पार्टी दक्षिणपंथी गलती से नुकसान झेल सकती है. आज के दौर में यह मुख्य खतरा है. हमें पार्टी के अंदर वाम व दक्षिण दोनों तरह के रुझानों के खिलाफ सही पार्टी पद्धति के साथ आंतरिक संघर्ष चलाना चाहिए, फिर भी हमें हर मतभेद को बुनियादी और पूरी लाईन के खिलाफ के रूप में नहीं देखना चाहिए, न ही अंतहीन बहसों में पड़ना चाहिए.

किसी भी विषय को स्पष्ट रूप से संबंधित कमेटी में सही तरीके से हमारे संविधान के अनुसार चर्चा करनी चाहिए. पार्टी के अंदर भिन्‍न विचारों, भिन्न दृष्टिकोण को उठाने का यही सही तरीका है. कुछ लोग दीर्घकालीन लोकयुद्ध के श्रमसाध्य पथ पर चलने को तैयार नहीं है और आत्मबलिदान की भावना भी खो चुके हैं. वे सोचते हैं हमेशा दुश्मन की ताकत ज्यादा रहेगी और जनता की ताकत कम रहेगी.

वे दुश्मन के साथ हाथ मिलाने के लिये दिवालिये तर्क पेश कर रहे हैं. हमें ऐसे विश्वासघातियों के खिलाफ शक्तिशाली तरीके से लड़ना चाहिए. हाल ही में, हमारे देश में फिर एक बार कुछ व्यक्ति दृष्टिकोण लाये हैं कि भारत के अर्धसामंती संबंध, पूंजीवादी संबंधों में बदल गए हैं और भारत के समाज में दीर्घकालीन लोकयुद्ध की लाईन हमारे देश में फिट नहीं बैठती. कुछ लोग इनमें से अस्पष्ट रूप से बगावत की लाईन पर तर्क करते हैं. भारत की कम्युनिस्ट लीग (सीएलआई) 30 साल पुरानी समझदारी से अपनी लाईन पर जमी हुई है. वह अच्छी तरह से जानती है कि उसके सालों के व्यवहार में उसे छोटी सी सफलता भी नहीं मिली है. हमें सिरे से इस रुझान को खारिज कर देना चाहिए, दूसरे विश्वयुद्ध के बाद उत्पीड़ित देशों अमेरिकी साम्राज्यवाद के नेतृत्व उसके व उसके नौकरों के अंदर नव-उपनिवेश किस्म के बहुत सारे बदलाव दिखते हैं.

इसके बावजूद, ग्रामीण व शहरी जनसंख्या वाले देश में मुक्ति संघर्ष व नयी जनवादी क्रांतियां दीर्घपथ व दीर्घकालीन जनयुद्ध की लाइन अपना रहे हैं. कुछ देशों में दीर्घकालिक लोकयुद्ध के रास्ते पर क्रांतियां जारी हैं. यह इसलिये संभव हुआ क्योंकि वहां बुनियादी रूप से समाज का अर्ध सामंती व अर्ध औपनिवेशिक स्वभाव और बुनियादी अंतरविरोध मौजूद हैं. इसी कारण से दशकों से हमारे देश में भी नवजनवादी क्रांति जारी है. इन्हीं सामाजिक संबंधों से जनता जुड़ रही है और क्रांति का निर्माण कर रही है. 1947 के बाद हमारे देश की आर्थिक, राजनीतिक, सांस्कृतिक व अन्य पहलुओं में उल्लेखनीय बदलाव भी आये हैं, फिर भी उनसे समाज के स्वभाव में कोई गुणात्मक बदलाव नहीं आया है.

इस ऐतिहासिक सच्चाई को हमारे देश की नवजनवादी क्रांति का इतिहास बखूबी साबित करता है. इसलिये उनके गलत दृष्टिकोण का अस्वीकार कर देना चाहिए. और उनके द्वारा लाये जा रहे तर्कों का पर्दाफाश करना चाहिए. सभी देशों व समाजों में जहां वर्ग अंतरविरोध व वर्ग संघर्ष लगातार तीखा है वहां लगातार बदलाव भी नजर आते हैं. हमारे देश में भी, न केवल आर्थिक, राजनीतिक व सांस्कृतिक पहलू बल्कि परिवहन, संचार, मीडिया, तकनीक, युद्ध कला, धरातल (topography), शहरी व ग्रामीण क्षेत्र में जनसंख्या अनुपात, प्रशासन व न्यायिक व्यवस्था आदि में काफी बदलाव आये हैं, जिनका जनयुद्ध पर काफी प्रभाव पड़ता है.

एलपीजी के समय में, भी हमारे देश में असमान विकास हुआ है. और तो और पहले भी ऐसा था. हमें अपनी राजनीतिक व सैनिक लाईन पर मजबूती से डटे रहना चाहिए. और गहराई से बदलाओं का अध्ययन करना चाहिए. उनको हमारी रणनीति और कार्यनीति के बीच दूुंद्वात्मक संबंधों के नजरिए से देखना चाहिए.

ये बदलाव हमारी रणनीति के कुछ पहलूओं पर प्रभाव डालते हैं. वह ये कि हमें हमारी रणनीति को सृजनात्मक रूप से लागू करते हुए हमारी कार्यनीति का विकास करना चाहिए. हमें चाहिए कि हम उन नारों, संघर्षों व सांगठनिक तरीकों में जरुरी बदलाव लायें, जो व्यापक जनता को जनयुद्ध में नहीं जोड़ पा रहे हैं.

यह पहले भी जरुरी था. और आज तो और भी जरूरी है जब बदलाव बहुत जल्दी-जल्दी आ रहे हैं. जब वर्ग संघर्ष लगातार प्रचंड रूप से जारी हो, परिस्थितियों का अध्ययन व जांचपड़ताल करके उनके अनुरूप कार्ययीति बनाने का कार्य अत्यंत महत्वपूर्ण होता है. इसलिये हमारे देश में हमें इस संबंध में आ रहे बदलावों का एक अलग नजरिए से भी अध्ययन करना चाहिए. हमारे देश के कई पहलूओं में अभूतपूर्व रूप से नव उपनिवेशवादी शोषण-उत्पीड़न व साम्राज्यवादी नियंत्रण में आये कई बदलाओं को समझने के लिये यह अनिवार्य हो जाता है.

यह हमारी कार्यनीति को तय करने के नजरिए से बेहद जरूरी है. हमारे दस्तावेज – भारतीय क्रांति की रणनीति और कार्यनीति में हमारे देश व दुनिया की परिस्थितियों का स्पष्ट रूप से अध्ययन किया गया है. मालेमा की रोशनी में जांच-पड़ताल व विश्लेषण किया गया है. पार्टी को इसके आधार पर शिक्षित करना चाहिए. सक्रिय व व्यापक रूप से जनता को गोलबंद करते हुए संघर्ष, संघर्ष के रुपों व संगठन के रुपों का विकास करना अत्यंत जरूरी है. अगर लागू की जा रही कोई कार्यनीति लंबे समय तक परिस्थितियों के अनुरूप फिट न बैठती हो तो जरूर आंदोलन नष्ट हो जाता है.

हम पहले से ही आंध्रा के आंदोलन की ऐसी समीक्षा एक गलती के रूप में कर चुके हैं. हम ऐसी कुछ गलतियों को पिछले दशक में भी समझ चुके हैं. जहां पार्टी मजबूत है, वहां पहल अपने हाथ में रखनी चाहिए, जहां कमजोर है वहां पुनः ताकत प्राप्त करनी चाहिए. और गलतियों को सुधारते हुए आंदोलन का विकास करना चाहिए.

मालेमा के सैद्धांतिक हथियार को मजबूती के साथ पकड़े हुए, सृजनात्मक रूप से राजनीतिक, सैनिक लाईन को लागू कर विकसित करते हुए, राजनीतिक, सांगठनिक और सैनिक संघर्ष में प्रयास करते हुए अपनी कमजोरियों पर पार पा सकते हैं.ऐसे ही हम सही व्यवहार से एक बार फिर हमारे करे कार्य क्षेत्र में अनुकूल वस्तुगत परिस्थितियों को पुनः प्राप्त कर, सामना कर रही परिस्थितियों से निकल कर नवजनवादी क्रांति में विजय हासिल कर सकते हैं.

हमने चुनाव बाद की परिस्थिति का अकलन करने हुए, सीसी ने चिन्हित किया है कि आरएसएस प्रभाव वाली एनडीए सरकार के आने के बाद ब्राह्मणवादी हिंदू फासीवाद का खतरा बढ़ गया है. इसके खिलाफ सभी क्रांतिकारी, जनवादी संगठनों, ताकतों, व व्यक्तियों सहित तमाम जनता को एकजूट कर, व्यापक आधार पर शक्तिशाली आंदोलन खड़ा करना अति आवश्यक और महत्वपुर्ण कार्यभार है. धार्मिक अल्पसंख्यकों व दलितों पर हमले व उत्पीड़न बढ़ेगा. इनके निशाने पर प्रगतिशील बुद्धिजीवी और आंदोलन भी आएंगे. जैसे जैसे हिंदू फासीवाद बढ़ेगा व सत्ता मोदी के हाथों में सिमटती रहेगी, तब शासक वर्गों के बीच के अंतरविरोध भी तीखे होते जायेंगे.

हिंदी, हिंदू, हिंदस्तान का छुपा हुआ एजेंडा जैसे-जैसे लागू होगा, वैसे वैसे राष्ट्रवादियों की तरफ से विरोध सामने आयेगा. ये सब परिस्थितियां व्यापक ताकतों को संघर्ष में लाने के लिये हमें नये व विभिन्‍न प्रकार के मौके मुहैया करवाएंगी. मोदी सरकार एलपीजी एजेंडे को आक्रामक रूप से लागू करेगी, जिस से हमारे देश पर नव उपनिवेशवादी शिकंजा कस जाएगा. राष्ट्रवाद के झूठे जूमलों से इसे ढ़का जाएगा. संघ परिवार राष्ट्रवाद का दिखावा कर रहा है. जबकि तथ्य यह है कि मोदी देश को थोक के भाव में बेच रहा है. मोदी के सच्चे साम्राज्यवाद व सामंतवाद परस्त स्वभाव के खिलाफ व्यापक व ठोस प्रचार चलाकर उसे नंगा कर देना चाहिए.

आपरेशन ग्रीनहंट का नया चरण शुरु हो चुका है. मोदी सरकार राष्ट्रीय मुक्ति संघर्षो व जन आंदोलन के खिलाफ भी कदम उठाना शुरु कर दी है. जनता पर यह हमला काले कानूनों के साथ, साधारण कानूनों तक का उल्लंघन करके, राजनीतिक कैदियों को उत्पीड़ित करके और किसी भी मुद्दे के उठाने वाले कार्यकर्ताओं पर भी किया जा रहा है. हमें ऐसे मुद्दों में उत्साह के साथ हस्तक्षेप करना चाहिए. यह सब व्यापक व शक्तिशाली मानव व नागरिक अधिकार आंदोलन खड़ा करने के लिए अवसर प्रदान करता है. हमें इसे राजनीतिक कैदियों के अधिकारों के लिए और ऑपरेशन ग्रीनहंट के खिलाफ गतिविधियों से जोड़ना चाहिए.

मोदी सरकार का आक्रमक विकास का एजेंडा अभूतपूर्व रूप से विस्थापन लेकर आयेगा. बड़े पैमाने पर आदिवासी जनता इससे गंभीर रूप से प्रभावित होगी. हमें इसमें सक्रिय व प्रत्यक्ष रूप से सही व पद्धति के साथ उनके बीच जाना चाहिए या समर्थक की भूमिका निभानी चाहिए, हमें यह ध्यान रखना चाहिए कि इससे हम बड़े जन आंदोनल खड़ा कर सकते हैं. मोदी सरकार की आक्रामक नव उदारवादी नीतियां किसानों, मजदूरों, सरकारी कर्मचारियों सहित महिला, छात्र-नौजवान आदि तबकों को बुरी तरह से प्रभावित करेंगी.

हमें ध्यान देकर ऐसे मुद्दों में हस्तक्षेप करते हुए जनता को संघर्षों में गोलबंद करना चाहिए. इससे हम मौजूद परिस्थितियों से बाहर आ पायेंगे, हमें हमारी आत्मगत ताकतों को बचाना चाहिए, उनको सुदृढ़ करना चाहिए, जन आधार को मजबूत करते हुए दीर्घकालीन जनयुद्ध को तेज करते हुए शक्तिशाली बनाना चाहिए. मोदी सरकार के बाद आयी परिस्थितियों का उपयोग करते हुए इस दिशा में जाना है.

इस में कोई संदेह नहीं है कि हमारे सामने चुनौतियां गंभीर हैं लेकिन सच यह भी है कि अवसर भी ज्यादा पैदा हुए हैं. हमें चाहिए कि हम साहस के साथ गहराई व व्यापकता के साथ विभिन्‍न वर्गों व तबकों की जनता में जायें, राजनीतिक रूप से उनको संघर्षों में गोलबंद करें. हमें चाहिए कि हम मोदी सरकार की हर जनविरोधी, देश विरोधी नीतियों व कदमों पर प्रतिक्रिया दें, उसका तुरंत पर्दाफाश करें, उसके खिलाफ जनता को संघर्षों में लामबंद करें, और उनको दीर्घकालीन जनयुद्ध के साथ जोड़ दें. हम सब को बाहर निकल कर इन मौकों को पकड़ लेना चाहिए.

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ROHIT SHARMA

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