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यूक्रेन में हथियारों के प्रदर्शन से अमेरिकी साम्राज्यवाद की बांछें खिली

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यूक्रेन में हथियारों के प्रदर्शन से अमेरिकी साम्राज्यवाद की बांछें खिली
यूक्रेन में हथियारों के प्रदर्शन से अमेरिकी साम्राज्यवाद की बांछें खिली

यूक्रेन में रूसी हमले से अमेरिकी साम्राज्यवाद की बांछें खिल गई है. यूक्रेन में रुस की सेना के विरुद्ध बलि का बकरा बने जेलेंस्की के माध्यम से हथियारों को बेचकर अमेरिकी अपने हथियारों का प्रदर्शन दुनिया भर में कर हथियार बेचकर जमकर कमाई कर रहा है. हथियारों के इस व्यापार में अमेरिका के साथ ब्रिटेन भी शामिल है. ताजा रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि इस जंग से अमेरिका की बल्‍ले-बल्‍ले हो गई है. इसे ही कहते हैं हर्रे लगे न फिटकरी, रंग आये चोखा.

एक ताजा रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि यूक्रेन की युद्ध के कारण अमेरिका की बांछें खिल गई है. अमेरिकी रक्षा कंपनियां हथियारों की आपूर्ति करके जहां अरबों डॉलर कमा रही हैं, वहीं अपने हथियारों का खुला प्रदर्शन भी कर रहा है. मालूम हो कि अमेरिका के अर्थव्यवस्था का मुख्य आधार हथियारों की सप्लाई करना है.

एशिया टाइम्‍स की रिपोर्ट के मुताबिक इस युद्ध से रक्षा के क्षेत्र में बड़े पैमाने पर खर्च शुरू हो गया है. यूरोपीय यूनियन ने ऐलान किया है कि वह 45 करोड़ यूरो के हथियार खरीदेगा और उसे यूक्रेन का सौपेंगा. उधर, अमेरिका ने कहा है कि वह 35 करोड़ डॉलर की अतिरिक्‍त सैन्‍य सहायता देगा. इससे पहले अमेरिका ने 65 करोड़ डॉलर की सैन्‍य सहायता यूक्रेन को दी थी. इन सबको मिलाकर अगर देखें तो अमेरिका और नाटो देश 17 हजार ऐंटी टैंक हथियार और 2000 स्टिंगर एंटी एयरक्राफ्ट मिसाइलें यूक्रेन को बेच दिया है.

यही नहीं यूक्रेन में रूस के खिलाफ विद्रोही गुट को पैदा करने के लिए ब्रिटेन, ऑस्‍ट्रेलिया, तुर्की और कनाडा के नेतृत्‍व में एक अंतरराष्‍ट्रीय गठबंधन बन रहा है. इन सब फैसलों से दुनिया की दिग्‍गज हथियार निर्माता कंपनियों की चांदी हो गई है. इसे इस तरह से समझ सकते हैं कि अमेरिकी कंपनी रेथियान स्टिंगर मिसाइल बनाती है. इसके अलावा रेथियान लॉकहीड मॉर्टिन के साथ मिलकर जेवलिन एंटी टैंक मिसाइल बनाती है, जिसे अमेरिका और अन्‍य नाटो देशों ने बड़े पैमाने पर यूक्रेन को दिया है.

यूक्रेन पर रूस के हमले के बाद से ही लॉकहीड और रेथियान के शेयर के दाम क्रमश: 16 प्रतिशत और 3 प्रतिशत तक बढ़ चुके हैं. इसके अलावा ब्रिटेन की कंपनी बीएई सिस्‍टम के शेयर के दाम में भी 26 फीसदी की तेजी आई है. ये कंपनियां अब अपने निवेशकों को होने वाली कमाई के बारे में बता रही हैं. रेथयान ने 25 जनवरी को कहा था कि यूएई में ड्रोन हमले और साउथ चाइना सी में तनाव को देखते हुए रक्षा खर्च बढ़ने जा रहा है, इससे हमें फायदा हो सकता है. अब यूक्रेन की जंग शुरू होने के बाद जर्मनी और डेनमार्क दोनों ने ही रक्षा बजट बढ़ाने का ऐलान किया है.

हथियार उद्योग की बात करें तो अमेरिका दुनिया में सबसे आगे है. साल 2016 से 2020 तक के बीच में दुनिया में कुल बिके हथियारों में से 37 फीसदी अमेरिका ने बेचा था. इसके बाद रूस का 20 फीसदी, फ्रांस 8 फीसदी, जर्मनी 6 और चीन 5 फीसदी था. इन निर्यातकों के अलावा कई और देश हैं जो इस युद्ध में यूक्रेन को मोहरा बनाकर जमकर कमाई कर रहे हैं. इसमें तुर्की सबसे आगे है जो रूस की चेतावनी के बाद भी यूक्रेन को अपने घातक हमलावर ड्रोन विमान दे रहा है, इससे तुर्की का हथियार उद्योग चमक गया है. इसके अलावा इजरायल का रक्षा उद्योग भी अपना हाथ धो रहा है.

अमेरिकी हथियारों के प्रदर्शन पर पश्चिमी मीडिया का न्यूज के शक्ल में विज्ञापन

यूक्रेन की धरती पर रुसी सेना के हथियारों के खिलाफ सीधे तौर पर अमेरिकी हथियार प्रयुक्त हो रहा है. यानी रुसी हथियारों से सीधा अमेरिकी हथियारों का टक्कर हो रहा है, इसलिए पश्चिमी मीडिया, जिसके साथ भारतीय मीडिया भी है, ऐसा दर्शा रहा है मानो रुसी हथियार से अमेरिकी हथियार ज्यादा बेहतर है, ताकि दुनिया के बाजार में अमेरिकी हथियारों की खरीद बढ़ सके.

पश्चिमी मीडिया किस प्रकार अमेरिकी हथियारों का न्यूज के शक्ल में विज्ञापन करता है, इसे एक उदाहरण से समझा जा सकता है –

एशिया टाइम्‍स की रिपोर्ट के मुताबिक रूस दुनिया को गेहूं, तेल, गैस और हथियारों का मुख्‍य रूप से निर्यात करता है. यूक्रेन की जंग से पहले रूस के हथियारों की बिक्री उफान पर थी और उसके पास 55 अरब डॉलर के ऑर्डर थे. पश्चिमी देशों की तुलना में रूस ने बहुत कम दाम में दुनिया के कई देशों को हथियार दिए. इनमें से कई हथियार जैसे एस-400 ऐसे थे जो प्रतिस्‍पर्द्धा में बहुत ही आगे थे. यूक्रेन की जंग शुरू होने के बाद अब हालात बदलते दिख रहे हैं.

रूस के टैंक, फाइटर जेट, हेलिकॉप्‍टर और मोबाइल एयर डिफेंस सिस्‍टम यूक्रेनी सेना के हमले में आसानी से तबाह हो जा रहे हैं. यूक्रेन में रूसी हथियारों की इस तबाही को मास्‍को से हथियार खरीदने वाले देश पूरी शिद्दत के साथ देख रहे हैं. इससे अब रूस के हथियारों की बिक्री के सपने को बहुत बड़ा झटका लगता दिख रहा है.

रूस ने यूक्रेन के कुछ ड्रोन विमानों को जहां मार गिराया है, वहीं बड़ी संख्‍या में बचे हुए हैं और रूसी सेना में तबाही मचा रहे हैं. वीडियो साक्ष्‍य सामने आए हैं जिसमें नजर आ रहा है कि रूस के आधुनिक अपग्रेडेड रिएक्‍ट‍िव आर्मर से लैस टी-72 टैंक को अमेरिकी जेवलिन और ब्रिटेन की NLAW मिसाइलों ने अपने हमले में नष्‍ट कर दिया.

कहा जा रहा है कि यूक्रेन ने अपने जमीन पर स्थित एयर डिफेंस सिस्‍टम से रूस के अत्‍याधुनिक SU-34 को भी मार गिराया है. एशिया टाइम्‍स ने कहा कि ऐस प्रतीत हो रहा है कि रूस के विमान में रेडॉर वार्निंग सिस्‍टम और मिसाइलों से बचाव के उपकरण उतने अच्‍छे नहीं है जिससे रूसी विमान को बचाया जा सके.

न्यूज के शक्ल में परोसे गये अमेरिकी हथियार का यह विज्ञापन कितना हास्यास्पद है इसका पता इसी बात से चलता है कि अगर रुसी हथियार कमजोर होते या अमेरिकी हथियारों से सचमुच में तबाह हो गये होते तब यूक्रेन के इस युद्ध में अमेरिकी साम्राज्यवाद की अगुवाई में नाटों के गुंडों को रुस पर हमला करने में एक पल की भी देरी नहीं होती.

जिस अमेरिकी साम्राज्यवाद और उसके गुंडा गिरोह नाटो ने अपना मिशन ही सोवियत संघ और फिर रुस को तबाह करना हो, आप उस अमेरिकी साम्राज्यवाद और नाटो से यह उम्मीद करते हैं कि रुस यूक्रेन पर हमला कर रहा है और यह गिरोह चुपचाप मूंह बंद कर बैठा रहता ? कतई नहीं. यह रुसी हथियारों का ही खौफ है जो अमेरिकी साम्रज्यवाद और उसका गुंडा गिरोह चुपचाप बैठा हुआ है.

दूसरी बात, यह बिल्कुल संभव है कि यूक्रेन के साथ युद्ध में रुसी हथियारों को नुकसान हुआ होगा, जो कि हर युद्ध में होता है, लेकिन इस नुकसान का संबंध हथियारों के कारगर होने या न होने से तय नहीं होता. युद्ध कोई भी हथियार नहीं लड़ता, युद्ध आदमी लड़ता है. हथियार आदमी का सहायक होता है, इसलिए यह कहना हझ कि अमेरिका का ‘यह’ हथियार रुस के ‘उस’ हथियार को ध्वस्त कर दिया, अमेरिकी मीडिया का महज एक विज्ञापन है और कुछ नहीं.

अमेरिकी साम्राज्यवाद का पुछल्ला बने भारत की मोदी सरकार लगातार भरोसेमंद रुस से अपने संबंध को कम कर रहा है और विश्वासघाती अमेरिका के साथ पींगें बढ़ा रहा है. रूस से भारत लगातार अपने हथियारों को कम खरीद रहा है. इसके लिए अमेरिका भारत पर दबाव भी बना रहा है और अमेरिका के सामने दण्डवत भी हो रहा है कि रूस के हथियारों की खरीद को और कम किया जाए.

हथियारों की खरीदारी कोई बेहतर चीज नहीं है, लेकिन जब हथियार खरीदना ही विकल्प हो तो भरोसेमंद रुस से हथियार खरीदने के बजाय विश्वासघाती अमेरिका से हथियार खरीदना बेहद जोखिम भरा फैसला है.

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ROHIT SHARMA

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