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संघ की सबसे बड़ी देन – देश के नायकों से घृणा करना

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संघ की सबसे बड़ी देन है देश के नायकों के से घृणा करना
संघ की सबसे बड़ी देन – देश के नायकों से घृणा करना
कृष्ण कांत

कुछ लोगों ने रूस और यूक्रेन युद्ध के बहाने भी गांधी को गाली देने का बहाना खोज लिया. युद्ध के मद्देनजर लिख रहे हैं कि रूस ने भारत से चरखा नहीं मांगा, मोदी से सलाह मांगी. यह दोनों बातें झूठ हैं. न तो दुनिया में कोई युद्ध चरखे से जीतने का कभी दावा किया गया, न ही मोदी से किसी ने कोई सलाह मांगी है. गांधी ने खुद कभी चरखे से युद्ध जीतने का दावा नहीं किया, न किसी इतिहासकार ने ऐसा लिखा है कि भारत ने चरखे से कोई युद्ध जीता.

भारत ने अपनी आजादी के लिए एक बहुत लंबा आंदोलन चलाया जिस दौरान भारतीयों के स्वावलंबन के लिए चरखा, खादी, स्वदेशी, खेती जैसी चीजों पर जोर दिया गया था. चरखा एक बहुत बड़े भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन का एक छोटा-सा औजार था, जिसकी मदद से लोगों को रोजगार देने और तन ढंकने की कोशिश की गई.

पिछली सदी में भारत पर शासन कर रहे अंग्रेज महात्मा गांधी के प्रति घोर वैमनस्य और घृणा का भाव रखते थे. संघियों में यह भाव तब भी था और दिलचस्प है कि इनमें यह घृणा आज भी है. तब के अंग्रेज आज बदल गए. आज वे गांधी को महापुरुष मानते हैं लेकिन संघी अब तक नहीं सुधरे, वे गांधी से आज भी वैसी ही घृणा रखते हैं. गांधी से घृणा के मामले में हमारे संघी भाई लोग गांधी की हत्या करके अंग्रेजों से आगे निकल गए थे और आज तक सबसे आगे चल रहे हैं.

विंस्टन चर्चिल ‘अधनंगा फ़क़ीर’ कहकर गांधी का मजाक उड़ाता था क्योंकि गांधी उसका साम्राज्य ढ़हाने वाले आंदोलन की अगुवाई कर रहे थे लेकिन आज़ादी के सत्तर साल बाद भी देश की सत्ता में बैठकर संघी छेवने गांधी के बारे में अनाप-शनाप बकते रहते हैं. यह हमारे देश की जनता को संघ की सबसे महान देन है कि संघ के समर्थक इस देश के नायक के प्रति घृणा का प्रसार करें.

वे ऐसा इसलिए करते हैं क्योंकि वे नहीं जानते कि गांधी के चरखे और गांधी की धोती का मजाक उड़ाना अपने पुरखों का मजाक उड़ाना है. गांधी तो विलायत से बैरिस्टर बनकर भारत लौटे थे. उन्होंने सूटबूट उतारकर धोती क्यों धारण की ? वे महात्मा कैसे बने ? किसने बनाया ? इसे न समझने वाले लोग भारत के बारे में कुछ भी नहीं जानते. गांधी के निर्वस्त्र होने या चरखे का मजाक उड़ाने का मतलब भारत के भीषण संघर्ष, गरीबी और गुलामी से जूझते करोड़ों लोगों का मजाक उड़ाना है, जिसमें हमारे आपके पूर्वज शामिल हैं.

गांधी ने सूटबूट त्याग कर धोती क्यों धारण की ?

चंपारण में नील की खेती करने के लिए अंग्रेज किसानों पर अत्याचार करते थे. गांधी यहां आए तो लोगों ने उन्हें अंग्रेजी अत्याचार की अनंत गाथाएं सुनाईं. जब गांधी को बताया ​गया कि नील फैक्ट्रियों के मालिक कथित निचली जाति के औरतों और मर्दों को जूते नहीं पहनने देते तो उसी दिन से विरोध स्वरूप गांधी ने जूते पहनने बंद कर दिए.

8 नवंबर 1917 को सत्याग्रह का दूसरा चरण शुरू हुआ. उनके साथ गए लोगों में कस्तूरबा समेत छह महिलाएं भी थी. यहां पर लड़कियों के लिए तीन स्कूल शुरू हुए. लोगों को बुनाई का काम सिखाया गया. कुंओं और नालियों को साफ-सुथरा रखने के लिए प्रशिक्षण दिया गया. गांधी ने कस्तूरबा से कहा कि वे औरतों को हर रोज़़ नहाने और साफ-सुथरा रहने के बारे में समझाएं.

कस्तूरबा जब औरतों को समझाने लगीं तो एक औरत ने कहा, ‘बा, आप मेरे घर की हालत देखिए. आपको कोई बक्सा या अलमारी दिखता है जो कपड़ों से भरा हुआ हो ? मेरे पास केवल एक यही एक साड़ी है जो मैंने पहन रखी है. आप ही बताओ, मैं कैसे इसे साफ करूं और इसे साफ करने के बाद मैं क्या पहनूंगी ? आप महात्मा जी से कहो कि मुझे दूसरी साड़ी दिलवा दे ताकि मैं हर रोज इसे धो सकूं.’

यह बात सुनकर गांधी ने अपना चोगा ‘बा’ को दिया कि उस औरत को दे आओ. इसके बाद से ही उन्होंने चोगा ओढ़ना बंद कर दिया. 1918 में गांधी अहमदाबाद में करखाना मज़दूरों की लड़ाई में शामिल हुए. वहां उन्होंने महसूस किया कि उनकी पगड़ी में जितने कपड़े लगते हैं, उसमें ‘कम से कम चार लोगों का तन ढंका जा सकता है.’ इसके बाद उन्होंने पगड़ी पहनना छोड़ दिया.

31 अगस्त, 1920 को खेड़ा सत्याग्रह के दौरान गांधी ने प्रण किया था कि ‘आज के बाद से मैं ज़िंदगी भर हाथ से बनाए हुए खादी के कपड़ों का इस्तेमाल करूंगा.’

1921 में गांधी मद्रास से मदुरई जाती हुई ट्रेन में भीड़ से मुखातिब होते हुए. गांधी के शब्दों में ही, ‘उस भीड़ में बिना किसी अपवाद के हर कोई विदेशी कपड़ों में मौजूद था. मैंने उनसे खादी पहनने का आग्रह किया. उन्होंने सिर हिलाते हुए कहा कि हम इतने गरीब है कि खादी नहीं खरीद पाएंगे.’

गांधी ने लिखा है, ‘मैंने इस तर्क के पीछे की सच्चाई को महसूस किया. मेरे पास बनियान, टोपी और नीचे तक धोती थी. ये पहनावा अधूरी सच्चाई बयां करती थी, जहां लाखों लोग निर्वस्त्र रहने के लिए मजबूर थे. चार इंच की लंगोट के लिए जद्दोजहद करने वाले लोगों की नंगी पिंडलियां कठोर सच्चाई बयां कर रही थीं. मैं उन्हें क्या जवाब दे सकता था जब तक कि मैं ख़ुद उनकी पंक्ति में आकर नहीं खड़ा हो सकता हूं तो. मदुरई में हुई सभा के बाद अगली सुबह से कपड़े छोड़कर मैंने ख़ुद को उनके साथ खड़ा किया.’

चंपारण सत्याग्रह से अपने वस्त्रों पर खर्च कम करने का यह प्रयोग करीब चार साल तक चला और अंतत: गांधी गांव के उस अंतिम आदमी की तरह रहने लगे ​जिसके तन पर सिर्फ एक धोती रहती थी. गांधी गरीब जनता का नेता था. गांधी का निर्वस्त्र शरीर विदेशी कपड़ों के बहिष्कार के लिए हो रहे सत्याग्रह का प्रतीक बन गया, क्योंकि देश का शरीर भी निर्वस्त्र था.

खादी इन गरीबों का निर्वस्त्र शरीर ढंकने के लिए थी, जिसे जनता खुद बना सकती थी. चरखा लोगों के लिए अपना कपड़ा और अपनी रोटी का इंतजाम करने के लिए रोजगार का ​साधन था. चरखा गरीबी से लड़ने का एक हथियार था. चरखा और खादी स्वावलंबन का हथियार था. क्या यह बात समझना कठिन है ?

आज जो लोग चरखे का या गांधी के निर्वस्त्र होने का मजाक उड़ा रहे हैं, उनकी सोच 100 साल पीछे ठहर कर जड़ हो गई थी. वे उसी जड़ता के शिकार हैं. जब आप दस लाख का सूट पहनने वाले ठग को ‘विष्णु का अवतार’ बताने लगते हैं, तब धोती पहने लाठी लिए एक अधनंगा फकीर आपको मजाक का विषय लगेगा ही.

ऐसा तब होता है जब आपको अपनी जड़ों से उखाड़ दिया जाए. मैंने इसी सदी में अपने गांव के बुजुर्गों को गांधी की तरह एक धोती में देखा है. मुझे तो गांधी अपने बाबाओं और दादाओं की तरह लगते हैं. गांधी पर हंसने वाले अहमक किस ग्रह से आन कर लाए गए हैं ?

गांधी के निर्वस्त्र रहने, चरखा चलाने और खादी पहनने का मजाक उड़ाने का अर्थ है आजादी के लिए संघर्ष कर रही करोड़ों भूखे और अधनंगे लोगों का अपमान करना. क्या हमारी पी​ढ़ी को अपने पुरखों को अपमानित करने की नीचता में फंसाया जा रहा है ?

गांधी निर्वस्त्र हुए क्योंकि हमारा लुटा हुआ देश भूखा और नंगा था इसीलिए उस बैरिस्टर ने जब अपने आधुनिक लिबास उतार दिए और मात्र एक धोती धारण की तो उस जमाने का हर आदमी उसका मुरीद हो गया. गांधी के महात्मा बनने की यात्रा एक अंतर्यात्रा है. इस अंतर्यात्रा ने गांधी के अंतर्मन को जनता के सामने रख दिया. जनता नतमस्तक हो गई. दुनिया में हम सब सामान्य आत्माएं हैं तो वह महात्मा था, क्योंकि वह असाधारण था.

जुगनुओं के छटपटाने से चंद्रमा की चमक मद्धिम नहीं होती. नफरती गिरोह के फेर में मत फंसें. अपने बच्चों को गांधी के बारे में बताएं. भूखे भारत के उत्कट संघर्षों के बारे में बताएं और इस गिरोह से अपने बच्चों को बचाएं. महात्मा गांधी के बिना आधुनिक भारत का कोई इतिहास नहीं लिखा जा सकता और न कोई भविष्य हो सकता है.

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