रंगनाथ सिंह
दिल्ली में कुछ पक रहा है. केंद्र सरकार ने दिल्ली के तीन नगरनिगमों का विलय करके फिर से उन्हें एक नगरनिगम बना दिया है. लगभग 10 साल पहले एक निगम को तोड़कर तीन निगम बनाये गये थे. चार दिन पहले एक मित्र ने जरा मजाकिया ढंग से लिखा कि दिल्ली विधानसभा समाप्त कर देनी चाहिए और यहां 1993 के पहले की तरह महानगर परिषद वाली व्यवस्था दोबारा लागू की जानी चाहिए. आज एक वरिष्ठ पत्रकार ने अपने आलेख में कहा कि केंद्र सरकार इस दिशा में सोच रही है यानी यह बात मजाक में टालने वाली नहीं है.
दिल्ली के तीनों निगमों के विलय वाले एमसीडी विधेयक पर सदन में हुई चर्चा के दौरान केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने आम आदमी पार्टी के राज्य सभा सांसद संजय सिंह के ‘केजरीवाल फोबिया’ के आरोप का पूरी गम्भीरता से ब्योरेवार जवाब दिया. अगर दिल्ली विधानसभा रद्द करके महानगर परिषद वाली पुरानी व्यवस्था राजधानी में फिर से लागू होती है तो दिल्ली का चुनाव जीतकर मेयर बना जा सकेगा, मुख्यमंत्री नहीं. अमित शाह ने सदन में आम आदमी पार्टी पर तंज कसते हुए कहा था कि एमसीडी लेते-लेते कहीं आपकी दिल्ली सरकार न चली जाए.
पंजाब में चुनाव जीतने के बाद अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली विधानसभा में कश्मीर फाइल्स के बहाने जिस तरह भाजपा को ललकारा था, उसकी गूंज भी अमित शाह के बयान में सुनायी दे रही थी. इस साल जिन राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं उनमें से गुजरात और हिमाचल प्रदेश में आम आदमी पार्टी सत्ताधारी भाजपा को चुनौती देने का प्रयास कर रही है. दिल्ली के दो विधानसभा चुनावों में केजरीवाल भाजपा को बुरी तरह शिकस्त दे चुके हैं. गोवा में आप का प्रदर्शन लचर रहा. अब देखना यह है कि अबकी दिल्ली से बाहर आप और भाजपा की सीधी टक्कर में क्या नतीजा रहेगा ?
आम आदमी पार्टी की सफलता का अब तक का इतिहास यही है कि जहां वह कांग्रेस की पूरी जगह घेर लेती है, वहां सत्ता में आ जाती है. गुजरात और हिमाचल दोनों जगह मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस है. राजस्थान में कांग्रेस सत्ताधारी दल है. इन तीनों राज्यों में आप के पास कांग्रेस की जगह घेरने का मौका होगा. यदि भाजपा नीत सरकार दिल्ली विधानसभा को समाप्त कर देती है तो केजरीवाल के पास विक्टिम कार्ड खेलने का सुनहरा अवसर होगा लेकिन मूल सवाल यह है कि क्या सचमुच केंद्र सरकार दिल्ली विधानसभा को समाप्त करने की योजना बना रही है ?
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